- एक हालिया अध्ययन में राइनो रेज़ की सामाजिक-पारिस्थितिक स्थिति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी पाने के लिए गोवा में मछली पकड़ने वाले समुदायों का साक्षात्कार लिया गया था।
- गिटार-फ़िश और वेज मछली से राइनो रेज़ की 17 प्रजातियां बनती हैं, जिनमें से 15 गंभीर रूप से लुप्तप्राय हैं। हालांकि, ये भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची I के तहत संरक्षित नहीं हैं।
- मौजूदा समय में, बाईकैच में पकड़ी गई राइनो रे को रिहा करने के लिए मछुआरों को मुआवजा नहीं दिया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि संरक्षण के बेहतर तरीकों पर काम करने के लिए वैज्ञानिक जानकारी के साथ-साथ स्थानीय पारिस्थितिक ज्ञान का इस्तेमाल भी किया जाना चाहिए।
राइनो रेज़ इलास्मोब्रान्ची का एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण समूह बनाती हैं। यह कार्टिलाजिनस मछली का एक उपवर्ग है जिसमें रेज़ और शार्क शामिल हैं। हालांकि, राइनो रेज़ के बारे में सीमित जानकारी है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) रेड लिस्ट के अनुसार, राइनो रेज़ की 17 ज्ञात प्रजातियों में से 15 को गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएमएफआरआई) की 2019 की वार्षिक रिपोर्ट में पाया गया कि 43,741 टन लैंडेड इलास्मोब्रैन्च दर्ज की गई है। इससे भारत दुनिया के शीर्ष तीन देशों में से एक बन गया, जहां इलास्मोब्रांच मछलियां पाई जाती है।
इस साल जनवरी में प्रकाशित अशोका यूनिवर्सिटी, भारत और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम के वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन में तटीय राज्य गोवा में मछली पकड़ने वाले समुदायों के स्थानीय पारिस्थितिक ज्ञान (एलईके) का इस्तेमाल करके राइनो रेज़ की सामाजिक-पारिस्थितिक स्थितियों के बारे में जाना गया।

राइनो रेज़ की मौजूदा स्थिति
अध्ययन की लेखिका दिव्या कर्नाड इनसीजन फिश की सह-संस्थापक हैं। उनके अनुसार, “गिटार-फिश और वेज मछली, मिलकर राइनो रेज़ बनाती हैं। दरअसल यह प्रजातियों का एक समूह है जिसके बारे में हाल तक कोई चिंता नहीं थी। कुछ साल पहले, IUCN ने इन प्रजातियों पर रेड लिस्ट का आकलन किया और पाया कि कई की स्थिति गंभीर रूप से लुप्तप्राय हो गई है। यह अजीब था क्योंकि भारत में गिटार-फ़िश को व्यावसायिक रूप से विशेष रूप से महत्वपूर्ण नहीं माना जाता है।”
कर्नाड कहती हैं कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन से पहले कई विशेषज्ञों ने आग्रह किया था कि इन प्रजातियों को अनुसूची I के तहत सख्त सुरक्षा दी जाए। हालांकि कुछ सुझाव स्वीकार कर लिए गए, लेकिन नया संशोधन अभी तक जारी नहीं किया गया है।

इस अध्ययन का उद्देश्य दोहरा था। सबसे पहले, लेखकों ने राइनो रेज़ के निवास स्थान के इस्तेमाल, मौसम के बारे में जानकारी हासिल करने, स्थानीय मत्स्य पालन और मछली पकड़ने के तरीकों के साथ उनके संबंधों को समझने का प्रयास किया। दूसरा, उन्होंने इन प्रजातियों के मछुआरों के स्थानीय पारिस्थितिक जानकारी और नजरिए का मूल्यांकन करने की कोशिश की।
