- भारत की ताजे पानी की नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र में पाई जाने वाली प्रजाति, घड़ियाल को गंभीर रूप से संकटग्रस्त माना जाता है। इसकी अहम वजह बड़े पैमाने पर मछली पकड़ा जाना, रेत खनन, आवारा कुत्तों और जानवरों की मौजूदगी के साथ-साथ बांध और बैराज भी हैं।
- घड़ियाल मछली खाने वाले और रेंगने वाले ऐसे जीव हैं जो रहने के लिए ऐसी जगह ढूंढते हैं जहां कोई उन्हें तंग न करे। इसके अलावा, उनकी खुराक भी बेहद खास होती है। यही वजह है कि अपने निवास स्थलों के खराब होने और मछलियां कम हो जाने से ये खतरे में पड़ जाते हैं।
- गंडक नदी के घड़ियालों की पॉपुलेशन डायनमिक्स एंड कंजर्वेशन स्टेटस पर की गई एक नई स्टडी में पता चला है कि गंडक जैसी असंरक्षित नदियों में संरक्षण के प्रयासों को बढ़ाने की जरूरत है।
गेविलियस जीन वाले मगरमच्छों की फैमिली में से बची एकमात्र प्रजाति, घड़ियाल की संख्या कम होती जा रही है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की रेड लिस्ट में गंभीर रूप से संकट ग्रस्त श्रेणी में शामिल भारत के स्थानीय जीव घड़ियाल की वैश्विक जनसंख्या 1940 के दशक में जहां 5,000 थी, अब यही घटकर कुछ सौ तक आ गई है। वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के रिसर्चर आशीष पांडा का मानना है कि इसकी वजह इनकी खास प्रकृति, खासकर इनके निवास स्थल को लेकर इनका व्यवहार और इनके संरक्षण के खिलाफ होने वाली कई इंसानी गतिविधियां हैं।
हाल ही में पांडा और उनकी टीम ने गंडक नदी में घड़ियालों की जनसंख्या और उनके प्रसार की स्थिति पर एक स्टडी की। इस स्टडी में सामने आया कि यह प्रजाति इंसानों की मौजूदगी वाली जगह से दूर भाागती है और नदी के उन हिस्सों को अपना घर बनाती है जहां हस्तक्षेप कम हो और पानी गहरा हो। स्टडी में यह दर्ज किया गया कि नदी के आसपास इंसानी बस्तियां होने से घड़ियालों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है क्योंकि इससे वे अपना धूप लेने का समय कम कर देते हैं और इस बात की पूरी संभावना है कि इससे उनकी फिजियोलॉजी प्रभावित होती है। इसके अलावा, मछली पकड़े जाने, नदी में मछली पकड़ने वाले जाल डालने, इंसानी बस्तियों वाले इलाकों में आवारा कुत्तों और जानवरों की मौजूदगी, बांध बनाए जाने की वजह से नदी की धारा में बदलाव और उनकी धाराएं पतली होने से घड़ियालों पर बड़ा खतरा है। उत्तर प्रदेश और बिहार में बहने वाली गंगा नदी की सहायक नदी गंडक में घड़ियालों की बड़ी संख्या के लिए ये समस्याएं काफी घातक साबित हो रही हैं।
गंडक नदी में घड़ियाल की मौजूदगी के अलावा इनकी ज्यादातर संख्या गंगा और उसकी सहायक नदियों जैसे कि चंबल, गिरवा और सोन में भी पाई जाती है।
असंरक्षित निवास स्थलों पर जिंदगी की जंग
पांडा कहते हैं कि गंडक नदी और उसके घड़ियालों को जो खास बनाता है वह है इसका असंरक्षित स्टेटस। वहीं, चंबल नदी एक अधिसूचित सैंक्चरी है। यही वजह है कि गंडक में घड़ियालों का बचना और मुश्किल हो जाता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि गंडक नदी भारत में घड़ियालों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या का केंद्र है और इकलौती ऐसी असंरक्षित जगह है जहां घड़ियालों के बच्चे भी पैदा होते हैं। साल 2020 में वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (WTI) की ओर से किए गए एक सर्वे में गंडक नदी में कुल 259 घड़ियाल देखे गए। इस पर वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट के एक्सपर्ट तरुण नायर ने सवाल उठाए। तरुण नायर IUCN क्रोकोडाइल स्पेशलिस्ट ग्रुप के सदस्य भी हैं। वह इस संख्या पर संदेह जताते हैं क्योंकि कई बार संरक्षण के प्रयासों के तहत घड़ियालों को नदी में छोड़ा भी जाता है। वह कहते हैं, “ऐसे घड़ियालों को स्थानीय निवासी नहीं कहा जा सकता है। वे एक जगह पर टिकते नहीं हैं और नदी में लंबी दूरी तय करने में भी सक्षम होते हैं क्योंकि नदी इन्हें एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने का काम भी करती है।” नायर एक घटना का जिक्र करते हैं जिसमें टैग किए गए एक घड़ियाल के बारे में पता चला कि उसे जहां छोड़ा गया था, वहां से वह 1000 से ज्यादा किलोमीटर दूर चला गया। हालांकि, वह शोधकर्ताओं के प्रयासों की सराहना करते हैं कि उन्होंने गंडक नदी में संरक्षण की चुनौतियों को समझने की कोशिश की क्योंकि वाल्मीकि टाइगर रिजर्व और सोहागी बरवा वाइल्डलाइफ सैंक्चरी को छोड़कर अन्य नदियों का तंत्र असंरक्षित और इंसानी गतिविधियों से भरा हुआ है।
