- यूरेशियन लिन्क्स बिल्लियों की एक मांसाहारी प्रजाति है। यह प्रजाति मध्य एशिया के चट्टानी पहाड़ी पठार में बंजर, कमोबेश खुली जगहों पर पाई जाती है। भारत में, लिन्क्स लद्दाख के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं। यह बिल्ली अब कभी-कभार ही दिखती है।
- आमतौर पर लिन्क्स तिब्बती ऊनी खरगोश, मारमॉट (शैलमूषक) और हिमालयी चूहा, मादा या किशोर खुर, घरेलू भेड़ और बकरियों का शिकार करता है। खाद्य श्रृंखला में उनकी भूमिका में इन शिकार प्रजातियों की आबादी को विनियमित करना शामिल है।
- ऐसा अनुमान है कि समय के साथ भारत में यूरेशियन लिन्क्स की आबादी कम हो गई है। बिल्ली की अन्य प्रजातियों की तुलना में इस बिल्ली की आबादी का पता लगाना भी कठिन है।
इस साल फरवरी में लद्दाख में कुत्तों से घिरी जंगली बिल्ली का एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। कई समाचार संगठनों ने इस क्लिप को अपने ‘वायरल वीडियो‘ सेक्शन में पब्लिश किया। इस वीडियो पर आए कमेंट्स में लोग इस जंगली जानवर के बारे में जानने को उत्सुक थे। कुछ अनुमान सही नहीं थे और उनका कहना था कि यह घरेलू कुत्ते और भेड़िये का मिश्रण है। लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने इसकी सटीक पहचान यूरेशियन लिन्क्स के रूप में की।
यूरेशियन लिन्क्स बिल्ली की एक मांसाहारी प्रजाति है। यह प्रजाति मध्य एशिया के चट्टानी पहाड़ी पठार में बंजर, कमोबेश खुली जगहों पर पाई जाती है। भारत में लिन्क्स की उप-प्रजाति लद्दाख के कुछ हिस्सों में पाई जाती है और इस प्रजाति की बिल्ली को देखना बहुत दुर्लभ है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अपनी पूरी रेंज में इनकी तादाद बहुत कम है। इस वजह से, यह बिल्ली ज़्यादा प्रसिद्ध नहीं है। इस तथ्य के बावजूद कि यह लद्दाख में हिम तेंदुए के बाद बिल्ली की दूसरी सबसे बड़ी प्रजाति है।
लद्दाख के वन्यजीव विभाग के अनुसार, वीडियो में दिख रहे लिन्क्स को बचाया गया और बाद में जंगल में छोड़ दिया गया। लद्दाख के मुख्य वन्यजीव वार्डन पंकज रैना ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “वह लिन्क्स थोड़ा घायल हो गया था। इसलिए, हमने तुरंत इसे बचाया और 10-15 दिनों के पुनर्वास के बाद इसे सफलतापूर्वक इसके आवास में छोड़ दिया गया।”
मध्यम आकार की बिल्ली
यूरोप और उत्तर-मध्य एशिया में यूरेशियन लिन्क्स (लिन्क्स लिन्क्स) की छह उप-प्रजातियां पाई जाती हैं। भारत में पाई जाने वाली उप-प्रजाति को मध्य एशियाई लिन्क्स (लिन्क्स लिन्क्स इसाबेलिनस) के रूप में जाना जाता है। इसे तुर्केस्तान लिन्क्स, तिब्बती लिन्क्स या हिमालयी लिन्क्स के नाम से भी जाना जाता है।
यूरेशियन लिन्क्स, लिन्क्स जाति की सबसे बड़ी प्रजाति है और इसे IUCN रेड लिस्ट में सबसे कम चिंताजनक के रूप में रखा गया है। यह प्रजाति वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची I के तहत सूचीबद्ध है। इसका मतलब है कि इसे सुरक्षा का सबसे ऊंचा स्तर प्राप्त है।
लद्दाख में बिल्ली की तीन प्रमुख प्रजातियां हैं – सबसे बड़ी बिल्ली होने के नाते हिम तेंदुआ सबसे बड़ा शिकारी है। इसके अलावा, मध्यम आकार की जंगली बिल्ली जो यूरेशियन लिन्क्स की एक उप-प्रजाति है। वहीं पलास की बिल्ली एक छोटी जंगली बिल्ली है। लद्दाख में पाए जाने वाले यूरेशियन लिन्क्स के पैर लंबे और पंजे बड़े होते हैं। इसकी पूंछ बहुत छोटी होती है और कानों पर काले रंग की पीठ होती है और लंबे काले बाल होते हैं। फर का रंग फीका और पीला होता है।