अध्ययन में शामिल लेखकों ने देश में इलास्मोब्रांच लैंडिंग पर उपलब्ध डेटा की सीमाओं पर ध्यान दिया, जिसकी वजह से मछली के पैटर्न को समझना मुश्किल हो गया। मुख्य लेखिका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में डॉक्टरेट की छात्रा त्रिशा गुप्ता कहती हैं, “भारत में, सरकार और सीएमएफआरआई जैसे गैर सरकारी संगठनों द्वारा पहल की गई है। ये सभी प्रजातियों के स्तर की निगरानी करते हैं। लेकिन यह गोवा के मामले में नहीं है, जहां उन्हें मोटे तौर पर शार्क या इलास्मोब्रांच में वर्गीकृत किया गया है। फिर भी, यह एक कम आकलन है। मौजूदा जानकारी को बढ़ाने के लिए गुप्ता ने दक्षिण गोवा में कैच और लैंडिंग सर्वे करने की योजना बनाई।
गोवा में मछुआरों का साक्षात्कार
अध्ययन का हिस्सा रहे 66 व्यक्तियों के साक्षात्कार में राइनो रेज़ के आवास इस्तेमाल, प्रजनन, व्यवहार और मौसम संबंधी प्रश्न शामिल थे। इन साक्षात्कारों से फिशिंग गियर, पकड़ने की दर और पकड़ने के बाद उनका इस्तेमाल कैसे किया गया, इस पर बात पर लिया गया था। फिर मछली पकड़ने का काफी ज्यादा अनुभव रखने वाले 22 व्यक्तियों को बड़े स्तर पर साक्षात्कार के लिए चुना गया था।
सर्वे में शामिल लगभग सभी (97%) उत्तरदाता राइनो रेज़ की पहचान करने में सक्षम थे और उन्होंने अध्ययन में दिखाए गए निवास स्थान के उपयोग के पैटर्न की पुष्टि की थी। उत्तरदाताओं के विवरण जैसे कि तट के पास प्रजनन, विशेष रूप से मानसून की बारिश के दौरान और उसके बाद नदियों के मुहाने के आसपास, विशेष रूप से दिलचस्प रहा।
स्थानीय पारिस्थितिक जानकारी अध्ययन में मौजूदा अंतराल को भरने में मदद कर सकता है, खासकर उनके व्यवहार के मामले में, जो नियमित मूल्यांकन के हिस्से के रूप में दर्ज नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिए, कर्नाड को याद है कि राइनो रेज़ सतह पर उठती हैं और हवा निगलने लगती हैं, एक ऐसा व्यवहार जिसे एक अध्ययन समीक्षक ने दुनिया के अन्य हिस्सों में गिटार-फिश में भी नोट किया था। वह कहती हैं, ”इस तरह की विस्तृत टिप्पणियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए और यही हम अगले चरण में करने की योजना बना रहे हैं।”

अकसर मछुआरे राइनो रेज़ को बाकी मछलियों के साथ बायकैच यानी गलती से पकड़ लेते है। मौजूदा समय में ये उनके लिए ज्यादा मायने नहीं रखती है। लेकिन कुछ साक्षात्कारों से पता चला है कि उन्हें एक बार लक्षित किया गया था, मुख्य रूप से उनके पंखों के लिए। लेकिन अब घटती संख्या ने इनके व्यापार को कम कर दिया है। कर्नाड उनकी स्थिति की तुलना सॉ-फ़िश से करते हैं, जिनके बड़े पंख काफी पसंद किए जाते थे। वह कहती हैं, “हालांकि, ये मछलियां यहां अब ज्यादा नहीं बची हैं।” इसी तरह की कहानी वेज फिश की भी है। हालांकि उनमें से कुछ काफी बड़ी हैं, लेकिन यहां इनकी संख्या ज्यादा नहीं है। इसलिए उन्हें अब लक्षित नहीं किया जाता है। दरअसल व्यापारी किसी भी ऐसी चीज़ के लिए अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते हैं जिसे ढूंढना काफी मुश्किल होता है।
