- उत्तर प्रदेश के बलिया जिले मे स्थित जय प्रकाश नारायण (सुरहा ताल) पक्षी अभयारण्य की स्थापना 1991 में की गई थी। यह एक प्राकृतिक झील है जो कई प्रवासी प्रजातियों के पक्षियों सहित स्थानीय पक्षियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
- अभयारण्य के आसपास का क्षेत्र 2019 में पूरी तरह पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र माना गया। इसके बाद अभयारण्य के आसपास कई गतिविधियों को प्रतिबंधित और नियंत्रित करने का प्रावधान बना। लेकिन, पर्यावरणविदों के अनुसार अभयारण्य क्षेत्र के भीतर ही जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय का होना पक्षियों और आर्द्रभूमि के लिए खतरा हो सकता है।
- यह बताया गया है कि हाल ही में विश्वविद्यालय के लिए अभयारण्य के बाहर एक वैकल्पिक स्थल खोजने की योजना थी, लेकिन इसे अंतिम रूप नहीं दिया जा सका। विश्वविद्यालय की सुविधाओं के विस्तार के लिए अब निर्माण कार्य शुरू हो गया है।
संरक्षित क्षेत्र यानी पशु-पक्षियों के रहने का ऐसा स्थान जहां वे निर्भिक होकर घूम-फिर सकते हैं। ऐसे क्षेत्र में निर्माण गतिविधि होना हमेशा विवाद की वजह बनता है। लेकिन तब क्या किया जाए जब ऐसे क्षेत्र से एक विश्वविद्यालय संचालित हो रहा हो और उसके विस्तार की तैयारी चल रही है। यह मामला, उत्तर प्रदेश के बलिया स्थित अभयारण्य से जुड़ा है।
अभयारण्य का नाम है जय प्रकाश नारायण (सुरहा ताल) पक्षी अभयारण्य। इसके भीतर जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय स्थित है। विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए भूमि 2018 में शहीद स्मारक ट्रस्ट द्वारा स्थानांतरित की गई थी, जो 1997 से पक्षी अभयारण्य के अंदर ही स्थित है।
विश्वविद्यालय सुविधाओं का विस्तार होना है। आरोप है कि वन एवं वन्य जीव विभाग से आवश्यक मंजूरी और अनुमति के बिना ही इसके लिए निर्माण कार्य शुरू हो गया है।
बलिया में जिला मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर 34.32 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह वन क्षेत्र, 1991 में पक्षी अभयारण्य के रूप में स्थापित हुआ। सुरहा ताल झील बलिया जिले की सबसे बड़ा फ्लडप्लेन है जहां बाढ़ का पानी जमा होता है। गंगा नदी से ही यहां पानी आता है।
भारत सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के अनुसार पक्षी अभयारण्य विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों और जीवों के लिए एक अच्छा आवास प्रदान करता है। यहां विभिन्न प्रकार के पक्षी आवास और खाने की तलाश में आते हैं।
इस मुद्दे को समझने के लिए मोंगाबे-हिन्दी ने भारतीय वन सेवा के पूर्व अधिकारी और पर्यावरणविद् मनोज मिश्रा से बातचीत की। मिश्रा यमुना नदी को फिर से जीवंत करने के लिए काम करने वाले एक समूह ‘यमुना जिये अभियान’ का नेतृत्व करते हैं। उन्होंने कहा कि पक्षी अभयारण्य को 1990 के दशक में बहुत पहले अधिसूचित किया गया था। इसके पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र को कुछ साल पहले ही अधिसूचित किया गया था।
“इस निर्माण की योजना से पता चलता है कि कैसे एक राजनीतिक निर्णय संरक्षित क्षेत्रों में वन्यजीवों पर अवैध रूप से कहर बरपा सकते हैं। जो योजना बनाई गई है वह एक समृद्ध पक्षी अभयारण्य के हिसाब से अवैध और विनाशकारी है। इस झील को गंगा का ‘बैल-धनुष झील (गोखुर झील)’ मानते हैं और यह बाढ़ क्षेत्र भी है,” मिश्रा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
गोखुर झील की आकृति धनुष के आकार या गाय के खुर (पंजे) जैसी होती है।
राज्य के वन विशेषज्ञों द्वारा किए गए शोध से पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि इस अभयारण्य के दायरे में आने वाले तालाब पर कृत्रिम दबाव बहुत अधिक है। वैसे तो यहां पक्षियों की कई प्रजातियां दिखती हैं पर उनकी संख्या घट रही है।
यह अभयारण्य नीलगाय, एशियाई सियार, बिज्जू, फिशिंग कैट, नेवला, बंगाली लोमड़ी, धारीदार गिलहरी, भारतीय कलगीदार साही, रॉक अजगर, कोबरा, बंगाल मॉनिटर और कछुओं की कई प्रजातियों का निवास स्थान है।
पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार, अभयारण्य में कई पक्षियों की प्रजातियां रहती हैं जैसे कि सारस क्रेन, मवेशी इग्रेट, लिटिल एग्रेट, मोर, ग्रे बगुला और पीले पैरों वाला हरा-कबूतर। यहां पक्षियों की बड़ी संख्या में प्रवासी प्रजातियों जैसे रेड-क्रेस्टेड पोचार्ड, एशियन ओपनबिल-स्टॉर्क, एशियन वूलीनेक, ग्रे हेरॉन, पर्पल हेरॉन, इंडियन पॉन्ड हेरॉन, और ब्लैक-क्राउन नाइट हेरॉन का आना-जाना बना रहता है।
स्थानीय समाचारपत्रों की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार के शीर्ष अधिकारी वन्यजीवों, पक्षियों और वेटलैंड (आर्द्रभूमि) पर निर्माण के खतरों को समझते हैं, लेकिन फिलहाल यह खतरा बना हुआ है।
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कथित विस्तार के संबंध में मोंगाबे-हिन्दी द्वारा जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के कुलपति को भेजे गए प्रश्नों के उत्तर, खबर लिखने तक नहीं मिले हैं। उत्तर प्रदेश सरकार में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री अरुण कुमार सक्सेना को भेजे गए सवाल का भी कोई जवाब नहीं मिला है।
इस विनाश को रोकने का क्या कोई रास्ता है?
