- बिहार सरकार ने साल 2022 तक अक्षय ऊर्जा से 3,433 मेगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा था। हालांकि, 31 अगस्त 2023 तक राज्य ने 415.27 मेगावॉट क्षमता हासिल की है।
- इस लक्ष्य को तेजी से पूरा करने के लिए बिहार को बड़ी सौर परियोजनाओं की जरूरत होगी, लेकिन जमीन के अभाव में बिहार अक्षय ऊर्जा के मामले में पिछड़ रहा है।
- बिहार में भारत की लगभग 8.6 प्रतिशत आबादी रहती है, लेकिन प्रदेश में देश की कृषि भूमि क्षेत्र का केवल 3.8 प्रतिशत हिस्सा है।
- अक्षय ऊर्जा की क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार की संस्था बिहार अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (ब्रेडा) और बिजली वितरण कंपनियां छोटी परियोजनाएं जैसे छतों पर सोलर पैनल स्थापित करने पर जोर दे रही है।
इंवर्टर बल्ब, यानी बिजली जाने के बाद भी यह बल्ब तीन-चार घंटे तक रोशनी दे सकती है। सविता कुमारी की छोटी सी दुकान पर बिजली के दर्जनों उपकरणों में से एक इस बल्ब की एक और खासियत है। इसे सविता ने अपने कस्बे में ही बनाया है। बिहार के गया जिले में स्थित एक छोटे से कस्बे डोभी में रहने वाली सविता कुमारी सौर ऊर्जा आधारित एक कंपनी की डायरेक्टर हैं। उनकी छोटी सी दुकान पर तरह-तरह के उपकरण उपलब्ध हैं जिसमें सोलर से चलने वाली टॉर्च, सोलर प्लेट और बिजली के कई तरह के बल्ब शामिल हैं।
इस कंपनी को सविता कुमारी की तरह इलाके की 60 महिलाओं ने मिलकर बिहार सरकार की संस्था, जीविका, के सहयोग से बनाया है। कंपनी को नाम दिया गया जीविका वूमेन इनिशिएटिव रिन्यूबल इनर्जी एंड साल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड, यानी ‘जे-वायर्स’।
सविता कहती हैं, “हमारी कंपनी पूरी तरह महिलाओं के द्वारा संचालित है और दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में रोशनी के लिए सौर ऊर्जा से संचालित उपकरण बनाती और बेचती है। वर्ष 2020 में बनी कंपनी ने अब तक 341 सोलर दुकानें स्थापित की हैं और आने वाले समय में 3,500 दुकानें खोलने का लक्ष्य है।”
बिहार के नालंदा जिले के नूरसराय में भी सौर ऊर्जा की मदद से लोगों की जिंदगी में बदलाव देखा जा सकता है। नूरसराय में बाजार के पास इंजीनियरिंग वर्क्स की वर्कशॉप चलाने वाले गणेश कुमार को सौर ऊर्जा की वजह से अबाध बिजली की आपूर्ति मिल रही है। वह कहते हैं, “हम पहले डीजल जेनरेटर पर निर्भर थे। शोर के साथ प्रदूषण भी होता था और महंगाई में जेनरेटर चलाना घाटे का सौदा था। सरकारी बिजली दिन में कई बार आती-जाती रहती है। अब सौर ऊर्जा की मदद से बिजली स्थिर रहती है।”
गणेश कुमार एक निजी कंपनी, हस्क पॉवर, द्वारा स्थापित मिनी सौर ग्रिड से पैदा हुई ऊर्जा का उपयोग कर रहे हैं। लगातार बिजली मिलने से वह समय पर अपना काम खत्म कर सकते हैं।
जरूरत के मुताबिक ऊर्जा के उत्पादन में बिहार देश के औसत से काफी पीछे है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2022 में बिहार को 36,635 मिलियन यूनिट बिजली की जरूरत थी, लेकिन आपूर्ति सिर्फ 35,873 मिलियन यूनिट की हुई। बिहार 762 मिलियन यूनिट बिजली आपूर्ति करने में असफल रहा, जो कि कुल मांग के दो प्रतिशत के करीब है। मांग के मुताबिक आपूर्ति में कमी के मामले में भारत का औसत 7,349 मिलियन यूनिट या 0.5 प्रतिशत है।
बिहार के लिए सौर ऊर्जा क्यों है महत्वपूर्ण
