- उत्तरी हिंद महासागर में गंभीर तूफानों और बहुत ज्यादा बारिश की बढ़ती प्रवृत्ति देखी जा रही है, जिसका इसके घनी आबादी वाले तटों और अन्य जगहों पर गंभीर असर पड़ रहा है।
- महासागरों का गर्म होना, तूफान और बहुत ज्यादा आना और अनियमित बारिश, प्रशांत और ध्रुवीय इलाकों के पास और दूर तक अलग-अलग होने वाली घटनाओं और प्रक्रियाओं से जुड़े हुए हैं।
- इनमें से कुछ घटनाओं में जलवायु में कुदरती तरीके से होने वाले बदलाव शामिल है, लेकिन अन्य घटनाएं जलवायु में हो रहे बदलाव के चलते तेज हो गई हैं।
पिछली सदी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के चलते महासागर भी गर्म हो रहे हैं। कुछ स्थानों पर ज्यादा तो कुछ जगहों पर कम। 1901 से 2020 के बीच, समुद्र की सतह का तापमान (एसएसटी/SST) हर दशक के हिसाब से औसतन 0.14 डिग्री फ़ारेनहाइट (0.08 डिग्री सेल्सियस की दर जितना) की दर से बढ़ा है। यह पिछले 30 सालों के दौरान किसी भी अन्य समय की तुलना में लगातार ज़्यादा बना हुआ है, क्योंकि आंकड़े 1880 से ही उपलब्ध हैं। जैसा कि जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी/IPCC) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट में कहा गया है, “यह पक्का है कि 1971 से अभी तक दुनिया भर का ऊपरी महासागर (0-700 मीटर) और बहुत संभावना है कि बीच का महासागर (700-2000 मीटर) काफी हद तक गर्म हो गया है।”
हालांकि, हिंद महासागर दुनिया भर के औसत से ज़्यादा तेजी से गर्म हुआ है। अरब सागर और दक्षिणपूर्वी हिंद महासागर में हॉटस्पॉट के साथ जलवायु मॉडल, गर्म होने की एक जैसी प्रवृत्ति को नहीं दिखाते हैं। इस प्रक्रिया का समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी, तूफान के पैटर्न और बारिश की घटनाओं पर असर पड़ता है। लेकिन (आईपीसीसी) अध्ययनों से पता चलता है कि तटीय क्षेत्रों पर इसका बहुत ज्यादा असर हो रहा है।
खास तौर पर, उत्तरी हिंद महासागर (एनआईओ/ NIO) अपने घनी आबादी वाले तटों और अन्य जगहों पर अहम असर के साथ गंभीर तूफानों और बहुत ज्यादा बारिश की बढ़ती प्रवृत्ति का अनुभव कर रहा है। महासागरों का गर्म होना, तूफान और चरम एवं अनियमित मौसम अलग-अलग समय के पैमाने पर, प्रशांत महासागर और ध्रुवीय इलाकों के पास और दूर तक होने वाली घटनाओं और प्रक्रियाओं से जुड़े हुए हैं। इनमें से कुछ घटनाओं में प्राकृतिक जलवायु में बदलाव शामिल है, लेकिन अन्य जलवायु परिवर्तन के कारण हैं। इन घटनाओं और प्रक्रियाओं का इंसान की सुरक्षा, आजीविका और विकास पर गंभीर असर पड़ता है।
नए विश्लेषण बहुत भीषण गंभीर तूफानों (ईएससीएस (ESCS), 168 किमी प्रति घंटे से ज्यादा रफ्तार वाली हवाएं) की बढ़ती प्रवृत्ति को दिखातें हैं। इसके चलते तटों पर आने वाली बाढ़ से जुड़े जोखिम और संबंधित प्रभावों से बचने के लिए बेहतर नीति और योजना जरूरी है।
ट्रॉपिकल वार्म पूल क्या है? यह जलवायु को किस प्रकार प्रभावित करता है?
