- भारत मौसम विज्ञान विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, जम्मू और कश्मीर में दिसंबर 2023 में 12.6 मिमी बारिश हुई जोकि औसत 59.6 मिमी से करीब 79% कम है। हालांकि, 40 दिन के चिल्लई कलां (बर्फबारी का समय) बीतने के बाद फरवरी की शुरुआत में कश्मीर में बर्फबारी हुई।
- इस क्षेत्र में सर्दियों के औसत के मुकाबले पारा 6-8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा। 13 जनवरी 2024 को श्रीनगर में अधिकतम तापमान 15° सेल्सियस रहा जो पिछले दो दशकों में जनवरी का सबसे ज्यादा तापमान है।
- लंबे वक्त तक सूखे के दौर ने नदियों-झीलों, खासकर झेलम और उसकी सहायक नदियों पर नकारात्मक असर डाला है। सतह वाले स्रोतों के जल स्तर में काफी कमी देखी गई है।
- जानकारों का कहना है कि कम बारिश, बर्फबारी न होने और तापमान ज्यादा होने का असर खेती, बागवानी और ठंड में होने वाले पर्यटन पर पड़ रहा है। यही नहीं, इससे जंगल की आग और ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा भी बढ़ रहा है।
जम्मू और कश्मीर में दिसंबर और जनवरी के महीनों में सूखा मौसम देखा गया। इससे क्षेत्र की जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है। जानकार मौसम में इस बदलाव के चलते जल निकायों, ग्लेशियरों, खेती व बागवानी और पर्यटन जैसे अहम क्षेत्रों पर प्रतिकूल असर की चेतावनी देते हैं।
दरअसल, इस केंद्रशासित प्रदेश में इस दौरान 40-दिनों की गलाने वाली ठंड पड़ती है और इसे चिल्लई कलां के नाम से जाना जाता है। हर साल 21 दिसंबर से 29 जनवरी तक यह अवधि रहती है। लेकिन, इस अवधि के दौरान भी कई दिनों तक मौसम शुष्क ही बना रहा।
भारत मौसम विज्ञान विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू और कश्मीर में इस अवधि में औसत से करीब 79% कम बारिश हुई। यहां दिसंबर 2023 में 12.6 मिमी बारिश हुई, जो 59.6 मिमी के औसत के मुकाबले एक-चौथाई से भी कम है। यही नहीं, जनवरी में भी सूखा मौसम जारी रहा, जिसे यहां का सबसे ठंडा महीना माना जाता है। आम तौर पर इस दौरान घाटी में सबसे ज्यादा बर्फबारी होती है।
इस दौरान क्षेत्र में सर्दियों के औसत से 6-8 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान का अनुभव हुआ। 13 जनवरी को श्रीनगर शहर का अधिकतम तापमान 15° सेल्सियस रहा जो पिछले दो दशकों में जनवरी का सबसे ज्यादा तापमान है।
कश्मीर में मौसम विभाग (एमईटी) के निदेशक मुख्तार अहमद ने इस सूखे मौसम के लिए अल नीनो को जिम्मेदार ठहराया।
अल नीनो को जलवायु में बदलाव से जोड़कर देखा जाता है। यह तब होता है, जब पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में सतह के पानी के तापमान में असामान्य बढ़ोतरी होती है। इसे अल नीनो-दक्षिणी ऑसिलेसन (ईएनएसओ) का गर्म चरण कहा जाता है। इसके चलते मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान बढ़ जाता है। ज्यादा तापमान वायुमंडलीय परिसंचरण में बदलाव को प्रेरित करता है, जिससे इंडोनेशिया, भारत और उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में कम बारिश होती है। दूसरी तरफ, यह उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर के ऊपर बारिश में बढ़ोतरी करता है और इसकी वजह से तूफानों का निर्माण होता है।
