- भारत में ऊदबिलाव के कई उपयुक्त निवास स्थल हैं। इनमें से पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित ऊदबिलाव के निवास स्थल भारत में पाई जाने वाली उसकी सभी प्रजातियों के लिए सबसे उपयुक्त हैं।
- शर्मीले स्वभाव के ऊदबिलावों पर भारत में बहुत कम रिसर्च की गई है। ऊदबिलावों पर पहला सर्वे साल 2019 में पूर्वोत्तर भारत की कामेंग नदी के किनारे स्थित पक्के टाइगर रिजर्व में किया गया था।
- इस क्षेत्र में अवैध रूप से होने वाले वन्यजीवों के व्यापार के लिए किए जाने वाले अंधाधुंध शिकार और मछली पकड़े जाने की वजह से इन ऊदबिलावों का अस्तित्व खतरे में हैं।
- विशेषज्ञों का कहना है कि इन प्रजातियों पर विस्तार से सर्वे और रिसर्च करने की जरूरत है ताकि इनके संरक्षण के लिए प्रभावी तरीके से योजनाएं बनाई जा सकें।
कामेंग नदी के किनारे खड़े एक बड़े से पेड़ की मोटी-मोटी जड़ों से घिरी कुछ चट्टानों की दरारों की ओर इशारा करते हुए और उत्साहित होते हुए जेहुआ नातुंग कहते हैं, “यह एक मांद है। प्रजनन के मौसम में आप यहां पर ऊदबिलावों को देख सकते हैं।”
स्थानीय आदिवासी समुदाय नियीशी से ताल्लुक रखने वाले जेहुआ नातुंग फिलहाल अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी कामेंग जिले में स्थित पक्के टाइगर रिजर्व में पशु संरक्षक के तौर पर काम कर रहे हैं। छोटे कद और मजबूत कद काठी वाले जेहुआ हमें इस सैंक्चरी में मौजूद ऊदबिलावों के संभावित बिल (मांद) दिखा रहे थे। साल 2022 में ‘IUCN/SCC ऑटर स्पेशलिस्ट ग्रुप बुलेटिन’ में प्रकाशित एक फील्ड बेस्ड स्टडी के मुताबिक, यहां कुल 43 ऊदबिलावों के निशान पाए गए थे।
कामेंग नदी और संरक्षित क्षेत्र की सीमा पर बसे एक गांव में बड़े हुए जेहुआ नातुंग उन स्थानीय वन अधिकारियों में शामिल थे जिन्होंने इस सर्वे के दौरान रिसर्चर्स की मदद की थी।
ऊदबिलाव अर्ध-जलीय स्तनधारी होते हैं जो कि नेवले की फैमिली से संबंध रखते हैं। अपने चंचल स्वभाव के लिए मशहूर ऊदबिलाव लचीले और गठीले शरीर वाले होते हैं। इनके पैर छोटे और गर्दन मजबूत होती है। एक लंबी और चपटी पूंछ इन जानवरों को पानी में आसानी से तैरने में मदद करते हैं।
दुनियाभर में ऊदबिलावों की कुल 13 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से कुल तीन प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं। ये तीन हैं- एशियन स्मॉल-क्लॉड ऊदबिलाव (Aonyx cinereus), यूरेशियन ऊदबिलाव (Lutra lutra) और स्मूद-कोटेड ऊदबिलाव। पश्चिमी घाट के साथ-साथ पूर्वोत्तर भारत इन तीनों प्रजातियों का घर माना जाता है।
एक समय पर पूर्वोत्तर भारत के जलाशयों में बड़ी संख्या में सामान्य रूप से पाए जाने वाले ऊदबिलाव ऐसी मांसाहारी प्रजातियों में शामिल हैं जिनके बारे में बहुत कम स्टडी की गई है। साल 2022 में हुआ ऊदबिलाव सर्वे अपने तरह का पहला सर्वे था।
विशेषज्ञों का कहना है कि ऊदबिलावों के बारे में बहुत कम डेटा उपलब्ध होने की वजह से उनके संरक्षण के लिए उचित उपाय की रणनीति तैयार करने में काफी समस्या आती है।
ऊदबिलाव का एक आदर्श निवास स्थल
तमाम नदियों, वेटलैंड, दलदलों और तालाबों की वजह से पूर्वोत्तर भारत ऊदबिलावों का एक आदर्श निवास स्थल कहा जाता है। चट्टानों की दरारों, पेड़ों की जड़ों और नदी के किनारे रेतीले गड्ढों में इनके बिल होते हैं जिनमें ये अपने बच्चे पैदा करते हैं और उन्हें वहीं पालते हैं।
