- जंगली हाथियों को पकड़ने के अभियान के दौरान कर्नाटका ने अपने एक मशहूर कुमकी हाथी को खो दिया, जिससे वन विभाग द्वारा की गई इस तरह के कई अभियानों पर सवाल उठ रहे हैं। कुमकी हाथी वो जंगली हाथी होते हैं जिन्हें जंगली हाथियों को पकड़ने और जंगलों में रेस्क्यू अभियानों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
- वन्यजीव कार्यकर्ताओं और स्थानीय लोगों का आरोप है कि राज्य में हाथियों को पकड़ने के दौरान मानव-हाथी संपर्क के लिए देश भर में तय कई दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया जाता है।
- वन विभाग के अधिकारी इन आरोपों का खंडन करते हैं और कहते हैं कि वे स्थानीय लोगों के दबाव में ज्यादा संघर्ष वाले इलाकों से हाथियों को पकड़ने के लिए मजबूर हैं।
कर्नाटका के वन्यजीव प्रेमियों को पिछले साल दिसंबर का महीना बहुत ज्यादा दुखी कर गया। हासन जिले के यसलूर वन रेंज में हाथी पकड़ने के अभियान के दौरान जंगली हाथी के साथ हुई मुठभेड़ में राज्य का प्रिय हाथी अर्जुन मारा गया। यह ऑपरेशन 22 जून, 2023 को आए वन विभाग के उस आदेश के तहत हो रहा था, जिसमें हाथियों को सामूहिक रूप से रेडियो कॉलर लगाना है।
उम्रदराज अर्जुन कबीनी में बाले हाथी शिविर में रहता था। अर्जुन मैसूरु के मशहूर दशहरा उत्सव के दौरान देवी चामुंडेश्वरी की लगभग 800 किलो वजनी शुभ स्वर्ण जड़ित पालकी को धारण करता था। यह काम वह लगभग एक दशक से कर रहा था। अर्जुन को युवावस्था में जंगल से पकड़ा गया था। उसे इंसानी आदेशों का मूक पालन करने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। भले ही उसकी स्थिति तारीफ के काबिल थी, लेकिन लोगों की नजरों में उसका ओहदा राजसी था।
फील्ड मैन्युअल गाइडलाइन की अनदेखी का आरोप
स्थानीय निवासियों और वन्यजीव कार्यकर्ताओं ने इस हादसे के लिए कर्नाटका वन विभाग को जिम्मेदार ठहराया है। वहीं, चश्मदीदों का आरोप है कि मौत के समय अर्जुन के सामने वाले दाहिने पैर में गोली लगने के जख्म थे। हालांकि, विभाग ने इन आरोपों का खंडन किया। वहीं ऐसी स्थिति में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के प्रोजेक्ट एलिफेंट डिवीजन के फील्ड मैन्युअल के तहत शव का परीक्षण जरूरी है। लेकिन अर्जुन के शव को बिना परीक्षण के ही दफना दिया गया। यह मैन्युअल देश में मानव-हाथी संघर्ष के प्रबंधन से जुड़ा है। दिशानिर्देशों को विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) और भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की मदद से वन क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए संदर्भ सामग्री के साथ-साथ राज्यों को अपने खुद के मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को बनाने के लिए तैयार किया गया था।
अर्जुन की मौत पर हंगामा ज्यादातर उसकी कथित पवित्रता से जुड़ा है जो राज्य में मानव-हाथी संघर्ष के कुप्रबंधन के बड़े मुद्दे को नजरअंदाज कर देता है। अर्जुन इसका सिर्फ एक और शिकार है। जिन परिस्थितियों में हाथी मारा गया, वे हाथी पकड़ने के अभियानों में राज्य के लिए दिशानिर्देशों, प्रोटोकॉल या एसओपी की गैर-मौजूदगी की ओर इशारा करते हैं। ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल में वन्यजीव निदेशक सुमंत बिंदुमाधव ने कहा, “दशकों से कर्नाटका सरकार संघर्ष को खत्म करने के एक तरीके के रूप में हाथियों को पकड़ती रही है, फिर भी उनके पास एसओपी नहीं है। इससे पिछले कुछ महीनों में वन विभाग के तीन कर्मचारियों की मौत हुई है। मानव-हाथी संघर्ष का प्रबंधन करने और इसे खत्म करने के लिए राज्य मे नीति का भी अभाव है।“
हाथी पकड़ने के अभियान में हाथियों की जरूरत?