कश्मीर में अल नीनो का असर लंबे समय तक सूखे मौसम, हल्की ठंड और कम बर्फबारी के तौर पर नजर आता है। अहमद का कहना है कि इससे पहले जनवरी 1998, दिसंबर 2014, जनवरी 2015 और दिसंबर 2018 में कश्मीर के मौसम पर अल नीनो का असर पड़ा था।
मौसम के मिजाज में बड़ा बदलाव
मौसम के बारे में स्वतंत्र रूप से भविष्यवाणी करने वाले फैजान आरिफ बताते हैं कि जम्मू और कश्मीर में 2023 और जनवरी 2024 के मौसम पैटर्न में कई विरोधाभास और बड़े बदलाव दिखाई देते हैं।
उन्होंने कहा, “जनवरी 2023 में 42% ज्यादा [बारिश] से लेकर दिसंबर 2023 में 79% की बड़ी कमी तक, जम्मू और कश्मीर में पिछले साल बारिश में कुल मिलाकर 7% की कमी देखी गई जो पूरे साल मौसम की विविध और अप्रत्याशित प्रकृति को दिखाता है। इसी तरह, हमने अब तक बिना बर्फबारी वाली ठंड देखी है, जिसके चलते अलग-अलग प्रमुख क्षेत्रों पर असर पड़ेगा।”
कश्मीर विश्वविद्यालय के भू-सूचना विज्ञान विभाग के वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर इरफान राशिद ने कहा कि असल में, सात साल के बाद बाद कश्मीर में बिना बर्फबारी वाली ठंड का अनुभव हुआ। उन्होंने कहा, “चिल्लई कलां के दौरान बर्फ ग्लेशियर की सेहत और छोटी नदियों में पानी बनाए रखने के लिए जरूरी है। सूखी सर्दियों का मतलब है कि इस जल विज्ञान (हाइड्रोलॉजिकल) साल में ग्लेशियरों को भारी नुकसान होगा। अगर मौसम की स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो इसका असर बिजली उत्पादन, सिंचाई, खेती और इस पर निर्भर क्षेत्रों पर पड़ सकता है।”
सिंचाई पर असर
लंबे समय तक सूखे के दौर के चलते बड़े जल स्रोतों, खासकर झेलम और अन्य नदियों पर नकारात्मक असर पड़ा है। सतही स्रोतों में जल स्तर में काफी कमी देखी गई है। पिछले कई सालों में झेलम नदी में पानी सबसे कम स्तर पर पहुंच गया है। 14 जनवरी को संगम (दक्षिणी कश्मीर में अनंतनाग जिला) में नदी का प्रवाह शून्य से 0.75 फीट नीचे मापा गया था। यह स्तर नवंबर 2017 के बाद देखा गया है। वहीं अशाम (उत्तरी कश्मीर में बांदीपोरा जिला) में यह शून्य से 0.86 फीट नीचे था। नकारात्मक स्तर से पता चलता है कि गेज रीडिंग नदी के शून्य वाले स्तर पर या उससे नीचे है।
कश्मीर में जल शक्ति विभाग के मुख्य अभियंता संजीव मल्होत्रा ने कहा, “समय पर बर्फबारी और बारिश की कमी के चलते सतह वाले जल स्रोतों में पानी बहुत घट गया है। इससे आने वाले हफ्तों में पानी की कमी हो सकती है।”
पानी की कमी से चलते क्षेत्र में खेती और बागवानी की सिंचाई पर असर पड़ रहा है। खासकर कश्मीर में बागानों की सिंचाई प्रभावित हो रही है। उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले के सेब उत्पादक बशीर अहमद का कहना है कि बारिश नहीं होने से आने वाले सीजन में बगीचों पर नकारात्मक असर पड़ेगा। उन्होंने कहा, “बर्फ एक सुरक्षात्मक परत के रूप में भी काम करती है, पेड़ों को बहुत ज्यादा ठंड से बचाती है और आराम के लिए ठंड के जरूरी घंटे देती है। यह प्राकृतिक ढाल नहीं होने से पेड़ों पर खतरा बढ़ता है और उनकी उत्पादकता को कम हो सकती है।”
कश्मीर विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक अख्तर एच. मलिक कहते हैं कि पर्याप्त ठंड और पानी के बिना बीज के अंकुरण पर भी असर पड़ने की आशंका है। उन्होंने मोंगाबे इंडिया को बताया, “वसंत ऋतु के दौरान बीजों को असरदार ढंग से अंकुरित होने के लिए सर्दियों में ठंडे समय की जरूरत होती है। इस अवधि के दौरान मिट्टी में अपर्याप्त नमी फसल की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। इससे उत्पादकता गिर सकती है।”
