- पन्ना टाइगर रिजर्व के 25 गिद्धों की गतिविधियों पर निगरानी करने के लिए जियोटैगिंग की गयी है। इसमें विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके भारतीय गिद्ध भी शामिल हैं।
- टैगिंग द्वारा प्राप्त डेटा का उपयोग संरक्षण गतिविधि के लिए किया जा सकता है। इन आंकड़ों का इस्तेमाल नीतिगत कार्यवाही और संरक्षित क्षेत्र में गिद्धों के लिए अनुकूल स्थिति का प्रबंधन करने में किया जा सकता है।
- यह अध्ययन इन गतिविधियों का बेसलाइन डेटा इकट्ठा करेगा और डेटा के विश्लेषण से रिजर्व क्षेत्र और उसके आसपास के सभी जानवरों और गिद्धों के स्वास्थ्य संबंधी स्थिति का पता चलेगा।
करीब तीन महीने पहले मध्य प्रदेश के संरक्षित क्षेत्र में पन्ना में टाइगर रिजर्व के लगभग दो दर्जन गिद्धों की गतिविधि को वैज्ञानिक रूप से निगरानी करने के लिए उन्हें जीपीएस से टैग किया गया। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) के वैज्ञानिक रमेश ने मोंगाबे-इंडिया को बताया “हमने अभी तक 25 गिद्धों को टैग किया है, इनमें 13 भारतीय गिद्ध, आठ हिमालय के ग्रिफॉन गिद्ध, दो यूरेसियन ग्रिफॉन गिद्ध और दो किंग गिद्ध शामिल हैं। इन गिद्धों को पारंपरिक तरीके जैसा बाड़े में चलना, एक पैर पकड़कर काबू करना और ताली बजाकर फंसाने जैसे तरीकों से काबू किया गया। ये सभी पारंपरिक तरीके हैं जिसका उपयोग करके अतीत में कई प्रवासी पक्षियों को सफलता से टैग किया गया है इनमें गिद्ध भी शामिल हैं। टैग किये गये गिद्धों में लगभग विलुप्त होने के कगार पर खड़ी भारतीय गिद्ध की प्रजाति भी है।
गिद्धों के टैगिंग के काम को एक टीम ने अंजाम दिया। इस टीम में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के पशु चिकित्सक, पेशेवर पशु ट्रेप्पर, पन्ना टाइगर रिजर्व के पशु चिकित्सा अधिकारी और अन्य अधिकारी शामिल थे। टीम ने 2020-2021 और 2021-2022 की सर्दी में टैगिंग किया। इस काम में तैयारी,पकड़ना, टैग करना, मापना और छोड़ना जैसे कई चरण होते हैं। हर दिन सूरज उगने से पहले टीम क्षेत्र में पहुंचती थी, ट्रैप लगाती थी और पक्षी का इंतजार करती थी। कृष्णमूर्ति ने बताया, “कभी-कभी गिद्ध ट्रैप की जगह पर आ जाते थे लेकिन कई बार वे नहीं भी आते थे।”
टीम के सामने आने वाली चुनौतियों की फेहरिस्त शामिल है। जैसे ट्रैप करने की जगह पर अन्य जानवरों का आना। कभी कभी तो बाघ भी आ जाता था। इस कारण से गिद्ध बहुत देर से वहां आते थे।
पकड़े गये गिद्धों को जीपीएस टैग जिसे इ-ओबीएस टैग कहा जाता है, से टैग किया गया। जर्मनी में बना यह जीपीएस टैग सौर ऊर्जा से चलता है और उसका वजन 25 ग्राम से 75 ग्राम के बीच है। गिद्धों के 12 किलो वजन को देखते हुए जीपीएस टैग कहीं ज्यादा हल्का था।
कृष्णमूर्ति ने बताया कि जीपीएस को डाटा संग्रह करने, स्टोर करने और ट्रांसमिशन लिंक में आने पर डाटा को संप्रेषित करने के लिए बनाया गया था। उन्होने आगे जोड़ा, “ये जीएसएम आधारित टैग है और पक्षी जब उड़ने लगता है और आसमान की ऊंचाइयों में जाने लगता है तब डाटा का आना शुरू हो जाता है। इसके साथ ही हर 5 मिनट के अंतराल में डाटा संग्रह करता है। इसके कारण ऊंचाई, तापमान और गतिविधि के साथ साथ सटीक डाटा मिल पाता है।”