विश्व बैंक के सर्वेक्षण और विश्लेषण के अनुसार, बिहार का बिजली क्षेत्र वित्तीय रूप से भारत में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले बिजली क्षेत्रों में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में खराब बुनियादी ढांचे, सीमित वित्त, बिजली की मांग और आपूर्ति में बढ़ती खाई और कम क्रेडिट रेटिंग की वजह से राज्य की यह स्थिति है। हालांकि, राज्य की सौर और बायोमास क्षमता के कारण यहां माइक्रो-ग्रिड सफल हो सकते हैं।
उदाहरण के लिए हस्क पॉवर द्वारा स्थापित ग्रिड को ले सकते हैं। नालंदा के नूरसराय में जमीन के एक छोटे से भाग पर स्थापित इस ग्रिड से कम से कम 20 लघु उद्योगों को बिजली मिलती है।
हस्क पॉवर सिस्टमस् के इंडिया कंट्री डायरेक्टर, सौगत दत्ता ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, “मिनीग्रिड का एक प्रमुख लाभ है, इसमें ट्रांसमिशन के दौरान बिजली की क्षति कम होती है। बिजली उत्पादन स्थानीय स्तर पर होता है जिससे अंतिम उपयोगकर्ताओं तक बिजली अधिक विश्वसनीय और कम लागत में प्रभावी ढंग से पहुंचती है।”
बिहार में अक्षय ऊर्जा के दूसरे स्रोत जैसे बायोमास, बैगस (गन्ने की खोई), पवन ऊर्जा के मुकाबले सौर ऊर्जा की क्षमता सबसे अधिक है। बिहार में 11,200 मेगावॉट सौर ऊर्जा क्षमता है, जबकि पवन ऊर्जा 144 मेगावॉट, बायोमास 619 और खोई से ऊर्जा उत्पादन की क्षमता 300 मेगावॉट है।
बिहार में अक्षय ऊर्जा की धीमी रफ्तार
बिहार के कई इलाकों में सौर ऊर्जा से आ रहे बदलाव देखे जा सकते हैं। लेकिन, बिहार की अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करने की रफ्तार लक्ष्य के मुताबिक धीमी है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक बिहार ने 30 सितंबर 2023 तक 420.26 मेगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता हासिल कर ली है, जिसमें 223.54 मेगावॉट की भागीदारी सौर ऊर्जा की है। इसमें पवन ऊर्जा से 112 मेगावॉट और बायोमास से 126 मेगावॉट ऊर्जा उत्पादन शामिल है। वर्ष 2017 में जारी बिहार अक्षय ऊर्जा नीति के मुताबिक राज्य सरकार ने वर्ष 2022 तक 2969 मेगावॉट सौर ऊर्जा की स्थापित क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा था। सौर ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल करने की राह में बिहार को अभी काफी फासला तय करना है।
बिहार रिन्युएबुल इनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (ब्रेडा) के सहायक निदेशक खगेश चौधरी ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत के दौरान कहा, “नॉर्थ बिहार और साउथ बिहार पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों ने 10-10 मेगावॉट क्षमता रूफटॉप सोलर के माध्यम से हासिल करने का लक्ष्य रखा है। जमीन पर सौर संयंत्र स्थापित करने के लिए ब्रेडा ने 250 मेगावॉट का टेंडर जारी किया है।”
प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत के मामले में बिहार राष्ट्रीय औसत के मुकाबले काफी पीछे है। वर्ष 2020-21 में जारी आंकड़े के मुताबिक बिहार का प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत 316 किलोवॉट घंटा है, जबकि राष्ट्रीय औसत 1161किलोवॉट घंटा है।
ऊर्जा के मामले में राज्य को समृद्ध करने और अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल करने के लिए बिहार को बड़ी सौर परियोजनाओं की जरूरत है, जिसकी राह में जमीन की कमी आड़े आ रही है।