जहां यूरेशियन लिन्क्स की अन्य उप-प्रजातियां जंगल में पाई जाती हैं, वहीं मध्य एशियाई लिन्क्स या हिमालयन लिन्क्स बंजर माहौल में रहना पसंद करता है।
आमतौर पर लिन्क्स तिब्बती ऊनी खरगोश, मारमॉट (शैलमूषक) और हिमालयी चूहा, मादा या किशोर खुर, घरेलू भेड़ और बकरियों का शिकार करता है।
खाद्य श्रृंखला में लिन्क्स की अहमियत पर बात करते हुए भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के रिसर्च स्कॉलर नियाजुल एच. खान ने बताया, “खाद्य श्रृंखला में उनकी भूमिका में इन शिकार प्रजातियों की आबादी को रेगुलेट करना शामिल है। इन शाकाहारी जीवों का शिकार करके, लिन्क्स उनकी संख्या को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। साथ ही, बहुत ज़्यादा चराई और निवास स्थान के क्षरण को रोकते हैं। जब लिन्क्स की आबादी परिदृश्य में स्वस्थ होती है, तो वे खरगोश और मारमॉट जैसे शाकाहारी जीवों की संख्या को कम कर सकते हैं। इसक वजह से पौधे और पूरे परिदृश्य को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
दुर्लभ लिन्क्स को खोजना
यूरेशियन लिन्क्स की उप-प्रजाति को लद्दाख में स्थानीय रूप से ईह या ईअ के नाम से जाना जाता है। यह लद्दाख के अलग-अलग हिस्सों जैसे चांगथांग वन्यजीव अभयारण्य, त्सो-कार बेसिन, हेमिस नेशनल पार्क और नुब्रा घाटी में पाई जाती है। ये जगहें इस बिल्ली के प्रमुख निवास स्थान हैं।
जब लिन्क्स के वैज्ञानिक रिकॉर्ड की बात आती है, तो भारत में इसकी बहुत कमी है। शुरुआती लोगों में से एक और हिम तेंदुओं और बाघों के जानकार रघु चुंडावत का काम है, जिन्होंने 1980 के दशक में दो लिन्क्स शवों को रिकॉर्ड किया था। इन दोनों में से एक की मौत कुदरती वजहों से हुई थी। वहीं, दूसरे की मवेशियों की रक्षा के लिए स्थानीय लोगों ने मार दिया था। डब्ल्यूआईआई के प्रोफेसर जीएस रावत ने 2002 में लद्दाख के त्सो-कार बेसिन में एक लिन्क्स को देखा था।
शोधकर्ता तृष्णा दत्ता और संदीप शर्मा ने 2004 में हेमिस नेशनल पार्क में लिन्क्स का ऑब्जर्वेशन किया। दत्ता और शर्मा ने अपने लेख में लिखा, “फरवरी 2004 में हिम तेंदुओं पर हमारे फील्डवर्क के दौरान, हमने लद्दाख के हेमिस नेशनल पार्क में गैंडा-ला बेस के पास दो वयस्क और एक किशोर लिन्क्स को एक साथ देखा था। यह जगह 4900 मीटर की ऊंचाई पर है।”
उन्होंने अपने लेख में लिखा, “दो वयस्क लिन्क्स करीब आ रहे थे और एक-दूसरे का पीछा कर रहे थे। वहीं किशोर लिन्कस वयस्कों से थोड़ा दूर था। हमने अपने स्पॉटिंग स्कोप के साथ लगभग एक घंटे तक उनका पीछा किया। शुरुआत में वे पहाड़ी रेखा के साथ आगे बढ़ रहे थे, फिर वे (पहाड़) के दक्षिणी ढलान पर आ गए। यह जगह कैरगाना झाड़ियों से घिरी हुई थी।“
साल 2010 में, राजस्थान विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर अमित कोटिया को चांगथांग के चुशुल गांव में एक लिन्क्स का सामना करना पड़ा। कोटिया ने लेख में जगह के बारे में कुछ इस तरह बताया, “जिस जगह पर इसे देखा गया उसके आसपास की जगह आम तौर पर सूखी थी और यहां कैरगाना, यूरोटिया, आर्टेमिसिया, टैनासेटम, स्टिपा, ऑक्सीट्रोपिस, ड्रेबा और एलिसम प्रजातियां बहुतायत में थी।”
