- प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन की वजह से मूलभूत ढांचों और इमारतों को होने वाला सालाना औसत नुकसान लगभग 700 बिलियन डॉलर यानी लगभग 5800 करोड़ रुपये के बराबर है।
- कम आय वाले देशों में स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़े आधारभूत ढांचे खासतौर पर आपदाओं और बढ़ते खतरों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- साल 2021 में विकसित देशों में आधारभूत ढांचों में निवेश 8.3 प्रतिशत बढ़ा जबकि विकासशील देशों में यही निवेश 8.8 प्रतिशत कम हो गया। जलवायु से जुड़े उपायों को अपनाने के साथ-साथ अगर आधारभूत ढांचों की फंडिंग को लचीला रखा जाए तो इस अंतर को भरा जा सकता है।
साल 2023 ऐसा रहा है जिसमें आपदाओं ने राज्यों के बजट को काफी नुकसान पहुंचाया है। ग्लेशियर वाली झील फटने से आई बाढ़ से प्रभावित हुए सिक्किम में हजारों करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान है। हिमाचल प्रदेश में हुई भारी बारिश बाढ़ जैसे हालात की वजह से कई सड़कें और इमारतें पूरी की पूरी बह गईं जिनकी वजह से लगभग 10 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। वहीं, 2023 की शुरुआत में धंसने लगे जोशीमठ शहर की वजह से उत्तराखंड की सरकार को 565 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है।
जब भी कोई आपदा आती है तो लोगों की जान जाने से पहले सबसे पहले मूलभूत ढांचे तबाह होते हैं। कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इन्फ्रास्ट्रक्चर (CDRI) की एक नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन की वजह से मूलभूत ढांचों और इमारतों को होने वाला नुकसान लगभग 700 बिलियन डॉलर यानी लगभग 5800 करोड़ रुपये का होता है और यह नुकसान कम और ज्यादा आय वाले देशों में एक जैसा नहीं होता है।
कम और मध्यय आय वाले देशों में आधारभूत ढांचों को लचीला बनाने और उन्हें मजबूत करने के लिए कम से कम 23 से 25 लाख करोड़ रुपये की फंडिंग रुपये की जरूरत होती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी इन देशों के पास जो मौजूद है वह अनुमानित जरूरतों की तुलना में कम से कम एक पायदान कम है। साल 2021 में कम और मध्यम आय वाले देशों में निजी मूलभूत ढांचों में निवेश और जलवायु फाइनैंसिंग 40 बिलियन डॉलर से 50.7 बिलियन डॉलर के बीच थी।
CDRI के डायरेक्टर जनरल अमित प्रोथी कहते हैं, “यह रिपोर्ट वैश्विक तौर पर इस तरह के खतरे को रेखांकित करती है। ऐसे में जब आप इस बात की चर्चा करते हैं कि इस तरह के नुकसान को कम करने के लिए कितने पैसों की जरूरत होगी तब एक रिपोर्ट ऐसी है जो बताती है कि आप पर कितना खतरा है।”
जलवायु को लेकर होने वाली ज्यादातर फंडिंग के पैसों का इस्तेमाल कार्बन उत्सर्जन को कम करने से जुड़े उपायों पर किया जा रहा है न कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए समाज और पारिस्थितिकी तंत्र की मदद करने के लिए। CDRI की रिपोर्ट में सुझाया गया है कि मूलभूत ढांचों के लिए फंडिंग को अलग रखा जाए, जिसकी कमी के चलते कम आय वाले देशों को समस्या होती है और सतत विकास के लक्ष्यों को पूरा करने में वे पीछे छूट जाते हैं।
कम और मध्यम आय वाले देशों में मूलभूत ढांचे सबसे संवेदनशील होते है और इसके पीछे कई सारी चुनौतियां होती हैं। शुरुआत करने के लिए मूलभूत ढांचों की कमी, मूलभूत ढांचों का खराब प्रबंधन, आपदा संबंधित संसाधनों का नुकसान और सेवाओं का बाधित होना। साथ ही, जलवायु परिवर्तन और तेजी से बदलती तकनीक की वजह से पैदा होने वाली समस्याओं को पुराने मूलभूत संसाधनों की मदद से हल नहीं किया जा सकता है।
CDRI का कहना है कि इस रिपोर्ट का लक्ष्य लचीलेपन के लाभांश को दिखाया जाए। रिपोर्ट में मूलभूत ढांचों में निवेश से मिलने वाले कई तरह के फायदों को बताया गया है। साथ ही, इससे संसाधनों के नुकसान को कम किया जा सकेगा, सेवाएं बाधित होने की घटनाओं को कम किया जा सकेगा, जन सेवाओं को बेहतर गुणवत्ता वाली और भरोसेमंद बनाया जा सकेगा, आर्थिक वृद्धि को रफ्तार मिलेगी और सामाजिक विकास होगा। इसके अलावा, कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी, जैव विविधता बढ़ेगी, हवा और पानी की गुणवत्ता में सुधार होगा और जमीन का इस्तेमाल और बेहतर किया जा सकेगा।