अर्जुन को कुमकी हाथी भी कहा जाता है। उस जैसे पालतू हाथियों को जंगली हाथियों को पकड़ने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। ऐसा आम तौर पर बचाव के कामों, चिकित्सा उपचार, निगरानी या मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए किया जाता है।
मोंगाबे इंडिया ने हाथी पर रिसर्च करने वाले और जिन संरक्षणवादियों से बात की, उन्होंने कहा कि हाथियों को पकड़ने के अभियान के दौरान पर्यावरण मंत्रालय के फील्ड मैनुअल में तय कई दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया है। जिस परिदृश्य में यह घटना घटी वह लैंटाना कैमारा जैसे बहुत ज्यादा आक्रामक पौधों की प्रजातियों से ढका हुआ था जिससे दृश्यता कम हो गई थी। दिशानिर्देशों में कहा गया है कि हाथी को पकड़ने या रेडियो कॉलरिंग ऑपरेशन ज्यादा दृश्यता वाले समतल जगहों पर किए जाने चाहिए।
अभियान वाली जगह के पास में ही हाथियों का झुंड था। अर्जुन रिटायर हो चुका था। जानकारों और संरक्षणवादियों का कहना है कि जंगली हाथी भी जोश में था और उसने शायद अर्जुन को प्रतिस्पर्धी समझा और उस पर हमला कर दिया। इससे यह सवाल उठता है कि क्या बहुत ज्यादा टेस्टोस्टेरोन स्तर और इस वजह से आक्रामक व्यवहार करने वाले हाथियों का इस्तेमाल ऐसे अभियानों के लिए किया जाना चाहिए।
वन विभाग के एक पशुचिकित्सक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि टेस्टोस्टेरोन स्तर बढ़ने से आक्रामक हुए कुमकी हाथियों का इस्तेमाल इसलिए किया जाता है, क्योंकि वे जोरदार गंध छोड़ते हैं जो दूसरे जंगली हाथियों को दूर रखता है। इससे हाथियों को वश में करने में मदद मिलती है। हाथी पर रिसर्च करने वाले और सह-अस्तित्व कंसोर्टियम के संस्थापकों में से एक तर्श थेकेकारा ने कहा कि ऐसे हाथी विभाग की मदद कर सकते हैं, लेकिन उन कामों को करने से पहले बचाव की स्पष्ट रणनीति बनाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा, “ऐसे अभियानों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कुमकी हाथियों को मदमस्त होने पर भी उन्हें वश में करने का तरीका पता होना चाहिए। जब आपको खतरा महसूस हो, तो प्रभारी व्यक्ति को कुमकी को वापस वश में करने और अभियान वाली जगह से निकालने का तरीका पता होना चाहिए।”
पिछले दिनों हुए ऐसे अभियान के प्रभारी पशुचिकित्सक से जंगली हाथी के लिए बनाया गया ट्रैंकुलाइजर मिसफायर हो गया और वह दूसरे कुमकी हाथी को लग गया। इससे वह हाथी वहीं गिर गया। इस घटना के बाद महावत, पशु चिकित्सक और बाकी लोगों का ध्यान गिरे हुए हाथी को सीधा करने पर चला गया। ऐसी आशंका जताई जा रही है कि अर्जुन को पीछे हटने के लिए समय पर आदेश नहीं मिले। अभियान का हिस्सा नहीं रहे पशुचिकित्सक ने कहा, “किसी कुमकी हाथी को अपने महावत के आदेश के बिना काम करने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है और अर्जुन को पीछे खींचने वाला शायद कोई नहीं था।” ऑपरेशन की निगरानी के लिए सिर्फ एक पशुचिकित्सक था। यह उस नियम का उल्लंघन था जिसमें कहा गया है कि ऐसे अभियान में तीन पशुचिकित्सक शामिल होने चाहिए।
एक तरफ, अर्जुन की मौत को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है, वहीं प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) सुभाष मालखेड़े ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी और इससे विभाग को सबक मिला है। उन्होंने कहा, “अभिमन्यु के बाद अर्जुन हमारा सबसे अच्छा हाथी था जो किसी भी जंगली हाथी से मुकाबला कर सकता था।” उन्होंने कहा कि ज्यादातर दिशानिर्देश कागज पर अच्छे दिखते हैं, लेकिन ऐसे जटिल अभियान के दौरान सब कुछ योजना के अनुसार नहीं होता है।