हिंद-प्रशांत वार्म पूल (या ट्रॉपिकल वार्म पूल) पूर्वी हिंद महासागर में स्थित एक क्षेत्र है। इस जगह पर समुद्र की सतह का तापमान पूरे साल 28 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहता है। गर्म पूल, पिछली सदी से गर्म हो रहा है और फैल रहा है। इसका सबसे गर्म हिस्सा आकार में लगभग दोगुना हो गया है। यह गर्म पूल बहुत ज्यादा बारिश वाले गर्म एसएसटी का सबसे बड़ा विस्तार है, जो दुनिया भर के वायुमंडलीय सर्कुलेशन और जल चक्र को अहम तरीके से प्रभावित करता है। गर्म पूल क्षेत्र की तुलना में, पश्चिमी हिंद महासागर ठंडा है।
हाल के दशकों में हिंद-प्रशांत वार्म पूल ने यहां के द्वीपों पर असर डालने के साथ ही समुद्र का स्तर बढ़ाया है। यह दर दुनिया में सबसे ज्यादा है। जैसा कि आईपीसीसी ने कहा है “1971 से 2018 के दौरान समुद्र के स्तर में 50 फीसदी की बढ़ोतरी थर्मल फैलाव के चलते हुई। वहीं ग्लेशियरों से बर्फ पिघलने से 22 फीसदी, बर्फ की चादरों से 20 फीसदी और भूमि-जल भंडारण में बदलाव से आठ फीसदी की बढ़ोतरी हुई।” यह विस्तारित गर्म पूल उष्णकटिबंघीय सर्कुलेशन (गर्मी और नमी का परिवहन) को बढ़ाकर दुनिया भर के जलवायु सिस्टम पर असर डाल रहा है।
मैडेन जूलियन ऑसिलेशन क्या है?
दूसरी तरफ, जैसे-जैसे उष्णकटिबंधीय गर्म पूल का विस्तार होता है, यह मैडेन जूलियन ऑसिलेशन को भी प्रभावित करता है। यह बादलों, बारिश, हवाओं और दबाव से जुड़ी एक बड़ी गड़बड़ी है जो दुनिया भर में बारिश के पैटर्न पर असर डालती है।
अगर अल नीनो (वह घटना जिसमें मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में बढ़ोतरी शामिल है) एक स्थिर प्रणाली है, तो मैडेन जूलियन ऑसिलेशन (एमजेओ) एक गतिशील प्रणाली है। यह 30 से 60 दिनों में अपने प्रारंभिक शुरुआती बिंदु पर लौटने से पहले हजारों किलोमीटर तक पूर्व की ओर उष्णकटिबंधीय क्षेत्र को पार करता है। एक बार जब यह वायुमंडलीय विक्षोभ शुरू हो जाता है, तो इसकी विशेषताएं प्रशांत महासागर बेसिन पर कई मौसमों तक बनी रहती हैं, जिससे खास क्षेत्रों में कन्वेक्शन बढ़ता और घटता रहता है। यह ऑसिलेशन, पूर्व और फिर पीछे की ओर, गंभीर बारिश और तूफान की ओर ले जाता है।
और पढ़ेंः ताउते तूफान ने बताया कितना संवेदनशील है भारत का पश्चिमी तट
आर्कटिक एम्पलीफिकेशन (आर्कटिक का तेजी से गर्म होना) और समुद्री बर्फ के पिघलने के अलावा अल-नीनो साउथ ऑसिलेशन और हेडली सर्कुलेशन सहित कई तरीकों से मानसून को प्रभावित करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इसी तरह, एमजेओ भी एक प्रमुख प्रभाव है जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मौसम के भीतर बहुत ज्यादा बारिश की वजह बनता है। यह उत्तरी हिंद महासागर में उष्णकटिबंधीय तूफान बनने का भी मुख्य कारण है। 1979-2008 के दौरान महासागर के एमजेओ के सक्रिय रहने के दौरान इस भाग पर 80 प्रतिशत से अधिक उष्णकटिबंधीय तूफान आए। जैसा कि वैज्ञानिकों ने बताया है, पूर्वी प्रशांत अल नीनो घटनाओं के विपरीत, मध्य प्रशांत अल-नीनो घटनाओं में बहुत ज्यादा एसएसटी, अधिक उष्णकटिबंधीय तूफानों को भी जन्म दे सकता है।
वायुमंडलीय सर्कुलेशन से बारिश पर क्या असर होता है?
