- साल 2000 के आखिरी महीनों में, कर्नाटक के बेल्लारी जिले में लौह अयस्क का अवैध खनन जोरों पर था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2011 में लौह-अयस्क खनन पर पाबंदी लगाने के बाद, कई स्थानीय लोग बेरोजगार हो गए।
- खनन के लिए पहचाना जाने वाला यह इलाका पिछले कुछ सालों में नवीन ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश के लिए पसंदीदा जगह बनकर उभरा है।
- मजबूत ट्रांसमिशन केंद्र के पास होना, आसानी से उपलब्ध बंजर भूमि और अन्य उद्योगों की मौजूदगी ने यहां एनर्जी ट्रांजिशन को आगे बढ़ाने में भूमिका निभाई है।
- हालांकि, उभरता हुआ नवीन ऊर्जा सेक्टर अभी भी उन लोगों को राहत नहीं दे पा रहा है जो खनन गतिविधियों पर पाबंदी के बाद बेरोजगार हो गए हैं।
कर्नाटक में बेल्लारी जिले के सेंडूर तालुका का रणजीतपुर गांव लौह-अयस्क खनन के लिए जाना जाता रहा है। यहां रहने वाले 40 वर्षीय पूर्व खदान मजदूर ए. यारीस्वामी इस क्षेत्र में नए उद्योग के आने के गवाह बन रहे हैं। पिछले एक दशक में, यहां कई कंपनियों ने पवन टर्बाइन और सौर पैनल स्थापित किए हैं, जो यारीस्वामी को उम्मीदों को पंख दे रहे हैं। दो बच्चों के पिता यारास्वामी इस नए उभरते उद्योग को लंबी अवधि में नौकरी की सुरक्षा के लिए संभावित स्रोत के रूप में देखते हैं।
तब यारास्वामी बेल्लारी ज़िला गनी कर्मिक संघ (मजदूरों की यूनियन) से भी जुड़े थे। इसके चलते, यारीस्वामी का नाम उन लोगों में शामिल है, जिनकी साल 2011 में नौकरी चली गई। तब देश की शीर्ष अदालत ने बेल्लारी ( पूर्व में बेल्लारी) में खनन पर रोक लगा दी थी। तब से, उन्होंने अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए खेती और दिहाड़ी मजदूर के रूप में अलग-अलग तरह के काम किए हैं। हालांकि, इनमें से कोई भी रोजगार उन्हें वो स्थिरता और आमदनी नहीं दे सका, जो कभी खनन क्षेत्र में काम करने से उन्हें मिलती थी।
अचानक हुई कई घटनाएं आज भी यारास्वामी के जेहन में ताजा हैं। अपने संघर्ष की यादें आज भी उन्हें आती हैं। वो याद करते हैं, “एक दिन, हमें बताया गया कि अब हमें काम करने की जरूरत नहीं है। यह हम सभी के लिए बड़ा झटका था। ” हालांकि शीर्ष अदालत ने साल 2011 में खनन गतिविधियों को फिर से शुरू करने के लिए आंशिक अनुमति दी थी। लेकिन इससे उन सभी लोगों को रोजगार नहीं मिल पाया, जो कभी खान में काम करते थे। तब से, संघ ने कई विरोध-प्रदर्शन आयोजित किए हैं। हताशा और सामान्य स्थिति बहाल करने की इच्छा से प्रेरित, यारीस्वामी अक्टूबर 2022 की शुरुआत में भी सैकड़ों नाराज खान श्रमिकों के साथ जिला कलेक्टर के कार्यालय तक एक मार्च में शामिल हुए।
यारीस्वामी का कहना है कि जिले में लौह-अयस्क खनन अचानक बंद होने से लगभग 25,000 लोग बेरोजगार हो गए। इनमें से कई अपने अधिकारों के लिए आज भी लड़ रहे हैं।
सेंडूर तालुका के विट्टलनगर के रहने वाले 46 साल के एमवी रविकुमार के पास भी मुसीबत की ऐसी ही कहानी है। वो एक ड्राइवर थे। रविकुमार बताते हैं कि कैसे उनका पूरा गांव कभी औपचारिक या अनौपचारिक रूप से खनन क्षेत्र से करीब से जुड़ा हुआ था। हालांकि, 2011 के बाद सब कुछ बदल गया और चारों तरफ बेरोजगारी थी।
