- एक नए अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया में सबसे अधिक तस्करी की जाने वाली प्रजातियों में से एक ‘इंडियन स्टार कछुओं’ की जंगली आबादी आनुवंशिक रूप से दो अलग-अलग समूहों में मौजूद है- एक उत्तर-पश्चिमी भारत में और दूसरी दक्षिण भारत में।
- अध्ययन से मिली जानकारी के मुताबिक, जंगली भारतीय स्टार कछुओं की दोनों आबादियों में आनुवंशिक विविधता काफी ज्यादा है, जो अभी तक बनी हुई है। ये निष्कर्ष पुराने अध्ययन के विपरीत है।
- इंडियन स्टार कछुओं के प्रबंधन में जेनेटिक डेटा को शामिल करके उनके जैविक गुणों और प्राकृतिक अनुवांशिक भिन्नता के बारे में जाना जा सकता हैं। इससे तस्करी से बरामद किए गए कछुओं के संरक्षण में मदद मिलेगी। उन्हें वापस उन क्षेत्रों में वापस भेजा जा सकेगा, जहां उनके जीवित रहने की संभावना अधिक है।
भारतीय स्टार कछुओं को घरों में पालने और उनके अंगों के इस्तेमाल के चलते बड़े पैमाने पर उनकी अवैध तस्करी की जाती रही है। ये कछुए भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाते हैं और दो अलग-अलग शुष्क क्षेत्रों – उत्तर-पश्चिमी भारत (जिसमें पाकिस्तान के कुछ हिस्से शामिल हैं) और दक्षिणी भारत (जिसमें श्रीलंका के कुछ हिस्से शामिल हैं)- में निवास करते हैं। पांच साल पहले स्टार कछुए को “अत्यधिक संकटग्रस्त” घोषित किया गया और उसे लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के तहत सर्वोच्च स्तर का संरक्षण दिया गया था। तब से लेकर आज तक दुनिया भर में इन कछुओं को लेकर सैकड़ों खबरें प्रकाशित हुई हैं। अक्टूबर 2021 और फरवरी 2022 के बीच, अकेले भारत में ही सरकार ने तस्करों से 5,000 से अधिक स्टार कछुओं की बरामदगी की है।
लेकिन बरामद किए गए वन्यजीवों का प्रबंधन एक बड़ा मसला है। जहां एक तरफ अधिकारियों द्वारा तस्करी से बरामद किए गए ज्यादातर वन्यजीवों को चिड़ियाघरों या वन्यजीव केंद्रों में कैद कर दिया जाता है, जहां उनकी देखभाल करने वाले विशेषज्ञों की कमी होती है। तो वहीं दूसरी तरफ बहुत से वन्यजीव व्यापार में वापस चले जाते हैं या अवैज्ञानिक तरीके से पास के वन्यजीव अभयारण्यों में छोड़ दिए जाते हैं।
भारत में बरामद किए गए कछुओं के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है। कछुओं को अवैज्ञानिक तरीके से छोड़ने से रोकने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान और पंजाब यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने आनुवंशिक परीक्षण और शारीरिक विशेषताओं को मापकर इस प्रजाति के भौगलिक वितरण को समझने की कोशिश की है। उनके शोध से मिली जानकारी के मुताबिक, भारत में स्टार कछुओं की आबादी में आनुवंशिक विविधता मध्यम से उच्च स्तर की है और दशकों से चल रहे अवैध शिकार के बावजूद, इनमें काफी विविधता बनी हुई है।
लेखकों के मुताबिक, इस विविधता का मतलब है कि स्टार कछुए स्थानीय रूप से अपने क्षेत्र में उत्तर-पश्चिमी या दक्षिणी आवासों के लिए अनुकूलित हैं। बड़े स्तर पर तस्करी किए जाने वाली इस प्रजाति के संबंध में मिली आनुवंशिक जानकारी से इनके संरक्षण और बेहतर पुनर्वास करने में मदद मिल सकती है।
उप-प्रजातियों के रूप में वर्गीकरण
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने उत्तर-पश्चिम और दक्षिण भारत के 14 अलग-अलग स्थानों से 82 स्टार कछुओं के नमूने लिए। उन्होंने ऊतक के नमूनों से डीएनए निकाला और कुछ जीनों को बढ़ाने और उनके क्रम को निर्धारित करने के लिए पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर) तकनीकों का इस्तेमाल किया। इसमें एक विशिष्ट जीन या डीएनए के एक खंड की अधिक प्रतियां बनाना (बढ़ाना) शामिल है। प्रतियां बनाने की प्रक्रिया को “एंप्लिफाइंग” कहा जाता है। इसके बाद, उन्होंने इन जीनों में मौजूद न्यूक्लियोटाइड (डीएनए के बिल्डिंग ब्लॉक) के क्रम को निर्धारित किया, जिसे “सीक्वेंसिंग” कहते हैं।
