- पश्चिमी घाट में की गई एक स्टडी में ताजे पाने में पाए जाने वाले केमफोली नाइट मेंढकों की जेनेटिक विविधता और जनसंख्या जेनेटिक संरचना का विश्लेषण किया गया।
- इस क्षेत्र में बढ़ते विकास के चलते बन रहे दबाव की वजह से मेंढकों के रहने की जगहें प्रभावित हो रही हैं जिसके चलते मेंढकों के बीच आपसी मेलजोल कम होता जा रहा है। इससे उनकी जेनेटिक विविधता कम होती जा रही है।
- शोधार्थियों का कहना है कि संरक्षण की ऐसी रणनीतियां बनाने की जरूरत है जिसमें जल धारा के स्तर पर तमाम जनसंख्याओं के साथ-साथ जीन फ्लो को बढ़ाया जा सके।
पश्चिमी घाट में की गई एक नई स्टडी में पता चला है कि आम जनधारणा के विपरीत नदी की धाराओं की सीमाएं जलीय केमफोली नाइट मेंढकों के घूमने-फिरने के लिए बहुत बड़ी बाधा नहीं हैं। इसके बजाय, अलग-अलग प्रजातियों में जेनेटिक विविधता का कारण उनके बीच की दूरी है। पश्चिमी घाट की स्थानीय प्रजाति वाले केमफोली नाइट मेंढक आमतौर पर नदी के उद्गम स्थलों के पानी में रहना पसंद करते हैं और इनमें फैल जाने की क्षमता कम होती है। स्टडी में पाया गया है कि इसी के चलते स्थानीय स्तर पर इन मेंढकों की जेनेटिक विविधता प्रभावित होती है।
पश्चिमी घाट में रहने वाले ताजे पानी के मेंढकों की प्रजातियों की जेनेटिक विविधता के बारे में बहुत कम जाना जाता है। भारतीय उभयचरों की जेनेटिक विविधता के बारे में अभी तक सिर्फ पांच अच्छे अध्ययन किए गए हैं। जलीय या जल धाराओं पर आधारित प्रजातियों के बारे में यह माना जाता था कि नदियों के बेसिन एक बाधा के तौर पर काम करते हैं और जेनेटिक विविधता को प्रभावित करते हैं। अब इस स्टडी में व्यापक स्तर पर फैले ताजे पाने की केमफोली नाइट मेंढकों (Nyctibatrachus kempholeyensis) की जेनेटिक विविधता और जनसंख्या जेनेटिक संरचना का मूल्यांकन किया गया। इसमें पाया गया कि नदियों के बेसिन सिर्फ छोटी-मोटी बाधा पैदा करते हैं। इस स्टडी के नतीजे इन प्रजातियों के संरक्षण में काफी मदद करने वाले हैं।
बेंगलुरु स्थित मणिपाल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मणिपुर एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन में असिस्टेंट प्रोफेसर और स्टडी की अगुवाई करने वाली प्रीति हेब्बार कहती हैं, “इस स्टडी के नतीजों में नदियों के बेसिन के पानी के ट्रांसफर के लिए भी निहितार्थ छुपे हुए हैं। ऐसे तरीके जलीय जीवों की सामुदायिक संचरना को बदल सकते हैं, बाहरी प्रजातियों को ला सकते हैं और अलग-अलग तरह के मेंढकों की जेनेटिक पहचान का क्षरण कर सके हैं।”
हेब्बार कहती हैं कि पानी के लेनदेन के लिए नदियों के बेसिन को जोड़ना ठीक नहीं है। वह समझाती हैं कि किसी भी नदी के बेसिन में कई धाराओं का क्रम होता है जिन्हें फर्स्ट ऑर्डर, सेकेंड ऑर्डर और ऐसे ही बांटा जाता है। ये आपस में मिलकर एक नया और बड़ा ऑर्डर बनाती हैं।
कर्नाटका और केरल में लगभग 400 किलोमीटर तक फैले हुए केमफोली नाइट मेंढक पहले, दूसरे और तीसरे ऑर्डर की धाराओं में पाए जाते हैं। इसकी जनसंख्या के ट्रेंड के बारे में कोई जानकारी नहीं है और IUCN की लिस्ट में इस प्रजाति को ‘डेटा की कमी’ कैटगरी में दर्ज किया गया है।
Nyctibatrachus जीन वाले मेंढकों की कुल 34 प्रजातियां होती हैं। ये सभी पश्चिमी घाट की स्थानीय प्रजातियां हैं। पहाड़ों में पाए जाने वाले अंतर को इन प्रजातियों के विस्तार में बाधा माना जाता था।
