- कई राज्यों में किसानों को रात में अपनी फसलों में पानी देना पड़ता है। इन राज्यों में खेती के लिए बिजली सिर्फ रात में ही मिलती है। ऐसी स्थिति में सिंचाई करते वक्त सर्द मौसम और जंगली जानवरों के खतरे का सामना करना पड़ता है।
- पंप सेटों को चलाने के लिए बिजली जरूरी है। ये पंप सेट खेती-बाड़ी का अहम हिस्सा बन गए हैं।
- राजस्थान पर आधारित एक हालिया अध्ययन में दावा किया गया है कि राज्य और देश सौर ऊर्जा के रास्ते पर चलकर भविष्य की ऊर्जा जरूरतों के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे पर बड़ी रकम बचा सकते हैं।
राजस्थान के गंगानगर जिले में लुढ़कता पारा नए रिकॉर्ड बना रहा है। हालात ऐसे हैं कि लोग गर्म रजाई में भी ठिठुर रहे हैं। ऐसे वक्त में मोहनपुरा गांव के 50 वर्षीय किसान सतवीर सिंह को सर्दे रात अपने गेहूं के खेत में पानी देने के लिए जाना पड़ा। उनके मुताबिक इसकी वजह बिजली आपूर्ति है जो खेती के कामों के लिए अक्सर रात में आती है।
सिंह कहते हैं कि गांव के कई लोग सांप के काटने और ऐसे ही अन्य हादसों में अपनी जान गंवा चुके हैं। ये लोग रात में खेतों की सिंचाई के लिए निकले थे। वे कहते हैं, “मेरा दर्द अपने उन साथियों की तुलना में कुछ भी नहीं है।” उन्हें उम्मीद है कि सरकार उनका दर्द समझेगी और दिन में (खेती के लिए) बिजली मुहैया कराएगी।
ऐसा भी नहीं है कि यह कोई ऐसी मांग है जिसे सिर्फ इसी गांव के लोग पूरा कराना चाहते हैं। राजस्थान में किसान लंबे समय से खेती-बाड़ी के लिए बिजली आपूर्ति की ऐसी समय-सारणी से जूझ रहे हैं। कुछ महीने पहले किसानों के एक समूह ने अजमेर जिले में सिर्फ रात में बिजली की आपूर्ति के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया था।
राजस्थान के सबसे हालिया बजट में, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने माना कि किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि वे रात के समय अपने खेतों पटवन करने के लिए मजबूर हैं। उन्होंने राहत देने का वादा किया था।
लेकिन यह समस्या सिर्फ राजस्थान तक सीमित नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि यह समस्या सिर्फ ठंड की वजह से है।
रात में जब किसान बाहर निकलते हैं तो जंगली जानवरों के चलते उनकी जिंदगी दांव पर लगी होती है। इस दिसंबर, कर्नाटक के मैसूरु जिले में चामुंडेश्वरी बिजली आपूर्ति निगम को सिंचाई पंप सेट के लिए रात से सुबह के घंटों तक बिजली आपूर्ति के समय को बदलना पड़ा। यह तेंदुए के हमले से हुई जानलेवा घटना के बाद हुआ। कर्नाटक इस मुद्दे पर चर्चा कर रहा है और किसानों को रात के बजाय दिन में बिजली देने की योजना बना रहा है।
इसी तरह, महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके के कई जिलों में सिर्फ रात में बिजली की दी जाती है। राज्य ने साल 2020 में किसानों को दिन के समय आठ घंटे बिजली मुहैया कराने की घोषणा की थी।
इस तरह देखा जाए तो किसानों को रात में बिजली आपूर्ति का मुद्दा बहुत बड़ा है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों को दिन में बिजली देने के वादे के साथ अपने गृह राज्य गुजरात में एक कार्यक्रम शुरू करना पड़ा। साल 2020 में शुरू की गई, किसान सूर्योदय योजना के तहत 2022 के आखिर तक राज्य के लगभग 18,000 गांवों में खेती को ध्यान में रखते हुए बिजली देने का लक्ष्य था।
