- देश के कई हिस्सों में केन्द्र और राज्य सरकारें बड़ी क्षमता के तैरते हुए सौर प्लांट लगा रहीं हैं।
- सरकार के उपक्रम और ऐसी परियोजना लगाने वाली कंपनियों का कहना है कि तैरते सौर पैनल के माध्यम से ऊर्जा उत्पन्न करने की, देश में अपार क्षमता है।
- कुछ अध्ययन में इससे होने वाले नुकसान की बात भी सामने आ रही है। पानी की गुणवत्ता प्रभावित होने के साथ-साथ जीव-जंतुओं को भी खतरा हो सकता है। विशेषज्ञ इस मुद्दे पर और अध्ययन की जरूरत पर जोर दे रहे हैं।
भूरबन्धा, असम राज्य के मोरीगांव ज़िले का एक ऐसा गांव है जहां वर्ष 2017 तक बिजली नहीं पहुच पाई थी। गाँव में पढ़ाई करने वाले छात्र अक्सर किरोसिन तेल से जलने वाले लालटेन या लैंप की मदद से पढ़ाई करते थे। ब्रह्मपुत्र नदी से 20 किलोमीटर दूर बसे इस गांव में बाढ़ के दिनों में तो ग्रामीणों की तकलीफ कई गुना बढ़ जाती थी। दूर-दराज़ का इलाका होने के कारण यहां बिजली के तार के आने की संभावना भी नहीं के बराबर थी।
फिर 2017 में असम एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (एईडीए) ने यहां तैरने वाले सौर पैनल की परिकल्पना की और पास के ही एक तालाब में 10 किलोवाट की क्षमता का ऑफ ग्रिड पैनल लगाया। इस सौर पैनल से इस गांव की तस्वीर बदल गई।
“पहले हमारा गांव, रात के समय में,अंधेरे में डूब जाया करता था। बच्चों की पढ़ाई से लेकर भोजन पकाने इत्यादि के लिए हमलोग केरोसिन का इस्तेमाल करते थे। बाढ़ के दिनों में तो हमलोग ऐसे ही तबाह रहते हैं और फिर चारो तरफ घुप्प अंधेरा। पर इस सौर पैनल के लग जाने से हमारी ज़िंदगी मे काफी बदलाव आया हैं,” संजय कोंवर ने बताया जो भूरबन्धा के ही रहने वाले हैं।
ऐसी ही कहानी असम के कई गावों की है जहां सामान्य तरीके से बिजली नहीं जा सकती थी। इन गावों में तैरते सौर पैनल लगे और रोशनी आ गयी। इन परियोजनाओं से उत्साहित होकर असम की सरकार ने 10 किलोवाट के ऐसे 10 ऑफ ग्रिड परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है। बल्कि टेंडर भी आवंटित कर दिये हैं।
पिछले पांच वर्षों में तैरते सौर पैनल के क्षेत्र मे काफी इजाफा हुआ है। देश के कई हिस्सों में बड़ी क्षमता के ऐसे पावर प्लांट लगाए भी जा रहे हैं। आंकड़ों की माने तो भारत मे ऐसे 15 तैरने वाले सौर पावर प्लांट पर काम चल रहा है जिनकी कुल क्षमता करीब 1832 मेगावाट है।
हालांकि, तैरने वाले सौर पैनल का कारोबार ज़मीन पर बने सोलर संयंत्र की अपेक्षा नया है। इस तकनीक को विकसित करने के लिए देश की कई छोटी और बड़ी कंपनिया सामने आ रही हैं। ऐसे ही लोगों में शामिल हैं सिद्धान्त अग्रवाल और पंकज कुमार। कुछ वर्षो पहले इनलोगों ने आईआईटी, खड़गपुर से इंजिनीयरिंग की पढ़ाई पूरी की और फिर सिंगापुर काम करने चले गए। अब इनलोगों ने तैरने वाले सौर पैनल मे तकनीकी सहायता देने के लिए कुयांत सोलर की स्थापना की है। इसके कंपनी के माध्यम से ए सरकार और सरकारी उपक्रम के कई ऐसी परियोजनाओं पर साथ मे मिलकर काम करते हैं।
सिद्धान्त अग्रवाल ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि जमीन पर सौर संयंत्र लगाने की अपेक्षा तैरने वाले सौर पैनल लगाना आसान है। इसमें भूमि अधिग्रहण, मुआवजा जैसी समस्याओं से निजात मिल जाती है। इनकी बिजली उत्पादन की क्षमता भी जमीन पर लगाए गए सौर पैनल से 5 प्रतिशत अधिक होती हैं, अग्रवाल दावा करते हैं।
“देश मे कई तैरने वाले सौर पैनल, बांध के पास होते हैं। ऐसी जगहों पर पहले से ही बिजली से जुड़ा सपोर्ट सिस्टम मौजूद होता हैं। जैसे बिजली की लाइन यहां पहले से ही मौजूद होती है। गांव या अन्य रिहाईश इलाकों से निकट होने की वजह से बिजली वितरण लाइनों पर निवेश की जरूरत भी कम होती है,” अग्रवाल ने बताया।