दुनिया भर के मौसम पर महासागरों के असर का एक अन्य प्रमुख तंत्र हवा का सर्कुलेशन है। सूर्य की तपिश से गर्म होने वाली हवा फूल जाती है और ऊपर उठती है, जिससे ठंडी, सघन हवा अंदर आती है। गर्म उष्णकटिबंधीय हवा से हवा ऊपर उठती है और ध्रुव की ओर बाहर चली जाती है और मध्य अक्षांशों से ठंडी हवा अंदर आती है, जिससे हेडली सेल नामक एक सर्कुलेशन बनता है।
पृथ्वी के घूमने से भूमध्य रेखा पर हवाएं पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं। प्रशांत क्षेत्र में ऐसे ही एक मूवमेंट में वॉकर सेल शामिल है। यह दक्षिण अमेरिका के तट पर उच्च दबाव बनाता है और प्रशांत महासागर के ऊपर हवा को पश्चिम की ओर इंडोनेशिया की ओर धकेलता है, जहां यह ऊपर उठती है और लूप को खत्म करने के लिए पूर्व की ओर वापस घूमती है। पश्चिम में ऊपर उठती हवा और पूर्व में नीचे आती हवा लूप को बंद रखती है। यह गति पश्चिमी हवाओं को चलाती है। जैसे ही गर्म हवा ऊपर उठती है और ठंडी होती है, यह पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में बारिश के रूप में नमी देती है।
हवा के प्राकृतिक चक्रों में (जलवायु परिवर्तन के असर के बिना), वॉकर सर्कुलेशन से हवाओं या तो पूरी ताकत से बहती हैं या फिर उनकी गति धीमी हो जाती है। हालांकि, अल नीनो नामक चरण के दौरान चलने वाली हवाएं कमजोर हो जाती हैं और ला नीना के दौरान उनकी गति तेज हो जाती है।
अल नीनो का दुनिया भर के मौसम पर बड़ा असर हो रहा है। अल नीनो घटना के दौरान, गर्म पानी पूर्व तक फैल जाता है। इससे हवा गर्म हो जाती है और हवा ऊपर उठती है और कम दबाव बनाती है। बदले में, अपेक्षाकृत ठंडे पानी और ऊपरी हवा के चलते, इंडोनेशिया के पास गति कम होती है और इसलिए उच्च दबाव का क्षेत्र बना रहता है। ला नीना, अल नीनो और तटस्थ चरणों से जुड़े रेकरिंग जलवायु पैटर्न को अल नीनो दक्षिणी ऑसिलेशन (ईएनएसओ) कहा जाता है।
प्रशांत बेसिन धरती के एक-तिहाई हिस्से को कवर करता है। इसलिए, अल नीनो से जुड़ी हवा और नमी में बदलाव का असर दुनिया भर में दिखता है। इससे सर्कुलेशन पैटर्न में बाधा आती है। विश्व के व्यापक रूप से अलग-अलग क्षेत्रों में मौसम में होने वाले इस तरह के बदलावों को टेलीकनेक्शन कहा जाता है।
अल नीनो को अक्सर भारत में कमजोर ग्रीष्मकालीन मॉनसून के साथ जोड़ा जाता है। वहीं ला नीना को मजबूत मानसून से जोड़ा जाता है। इस साल, वैज्ञानिकों ने अल नीनो को कमजोर मानसून के साथ जोड़ा है जिसमें लंबे अंतराल और संभावित सूखे की संभावना शामिल है। 6 से 19 अगस्त तक लंबे मानसून ब्रेक का विश्लेषण करते हुए, नेशनल सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज के मानसून विशेषज्ञ माधवन नायर राजीवन ने एक्स प्लेटफॉर्म (इससे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था) पर पोस्ट किया, “बहुत ज्यादा सिंकिंग मोशन के चलते भारत में कन्वेक्शन दबा हुआ था। दूसरी ओर, मध्य प्रशांत क्षेत्र में ऊपर उठती हवा के कारण कन्वेक्शन में बढ़ोतरी हुई। यह अल-नीनो के पारंपरिक असर जैसा दिखता है।” कमी हवा की नीचे की ओर गति को दिखाता है, क्योंकि यह ठंडी होकर सघन हो जाती है।
अरब सागर भीषण तूफानों का हॉटस्पॉट क्यों बनता जा रहा है?
