- भोजन की हानि और बर्बादी एक पर्यावरणीय और आर्थिक समस्या है, जो 8% से 10% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। इसकी वजह से दुनियाभर में सालाना 1 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान होता है।
- लेकिन एक नए अध्ययन से पता चलता है कि अगर भोजन की हानि और बर्बादी को कम कर दिया जाए तो भोजन की खपत बढ़ जाएगी। क्योंकि भोजन अधिक सस्ता हो जाएगा और सभी लोगों तक इसकी पहुंच आसान हो जाएगी, जिसकी वजह से पर्यावरण और स्वास्थ्य लाभ कम हो जाएंगे।
- अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि भोजन की हानि और बर्बादी के बढ़ जाने से खासतौर पर महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बीच पोषण असुरक्षा पैदा हो जाएगी।
भले ही भोजन की हानि और बर्बादी को कम करके खाद्य सुरक्षा में सुधार लाया जा सकता है, लेकिन जरूरी नहीं कि इससे पर्यावरण को भी फायदा पहुंचेगा। नेचर फूड में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन से यह बात निकलकर सामने आई है। अध्ययन में कहा गया है कि बर्बादी और हानि को कम करने से भोजन की लागत में कमी आएगी, जिससे यह सस्ता और आसानी उपलब्ध हो जायेगा। लेकिन यह कार्बन उत्सर्जन को कम करने जैसे पर्यावरणीय लाभों को खत्म करते हुए, अत्यधिक खपत की ओर ले जा सकता है।
अध्ययन में पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों के साथ खाद्य सुरक्षा को संतुलित करने की जटिलताओं पर प्रकाश डाला गया है। वहीं कुछ विशेषज्ञों ने इस बात पर ध्यान दिया कि भोजन की हानि और बर्बादी को कम करने से जो फायदे मिलेंगे, वो दुनिया के कुछ हिस्सों और लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
वैश्विक स्तर पर, उत्पादित कुल भोजन का तकरीबन 14 प्रतिशत फसल और खुदरा चरण के बीच खराब हो जाता है, जबकि कुल वैश्विक खाद्य उत्पादन का अनुमानित 17 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है। भोजन की हानि सप्लाई चेन के विभिन्न चरणों में होती है, जहां यह उपभोक्ताओं तक पहुंचने से पहले ही खराब हो जाता है। जबकि भोजन की बर्बादी का संदर्भ ऐसे भोजन से है जो खुदरा, खाद्य सेवा क्षेत्र या घरेलू स्तर पर उपभोक्ताओं की वजह से फेंक दिया जाता है या फिर बर्बाद होता है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, वैश्विक खाद्य प्रणाली में कुल ऊर्जा उपयोग का 38 प्रतिशत भोजन की हानि और बर्बादी के कारण होता है।
भोजन की बर्बादी रोकने से लागत में कमी
संयुक्त राज्य अमेरिका की कोलोराडो बोल्डर यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, इरविन के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किया गया यह अध्ययन, भोजन के नुकसान और बर्बादी को कम करने के संभावित रिबाउंड प्रभावों पर गौर करता है। आर्थिक नजरिए से देखें तो, रिबाउंड प्रभाव का यहां मतलब भोजन की बर्बादी को रोकने से लागत में कमी आने से है, जिसकी वजह से लोगों तक इसकी पहुंच आसान हो जाएगी।
शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि भोजन की हानि और बर्बादी को कम करके, भोजन को सस्ता बनाया जा सकता है, जिससे यह बड़ी आबादी के लिए अधिक सुलभ हो जाएगा। लेकिन कुछ शोधकर्ताओं का तर्क है कि इसकी वजह से उपभोग का स्तर बढ़ जाएगा। यह भोजन के नुकसान और बर्बादी को कम करने के बदले में अपेक्षित पर्यावरणीय और स्वास्थ्य परिणामों को कम कर सकता है।
अध्ययन के प्रमुख लेखक मार्गरेट हेगवुड ने कहा कि अध्ययन ने भोजन की हानि और बर्बादी को कम करने के परिणाम के रूप में खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ी जीत का विरोध नहीं किया है, लेकिन कहा कि भोजन की हानि और बर्बादी में बड़े पैमाने पर कमी से भविष्य में दूसरी चीजों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में सोचने की जरूरत है, खासकर पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर। उन्होंने कहा, “अध्ययन का उद्देश्य नीति निर्माताओं को यह विचार देना था कि भोजन की हानि और बर्बादी को कम करने, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण व्यापार को संतुलित करने के बारे में निर्णय लेते समय कैसे आगे कदम बढ़ाने हैं।”