बायकैच के बाद रिहा करने के लिए प्रोत्साहन
रिपोर्ट की गई संख्या के अनुसार, दक्षिण गोवा में और मानसून के बाद सितंबर और अक्टूबर में बायकैच दरें अधिक दिखाई देती हैं।
पकड़ने के बाद राइनो रेज़ को या तो स्थानीय बाजारों में बेच दिया जाता है, या खा लिया जाता है या फिर फेंक दिया जाता है। अध्ययन में जिन लोगों से बातचीत की गई, उनकी राय थी कि उत्तरी गोवा में अधिक पर्यटकों को आने के कारण, राइनो रेज़ का बाजार मूल्य वहां की मांग के आधार पर तय किया जाता है। उत्तरी गोवा में, बड़े आकार की मछलियों को बेचे जाने या उपभोग किए जाने की अधिक संभावना रहती है। दक्षिण गोवा में, आकार निर्णायक कारक नहीं होता है और लगभग सभी पकड़ी गई मछलियों को बेच दिए जाता है या फिर उन्हें खा लिया जाता है।
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फिलहाल, बायकैच के रूप में पकड़ी गई संरक्षित प्रजातियों को छोड़ने के लिए मछुआरों को कोई मुआवजा नहीं दिया जाता है। हालांकि ज्यादातर उत्तरदाताओं को लगता है कि मुआवजे की जरूरत नहीं है, लेकिन कुछ का मानना है कि प्रोत्साहन मछलियों को वापस पानी में छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
‘यह कैसे काम कर सकता है’, इसे समझाने के लिए कर्नाड ब्राज़ील में हो रहे प्रयोगों के उदाहरण देती हैं। वहां शुरुआत में पैसे की पेशकश की गई, लेकिन अब मछुआरों को इसके बदले सामुदायिक मान्यता प्रदान की जाती है। हालांकि, मछुआरे अधिकतर बायकैच छोड़ने की सुविधा से प्रेरित थे। “यह जानवर के आकार पर निर्भर करेगा – अगर वे छोटे हैं (एक मीटर से कम लंबे), तो ज्यादातर मछुआरे उन्हें छोड़ना पसंद करते हैं। कई छोटी मछलियों को आसानी से पानी में बहा दिया जाता है। अगर उनके जाल में कोई बड़ी मछली है, तो वहां पैसे का प्रोत्साहन काम कर सकता है,” कर्नाड ने कहा कि व्हेल शार्क के लिए इस्तेमाल किए गए प्रोत्साहन मॉडल ने सफलता दिखाई है। उन्हें रिहा करने वाले मछुआरों को अखबार या सोशल मीडिया फीचर में पट्टिकाओं या तस्वीरों से पहचाना जाएगा। “यह तरकीब उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए अच्छे से काम कर गई। और शायद यह एक मॉडल है जिसे हम गिटार-फिश के लिए देख सकते हैं।”

अपने साक्षात्कारों के जरिए टीम ने शार्क मत्स्य पालन और मछुआरे किन मछलियों को पकड़ना ज्यादा पसंद करते हैं, इस बारे में भी जाना। गुप्ता ने अपनी पीएचडी के दौरान इस क्षेत्र में और आगे बढ़ने की योजना बनाई है। उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “मैं पता लगाना चाहती हूं कि वे कौन सी मछलियां (कौन सी प्रजातियां) पकड़ रहे हैं, उन्हें पकड़ने के लिए उन्हें क्या प्रेरित करता है, और वे इतनी कीमती क्यों हैं। मैं उम्मीद कर रही हूं कि यह सब इस बात से जुड़ जाएगा कि किस तरह की संरक्षण पहल यहां काम कर सकती है।”
राइनो रेज़ पर आगे का शोध