जलवायु परिवर्तन से समुद्र के तापमान में बढ़ोतरी होती है और वायुमंडलीय स्थितियों में बदलाव होता है। इससे उष्णकटिबंधीय तूफानों की संभावित तीव्रता या मॉडल की गई अधिकतम गति सीमा में बढ़ोतरी होती है। दुनिया भर में गंभीर श्रेणी के तूफान बढ़ रहे हैं। उत्तरी हिंद महासागर में, हाल के दशकों में ऐसे तूफ़ान बढ़ रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर मई में बनते हैं। जून-सितंबर की ग्रीष्मकालीन मानसूनी हवाएं उत्तरी हिंद महासागार के सर्कुलेशन को प्रभावित करती हैं और इससे अप्रैल-मई के दौरान और मानसून के बाद समुद्र की सतह का तापमान और संभावित तीव्रता चरम पर पहुंच जाती है। एसएसटी में अनुमानित बदलाव और ऊपरी और निचले क्षोभमंडल के बीच हवा की गति के अंतर में उल्लेखनीय कमी गंभीर तूफानों में बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार प्रतीत होती है। वैज्ञानिकों ने नतीजा निकाला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते अरब सागर के ऊपर मानसून के बाद गंभीर तूफानों की आशंका बढ़ गई है।
इसके अलावा, ग्रीष्मकालीन मानसून सर्कुलेशन कमजोर हो रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तूफान की तीव्रता न सिर्फ समुद्र की सतह के तापमान पर निर्भर करती है, बल्कि इससे भी अहम बात यह है कि समुद्र में गर्म पानी की मात्रा पर निर्भर करती है। हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि सतह से 26℃ इज़ोटेर्म (एक जैसे तापमान पॉइंट को जोड़ने वाली रेखा) की गहराई तक समुद्र की गर्मी की मात्रा के चलते तूफान ज्यादा भीषण बन रहे हैं ।
लगातार बहने वाली अधिकतम हवा की गति की तीव्रता के आधार पर तूफान की अलग-अलग श्रेणियां हैं। मई के दौरान एनआईओ में हाल के अत्यंत गंभीर तूफानों में मोचा (2023), तौकता (2021), अम्फान (2020), फानी (2019), और मेकुनु (2018) शामिल हैं। इनमें से तौकता और मेकुनु अरब सागर के ऊपर बने।
देखें तो एनआईओ के आम तौर पर ठंडे वाले पश्चिमी हिस्से में स्थित अरब सागर स्थित है। अब तक इसे तूफानों के लिए कम सक्रिय माना जाता रहा है। यहां एक साल में करीब दो तूफान आते हैं या 1979-2015 के दौरान वैश्विक तूफान की आवृत्ति दो फीसदी होती है। हालांकि, अब यह पश्चिमी हिंद महासागर के गर्म होने की पृष्ठभूमि में बदलती जलवायु के हॉटस्पॉट के रूप में उभर रहा है।
हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि मानसून के बाद की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं।2014 में पहली बार ऐसा हुआ। अक्टूबर 2014 में चक्रवात नीलोफर के बाद 2015 में एक के बाद एक चपला और मेघ तूफान आए। 2019 के मानसून के बाद के गंभीर तूफान महा (ESCS Maha) और सुपर साइक्लोनिक तूफान (222 किमी प्रति घंटे से ऊपर) क्यार के साथ एक अभूतपूर्व तरीके से एक साथ आए। 2023 में, मोचा के बाद जून में एक और बेहद गंभीर चक्रवात, बिपरजॉय आया।
हाल के सालों में असामान्य तूफ़ान और भीषण चक्रवात आए हैं। बहुत ज्यादा भीषण चक्रवात ओखी (2017) का मामला इसका उदाहरण है। अपने असामान्य रूप से लंबे 2,500 किमी रास्ते पर, इसने तेजी से श्रीलंका और दक्षिण भारत के करीब ताकत हासिल की। मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन और गर्म समुद्री परिस्थितियों ने ओखी के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाई।
घनी आबादी वाले हिंद महासागर के तटों पर बढ़ते भीषण तूफान और समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी और बहुत ज्यादा बारिश जैसी अन्य घटनाएं मानव और आवास सुरक्षा के संदर्भ में बड़ी चुनौतियां पेश करती हैं। इसलिए वैज्ञानिकों ने ज्यादा असरदार पूर्वानुमानों, जानकारी देने और आपदा तैयारियों पर जोर दिया है।
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
बैनर तस्वीर: मुंबई में बारिश का दिन। अन्य महासागरों की तुलना में गर्म हो रहे अरब सागर को स्पस्ट तौर पर पहचाना जा रहा है। हिंद महासागर बहुत तेजी से गर्म हो रहा है। तस्वीर- सौमित्र शिंदे/मोंगाबे।