नातुंग बताते हैं कि ऊदबिलाव के लिए स्थानीय नियीशी शब्द सेराम होता है और पहले ये हर जगह हुआ करते थे। वह कहते हैं, “जब हम छोटे थे तब हमें कामेंग नदी के किनारे ये खूब दिखते थे।”
साल 2021 में IUCN/SCC ऑटर स्पेशलिस्ट ग्रुप बुलेटिन में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक, कामेंग नदी में एशियन स्मॉल क्लॉड ऊदबिलावों को कई बार देखा गया था।
इंसानों के हस्तक्षेप से बचे हुए वेटलैंड ऊदबिलावों के रहने के लिए सबसे उपयुक्त निवास स्थल होते हैं। पक्के रिजर्व के ठीक बगल में मौजूद नामेरी टाइगर में मौजूद मुनिराम वेटलैंड ऐसा ही एक आदर्श स्थल है जहां ऊदबिलावों को खूब देखा जाता है।
सोनितपुर वेस्ट फॉरेस्ट डिवीजन के डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) नृपेंद्र नाथ कलिता कहते हैं, “इस जगह पर मछलियां खूब पाई जाती हैं। इस वेटलैंड के किनारे-किनारे छोटी-छोटी झाड़ियां पाई जाती हैं जहां ऊदबिलाव खाना खाते हैं। इस इलाके में इंसानों का आना-जाना भी कम है। यही वजह है कि यह ऊदबिलावों के लिए आदर्श जगह है।”
इसी तरह रंगामती वेटलैंड भी है। देहिंग पटकाई बायोस्फेयर रिजर्व में मौजूद इस इलाके में गंदे पानी और कीचड़ वाली जगहें हैं। इसके चलते यह ऊदबिलावों की बड़ी जनसंख्या वाली स्थायी जगह के रूप में जाना जाता है। हालांकि, अब इस जगह पर मछुआरों और निर्माण कार्यों का दबाव बढ़ रहा है।
हाल ही में काजीरंगा नेशनल पार्क के जलाशयों में भी पहली बार एक स्मॉल क्लॉड ऊदबिलाव को देखा गया था। इसके बाद ऊदबिलावों पर विस्तृत सर्वे कराने की जरूरत समझी जा रही है।
नृपेंद्र कलिता कहते हैं कि पूर्वोत्तर भारत के ज्यादातर संरक्षित इलाकों में वेटलैंड हैं जिनमें ऐतिहासिक रूप से ऊदबिलावों की मौजूदगी दर्ज की गई है।
खाल के अवैध धंधे से बढ़ा खतरा
वाइल्ड ऑटर्स रिसर्च की डायरेक्टर और 2016 की TRAFFIC रिपोर्ट की सह लेखिका और ईकोलॉजिस्ट कटरीना फर्नांडीज कहती हैं, “शरीर के हिस्सों की वजह से ऊदबिलावों का खूब शिकार किया जाता है। साल 2000 में भारत में होने वाले फर के व्यापार में 30 प्रतिशत हिस्सा ऊदबिलाव की चमड़ी का था। इसका सबसे बड़ा उपभोक्ता चीन था।” इस TRAFFIC रिपोर्ट के मुताबिक, ऊदबिलाव की प्रजाति पर सबसे बड़ा खतरा खाल का अवैध व्यापार ही है।
TRAFFIC रिपोर्ट कहती है कि साल 1980 से 2015 के बीच भारत में 2,949 ऊदबिलावों की खाल जब्त की गई थी।
ज्यादातर ऊदबिलावों का शिकार उनके फर की वजह से किया जाता है। जब्ती के डेटा से खुलासा हुआ है कि कुल 5,866 ऊदबिलावों से संबंधित लगभग 98 प्रतिशत मामलों में से 98 प्रतिशत ऊदबिलाव की चमड़ी ही थी। ऊदबिलाव के फर का इस्तेमाल कपड़ों, एसेसरीज, महंगे गिफ्ट और कई अन्य सजावट के सामानों में किया जाता है।
कटरीना फर्नांडीज कहती हैं कि ऊदबिलाव से संबंधित कानूनी प्रयासों के बारे में बेहद कम जानकारी होने की वजह से इनके शरीर के हिस्सों के अवैध व्यापार के स्तर का अनुमान लगा पाना बेहद मुश्किल है।