रविकुमार ने अफसोस जताते हुए बताया, “इस सदी के पहले दशक की शुरुआत में, हमारे क्षेत्र में खनन फल-फूल रहा था। नतीजतन, लगभग हर घर में तीन सदस्य खनन से संबंधित काम कर रहे थे। ड्राइवरी, मजदूरी या अन्य तरह के काम। लेकिन अब हर घर से सिर्फ एक सदस्य के पास ही सुरक्षित रोजगार है। इसके चलते आय में जबरदस्त गिरावट आई है।”
वहीं 44 साल के एच बब्बल भी विट्ठलनगर के ही हैं। वो आय के मौजूदा और पूर्व के स्तरों के बीच तुलना करते हैं। वो कहते हैं, “कई पूर्व खनन कर्मचारी खेती या दूसरे तरह के काम में लग गए हैं। पहले, खनन कंपनियां हमारे कार्यस्थलों तक परिवहन की सुविधा देती थीं। हालांकि, अब, अगर हमें काम के लिए बेल्लारी शहर या अन्य शहरों की यात्रा करने होती है, तो हमें अपने हर रोज की मजदूरी का आधे से अधिक सिर्फ आने-जाने पर खर्च करना होगा।”
कभी सेंडूर और उसके आस-पास के इलाके खनन गतिविधियों के चलते फल-फूल रहे थे। यहां रहने वाले अधिकांश श्रमिक इस तथ्य से निराश हैं कि साल 2011 से बेरोजगार हुए सभी लोगों को जिले में आई नवीन ऊर्जा परियोजनाओं में काम नहीं मिल पाया है।
नवीन ऊर्जा का उदय
सेंडूर से लगभग 34 किलोमीटर दूर स्थित राजापुरा बेल्लारी जिले का एक गांव है। गांव की अधिकांश जमीन समतल है और इसके बाहरी इलाके में पहाड़ियां हैं। यहां जिले का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा पार्क है। जेएसडब्ल्यू के मालिकाना हक वाले इस सोलर पार्क की क्षमता 125 मेगावाट है। कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि इसे कंपनी के स्टील प्लांट की कैप्टिव ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया है।
यह महत्वाकांक्षी परियोजना साल 2019 में शुरू हुई थी। पार्क के लिए किसानों ने जेएसडब्ल्यू को अपनी जमीन लंबी अवधि के लिए पट्टे पर दी है। जेएसडब्ल्यू के बहुत बड़े सोलर पार्क के पास राजापुर गांव के निवासी हसन साब ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “इस क्षेत्र के किसानों ने सौर पार्क के लिए कंपनी के साथ अनुबंध किया। इसके लिए किसानों को हर साल प्रति एकड़ बीस हजार रुपए मिलते हैं। हमारे गांव और आस-पास के गांवों के लगभग 40-50 व्यक्तियों ने इस परियोजना में कांट्रैक्ट पर नौकरियां हासिल कीं–जैसे बिजली मिस्त्री, सोलर पैनल की सफाई, घास काटना और अन्य कई काम। कंपनी में बड़े पद अन्य राज्यों के कर्मचारियों को दिए गए हैं।”
जिले के अन्य हिस्सों में भी नवीन ऊर्जा का विस्तार हो रहा है। बेल्लारी शहर से लगभग 60 किलोमीटर दूर, सिरुगुप्पा में भी सौर ऊर्जा पार्कों का विस्तार देखा जा सकता है। हालांकि आस-पास रहने वाले लोग अभी भी अपनी जमीन पर खेती कर रहे हैं, लेकिन शाही एक्सपोर्ट्स का 32 मेगावाट का विशाल सोलर पार्क प्रमुख जगह बन गया है।
हालांकि बेल्लारी शहर के बाहरी इलाकों में अलग ही नज़ारा दिखता है। सिंदगेरी, सुजलॉन के मालिकाना हक वाली पवन चक्कियों की एक श्रृंखला के साथ आने वालों का स्वागत करता है, जैसा कि एक जिला अधिकारी बताते हैं। सिंदगेरी में रहने वाले के. थिप्परना ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि 18 पवन टर्बाइन पहाड़ी चोटियों पर सात किलोमीटर में फैली हुई हैं। इन पवन चक्कियों को लगभग एक दशक पहले स्थापित किया गया था, और पहाड़ियों के ऊपर स्थित होने के कारण, भूमि अधिग्रहण की कोई समस्या नहीं थी।