थेकेसरा ने कहा कि अभियान के दौरान मदमस्त हाथी का अक्सर इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन मदमस्त जंगली हाथी को पकड़ने में जोखिम बहुत ज्यादा होता है। लेकिन, वन विभाग ने अर्जुन की मौत से एक दिन पहले चिकमंगलूर जिले के मुदिगेरे रेंज में पिछले अभियान में इसे अनदेखा कर दिया। एक हाथी जिसे वश में करने के लिए ट्रैंकुलाइजर चलाया गया था, वह पहाड़ियों से लुढ़क गया और “दम घुटने” से मर गया। हाथी को “मादा डिकॉय तरीके” का इस्तेमाल करके फंसाया गया था, जिसमें किसी नर को आकर्षित करने के लिए प्रशिक्षित मादा कुमकी का सहारा लिया जाता है। विभाग ने हाथी को शाम के समय तीर मारा। इससे एक और नियम का उल्लंघन हुआ कि रात में तीर चलाने से बचना चाहिए, क्योंकि अंधेरे में हाथी पर नजर रखना मुश्किल हो जाता है।
बड़े पैमाने पर पकड़ना और उन्हें दूसरी जगह ले जाना
कर्नाटका वन विभाग का 80 के दशक की शुरुआत से ही बड़े पैमाने पर हाथियों को पकड़ने का एक लंबा इतिहास रहा है। यह काम बड़े पैमाने पर क्रमशः कोडगु और हासन जिलों में हारंगी और हेमावती बांधों के निर्माण के समय किया गया। पांच सालों तक विभाग की ओर से हाथियों को पकड़ने पर रिसर्च करने वाले अश्विन भट्ट ने कहा कि बांध बनाने के लिए लोगों को जंगल के किनारे भेज दिया गया, जिससे मानव-हाथी संघर्ष शुरू हो गया जो समय के साथ बढ़ गया है। राज्य ने 2012 में हाथी टास्क फोर्स का गठन किया। इसमें हाथियों वाले इलाकों को हाथी संरक्षण क्षेत्रों में बांटने का सुझाव दिया गया, जहां हाथी संरक्षण को प्राथमिकता दी जाती है। दूसरा, हाथी-मानव सह-अस्तित्व क्षेत्र, जहां हाथी संरक्षण और मानव आजीविका दोनों को संतुलित किया जाता है। और तीसरा, ऐसा जोन जहां से हाथी हटाए जाने हैं, जहां हाथी संरक्षण पर मानव सुरक्षा और आजीविका से जुड़ी चिंताओं को प्राथमिकता दी जाती है। भट्ट ने कहा, “हाथी गलियारों को सुरक्षित करने और आवासों में सुधार करने के बजाय, राज्य ने हासन जैसे हाथी हटाने वाले क्षेत्रों में प्रमुख उपाय के रूप में हाथियों को पकड़ना और उन्हें दूसरी जगह भेजने का सहारा लिया।” उन्होंने जो डेटा एकत्र किया है, उससे पता चलता है कि 2013 से कर्नाटका में 106 हाथियों को पकड़ा गया है।
हालांकि, 22 जून का आदेश सिर्फ इंसानों के लिए खतरा माने जाने वाले नौ हाथियों को रेडियो कॉलर लगाने के लिए था। लेकिन, कार्यकर्ताओं का आरोप है कि जिन हाथियों को पकड़ने में कोई समस्या नहीं थी, उन्हें भी पकड़ लिया गया। नागरहोले टाइगर रिज़र्व से एक हाथी पकड़ा गया जिसका फसल को नुकसान पहुंचाने या हमले का कोई पिछला रिकॉर्ड नहीं था। एक अन्य मामले में, एक हाथी को पकड़ा गया और उसे शिविर में ले जाने के इरादे से उसके दांत काट दिए गए, लेकिन बाद में उसे वापस जंगल में भेज दिया गया, जिससे जंगल में उसके जीवित रहने की संभावना कम हो गई।
विभाग से जुड़े सूत्रों ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि विभाग के उच्च अधिकारी कभी-कभी हाथी की मौजूदगी के आधार पर हाथियों को पकड़ने का फैसला लेते हैं, न कि सम्बंधित डेटा के आधार पर। भट्ट ने आरोप लगाया कि विभाग हाथियों के उत्पात से प्रभावित स्थानीय लोगों को संतुष्ट करने और शिविरों को भरने और उन्हें पड़ोसी राज्यों को उपहार में देने के लिए बड़े हाथियों को पकड़ता है। उनके शोध से पता चला है कि विभाग ने 2016 से दूसरे राज्यों को 57 हाथी उपहार में दिए हैं, जिनमें पिछले एक साल में महाराष्ट्र को दो और मध्य प्रदेश को दिए गए 11 हाथी शामिल हैं।