संयुक्त राष्ट्र की विल्लानोवा यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और हरपेटोलॉजिस्ट आरोन बाउर इस स्टडी में शामिल नहीं थे। वह कहते हैं, “यह स्टडी एन केमोफोलेयेनेसिस की रेंज के जेनेटिक पैटर्न पर प्रकाश डालती है। इससे इसकी जनसंख्या के जेनेटिक के भौगोलिक संदर्भ और बायोलॉजी के बीच संबंध स्थापित किया जा सकता है और ऐसा आधार तैयार होता है जिसके हिसाब से इसके प्रबंधन से जुड़े फैसले लिए जा सकते हैं।”
वह आगे कहते हैं, “उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिकी तंत्र में मेंढकों और उनकी व्यापक विविधिता की बेहद अहम भूमिका है, इसके बावजूद उनके बारे में बहुत कम अध्ययन किया गया है। खासकर उत्तरी अमेरिका और यूरोप में। पश्चिमी घाट के उच्च जैव विविधता में मेंढक बड़े सहयोगी हैं और यह क्षेत्र भारत और दक्षिण एशिया में उभयचरों की जैव विविधता का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट है।”
हेलसिंकी यूनिवर्सिटी के रिसर्चर अभिलाष नायर (स्टडी से जुड़े नहीं थे) के मुताबिक, यह रिसर्च इस प्रजाति के संरक्षण के लिए बेहद उपयोगी है क्योंकि इसके बारे में बहुत कम अध्ययन किया गया है। वह आगे कहते हैं, “इस स्टडी के नतीजे बताते हैं कि संरक्षण के लिए ऐसी रणनीतियों की जरूरत है जो इस प्रजाति की उच्च जेनेटिक संरचना को ध्यान में रखें और अन्य प्रजातियों में जीन के फ्लो को बढ़ाने की कोशिश करें।”
भारत में 1600 किलोमीटर लंबे पश्चमी घाट के पहाड़ों की शृंखला देश की पश्चिमी सीमा पर फैली हुई है। इस क्षेत्र में उभयचरों की लगभग 230 प्रजातियां पाई जाती हैं जिसमें से 90 प्रतिशत प्रजातियां इस क्षेत्र की अपनी स्थानिक हैं। दुनियाभर में लगभग 41 प्रतिशत प्रजातियां ऐसी हैं जो लुप्त होने की ओर बढ़ रही हैं। उनकी रक्षा करने के लिए यह जरूरी है कि उभयचरों की प्रजातियों के अंतर्गत आने वाली जेनेटिक विविधता को समझा जा सके जो कि उनकी सेहत और जीवित रहने की क्षमता को प्रभावित करता है।
नदियां नहीं हैं बाधा, दूरी से पड़ता है असर
इस टीम ने साल 2013 से 2019 के बीच दो स्थानीय मानकों पर एन केमोफोलेयेनेसिस की जेनेटिक विविधिता और संरचना की स्टडी की।
व्यापक स्तर पर इस टीम ने पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों काली, बेडती, अघानाशिनी, शरावती, नेत्रावती और सुवर्णा की धाराओं से सैंपल इकट्ठा किए। इसके अलावा, केरल और कर्नाटका में फैले पश्चिमी घाट में पूर्व की ओर बहने वाली नदियों तुंगा, कावेरी, कबिनी की धाराओं से सैंपल भी जुटाए गए। उन्होंने टैडपोल और वयस्क मेंढकों के टिशू इकट्ठा किए और DNA सीक्वेंसिंग की। माइटोकॉन्ड्रिया और न्यूक्लियर DNA दोनों के मार्कर्स का इस्तेमाल करते हुए इस टीम ने फाइलोजियोग्राफिकल और पॉपुलेशन जेनिटिक संरचना का कई भौगोलिक मानकों पर विश्लेषण किया।
स्थानीय स्तर पर, इस टीम ने पश्चिमी घाट के मध्य क्षेत्र की चार नदियों के बेसिन में पाए जाने वाले केमफोले नाइट मेंढकों की जेनेटिक विविधता का विश्लेषण किया। इसमें, दोहरे DNA यानी माइक्रोसैटेलाइट के छोटे टुकड़ों का विश्लेषण किया गया।