टीम ने मानसून खत्म होने के तुरंत बाद अगस्त 2023 में इस अध्ययन से अपने निष्कर्षों की जांच जारी रखने की योजना बनाई है। कर्नाड के अनुसार, “अभी, हमें इस बात की व्यापक समझ है कि ये प्रजातियां कहां पाई जाती हैं और इस काम के जरिए हम ऐसे व्यक्तियों की पहचान कर पाए है जिनके पास काफी सारी जानकारी है। हम इन व्यक्तियों के साथ बैठकर मछलियों के व्यवहार के प्रकार, खान-पान की आदतों और वे कहां पाई जा सकती हैं, इस बारे में अधिक जानकारी इकट्ठा करने की योजना बना रहे हैं।”
सेव अवर सीज़ फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित नई परियोजना, साक्षात्कार के जरिए पहचाने गए संभावित नर्सरी स्थलों की आगे की जांच के लिए अंडर वाटर कैमरे और ट्रांसेक्ट लाइनों जैसे तरीकों का इस्तेमाल करेगी।
गुप्ता कहते हैं, “यह इकोलॉजिकल वर्क इन नर्सरियों और एकत्रीकरण स्थलों की पहचान करने में मदद कर सकता है, ताकि क्षेत्र के आधार पर संरक्षण उपायों को डिजाइन करने में मदद मिल सके।”

कर्नाड कहती हैं, “आईयूसीएन स्पीशीज सर्वाइवल कमीशन (एसएससी) शार्क स्पेशलिस्ट ग्रुप महत्वपूर्ण शार्क एंड रे एरिया (आईएसआरए) नामक एक वर्गीकरण लेकर आया है। और हम संभावित रूप से उन्हें आईएसआरए घोषित करवा सकते हैं, जिससे सरकार के लिए नोटिस लेने और संभवतः उन्हें सामुदायिक आरक्षित घोषित करने का राह खुल जाएगी।”
साक्षात्कारकर्ताओं में से एक ने बताया कि अगर मछुआरे इन प्रजातियों के पारिस्थितिक महत्व को बेहतर ढंग से समझ जाए तो उनके द्वारा गलती से पकड़ी गई राइनो रेज़ को पानी में वापस छोड़ने की अधिक संभावनाएं होंगी। अपने चल रहे डॉक्टरेट अध्ययन के एक भाग के रूप में, गुप्ता की आउटरीच कार्यशालाएं आयोजित करने की योजना है। उन्होंने कहा, “मैं समुदाय को कुछ वापस लौटाना चाहती हूं और अपने कुछ निष्कर्षों को साझा करने का एक तरीका निकालना चाहती हूं। मैं विशेष रूप से गिटार-फ़िश के लिए कुछ कार्यशालाएं भी करना चाहूंगी, क्योंकि मुझे ज़मीनी स्तर पर कुछ करने की काफ़ी संभावनाएं नजर आ रही हैं।”
उन्होंने निष्कर्ष निकालते हुए कहा, “एलईके ने हमें इन प्रजातियों के लिए वास्तव में एक अच्छा आधार दिया है, और पारिस्थितिक तरीके हमें सीमाओं को भरने में मदद करेंगे। गोवा जैसे स्थान इस मायने में अनोखे हैं कि जब संरक्षण के मुद्दों की बात आती है तो लोगों (मछली पकड़ने वाले समुदायों सहित) के पास उच्च शैक्षिक ज्ञान और उच्च जागरूकता होती है। उनके साथ बातचीत करना आसान है क्योंकि वे शोधकर्ताओं के साथ बातचीत करने और अपने आकड़ों व जानकारी को साझा करने के लिए तैयार रहते हैं। मुझे लगता है कि उनके साथ आगे भी काम जारी रखा जा सकेगा। इसकी पूरी संभावना हैं।”
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बैनर तस्वीर: शोधकर्ताओं ने बताया कि मछुआरों को बायकैच छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करने का काम ब्राजील में हुआ है। इसे भारत में भी लागू किया जा सकता है। तस्वीर- त्रिशा गुप्ता
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