लद्दाख के अलावा, इस बिल्ली को कश्मीर में भी देखा गया था। 2019 में, वन अधिकारियों ने दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के दोबज वन क्षेत्र में एक लिन्क्स की तस्वीर ली थी।
लद्दाख के कारगिल डिवीजन में लिन्क्स की मौजूदगी की सिर्फ़ अनौपचारिक रिपोर्टें थीं। हालांकि, अक्टूबर 2020 में डब्ल्यूआईआई के शोधकर्ता खान के नेतृत्व में वन्यजीव संरक्षण प्रभाग, कारगिल की एक टीम ने कारगिल की रंगदुम घाटी में यूरेशियन लिन्क्स के पहले फोटोग्राफिक सबूत को सफलतापूर्वक कैप्चर किया।
कारगिल के वन्यजीव वार्डन रज़ा अली आबिदी ने कहा, “ऐसी दुर्लभ प्रजाति का यह उल्लेखनीय रिकॉर्ड लद्दाख के कारगिल डिवीजन में लिन्क्स की आबादी के संरक्षण और प्रभावी प्रबंधन में गहरा प्रभाव डालता है।”
ज्यादा अध्ययन और डेटा की जरूरत
भारत के ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र में इसके प्रभावी संरक्षण के लिए इस दुलर्भ बिल्ली की पारिस्थितिकी के व्यापक अध्ययन की तुरंत जरूरत है।
हालांकि, इसकी प्रजातियों पर डेटा सीमित है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि भारत में यूरेशियन लिन्क्स की आबादी समय के साथ कम हो गई है। बिल्ली की अन्य प्रजातियों की तुलना में आबादी का सर्वे करना करना भी कठिन है। चुंडावत ने कहा, “जब मैंने 1980 के दशक में सर्वेक्षण किया था, तो लिन्क्स के अच्छे संकेत थे। हमें बहुत सारे शव और जाल मिले थे। लेकिन जब मैं पिछले साल नुब्रा घाटी गया था, तो इस बार वहां ज्यादा संकेत नहीं थे।”
उन्होंने कहा, “लिन्क्स की संख्या का अनुमान लगाने में एक दिक्कत यह है कि इसके अवशेष का पता लगाना कठिन है। यह घरेलू बिल्लियों की तरह अपने मल को दफना देता है, इसलिए इसे ढूंढना बहुत मुश्किल है।”
यूरेशियन लिन्क्स के बारे में लद्दाख के वन्यजीव विभाग के पास उपलब्ध डेटा और जानकारी के बारे में बात करते हुए रैना ने कहा, “हमारे पास अभी कैमरा ट्रैप लोकेशन हैं, जिसके साथ हम शुरुआती वितरण का मानचित्र बना सकते हैं। हमारे पास टेलीमेट्री डेटा भी है, ताकि हम होम रेंज और गतिविधि पैटर्न के बारे में जान सकें। जैसे कि यह कब सक्रिय होता है, क्या खाता है, क्या नहीं खाता है, शिकार के बाद उस क्षेत्र में कितना समय बिताता है।
ट्रैकर, पर्यटकों और वन्यजीव उत्साही लोगों द्वारा देखे जाने के बारे में बात करते हुए वन्यजीव संरक्षण और पक्षी क्लब ऑफ लद्दाख के अध्यक्ष, लोबज़ैंग विशुद्ध ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “भारत के नजरिए से देखें तो लिए यूरेशियन लिन्क्स दुर्लभ प्रजातियों में से एक है। यह लद्दाख में पाया जाता है और इस पर कोई अध्ययन नहीं है, कोई डेटा नहीं है। अभी तक हमारे पास इसकी अनुमानित आबादी भी नहीं है। अब तक इसे अधिकांश बार नुब्रा घाटी और हेमिस नेशनल पार्क के रुंबक में देखा गया है। नुब्रा में संख्या ज्यादा होती है। हमें इसकी आबादी के बारे में नहीं पता, लेकिन स्थानीय लोगों को इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।“
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बैनर तस्वीर: लद्दाख के हेमिस नेशनल पार्क में यूरेशियन लिन्क्स की एक कैमरा ट्रैप तस्वीर। तस्वीर- वन, पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण विभाग, लद्दाख।