खेती और बिजली
आजादी के बाद से ही भारतीयों ने जीवन जीने के तरीकों में कई बदलाव देखे हैं। ये बदलाव कृषि में भी दिखते हैं। भारत में खेती-बाड़ी अब भूमिगत जल पर निर्भर हो गई है। बिजली और डीजल से चलने वाले पंप सेट कृषि से जुड़े कामों का हिस्सा बन गए हैं। साल 1960-61 के दौरान बोरवेल सिंचाई का हिस्सा मात्र 1% था। साल 2008 में यह बढ़कर 60% तक पहुंच गया।
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की एक हालिया स्टडी में कहा गया है, “किसी भी साल में भारत के कुल भूजल का करीब 90% देश की कुल सिंचित भूमि के 70% के पटवन (सिंचाई) के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके चलते इलेक्ट्रिक पंपों की संख्या तेजी से बढ़ते हुए दो करोड़ दस लाख से ज्यादा हो गई है।
देश में खपत होने वाली कुल बिजली का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र में खपता है। साल 2020-21 में, कृषि क्षेत्र ने 12,27,000 GWh (गीगावाट घंटा) का 18% उपभोग किया। साल 2019 में किया गया एक अध्ययन बताता है कि भारत में खेती के लिए बिजली की मांग बढ़ रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2008-09 में इस सेक्टर ने 107 अरब यूनिट की खपत की। वहीं 2017-18 में खपत बढ़कर 205 अरब यूनिट तक पहुंच गई। दिल्ली स्थित एक अन्य थिंक टैंक, द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) का आकलन है कि 2030 में बिजली की मांग 307 अरब यूनिट तक पहुंच सकती है।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे का कहना है कि कृषि क्षेत्र को काफी मात्रा में बिजली की जरूरत पड़ती है। ट्रांसमिशन लोड फैक्टर को बनाए रखने के लिए कृषि क्षेत्र को रात के समय बिजली मिलती है। आमतौर पर कृषि से संबंधित बिजली आपूर्ति दो पारियों में करने की योजना है। उन्होंने कहा कि आधे गांवों को दिन में और आधे को रात में बिजली मिलती है।
सूरज की रोशनी उम्मीद की किरण
भारत में बिजली से जुड़ी चर्चाओं में अक्षय ऊर्जा केंद्र में है। इसने लाखों किसानों की उम्मीदों को पंख दिए हैं। भारत ने प्रधानमंत्री-कुसुम (PM-KUSUM) नाम से सौर-आधारित सिंचाई योजना शुरू की है। यह गांवों में सौर ऊर्जा से चलने वाले सौर पंपों पर आधारित है। मांग पर आधारित इस योजना के तहत सरकार 35 लाख कृषि पंपों को सौर ऊर्जा से लैस करने की योजना बना रही है।
फिलहाल पूरे देश में एनर्जी ट्रांजिशन (स्वच्छ तरीके से बिजली बनाना) की योजना पर काम हो रहा है। तो एक तरह से यह किसानों के लिए उम्मीद की एक और किरण है। क्योंकि 2022 के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि कृषि क्षेत्र को दिन के समय बिजली मुहैया कराने से बिजली सेक्टर की लागत में भारी कमी आएगी।
इस रिपोर्ट का नाम राजस्थान में नवीन ऊर्जा, स्टोरेज, व्हीकल इलेक्ट्रिफिकेशन और डिमांड रिस्पॉन्स के लिए अवसर है। रिपोर्ट के मुताबिक इस बदलाव से ट्रांजिशन लागत में बचत होगी और इसमें इसी मुद्दे की वकालत की गई है। नेशनल रिन्यूएबल एनर्जी लेबोरेटरी (एनआरईएल) की ओर से प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है, “कृषि लोड (बिजली से जुड़ा) में बदलाव से प्रचुर मात्रा में राज्य के सौर संसाधनों के इस्तेमाल को ज्यादा से ज्यादा करते हुए अधिक विश्वसनीय बिजली आपूर्ति करने का अवसर मिल सकता है।”