अध्ययन इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे भोजन की हानि और बर्बादी को कम करने के दो उद्देश्य – पर्यावरणीय लाभ और खाद्य सुरक्षा लाभ – एक दूसरे के विपरीत हो सकते हैं। मॉडल बताता है कि भोजन की हानि और बर्बादी को 100 फीसदी तक कम करने पर अनुमानित पर्यावरणीय लाभ (कार्बन उत्सर्जन में कमी, भूमि उपयोग, पानी का उपयोग) 53-71% तक कम हो जाएगा। लेकिन यह रिबाउंड प्रभाव से प्रभावित होगा, जहां अधिक लोगों तक भोजन की पहुंच होती है और उसका ज्यादा उपभोग किया जाता है।
कई देशों में किए गए इस डेटा अध्ययन में दक्षिण एशिया के कुछ देश भी शामिल थे जहां भोजन की हानि और बर्बादी के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा भी महत्वपूर्ण मुद्दे हैं।
वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) में फूड लॉस एंड वेस्ट के सीनियर फेलो और निदेशक लिज़ गुडविन ने कहा कि अध्ययन में एक सरल मॉडल का इस्तेमाल किया गया है क्योंकि इसमें भोजन के नुकसान और बर्बादी को कम करने में शामिल लागत को ध्यान में नहीं रखा गया है। हालांकि गुडविन इस अध्ययन से जुड़े नहीं थे। उन्होंने कहा, “बुनियादी ढांचे, पैकेजिंग, जागरूकता आदि में सुधार करने में एक लागत शामिल होगी, जिसे इस अध्ययन में शामिल नहीं किया गया है।”
डब्ल्यूआरआई इंडिया की निदेशक, सस्टेनेबल लैंडस्केप्स एंड रेस्टोरेशन, रुचिका सिंह ने सहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा कि अध्ययन में माना गया है कि खाद्य कीमतों में कमी से उपभोक्ताओं द्वारा बचाए गए पैसे अधिक भोजन पर खर्च किए जाएंगे। वह आगे बताती हैं, “भारत और ग्लोबल साउथ के नजरिए से हमें यह आकलन करने के लिए अधिक डेटा की जरूरत हो सकती है कि क्या उपभोक्ताओं द्वारा बचाए गए पैसे अधिक भोजन पर खर्च किए जाएंगे। वे इसका इस्तेमाल अन्य उद्देश्यों के लिए भी कर सकते हैं।”
गुडविन ने कहा कि दुनिया के कुछ हिस्सों जैसे उप-सहारा अफ्रीका में, भोजन की हानि और बर्बादी को कम करने से बड़े खाद्य सुरक्षा लाभ मिलते हैं। उन्होंने कहा, “ऐसे कई (पौष्टिक रूप से) खराब खाद्य पदार्थ हैं जो गरीब देशों में लोगों के लिए आसानी से उपलब्ध हैं जो उन्हें मोटापे का शिकार बनाते हैं और कई बीमारियों का कारण बनते हैं। यह एक बड़ी सामाजिक समस्या है जिसे भोजन की हानि और बर्बादी को कम करके हल किया जा सकता है।”
पर्यावरणीय और आर्थिक जीत
भोजन की हानि और बर्बादी को कम करने से महत्वपूर्ण पर्यावरणीय और आर्थिक जीत होती है। खाद्य पदार्थों की हानि और अपशिष्ट से सालाना आठ से दस प्रतिशत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है, जो ऊर्जा, उर्वरक, लैंड कन्वर्जन और भोजन से जुड़े लैंडफिल कचरे से होता है। यह भोजन उगाया तो जाता है लेकिन आखिर में इसका उपभोग नहीं किया जाता है। 2019 वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के अनुमान से पता चलता है कि विश्व स्तर पर भोजन की हानि और बर्बादी को 25% कम करने से खाद्य कैलोरी में 12%, लैंड यूज में 27% और ग्रीनहाउस गैस के कम करने के उपायों में 15% कमी आ जाएगी।
भोजन की हानि और बर्बादी पर ध्यान न देने से दुनिया को सालाना लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान होता है। यह एक ऐसा अनुमान है जिसमें कर्मचारियों की खराब सेहत की वजह से उनके काम के दिनों में कमी आने से पड़ने वाले आर्थिक बोझ को ध्यान में नहीं रखा गया है। भारत में कुपोषण के कारण उत्पादकता में कमी, बीमारी और मृत्यु की लागत 10 से 28 बिलियन डॉलर है।
वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट इंडिया के 2021 वर्किंग पेपर में कहा गया है कि भारत में भोजन के नुकसान और बर्बादी पर बहुत कम डेटा उपलब्ध है और यह ज्यादातर फसल के बाद के नुकसान (1,527 अरब रुपये या 18.5 अरब डॉलर) तक ही सीमित है। खुदरा, घरेलू और सेवा स्तर पर भोजन की बर्बादी का डेटा कुछ खास अध्ययनों तक ही सिमट कर रहा गया है।
डब्ल्यूआरआई इंडिया की सिंह ने कहा कि भोजन की हानि और बर्बादी के बढ़ जाने से खाद्य और पोषण असुरक्षा पैदा होती है, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों में पोषण संबंधी कमियां अधिक होती हैं। आज भी भारत के कई घरों में देखा जा सकता है कि महिलाएं सबसे बाद में खाना खाती हैं। घर के सभी सदस्यों को खाना खिलाने के बाद वह इस और रुख करती हैं। अगर खाना कम है तो कई बार तो वह खाना भी नहीं खाती है। उन्हें अक्सर कम खाना या बचा हुआ खाना ही मिलता है। इस तरह से अगर भोजन की बर्बादी में कमी आएगी तो विशेष रूप से गरीबों और कमजोर लोगों के लिए पौष्टिक भोजन तक पहुंच की कमी के कारण होने वाले नुकसान में भी कमी आएगी। उन्होंने कहा, “सप्लाई चेन में बचाए गए भोजन को, भूखे पेट सोने वाले की भूख मिटाने और पोषण सुरक्षा में सुधार करने के लिए जरूरतमंद लोगों को दिया जा सकता है।”
भोजन की हानि से बचने के लिए जलवायु संबंधी तैयारी
जलवायु परिवर्तन से होने वाली आपदाएं भी भोजन की हानि और बर्बादी का कारण बन रही हैं। न सिर्फ बदलती जलवायु के प्रभावों से निपटने के नजरिए से, बल्कि नई परिस्थितियों के अनुसार ढलने के लिए भी इससे निपटना महत्वपूर्ण हो जाता है।
सिंह ने कहा, “अगर फार्मगेट पर या खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में खराब बुनियादी ढांचा है तो जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भोजन की हानि को बढ़ा सकता है। उदाहरण के लिए, अत्यधिक गर्मी, बारिश और बाढ़ के कारण गुणवत्ता और मात्रा में नुकसान हो सकता है।” उन्होंने कहा कि आपदाओं के समय यहां से वहां जाते समय फसल के नुकसान के बारे में भी ध्यान देना होगा। कृषि तकनीकों के साथ-साथ पैकेजिंग को बेहतर बनाने पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर में प्रतिकूल मौसम की घटनाएं नई सामान्य बात बन गई हैं।
भोजन की हानि और भोजन की बर्बादी को कम करना, दुनिया भर में हो रहे जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किए जा रहे बड़े समाधानों में से एक है। सिंह के अनुसार, ये खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में समाधान से जुड़े पहलुओं पर बात करने, दो चीजों के बीच के अंतर को कम करने, बुनियादी ढांचे और नवीन समाधानों (जैसे, तकनीकी समाधान) की योजना बनाने और आपूर्ति-मांग अंतराल को कम करने से भिन्न हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि देशों और राज्यों को ऐसे तरीके लाने के लिए प्रोत्साहित करना जो सार्वजनिक-निजी भागीदारी के जरिए भोजन के नुकसान और बर्बादी को मापने में सक्षम हो, इसकी कमी पर स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करना और प्रोत्साहन के जरिए कार्रवाई को प्रेरित करना, भोजन के नुकसान और बर्बादी और इसके प्रभावों को कम करने में काफी मदद कर सकते हैं। वह आगे बताती हैं, “उपभोक्ता भोजन की बर्बादी को कम करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। हम सभी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। दरअसल हर कार्रवाई मायने रखती है।”
बैनर तस्वीर: चेन्नई के कोयम्बेडु बाजार में नारियल से भरे ट्रक को खाली करते हुए कुछ मजदूर। भोजन की हानि और भोजन की बर्बादी आठ से दस प्रतिशत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन उत्पन्न करके पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है। तस्वीर- मैके सैवेज/विकिमीडिया कॉमन्स