सूखे मौसम से जंगल की आग का खतरा भी बढ़ जाता है। मलिक ने बताया, “बारिश की कमी के कारण हवा सूखी हो जाती है। इससे छोटी-सी चिंगारी भी बड़ी आग में बदल जाती है, जैसा कि पिछले महीने में देखा गया था।” उन्होंने नोट किया कि सूखी परिस्थितियां जंगल की आग के दौरान वन्यजीवों को इंसानी बस्तियों की ओर धकेल कर और ज्यादा प्रभावित करती हैं।
व्यापक असर
जाने-माने भूवैज्ञानिक और इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी कश्मीर के कुलपति शकील अहमद रोमशू ने कहा कि बारिश या बर्फबारी नहीं होने से कश्मीर घाटी में प्रदूषण भी बढ़ेगा और स्वास्थ्य से जुड़े जोखिम पैदा होंगे।
उन्होंने मोंगाबे इंडिया को बताया, लंबे समय तक सूखा मौसम रहने और बढ़ते तापमान के चलते ग्लेशियर भी पिघल सकते हैं। “जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पहले से ही पिघल रहे हैं। अब सूखा मौसम और बढ़ता तापमान कश्मीर हिमालय के ग्लेशियरों पर प्रतिकूल असर डालेगा।”
राशिद कहते हैं कि इससे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लडिंग (जीएलओएफ), चट्टान-बर्फ हिमस्खलन, ग्लेशियर का टूटना और मलबे के बहने जैसे खतरे पैदा हो सकते हैं। जीएलओएफ वह शब्द है जिसका इस्तेमाल वैज्ञानिक यह बताने के लिए करते हैं कि जब हिमनदी झीलों में पानी का स्तर अपनी सीमाओं को तोड़ता है, जिससे बड़ी मात्रा में पानी पास की छोटी और बड़ी नदियों में प्रवाहित होता है, जिससे अचानक बाढ़ आती है।
पर्यटन पर असर
बर्फबारी नहीं होने से क्षेत्र में खासकर गुलमर्ग और पहलगाम में ठंड के दौरान होने वाले पर्यटन को पर भी असर पड़ा है।
गुलमर्ग जैसी जगहें उन पर्यटकों के बीच लोकप्रिय हैं जो आमतौर पर दिसंबर से मार्च तक स्कीइंग के लिए यहां आते हैं। आम तौर पर बर्फ से ढका रहने वाला गुलमर्ग फिलहाल खाली पड़ा हुआ है, जिससे बड़े स्कीइंग आयोजन और अलग-अलग शैक्षणिक संस्थानों में सीजनल कोर्स प्रभावित हो रहे हैं।
पिछली सर्दियों में 55,000 सैलानी घाटी आए थे। इनमें से ज्यादातर पर्यटक गुलमर्ग पहुंचे थे। लरेकिन, इस साल बर्फ नहीं होने से गुलमर्ग लगभग खाली है। गुलमर्ग में एक होटल के प्रबंधक फारूक अहमद ने कहा, “पिछली सर्दियों की तुलना में हमारे पास होटलों में 30 प्रतिशत से भी कम बुकिंग है।” अहमद ने कहा, “होटल के व्यापार में काफी कमी आई है, कई लोगों ने अपनी बुकिंग रद्द करा दी। इससे क्षेत्र में पर्यटक गतिविधि में मौजूदा कमी का पता चलता है। ठंड के मौसम में होने वाला पर्यटन काफी हद तक बर्फबारी पर निर्भर है। अगर बर्फबारी नहीं होगी तो पर्यटक यहां नहीं आएंगे।”
मुंबई से आए सैलानी मोहम्मद नजीब ने कहा, “हम 9 जनवरी को कश्मीर पहुंचे। तब से हम बर्फबारी का इंतजार कर रहे हैं। अगर कुछ दिनों में बर्फबारी नहीं हुई, तो मैं घर लौट आऊंगा। ” उन्हें उम्मीद थी कि उनका बेटा स्कीइंग सीखेगा।
हाउस बोट ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मंजूर अहमद पख्तून ने कहा कि डल और निगीन झील में 60 प्रतिशत से ज्यादा हाउसबोट खाली हैं। उन्होंने कहा, “सूखे मौसम के चलते ज्यादातर पर्यटकों ने अपनी बुकिंग रद्द कर दी है या रोक दी है।”
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
बैनर तस्वीर: कश्मीर में बर्फ से सूनी पहाड़ी ढलानें। तस्वीर – मुदस्सिर कुल्लू।