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ऊदबिलाव विशेषज्ञ और लॉस एंजेलिस स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में असोसिएट प्रोफेसर मेलिसा सैवेज के मुताबिक, खासतौर पर पूर्वोत्तर भारत में मौजूद ऊदबिलावों की संख्या पर ज्यादा खतरा है। साल 2022 में IUCN/SCC ऑटर स्पेशलिस्ट ग्रुप में प्रकाशित एक स्टडी में मेलिसा ने पाया कि साल 1997 से 2017 के बीच पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में ऊदबिलाव की खाल की खरीद-फरोख्त पकड़े जाने की कुल आठ घटनाएं सामने आईं। इस स्टडी के मुताबिक, “पूर्वोत्तर भारत के राज्यों की तुलना में पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में ऊदबिलाव की खाल जब्त किए जाने के मामले ज्यादा थे। ये दर्शाते हैं कि नेपाल और चीन में सिक्किम के रास्ते वन्यजीवों की तस्करी की जाती है। इनमें से ज्यादातर जानवरों की खाल पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में तैयार की जाती है।”
एक अन्य खतरा यह है कि ऊदबिलावों के रहने की जगहों पर जरूरत से ज्यादा मछलियां पकड़ी जाती हैं जिससे उनको नुकसान पहुंचता है। इस तरह से मछलियां पकड़ने से ऊदबिलावों के खाद्य संसाधन तो प्रभावित होते ही हैं उनके निवास स्थलों पर भी बुरा असर पड़ता है। कलिता कहते हैं, “असम के कई इलाकों में यह बेहद आम तरीका है कि मछलियां पकड़ने के लिए जलाशयों को पूरी तरह से खाली कर दिया जाता है। मछली पकड़ने के इस तरीके से न सिर्फ मछलियों की संख्या पर असर होता बल्कि इससे उनके निवास स्थलों को भी नुकसान पहुंचता है।”
IUCN ने एशियन स्मॉल क्लॉड ऊदबिलाव और स्मूद कोटेड ऊदबिलाव को असुरक्षित और यूरेशियन ऊदबिलाव को संकटग्रस्त श्रेणी में रखा है।
बेहद कम डेटा की वजह से प्रभावित होता है संरक्षण
मेलिसा सैवेज ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “भारत के पूर्वोत्तर के राज्यों में ऊदबिलावों के वितरण के डॉक्यूमेंटेशन की मौजूदा समय में भारी कमी है। इसके अलावा, ऊदबिलावों पर एंथ्रोपोजेनेक दबावों से जुड़ा डेटा भी बहुत कम है।” वह यह भी बताती हैं कि पूर्वोत्तर भारत में ऊदबिलावों को लेकर पहला फील्ड सर्वे साल 2019 में करवाया गया था।
वैश्विक स्थर की गैर-लाभकारी संस्थान वेटलैंड्स इंटरनेशनल वेटलैंड के संरक्षण और फिर से उन्हें जीवित करने के लिए काम करती है। इसी संस्थान में एम्फिबियस स्तनधारियों के एक्सपर्ट असगर नवाब कहते हैं, “भारत में ऊदबिलावों का संरक्षण बहुत आकस्मिक है क्योंकि सारा ध्यान करिश्माई प्रजातियों जैसे कि बाघ, हाथी और गेंडे के संरक्षण पर रहा है। बहुत कम चर्चा में रहने वाले ऊदबिलाव हमेशा राष्ट्रीय संरक्षण योजनाओं में भी हाशिए पर रहे हैं। पूर्वोत्तर भारत में इस प्रजाति पर बेहद कम रिसर्च की गई है जबकि यह क्षेत्र भारत में पाए जाने वाले ऊदबिलावों की तीनों प्रजातियों का घर है।”
असम के वन विभाग के अधिकारी कलिता का कहना है कि इस क्षेत्र के जंगली ऊदबिलावों के अवैध व्यापार के असर संबंधित जानकारी में बहुत अंतर है। वह कहते हैं, “ऊदबिलावों पर विस्तृत सर्वे और रिसर्च इनपुट की तत्काल जरूरत है ताकि इस क्षेत्र के ऊदबिलावों के प्रबंधन के लिए एक योजना बनाई जा सके।”
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बैनर तस्वीर- सुंदरबन में स्मूद कोटेड ऊदबिलाव। प्रतीकात्मक तस्वीर। तस्वीर– अनिर्नय/विकिमीडिया कॉमन्स