राजस्थान में कुल बिजली मांग का लगभग 50% खेती-बाड़ी से जुड़ा है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अगर इस मांग को राज्य में दिन के समय पर ले आया जाए, तो बिजली क्षेत्र की कुल लागत राजस्थान में 18% कम हो सकती है। वहीं पूरे भारत में 2050 तक 1.5% कमी लाई जा सकती है।
जब बिजली की मांग दिन के समय में स्थानांतरित हो जाती है, तो शाम के समय बिजली देने के लिए ऊर्जा स्टोरेज क्षमता और तापीय क्षमता की कम जरूरत होती है। अप्रत्याशित रूप से, लंबी अवधि में बनाई गई सौर क्षमता भी कम है। ऐसा इसलिए है क्योंकि स्टोरेज को चार्ज करने के लिए अतिरिक्त सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है। अध्ययन में दावा किया गया है कि जब शाम में बिजली की मांग को शिफ्ट किया जाता है, तो स्टोरेज को चार्ज करने के लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस तरह मांग को पूरा करने के लिए कुल सौर क्षमता की कम जरूरत होती है।
सौर ऊर्जा पर भरोसा करते हुए मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने सिंचाई के लिए दिन में अतिरिक्त सौर ऊर्जा देना शुरू कर दिया है।
इंटरनेशनल काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (आईसीआरआईईआर) के सीनियर विजिटिंग फेलो सोमित दासगुप्ता का कहना है कि यह निश्चित रूप से बिजली वितरण कंपनियों के लिए मददगार होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि आमतौर पर शाम और सुबह ज्यादातर राज्यों में पीक टाइम होते हैं। हालांकि जब सौर ऊर्जा की बात आती है तो मौसम की एक बड़ी भूमिका होती है। यह डिस्कॉम (वितरण कंपनियों) की बिजली खरीद लागत को कम कर सकता है। इस तरह वे अपने नुकसान को कम कर सकते हैं क्योंकि पीक समय पर ऐसी लागत गैर-पीक घंटों की तुलना में अधिकतम होती है।
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एक विशेषज्ञ का कहना है कि खेती से जुड़े कई कनेक्शनों में बिजली या तो शाम को आती है या रात में। रात में बिजली से जुड़ा लोड कम होता है। शायद यही वजह है कि कृषि क्षेत्र को रात में आपूर्ति की जाती है।
वो कहते हैं, “जब आप विकेंद्रीकृत रास्ते से सौर ऊर्जा लेते हैं, तो आप ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन घाटे से भी बचते हैं, जो ग्रिड में बहुत ज्यादा हैं। अगर आप सौर ऊर्जा वाला पंप इस्तेमाल करते हैं और जितनी सौर ऊर्जा आप पैदा कर रहे हैं और सरप्लस ग्रिड को दे रहे हैं तो इससे आपको लाभ भी होगा।”
अगर हम दिन के समय (सौर पीक ऑवर) में शिफ्ट हो जाते हैं, तो हम ग्रिड में जाने वाली सौर ऊर्जा की अधिकतम मात्रा का इस्तेमाल कर सकते हैं। दासगुप्ता कहते हैं, “इससे यह भी पक्का होगा कि हम जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कम कर सकते हैं और अतिरिक्त बैटरी स्टोरेज सिस्टम की जरूरत पर निर्भरता कम कर सकते हैं।”
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बैनर तस्वीर: गुमला जिले के गुनिया गांव के सीताराम उरांव अपने तरबूज के खेत में काम कर रहे हैं। तस्वीर- मनीष कुमार / मोंगाबे