बिहार के आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के मुताबिक राज्य में देश की लगभग 8.6 प्रतिशत आबादी रहती है। 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार का जनसंख्या घनत्व 1106 प्रति वर्ग किलोमीटर है जो कि देश में सबसे अधिक है। जबकि भारत में यह 382 प्रति वर्ग किलोमीटर है। बिहार में दो हेक्टेयर से कम भूमि वाले लघु और सीमांत किसानों की संख्या लगभग 97 प्रतिशत है।
तमाम चुनौतियों के बावजूद बिहार में लक्ष्य पाने के लिए कई प्रयास हो रहे हैं।
चौधरी इस बात को स्वीकारते हुए कहते हैं कि कृषि प्रधान राज्य होने की वजह से बिहार में जमीन की उपलब्धता कम है।
“जमीन कम उपलब्ध होने के साथ-साथ यह काफी महँगी भी है। जमीन पर सोलर परियोजना लगाने के लिए जमीन मिलने में काफी दिक्कत आती है और समय भी काफी लगता है,” चौधरी बताते हैं।
वह आगे कहते हैं, “हर साल 10 से 20 मेगावॉट की क्षमता बढ़ाई जा रही है। खेती के साथ सोलर परियोजना और पानी के ऊपर सौर पैनल लगाने जैसी परियोजनाओं पर काम चल रहा है। सुपौल और दरभंगा में ऐसे प्रोजेक्ट चालू हो चुके हैं।”
कम जमीन में लग सकने वाले मिनी ग्रिड्स भी बिहार के लक्ष्य को पाने में मददगार साबित हो सकते हैं।
“जमीन के उपयोग के पैमाने पर देखें तो अन्य ऊर्जा परियोजनाओं की तुलना में मिनीग्रिड को बहुत कम भूमि की आवश्यकता होती है। मिनीग्रिड समुदाय-आधारित हैं, और जमीन का कुशलता से उपयोग करते हैं। मिनीग्रिड अक्सर भूमि को सीधे खरीदने के बजाय पट्टे पर लेते हैं, जिससे लागत में कमी आती है,” सौगत दत्ता ने कहा।
जमीन की कमी को देखते हुए बिहार में रूफ टॉप यानी छत पर सोलर पैनल लगाने के प्रयास में आम लोगों का योगदान महत्वपूर्ण है।
गया के शाहबाज जफर पेशे से टैक्स कंसल्टेंट हैं। उन्होंने हाल ही में अपनी घर की छत पर 9 लाख की लागत से बना 13 किलोवॉट का सोलर पैनल लगाया है। चार मंजिल के मकान में उन्हें बिजली का बिल न के बराबर देना पड़ता है।
जफर ने बताया कि यह संयंत्र लगाने के बाद उनके घर का बिजली बिल लगभग जीरो हो गया है।
लक्ष्य हासिल करने के लिए बिहार सरकार की एजेंसी ब्रेडा ने शाहबाज जफर जैसे नागरिकों को भी अपनी योजना में शामिल किया है। इसके तहत आम लोग अपनी छत पर सौर ऊर्जा का उत्पादन कर ग्रिड को बिजली भेज सकते हैं।
नेट मीटरिंग की प्रक्रिया सुनने में काफी आसान लग सकती है, लेकिन इसे लगाने वाले लोग मानते हैं कि यह काफी पेचीदा है। बिहार में सोलर पैनल लगाने वाले काली चरण नेट मीटरिंग लगाने में उपभोक्ताओं को आ रही समस्याओं के बारे में बताते हैं।
उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में बताया, “बिजली वितरण कंपनी ने सुविधा एप पर नेट मीटरिंग के लिए अप्लाई करने की सुविधा दी है, लेकिन अप्लाई करने के बाद दफ्तर के कई चक्कर लगाने पड़ते हैं। कई बार कर्मचारी गैरकानूनी रूप से पैसों की मांग भी करते हैं।”
बैनर तस्वीर: गणेश कुमार अपनी वर्कशॉप में। गणेश अपनी वर्कशॉप में फ़िलहाल एक बोरिंग मशीन बना रहे हैं। इस प्रोजेक्ट को समय पर पूरा करने में उन्हें सौर ऊर्जा से खासी मदद मिल रही है। तस्वीर: मनीष चंद्र मिश्र/मोंगाबे
यह स्टोरी अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के रिन्यूएबल एनर्जी ग्रांट के सहयोग से रिपोर्ट की गई है।