घड़ियाल या लंबी नाक वाले मगरमच्छ मछली खाने वाले और रेंगने वाले जीव हैं जिन्हें लंबे समय से भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश की नदियों के साथ-साथ नेपाल-भूटान के दक्षिणी हिस्से की नदियों, पश्चिम में सिंधु नदी और पूर्व में म्यांमार की इरावडी नदी तक में पाया जाता रहा है। मौजूदा समय में ये घड़ियाल सिर्फ भारत और नेपाल की कुछ नदियों में पाए जाते हैं। एक वयस्क नर घड़ियाल की लंबाई 7 मीटर तक हो सकती है वहीं मादा की लंबाई 4 से पांच मीटर तक होती है। ताजे पानी वाली नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र में इन्हें कीस्टोन प्रजाति माना जाता है।
कीस्टोन प्रजाति वह प्रजाति होती है जो अपने पारिस्थितिकी तंत्र या समुदाय पर बड़ा असर डालती हैं और अपने जीवन चक्र के के ज़रिए दूसरे जीवों के व्यापक समूह को प्रभावित करती हैं।
मछली पकड़ने और खनन से बड़ा खतरा
मछली खाने वाले मगरमच्छ के तौर पर मशहूर इन घड़ियालों को यह नाम हिंदी के शब्द घड़ा से मिला है। इनका नाम इनके विशेष शारीरिक चरित्र को दर्शाता है। दरअसल, नर घड़ियाल के थूथन पर नॉबनुमा एक नरम हड्डी जैसी आकृति होती है जो घड़ियालों को अलग रूप देती है। यह थूथन, नुकीले दांतों की एक लंबी लाइन और एक मजबूत, ताकतवर जबड़ा इनको मछलियों का शानदार शिकारी बनाते हैं। वयस्क मगरमच्छ सिर्फ मछलियां खाते हैं, ऐसे में इनके निवास स्थलों पर बड़े पैमाने पर मछलियां पकड़े जाने से इनके लिए खाने की कमी पड़ सकती है। नदी में मछली पकड़ने के लिए डाले जाने वाले जाल भी इनके लिए खतरा हैं क्योंकि कई बार ये घड़ियाल इन जाल में फंसकर डूब जाते हैं। इस स्टडी में यह भी दर्ज किया गया कि घड़ियाल मछवारों की नावों से खुद को बचाने की कोशिश करते हैं। संभवत: यह इनका खुद को ढालने का तरीका है।
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गंगा की दक्षिणी सहायक नदियों में रेत और बजरी के खनन से इनके अंडे देने की जगह और उसका पैटर्न भी बुरी तरह प्रभावित होता है। घड़ियालों के अंडों को आवारा कुत्तों से भी खतरा होता है। पांडा कहते हैं कि वे प्राकृतिक रूप से शिकारी नहीं होते लेकिन इंसानी मौजूदगी के चलते वे इसमें माहिर हो जाते हैं। नायर कहते हैं कि ऐसे शिकारियों को पारिस्थितिकी से जुड़े कारक नियंत्रित नहीं कर पाते हैं ऐसे में ये बड़ा खतरा हैं।
रिसर्च पेपर के मुताबिक, 1950 से 1960 के दशक के बीच घड़ियालों की संख्या के बीच जो सबसे ज्यादा कमी आई वह मुख्य रूप से शिकार की वजह से आई। सत्तर के दशक के मध्य से संरक्षण के प्रयास तेज हुए जिसके चलते इनकी जनसंख्या कुछ बढ़ी लेकिन बांध और बैराज की वजह से अभी भी यह प्रजाति खतरे में ही है।
नदी का लगातार बदलता बहाव
पांडा के मुताबिक, घड़ियालों के संरक्षण के लिए नदी के प्राकृतिक तंत्र को बरकरार रखना बहुत जरूरी है। हालांकि, गंगा नदी तंत्र की बाकी घड़ियाल की जनसंख्या वाली नदियों में स्थिति ऐसी नहीं है। बांध या बैराज वाली नदियों में मौसम और सिंचाई की जरूरतों के हिसाब से पानी का बहाव लगातार बदलता रहता है। इस रिपोर्ट के लेखक कहते हैं कि गंडक के सर्वे के दौरान उन्होंने देखा कि बाढ़ की वजह से नदी का पानी बढ़ने और सिंचाई के लिए बैराज से अचानक पानी छोड़े जाने की वजह से नदियों का रास्ता काफी बदल गया है। रिसर्च में यह भी कहा गया है कि इस तरह नदियों को बांधने से वे कई धाराओं में बंट जाती हैं जिससे घड़ियालों की जनसंख्या प्रभावित होती है। नदियों के इस तरह घटने-बढ़ने से नदी का प्रवाह लगातार बदलता है और ऐसी स्थिति में अंडों से निकलने वाले बच्चों का बचना और उनका बड़ा हो पाना मुश्किल हो जाता है। नायर कहते हैं कि नदियों का आपस में जोड़ा जाना इनके लिए और बड़ा खतरा है जिसको अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
जब रिसर्चर्स ने स्टडी के लिहाज से नदी को कई हिस्सों में बांटा तो यह भी सामने आया कि कुछ हिस्से ऐसे थे जो बाकी के हिस्सों की तुलना में ज्यादा प्रभावित थे। ऐसे में पांडा निष्कर्ष के रूप में उम्मीद करते हैं कि गंडक नदी में इंसानी गतिविधियों को कम किया जा सकेगा और पूरी नदी में संरक्षण के बेहतर प्रयास किए जाएंगे।
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बैनर तस्वीरः गंडक नदी के किनारे मौजूद एक घड़ियाल। इस प्रजाति के लगातार कम होते जाने की वजह इनकी खास प्रकृति, खासकर इनके निवास स्थल को लेकर इनका व्यवहार और इनके संरक्षण के खिलाफ होने वाली कई इंसानी गतिविधियां हैं। तस्वीर- आशीष पांडा।