हालांकि अग्रवाल मानते है कि तैरने वाले सौर पैनल का संयंत्र लगना, अभी शुरुआती दौर में हैं। उम्मीद जताते हैं कि आने वाले दिनों मे देश के स्वच्छ ऊर्जा संबंधी लक्ष्य को हासिल करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। सनद रहे कि भारत सरकार ने 2030 तक देश में 500 गीगावाट क्षमता का स्वच्छ ऊर्जा की क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
देश के कई सरकारी उपक्रम जैसे की एनटीपीसी, एनएचपीसी, ओएनजीसी, बीएचईएल एवं राज्य सरकार की संस्थाएं भी बड़े स्तर पर ऐसे तैरते हुए सौर पॉवर प्लांट लगा रही हैं। एनटीपीसी ने हाल मे ही तेलंगाना के रामगुंडम मे देश के सबसे बड़े तैरते हुए सौर पावर प्लांट की स्थापना की है। इसकी क्षमता 100 मेगावॉट की है। मध्य प्रदेश मे भी 1000 मेगावाट का एक संयंत्र स्थापित किया जा रहा है। एनएचपीसी 2850 मेगावाट का ऐसा ही एक संयंत्र स्थापित करने का प्लान बना रहा है। इसके लिए झारखंड, ओडिशा, तेलंगाना तथा कुछ और राज्यों का चयन किया गया है।
देश मे सौर ऊर्जा के विकास के लिए समर्पित, सोलर एनर्जी कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेकी) ने भी 2022 तक 10 गीगावाट का तैरते हुए सौर पैनल से संयंत्र स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। टेरी नाम की एक संस्था ने अध्ययन किया और बताया कि देश मे करीब 1800 वर्क किलोमीटर के क्षेत्र में पानी की सतह पर सोलर प्लांट्स लगाए जा सकते हैं। ऐसा करने पर सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता में करीब 280 गीगावाट का इजाफा होगा। वर्तमान में देश मे कुल 5,264 बांध है और 437 बांध अभी निर्माणाधीन हैं।
अरुण कुमार, आईआईटी, रुड़की में हाइड्रो एवं नवीन ऊर्जा विभाग मे प्रोफेसर हैं। कुमार कहते है कि तैरते सौर प्लांट, एक नई तकनीक है। पर्यावरण पर इसके प्रभाव का अध्ययन होना बाकी है। बेहतर यह होगा कि भविष्य में इसके होने वाले परिणाम पर विचार-विमर्श हो, कुमार कहते हैं।
जलस्रोतों में सोलर पावरप्लांट लगाने से जुड़ी संभावित समस्या की तरफ इशारा करते हुए कुमार कहते हैं, “कई विभागों से अनुमति लेना होगा, जैसे, सिंचाई विभाग, मत्स्य विभाग, हाइड्रो पावर इत्यादि। ऐसे में संयंत्र लगाने में देरी की संभावना बनी रहेगी। इसलिए ऐसे परियोजनाओं को ध्यान में रखकर एक विस्तृत दिशा निर्देश लाया जाना चाहिए। ऐसे परियोजनाओं मे काम आने वाले तकनीक के मापदंड भी तय किए जाने चाहिए।”
कुछ विशेषज्ञों का कहना हैं कि प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त राज्यों मे ऐसे सौर प्लांट्स को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। के.सी.पात्रा, एनआईटी-राउरकेला मे लगभग तीन दशको से नदियों और नदी परियोजनाओं पर काम कर रहें हैं। उन्होनें मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “देश में ओडिशा जैसे कई राज्य हैं जहां चक्रवात आने का खतरा बना रहता है। इन राज्यों में तैरने वाले सौर प्लांट्स को नुकसान का खतरा बना रहेगा। बाढ़ वाले प्रदेशों मे भी चुनौतियां आएंगी। हालांकि पिछले कुछ वर्षो मे इस क्षेत्र मे अच्छा काम हुआ है और इनका भविष्य अच्छा प्रतीत होता है।”
पात्रा ने ये भी बताया की ऐसे प्रयोग से जलाशय मे रहने वाले जल प्राणियों एवं जल जीवन पर असर हो सकता है। इस विषय मे अधिक अध्ययन की जरूरत है। देश या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसको लेकर अभी अध्ययन कम ही हुए हैं। कुछ अध्ययनों में जल स्रोतों पर सोलर पैनल के हानिकारक प्रभाव की तरफ इशारा किया गया है।
अध्ययन में यह भी बात सामने आई है कि तैरते हुए सौर पैनल की वजह से पानी की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इससे पानी की सतह पर ऑक्सीजन की मात्रा में कमी होती है। फिर इससे जुड़े अन्य नुकसान तो हैं ही।
बैनर तस्वीर: विशाखापटनम मे स्थित 25 मेगावाट का तैरता सोलर प्लांट। तस्वीर-पीआईबी