हालांकि, बेल्लारी जिले में नवीन ऊर्जा सेक्टर में योगदान देने वाली जेएसडब्ल्यू, सुजलॉन और शाही एक्सपोर्ट्स अकेली कंपनियां नहीं हैं। कर्नाटक सरकार के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, कई अन्य नवीन ऊर्जा कंपनियों ने या तो सौर पार्क या पवन ऊर्जा स्टेशन विकसित किए हैं, जो उनकी अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करते हैं या अलग-अलग क्षमताओं में कारोबारी संचालन से जुड़े हुए हैं।
केंद्र सरकार ने पहले ही कर्नाटक में छह नवीन ऊर्जा आर्थिक क्षेत्रों (आरईजेड) के बीच बेल्लारी की पहचान की है। इसने साल 2030 के आखिर तक बेल्लारी की नवीन ऊर्जा क्षमता को 1.5GW तक आंका है।
नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में क्यों आगे बढ़ रहा है बेल्लारी
कर्नाटक रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट लिमिटेड (केआरईडीएल) के आधिकारिक दस्तावेजों के अनुसार, कर्नाटक में बेल्लारी का स्थान तीसरा है, जहां सबसे अधिक सौर परियोजनाएं काम कर रही हैं। 736 मेगावाट तक की क्षमता वाली स्वीकृत सौर परियोजनाओं में से 474 मेगावाट पहले ही आवंटित की जा चुकी हैं। इसके अलावा और भी परियोजनाएं आने का अनुमान है। फरवरी 2023 के आंकड़ों के अनुसार यहां चालू की गई सौर परियोजनाओं में बेल्लारी से आगे तुमकुर (2588 मेगावाट) और चित्रदुर्ग (721 मेगावाट) हैं।
राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (एनआईडब्ल्यूई) के अनुसार, बेल्लारी में 120 मीटर की ऊंचाई पर 7978.17 मेगावाट की पर्याप्त पवन ऊर्जा क्षमता है। वर्तमान में, जिले ने कुल 308 मेगावाट की पवन ऊर्जा परियोजनाओं को चालू किया है और कमीशन की गई पवन परियोजनाओं के आधार पर कर्नाटक के जिलों में बेल्लारी छठे स्थान पर है।
बेंगलुरु स्थित सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (सीएसटीईपी) के ग्रुप लीड (रेगुलेटरी एंड पॉलिसी) रिशु गर्ग कहते हैं, बेल्लारी को नवीन ऊर्जा में आगे बढ़ाने में कई उद्योगों की मौजूदगी भी अहम है, जो कच्चे माल के रूप में लौह-अयस्क का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि थर्मल ऊर्जा के साथ नवीन ऊर्जा को मिलाने से टैरिफ अनुकूलन में भी मदद मिल सकती है।
गर्ग ने कहा, “जिले में कई लौह और इस्पात उद्योग हैं क्योंकि यह क्षेत्र लौह-अयस्क से समृद्ध है। इन उद्योगों के लिए सौर ऊर्जा और कचरे-से-ऊर्जा दोनों के लिए नवीन ऊर्जा स्रोतों के विकास की बहुत बड़ी संभावना है। अक्षय ऊर्जा के साथ मिलाकर ताप ऊर्जा का उपयोग करने के लिए एक सरकारी आदेश भी है। उदाहरण के लिए, कर्नाटक पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (केपीसीएल) टैरिफ अनुकूलन के लिए बेल्लारी थर्मल पावर स्टेशन से अपनी थर्मल पावर को आस-पास स्थित नवीन ऊर्जा स्रोतों के साथ शामिल कर सकता है। बेल्लारी के नवीन ऊर्जा हॉटस्पॉट बनने का यह भी एक कारण है।“