शोधकर्ताओं ने एक सेट जीन का इस्तेमाल डेमोग्राफी यानी यह समझने के लिए किया कि स्टार कछुओं की आबादी का इतिहास कैसा रहा है – इसमें आबादी के आकार, संरचना और उनकी गतिविधियों में हुए व्यापक ऐतिहासिक बदलाव शामिल हैं। दरअसल यह शोध यह जानने के लिए किया गया था कि उत्तर-पश्चिमी और दक्षिणी स्टार कछुओं के बीच कोई आनुवंशिक संबंध है, या वे अलग-अलग आबादी हैं। इसके अलावा, शरीर के कुछ हिस्सों को मापकर, स्टार कछुओं की शारीरिक विशेषताओं पर मॉर्फोमेट्री डेटा भी एकत्र किया गया।
आनुवंशिक अध्ययनों के परिणाम चौंकाने वाले रहे। इनसे पता चला कि स्टार कछुओं की उत्तर पश्चिमी और दक्षिणी आबादी आनुवंशिक रूप से इतनी भिन्न हैं कि उन्हें उप-प्रजातियों के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। स्टार कछुओं का यह वितरण पैटर्न शायद बहुत पहले, करोड़ों साल पहले हुए जलवायु में परिवर्तन की वजह से हुआ था। बहुत पहले मायोसिन काल के आखिर में भारत में काफी सूखा पड़ा था। उसके बाद प्लीस्टोसीन काल में मानसून बारिश बहुत ज्यादा होने लगी और इस बारिश की वजह से भारतीय उपमहाद्वीप में घास के मैदान बढ़ने लगे। इस दौरान स्टार कछुए पूरे भारत में फैल गए थे। फिर, लगभग दो हज़ार साल पहले, दक्षिण-पश्चिम भारत में बारिश वाली जगहें कभी बढ़ती, कभी कम होती रहीं। इस वजह से, स्टार कछुए दो अलग-अलग समूहों में बंट गए: एक उत्तर-पश्चिम भारत में और एक दक्षिण भारत में। इन दोनों स्थानों में रहने वाले कछुओं की आबादी लगभग 100-200 साल पहले तक स्थिर थी, लेकिन जब से स्टार कछुओं का व्यापार शुरू हुआ है, तब से इनकी संख्या कम होने लगी।
दोनों क्षेत्रों के कछुओं के खोल (शैल) पर अलग-अलग रेडिएंट पैटर्न पाए गए। दक्षिणी स्टार कछुओं के खोल पर कम रेज (किरणें) मिलीं और उनके रंग में अधिक अंतर पाया गया। जबकि उत्तर-पश्चिमी स्टार कछुओं के खोल पर अधिक किरणें और रंग में कम अंतर मिला। उत्तर-पश्चिमी स्टार कछुए आमतौर पर दक्षिणी स्टार कछुओं से बड़े होते हैं। दोनों समूहों में, मादाएं नर से बड़ी होती हैं, लेकिन दक्षिणी मादाओं का आकार उत्तर-पश्चिमी नरों के आकार के लगभग समान होता है।
आनुवंशिक विविधता पर आश्चर्यजनक परिणाम
वैज्ञानिकों ने “माइक्रो सैटेलाइट” नामक एक अलग प्रकार के आनुवंशिक मार्कर का इस्तेमाल करके यह जानने की कोशिश की कि स्टार कछुओं की आबादी का आनुवांशिक “स्वास्थ्य” कैसा है। पिछले अध्ययनों ने स्टार कछुओं की आबादी में क्षीण जैव भौगोलिक संरचना और कम आनुवंशिक विविधता का संकेत दिया था। लेकिन इस नए अध्ययन में पाया गया है कि स्टार कछुओं में काफी ज्यादा आनुवंशिक विविधता है। इस बड़े अंतर का कारण, शायद पहले के अध्ययनों में चिड़ियाघरों, कैद में रखे गए कछुओं या पालतू जानवरों की दुकानों से लिए गए नमूनों का इस्तेमाल करना था। जबकि इस अध्ययन में प्राकृतिक आवासों में रहने वाले स्टार कछुओं के नमूने लिए गए।
उत्तर-पश्चिमी भारत में रहने वाले स्टार कछुओं में मध्यम स्तर की आनुवंशिक विविधता पाई गई। इसकी वजह, एक ही तरह के क्षेत्र यानी अर्ध-शुष्क रेगिस्तान से लेकर अर्ध-शुष्क सवाना तक, में रहना हो सकती है। ये इलाके उत्तर में अरावली पहाड़ों और दक्षिण में कच्छ और काठियावाड़ प्रायद्वीप से घिरे हुए हैं। इन कछुओं ने इस क्षेत्र की खास परिस्थितियों के हिसाब से खुद को ढाल लिया।
इसके विपरीत दक्षिणी भारत के स्टार कछुओं में आनुवंशिक विविधता बहुत ज्यादा है। इन्हें “आनुवंशिक विविधता का हॉटस्पॉट” माना गया, क्योंकि इनमें चार अलग-अलग लेकिन थोड़े-थोड़े मेल खाने वाले उप-समूह हैं। दक्षिणी आबादी मध्य और दक्षिणी भारत के शुष्क क्षेत्रों, साथ ही श्रीलंका में फैली हुई है। ये क्षेत्र प्राचीन पहाड़ों से भरे हुए हैं, जहां भूगोल और जलवायु बहुत अलग-अलग है।
ये परिणाम प्रबंधन रणनीतियों को कैसे प्रभावित करेंगे?