असमान निवेश
यह रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर में मूलभूत ढांचों में किया जाने वाला निवेश असमान है और यह अंतर बढ़ता ही जा रहा है। साल 2021 में निजी मूलभूत ढांचों में किए गए निवेश का 80 प्रतिशत हिस्सा ज्यादा आय वाले देशों में गया और वहां पर इस निवेश में 8.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। वहीं, इसकी तुलना में इसी साल के लिए मूलभूत ढांचों में किए गए निवेश में 8.8 प्रतिशत की कमी आई। रिपोर्ट में कहा गया है, “यहां तक कि कम और मध्यम आय वाले देशों (LMICs) में उपलब्ध पूंजी का ज्यादातर हिस्सा मध्य आय वाले देशों में ही गया। साल 2022 में कम आय वाले देशों को पूरी दुनिया में हुए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सिर्फ 2 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त हुआ।”
कम आय वाले देशों के लिए, सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में यह एक बाधा हो सकती है, खासकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में। इस रिपोर्ट में सामने आया है कि इन सेक्टर के लिए यह खतरा कम आय वाले देशों में ज्यादा आय वाले देशों की तुलना में तीन गुना ज्यादा है। रिपोर्ट कहती है कि आधारभूत ढांचों की कमी के अलावा, कम और मध्यम आय वाले देशों में आपदा और जलवायु की वजह से मूलभूत ढांचों को खतरा भी ज्यादा रहता है। इन देशों में इसे बहुत मुश्किल से ही मूलभूत ढांचों की बेहतर प्लानिंग, डिजाइनिंग, रेगुलेशन और मैनेजमेंट पर ध्यान दिया जाता है।
फंडिंग का लचीलापन
दुनियाभर में आपदाओं की स्थिति में सड़कों, रेलवे, ऊर्जा और टेली कम्यूनिकेशन के मूलभूत ढांचे सबसे ज्यादा संवेदनशील होते हैं। स्टडी में सामने आया है कि ऊर्जा के क्षेत्र को होने वाले सालाना औसत नुकसान को दो तिहाई से ज्यादा नुकसान बाढ़ और हवा की वजह से होता है। टेलीकम्यूनिकेशन सेक्टर को होने वाले सालाना औसत नुकसान का दो तिहाई हिस्सा हवा की वजह से होता है। वहीं, भूकंप और भूस्खलन की वजह से रेल और सड़क को कुल नुकसान का तीन चौथाई नुकसान होता है।
इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि प्रकृति आधारित मूलभूत ढांचों के समाधानों (NbIS) को इसे कम करने की रणनीतियों में बदला जाए जिससे कि कम से कम लागत से पारंपरिक ग्रे इनफ्रास्ट्रक्चर को संरक्षित किया जा सके और उनका विकल्प तैयार किया जा सके। कुछ नेचर बेस्ड सॉल्यूशन जैसे कि समुद्री दीवार की जगह पर मैनग्रोव तैयार करके समुद्र के तट पर होने वाले क्षरण को कम किया जा सकता है और बड़े होने के साथ ये और मजबूत हो सकते हैं और उनकी संरक्षणता क्षमता बढ़ सकती है।
नेचर बेस्ड सॉल्यूशन कुछ ऐसे समाधानों में से हैं जिन्हें ये देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपना सकते हैं लेकिन इस रिपोर्ट के मुताबिक, आधारभूत ढांचों को विकसित करने और उन्हें लचीला बनाने के लिए बहुत कम फंडिंग खर्च होती है। रिपोर्ट में प्रस्तावित किया गया है कि आधारभूत ढांचों के लिए अलग से फंडिंग का इंतजाम किया जाए। इस रिपोर्ट में कहा गया है, “पैसे इकट्ठा करने के लिए नई अप्रोच की जरूरत है जिसमें पब्लिक सेक्टर के संसाधनों को साथ लिया जाए ताकि लचीलेपन के लाभांश को पहचाना जा सके और उससे पैसे जुटाए जा सकें। साथ ही निवेश से जुड़े खतरों को कम किया जा सके और निजी स्रोतों से आने वाले पैसों को मूलभूत ढांचों से जुड़े प्रोजेक्ट में निवेश किया जाए और जहां जरूरत हो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ फंडिंग की जाए।”
प्रोथी कहते हैं, “जब हम यह कहते हैं कि जलवायु संबंधित उपायों के लिए और ज्यादा पैसों की जरूरत है तब हम कुछ खतरों को भूल जाते हैं जैसे कि जियोफिजिकल खतरे। ये जलवायु से संबंधित नहीं होते हैं लेकिन इन पर ध्यान देना जरूरी होता है। जब आप खतरों को कम करने और मूलभूत ढाचों में निवेश बढ़ाने की बात करते हैं तो एक हिस्सा जलवायु से संबंधित होता है लेकिन कम से कम एक तिहाई जलवायु से संबंधित नहीं होता है। फिर भी इसका समर्थन करने की जरूरत है।”
बैनर इमेज: गुजरात के अमरेली में एक बाढ़ प्रभावित क्षेत्र। फोटो: भारतीय वायुसेना/विकीमीडिया कॉमन्स।