कर्नाटक रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट लिमिटेड के एक अधिकारी (केआरईडीएल) ने कहा कि बेल्लारी में कई बहुत पुराने थर्मल पावर स्टेशन भी हैं। इसमें 860 मेगावाट के निजी स्वामित्व वाले जेएसडब्ल्यू के थर्मल पावर प्लांट के अलावा 1700 मेगावाट का बेल्लारी थर्मल पावर स्टेशन (BTPS) शामिल है। जेएसडब्ल्यू अपने प्लांट को कैप्टिव जरूरतों के लिए इस्तेमाल करता है और ओपन एक्सेस के तहत अतिरिक्त बिजली बेचता है।
पहले से तैयार ट्रांसमिशन नेटवर्क और कम लागत में आसानी से उपलब्ध बंजर भूमि कुछ अन्य कारण हैं जो इस इलाके में नवीन ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए पसंदीदा जगह बनाते हैं। विभाग जिले में नवीन ऊर्जा को आकर्षित करने के लिए और ज्यादा जोर देने पर विचार कर रहा है।
केआरईडीएल में सहायक महाप्रबंधक (सौर) लता एन. पाटिल ने कहा, “मुख्य वजह बंजर भूमि की आसानी से उपलब्धता और आस-पास उपलब्ध मजबूत ट्रांसमिशन सेंटर हैं। अगर हमारे पास मजबूत ट्रांसमिशन सिस्टम नहीं है, तो ट्रांसमिशन में होने वाली हानि के चलते सौर परियोजनाएं व्यावहारिक नहीं होती हैं। बेल्लारी एक ट्रांसमिशन और जनरेशन हब है। अगर नए जनरेशन के लिए नए ट्रांसमिशन उप-केंद्र हैं, तो यह उनके लिए आसान है।”
उन्होंने यह भी कहा कि केआरईडीएल ने अक्षय ऊर्जा की क्षमता बढ़ाने के लिए मौजूदा क्षमता के साथ कोप्पल, गडग, बेल्लारी और चित्रदुर्ग को मेगा नवीन ऊर्जा हब के रूप में विकसित करने का फैसला किया है। उन्होंने बताया, “हमने सौर और विंड हाइब्रिड परियोजनाओं के लिए इन जिलों की पहचान की है। इन जिलों में से प्रत्येक से लगभग 800 मेगावाट की हाइब्रिड परियोजनाओं को विकसित करने की योजना है। इसके अनुसार हमारी ट्रांसमिशन लाइनों को अपग्रेड करने का काम भी चल रहा है।”
बेल्लारी में निवेश करने वाले स्वच्छ ऊर्जा डेवलपर भी अपनी स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को सपोर्ट करने के लिए बेहतर ट्रांसमिशन नेटवर्क को भी श्रेय देते हैं।
क्लीनमैक्स के सीओओ (यूटिलिटी स्केल आरई प्रोजेक्ट्स) कर्नल नरेंद्र वर्मा ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “बेल्लारी के सौर और पवन संसाधन इस राज्य क्षेत्र में नवीन ऊर्जा में निवेश के लिए अनुकूल हैं। साथ ही, बुनियादी ढांचे की बेहतर उपलब्धता और कनेक्टिविटी, बड़ी परियोजनाओं को विकसित करने के लिए इसे एक अच्छा क्षेत्र बनाती है। कच्चे माल और श्रम के स्रोत अतिरिक्त लाभ हैं। हमारे संयंत्र में उत्पादित स्वच्छ हरित ऊर्जा कर्नाटक राज्य में स्थित हमारे कॉर्पोरेट और औद्योगिक ग्राहकों को उनके नवीन और हरित ऊर्जा के साथ नेट-जीरो लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सप्लाई की जाती है।” कंपनी का बेल्लारी में 130 मेगावाट का सौर ऊर्जा संयंत्र है।
कौशल की कमी मजदूरों के लिए घाटे का सौदा
हालांकि बेल्लारी के नवीन ऊर्जा उद्योग को बुनियादी ढांचे, कच्चे माल और श्रम तक आसान पहुंच के मामले में यह जगह आकर्षक लगती है। लेकिन ए. यारीस्वामी जैसे स्थानीय लोग अभी भी उद्योग में प्रतिष्ठित जगह पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं जो उनकी अपनी ही जमीन पर फल-फूल रहा है। हालांकि यारीस्वामी कहते हैं कि उनके पास कोई विशेष कौशल नहीं है और यह एक संभावित कारण है कि उन्हें नए उद्योगों में नौकरी नहीं मिली है। इससे पहले, उन्हें खदान मजदूर के रूप में अपनी नौकरियों में किसी विशेष कौशल या प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं थी।