मौजूदा समय में, भारत में बरामद किए गए स्टार कछुओं को चिन्नार वन्यजीव अभयारण्य और सत्यमंगलम वन्यजीव अभयारण्य जैसे वन्यजीव अभयारण्यों में छोड़ा जाता है।
हालांकि, इस अध्ययन के लेखकों ने बरामद किए गए स्टार कछुओं को उनके प्राकृतिक आवास की जानकारी के बिना (यानी वे उत्तर-पश्चिमी आबादी से संबंधित हैं या दक्षिणी आबादी से) वापस छोड़ने को लेकर चेतावनी जाहिर की है।
शोधकर्ताओं का कहना है, “उत्तर-पश्चिमी और दक्षिणी स्टार कछुओं की आबादियों के बीच प्राकृतिक रूप से लंबे समय से मौजूद अलग-अलग गुणों को बनाए रखना जरूरी है। इसके लिए अवैध व्यापार को रोकना होगा। और जब तस्करों से पकड़े गए कछुओं को उनके प्राकृतिक आवास में वापस छोड़ा जाए, तो यह ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें उनके आनुवंशिक डेटाबेस के आधार पर, उनके निकटतम आनुवंशिक क्षेत्र में छोड़ा जाए। दोनों आबादी को एक साथ नहीं मिलाया जाना चाहिए।”
दरअसल उत्तर-पश्चिमी स्टार कछुओं को दक्षिण क्षेत्रों में या दक्षिणी स्टार कछुओं को उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों में छोड़ने से उनके या उनकी संतानों के अस्तित्व पर बुरा असर पड़ सकता है। ये कछुए अपने मूल वातावरण के हिसाब से अनुकूलित होते हैं। हालांकि, पालने के लिए की जा रही तस्करी के मामलों में ज्यादातर युवा और किशोर स्टार कछुए शामिल होते हैं और इनका शारीरिक विकास भी पूरा नहीं हुआ होता है। ऐसे में यह पता लगाना मुश्किल है कि वे किस क्षेत्र से हैं। लेखकों का सुझाव है कि स्टार कछुओं को छोड़ने पर कोई भी फैसला करने से पहले उनका आनुवंशिक परीक्षण किया जाना जरूरी है।
अध्ययन कहता है, “हमारा अध्ययन एक ऐसा डेटाबेस पेश करता है, जिसका इस्तेमाल स्टार कछुओं को उनके सही जगह पर वापस छोड़ने के लिए एक संदर्भ के रूप में किया जा सकता है। इससे उनके बेहतर प्रबंधन और संरक्षण में मदद मिलेगी। काफी ज्यादा तस्करी वाले जीव के प्रबंधन में जेनेटिक इंटेलिजेंस को शामिल करने से हम तथ्यों पर आधारित संरक्षण की ओर बढ़ेंगे। हम इस प्रजाति के जैविक गुणों और प्राकृतिक आनुवंशिक विविधता का लाभ उठा सकेंगे।”
वाइल्डलाइफ कनज़र्वेशन सोसाइटी (WCS) इंडिया की संबद्ध वैज्ञानिक उत्तरा मेंदिरात्ता का कहना है, “यह अध्ययन एक ऐसी प्रजाति के बारे में दिलचस्प और अप्रत्याशित परिणाम प्रस्तुत करता है जिसका लंबे समय से भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पालतू जानवर के तौर पर व्यापार किया जाता रहा है।” वह आगे कहती हैं, “बरामद किए गए भारतीय स्टार कछुओं के मूल स्थानों के बारे में जाने बिना रिहा करने के बारे में दी गई लेखकों की सावधानीपूर्वक चेतावनी सही है। इस जेनेटिक डेटा का इस्तेमाल करके, प्रवर्तन एजेंसियां यह पता लगा सकती हैं कि स्टार कछुओं को कहां से पकड़ा जा रहा है और उन्हें बेचा जा रहा है। ये परिणाम इस बारे में भी चर्चा को खोलते हैं कि इन प्रजातियों के बड़े स्तर की जा रही तस्करी के बावजूद जैव विविधता अभी तक कैसे बनी हुई हैं।”
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बैनर तस्वीर: अध्ययन के मुताबिक, जंगली भारतीय स्टार कछुओं के भौगोलिक वितरण में एक निश्चित पैटर्न है और दोनों आबादियों में मध्यम से उच्च आनुवंशिक विविधता है। तस्वीर -आदित्यमाधव83/विकिमीडिया कॉमन्स