हेब्बार कहती हैं कि इस स्टडी के मुताबिक, केमफोली नाइट मेंढक नदियों के फर्स्ट और सेकेंड ऑर्डर धाराओं में फैले होते हैं और नदियों के उद्गम स्थल में रहने वाले मालूम पड़ते हैं। हेब्बार समझाती हैं कि इससे पहले हुई एक स्टडी में पाया गया कि केमफोली मेंढक धीमी गति से बहने वाली धाराओं को पसंद करते हैं इसीलिए ये गहरी और चौड़ी धाराओं में नहीं पाए जाते हैं। वह आगे कहते हैं, “संभवत: ये मेंढक धारा के साथ-साथ आगे बढ़ते हैं। इस क्षेत्र में होने वाली भारी बारिश इन धाराओं को जोड़ती है और इन मेंढकों के आने-जाने में मदद करती है।”
शोधार्थी यह जानकर हैरान रह गए कि नदियों के बहाव की सीमाएं केमफोली मेंढकों के आने-जाने में बाधा नहीं हैं। हेब्बार बताती हैं, “आमतौर पर धारा पर निर्भर रहने वाली जलीय प्रजातियों के लिए नदी की धाराएं बाधा के तौर पर काम करती हैं लेकिन यहां नदी की धारा से ज्यादा मेंढकों की संख्या के बीच की ज्यादा भौगोलिक दूरी असर डालती है।”
बेउर आगे समझाते हैं, “इन मेंढकों का नदी के उद्गम स्थलों के पानी तक सीमित रहना इस बात को और अच्छे से साबित करता है कि भौगोलिक दूरी क्यों इतनी अहम है। क्योंकि बड़ी, चौड़ी और गहरी नदियां इन मेंढकों के लिए उचित स्थल नहीं हैं, ऐसे में वे पूरे नदी तंत्र में फैल नहीं पाते हैं। हालांकि, इन मेंढकों के फैलाव का स्तर बहुत सीमित है जो यह दिखाता है कि इनका विस्तार बहुत कम होता है।”
बेउर कहते हैं कि केमफोली नाइट मेंढकों का निवास स्थल नदियों के उद्गम स्थल होने की वजह से संरक्षण से जुड़े फैसलों पर असर पड़ता है। वह कहते हैं, “नदियों के उद्गम स्थल में इनका निवास स्थान होने की वजह से इन पर इंसानी गतिविधयों का असर पड़ता है इसके चलते इन स्थलों पर ही पाए जाने वाले उभयचरों को ज्यादा खतरा होता है। वहीं, नदी के तंत्र में अन्य स्थलों पर पाई जाने वाली प्रजातियों को कम खतरा होता है।” वह आगे समझाते हैं, “इसके अलावा, इन मेंढकों के विस्तार की कम क्षमता की वजह से क्षेत्रीय स्तर पर इनकी जनसंख्या की संरचना पर असर पड़ता है। इसके चलते कुछ मेंढक सिर्फ खास हैपलोटाइप्स से जाने जाते हैं और इसी के चलते संरक्षण से जुड़े काम सिर्फ छोटे क्षेत्र में किए जा सकते हैं और इतना काम इस प्रजाति की जेनेटिक विविधता को संरक्षित करने के लिए पर्याप्त साबित नहीं होगा।”
पश्चिमी घाट में सतत विकास से जुड़े कई दबाव महसूस किए जा रहे हैं जैसे कि लकड़ी का काटा जाना, खेती, सड़क और रेल्वे का विस्तार। जल धाराओं को खेती के इस्तेमाल के लिए बदले जाने से केमफोली नाइट मेंढकों के निवास स्थल खत्म होते जा रहे हैं। हेब्बार आगे कहते हैं, “इनके निवास स्थल खत्म होने से उभयचरों की जनसंख्या की कनेक्टिविटी कम होती जा रही है जिसके चलते जेनेटिक विविधता कम हो रही है। इसलिए यह जरूरी है कि इन गतिविधियों को कम किया जाए और जंगल के मूल इलाकों को संरक्षित किया जाए।”
हेब्बार कहती हैं कि भविष्य में पश्चिमी घाट में उभयचरों की और ज्यादा जेनेटिक स्टडी की जरूरत है ताकि इन प्रजातियों की जेनेटिक विविधता के बारे में ज्यादा समझा जा सके। वह आगे कहते हैं, “इसके अलावा उभयचरों की गतिविधि पर भूक्षेत्र के प्रभाव की स्टडी से उनके संरक्षण में और मदद मिल सकती है।”
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बैनर तस्वीर: केमफोली नाइट मेंढक (Nyctibatrachus kempholeeyensis) पश्चिमी घाट की स्थानीय प्रजाति के हैं। तस्वीर- अरविंद सीके।