हालांकि, पीसीसीएफ मालखेड़े ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि विभाग अपने लिए सबसे अच्छे हाथी रखता है और संघर्षों के प्रबंधन में दूसरे अनुभवहीन राज्यों की मदद करने के लिए सद्भावना के रूप में सिर्फ बाकी बचे हाथियों को ही देता है। उन्होंने कहा, “हमें अपने शिविरों में जगह की ज़रूरत है जो संघर्ष की स्थिति के चलते पूरे भरे हुए हैं।” साथ ही, उन्होंने कहा कि शिविरों में सक्षम कुमकी हाथियों की कमी के कारण सेवानिवृत्त अर्जुन को काम पर लगाया गया था।
वहीं, 60 के दशक में राजसी दिखने वाला अर्जुन सेवानिवृत्त कुमकी था। उसे पर्यावरण मंत्रालय की ओर से बंदी हाथियों से जुड़े दिशानिर्देशों के अनुसार, सिर्फ हल्के काम पर और एक अनुभवी पशुचिकित्सक की लगातार निगरानी में रखा जाना चाहिए था। इसके बावजूद वन विभाग ने पिछले कुछ महीनों में अर्जुन को कई अभियानों का प्रभारी बनाया था, जिसमें आखिरी ऑपरेशन भी शामिल था जहां उस पर जानलेवा हमला किया गया था। ‘शेड्यूल I’ में आने वाले वन्यजीवों (वन्यजीव संरक्षण कानून, 1972 के तहत) को दी जाने वाली सुरक्षा को लेकर भी चिंताएं हैं, क्योंकि अर्जुन रिटायर हो चुका था और उसे शिविर में आराम करना चाहिए था।
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थेकेकारा ने कहा, कुछ मामलों में जैसे कि ज्यादा संघर्ष वाले क्षेत्रों में समस्या पैदा करने वाले हाथियों को हटाना ही एकमात्र समाधान हो सकता है, लेकिन यह काम डेटा के आधार पर होना चाहिए। उन्होंने कहा, “गलत हाथियों, विशेषकर नर हाथियों को पकड़ना समस्या वाला है।” एशियाई और अफ्रीकी हाथियों पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि प्रजातियों की जटिल सामाजिक संरचना में वयस्क नर हाथी, किशोर नर के व्यवहारिक प्रशिक्षण में अहम भूमिका निभाते हैं। थेकेकारा ने नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व क्षेत्र में नर से मादा अनुपात में कमी की ओर भी इशारा किया, जहां हाथियों की आबादी में वृद्धि देखी गई है। उन्होंने कहा, “हाथियों के पिछले तीन पोस्टमॉर्टम में नर के बीच आंतरिक लड़ाई का पता चलता है जो सही नहीं है।” कई अध्ययनों में हाथियों के साथ नकारात्मक संपर्क के समाधान के रूप में उन्हें दूसरी जगह ले जाने की तरीके को बेकार बताया गया है। मालखेड़े ने कहा, “कभी-कभी सिर्फ यह समाधान होता है। हम कार्रवाई करने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि हाथियों के उत्पात के कारण बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हैं।”
रेडियो कॉलरिंग या ट्रांसलोकेशन के लिए हाथियों को पकड़ने के ऑपरेशन में भारी खर्च आता है। जानकारों का मानना है कि उन्हें पकड़ना आखिरी समाधान होना चाहिए और पैसा हाथी-भूमि उपयोग के वैज्ञानिक विश्लेषण, निवास स्थान में सुधार और हाथी गलियारों को सुरक्षित करने जैसे दीर्घकालिक उपायों पर खर्च किया जाना चाहिए। बिंदुमाधव ने कहा, “हमारा ध्यान हाथियों को बाड़ों के अंदर बंद रखने पर है, जो इन परिदृश्यों में काम नहीं करेगा।”
भले ही भावुक राज्य सरकार अर्जुन के नाम पर मंदिर बनाने की योजना बना रही है, लेकिन विज्ञान के बेहतर इस्तेमाल, प्रभावी नीतियों और सबसे अहम, हाथियों के लिए भ्रष्टाचार मुक्त प्रबंधन से इंसानों और हाथियों दोनों को लाभ होगा।
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बैनर तस्वीर: मैसूरु दशहरा जुलूस के दौरान देवी चामुंडेश्वरी का स्वर्णजड़ित हौदा (पालकी) ले जाते हाथी अर्जुन की एक फ़ाइल तस्वीर। तस्वीर – मधुसूदन एसआर।