मोंगाबे-इंडिया की जिले की यात्रा के दौरान, यह स्पष्ट था कि जिले में नवीन ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ती नौकरियों को लेने के लिए कुशल श्रमिकों की कमी थी। बेल्लारी में नवीन ऊर्जा क्षेत्र के लिए प्रशिक्षित कुशल श्रमिकों की कमी के बारे में पूछे जाने पर जिला कलेक्टर पवन कुमार मलापति ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि बेल्लारी को कपड़े से जुड़े कामों के लिए जाना जाता था और कौशल विकास प्रशिक्षण मुख्य रूप से उसी क्षेत्र में दिया जाता था और अब तक यहां हरित नौकरियों में कौशल विकास के लिए कोई विशेष कार्यक्रम शुरू नहीं किया गया है।
जस्ट ट्रांज़िशन की अवधारणा के विशेषज्ञ और स्वानीति इनिशिएटिव के निदेशक संदीप पाई इस बात पर ज़ोर देते हैं कि बेल्लारी इस बात का एक प्रमुख उदाहरण है कि भारत को एक न्यायपूर्ण ट्रांज़िशन की आवश्यकता क्यों है। जस्ट ट्रांजिशन का इस्तेमाल, जीवाश्म ईंधन से नवीन ऊर्जा की तरफ बढने के लिए होता है। यह आर्थिक, पर्यावरण और सामाजिक रूप से भी उचित होना चाहिए।
यह स्थिति उस जटिल वास्तविकता को रेखांकित करती है कि जब एक नई हरित अर्थव्यवस्था उभरती है और उसमें रोजगार पाने के लिए स्थानीय श्रमिकों के पास जरूरी कौशल नहीं होता है।
“जब भी नीति बनाने वाले एक नई अक्षय परियोजना की योजना बनाते हैं, तो वे अक्सर तकनीक और परियोजना के अर्थशास्त्र पर जोर देते हैं। इसमें वे ट्रांसमिशन लाइनों, ग्रिड, भूमि उपलब्धता, बिजली की मांग और अन्य चीजों का आकलन करने का प्रयास करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में, वे अक्सर सामाजिक-आर्थिक योजना के एक अहम पहलू पर गौर करने से चूक जाते हैं। ऐसा न हो कि पहले नवीन ऊर्जा आए और फिर सरकार कौशल की योजना बनाए; बल्कि दोनों को एक साथ चलना चाहिए। अन्यथा, बाहर से कुशल लोग आएंगे और स्थानीय आबादी नई अर्थव्यवस्था से लाभान्वित नहीं होगी। अगर उन्हें समय पर कौशल नहीं मिलता है, तो कंपनियां इंतजार नहीं करेंगी और आसपास के जिलों या अन्य क्षेत्रों से कुशल लोगों को काम पर रखेंगी। इस तरह की घटनाएं इसलिए भी हो रही हैं क्योंकि भारत में जस्ट ट्रांजिशन एक नई अवधारणा है और कई नीति-निर्माता अभी भी इसके अनुसार नीतियां बनाने के इच्छुक नहीं हैं।
हालांकि, केआरईडीएल के प्रबंध निदेशक के.पी. रुद्रप्पाय्या ने कहा कि विभाग पूरे राज्य के लिए हरित नौकरियों के लिए विशेष कौशल विकास कार्यक्रम शुरू करने के लिए तैयार है। इस प्रशिक्षण के साथ, यारीस्वामी और अन्य पूर्व खदान श्रमिकों को भविष्य में एक सुरक्षित नौकरी की उम्मीद है।
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बैनर तस्वीर: बेल्लारी के निवासी जिले के एक नए सोलर पार्क के सामने से गुजरते हुए। तस्वीर – प्रणव कुमार/मोंगाबे।
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