स्थानीय और प्रवासी दोनों तरह के गिद्धों को टैग किया जाता है। इससे वन्यजीव संरक्षकों को गिद्धों को खिलाने और आराम करने के लिए जाने वाली जगहों का पता लगाना संभव होगा। गिद्धों के लिए खतरा होने वाली जगहों के बारे में जानकारी से उन्हें बचाने और सुरक्षित करने के लिए संरक्षक टीम को हस्तक्षेप करने की योजना बनाने में मदद मिलेगी।
वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के जूनियर रिसर्च फ़ेलो दिव्येंदु विश्वास मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए कहते हैं कि जीपीएस इंसान द्वारा जॉगिंग और व्यायाम करते समय उपयोग किये जाने वाले स्मार्ट घड़ी की तरह है। जिस तरह से स्मार्ट घड़ी हमें बताता है कि कितने समय हम दौड़े, कितने कदम हम चले, उसी तरह से जीपीएस गिद्धों के व्यवहार और गतिविधि के बारे में जानकारी मुहैया करता है।
वन्यजीव संरक्षकों को गिद्धों की टैगिंग से उनकी गतिविधि, रोजमर्रा का व्यवहार, जैसे उनके पानी पीने का तरीका,आपस में संवाद का तरीका,नई जगहों पर उसके अनुकूल अपने को ढालने की क्षमता और नई जगह पर वे अपने को कैसे सुरक्षित करते हैं,जैसी जानकारी मिल सकती है। इन जानकारियों से हमें इकोसिस्टम में अमूल्य सेवा देने वाले गिद्धों को संरक्षित करने के बारे में और ज्यादा समझदारी विकसित होगी। गिद्ध फूड वेब में पौष्टिक तत्व की पूर्ति को बढ़ाता है और मरे हुए जानवरों को खाकर हमें संक्रमण से बचाता है। .
पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के निर्देशक उत्तम कुमार शर्मा के अनुसार “गिद्धों की प्रजाति के संरक्षण में मध्य प्रदेश को अच्छा नतीजा मिला है। 2021 में राज्य में गिद्धों की संख्या बढ़कर 9446 हो गयी है।” भारत में गिद्धों की नौ प्रजाति पायी जाती है। इनमें तीन प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है और सात प्रजाति पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में है। यहां पायी जाने वाली प्रजातियों में हिमालयन ग्रिफॉन गिद्ध , यूरेशियन गिद्ध, सिनेरिस गिद्ध, भारतीय गिद्ध, व्हाइट–रेप्ड गिद्ध, लाल सिर वाला गिद्ध और मिस्र के गिद्ध शामिल हैं।.
पिछले सदी के अंत में गिद्धों की संख्या में विनाशकारी कमी होने के बाद इन पक्षियों की आवाजाही के पैटर्न को समझने के लिए टेलीमेट्री आधारित अनुसंधान जरूरी हो गया है। इन पक्षियों के संरक्षण के लिए इनके प्रवास,खाना ढूंढना, आराम करना, घोंसला बनाना, नहाना और अन्य तरह के व्यवहारों के बारे में जानकारी जरूरी है। इन पक्षियों को जीवित रहने के लिए विशाल क्षेत्र जिसमें इंसान के रहने वाली जगहों और शवों का डंप भी शामिल है,के मद्देनजर यह और जरूरी हो जाता है। मौजूदा वैज्ञानिक साहित्य के अनुसार 24 देशों के 14 गिद्ध प्रजाति को टैग किया गया है और अध्ययन किया गया है। इसमें भारत शामिल नहीं है।
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मौजूदा अध्ययन स्थान-समय के अनुसार इन गतिविधियों का बेसलाइन डाटा मुहैया करेगा। सैंपल से रक्त से संबन्धित और सूक्ष्म जैविक विश्लेषण से एक गिद्ध की स्वास्थ्य स्थिति और कुछ हद तक रिजर्व के आसपास के गिद्धों के स्वास्थ्य के बारे में समझ बढ़ेगी। मौजूदा अध्ययन की सभी जानकारियों का नीतिगत प्रभाव पड़ेगा, मौजूदा जानकारियों की सीमा का पता चलेगा और पन्ना में गिद्धों को स्थिति के अनुरूप ढालने का प्रबंध करने में मदद मिलेगी।
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बैनर तस्वीरः मध्य प्रदेश के ओरछा में अपने घोसले में गिद्ध। तस्वीर– Yann (talk)/विकिमीडिया कॉमन्स