पक्षी अभयारण्य को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र मार्च 2019 में अधिसूचित किया गया था।
अधिसूचना के अनुसार, पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र “जय प्रकाश नारायण (सुरहा ताल) पक्षी अभयारण्य की सीमा के चारों ओर एक किलोमीटर का एक दायरा है और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र का क्षेत्रफल 27 वर्ग किलोमीटर है।”
अधिसूचना में कहा गया है कि पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र को वाणिज्यिक या आवासीय या औद्योगिक गतिविधियों के लिए क्षेत्रों में परिवर्तित नहीं किया जाएगा। इसमें उल्लेख किया था कि अभयारण्य के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र में वाणिज्यिक खनन, पत्थर की खदान और क्रशिंग इकाइयों, प्रदूषण पैदा करने वाले उद्योगों, नई आरा मिलों, जलविद्युत परियोजना और ईंट भट्टों जैसी गतिविधियों को प्रतिबंधित किया जाएगा।
अधिसूचना में यह भी स्पष्ट किया गया था कि अभयारण्य क्षेत्र की सीमा से एक किलोमीटर के भीतर या पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र की सीमा तक, जो भी निकट हो, किसी भी नए वाणिज्यिक होटल / रिसॉर्ट और किसी भी प्रकार के नए वाणिज्यिक निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी।
वर्तमान मामले में अभयारण्य के अंदर विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य चल रहा है।
नाम न छापने की शर्त पर उत्तर प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा,विश्वविद्यालय, पर्यावरण और वन्य जीवन को खतरे में डालने के बावजूद अभयारण्य के भीतर काम कर रहा है।
उन्होंने कहा, “अब, विश्वविद्यालय के नवीनीकरण पर कई सौ करोड़ खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन इसके लिए आवश्यक अनुमति नहीं ली गयी। यह एक दुखद स्थिति है, हालांकि सभी जानते हैं कि अभयारण्य प्रवासी पक्षियों सहित कई पक्षियों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।”
उत्तर प्रदेश के वन विभाग के एक अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत की। उन्होंने विश्वविद्यालय के लिए एक वैकल्पिक साइट के बारे में हाल ही में बातचीत होने की बात स्वीकारी। उन्होंने कहा कि इस तरह की बातचीत के बावजूद कुछ भी नहीं हुआ।
“कुछ समय पहले विश्वविद्यालय को एक दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करने के बारे में बातचीत हुई थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वन्यजीव निकायों से कोई मंजूरी नहीं ली गयी है, न राज्य पर और न ही केंद्रीय स्तर पर। साल के कुछ महीनों के दौरान अभयारण्य का एक हिस्सा पानी के भीतर रहता है और विश्वविद्यालय जाने वालों को नावों का उपयोग करना पड़ता है। क्या, छात्र, विश्वविद्यालय तक पहुंचने के लिए नावों का उपयोग करेंगे,” अधिकारी ने सवाल किया।
मनोज मिश्रा कहते हैं कि इस इको सेन्सिटिव जोन की सीमा स्पष्ट रूप से निर्धारित है फिर भी यहां विश्वविद्यालय का कैंपस प्लान कर दिया गया, यह आश्चर्यजनक है।
उन्होंने कहा, “स्थानीय समाचारों में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि विश्वविद्यालय परिसर को स्थानांतरित करने के लिए एक वैकल्पिक स्थान का चयन किया गया था, लेकिन यह काम पूरा नहीं हुआ।”
बैनर तस्वीरः सुरहा ताल झील बलिया जिले की सबसे बड़ा फ्लडप्लेन है जहां बाढ़ का पानी जमा होता है। तस्वीर- बलिया जिला प्रशासन