- बिहार में मुख्यमंत्री ग्रामीण सौर स्ट्रीट लाइट योजना का लक्ष्य सितंबर 2024 तक दस लाख से अधिक सौर स्ट्रीट लाइट लगाना था। लेकिन ये योजना आने वाले समय में भी पूरी होती नजर नहीं आ रही है।
- लक्ष्य का सिर्फ 20% हिस्सा ही पूरा हो पाया है। कई गांवों में तो अभी तक एक भी सौर लाइट नहीं लगी है। लक्ष्य पूरा न होने की वजह ग्राम पंचायत अधिकारियों द्वारा अग्रिम भुगतान न करना और लाइट्स की खराब गुणवत्ता है। सरकार ने समय सीमा बढ़ा दी है।
- हालांकि योजना को लागू करने में कुछ दिक्कतें आ रही हैं, फिर भी विशेषज्ञों का मानना है कि यह योजना बिहार को कम कार्बन उत्सर्जन वाले भविष्य की ओर ले जा सकती है। यह बिहार की उस दीर्घकालिक रणनीति के अनुरूप है जिसका लक्ष्य “नेट-ज़ीरो” उत्सर्जन है।
बिहार के गया जिले के मोहनपुर ब्लॉक के सिरियावां में रहने वाले बुजुर्ग गुरुदयाल यादव के लिए, गांव की अंधेरी गलियों में बाहर निकलना आसान नहीं है, बरसात के मौसम में तो बिल्कुल भी नहीं। यादव काफी समय से मुख्यमंत्री ग्रामीण सौर स्ट्रीट लाइट योजना के तहत स्ट्रीट लाइट लगने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। उन्हें याद है, जब सितंबर 2022 में इस योजना की शुरुआत हुई थी, तो उन्हें और गांव के बाकी लोगों को उम्मीद थी कि उनकी गलियों का सालों पुराना अंधेरा जल्द ही दूर हो जाएगा। यादव कहते हैं, “हमारी गलियां दो साल बाद भी अंधेरे में हैं।“
सिरियावां के मुखिया राजेश कुमार रंजन ने बताया कि पंचायत के 13 वार्डों में से सिर्फ चार में ही कुछ सोलर स्ट्रीट लाइट लगाई गई हैं। वह कहते हैं, “लक्ष्य 140 सोलर स्ट्रीट लाइट लगाने का था। लेकिन इनमें से सिर्फ 40 ही लग पाई और उनमें से भी कुछ ने काम करना बंद कर दिया है।”
यह सिर्फ सिरियावां गांव की कहानी नहीं है, जो बौद्ध तीर्थ स्थल बोधगया से मुश्किल से 20 किमी दूर है। मोंगाबे इंडिया ने राज्य के अलग-अलग जिलों के दो दर्जन से अधिक गांवों के लोगों से बात की और पाया कि अधिकांश ग्रामीण इलाकों में सोलर स्ट्रीट लाइट नहीं लगी हैं। नेपा के मुखिया बुलबुल सिंह ने कहा, “गया के नेपा ग्राम पंचायत के 14 वार्डों में से चार में सिर्फ 40 सौर स्ट्रीट लाइट्स लगाई गई हैं।”
कुछ गांवों में तो एक भी सौर स्ट्रीट लाइट नहीं है। उदाहरण के लिए, गया में बरमा ग्राम पंचायत, औरंगाबाद जिले में पुरहरा ग्राम पंचायत और अरवल जिले में बेलखारा और परियारी ग्राम पंचायत में एक भी सौर स्ट्रीट लाइट नहीं लगी है। बरमा के मुखिया चितरंजन कुमार ने कहा, “हमारी पंचायत के 16 वार्ड में एक भी सौर स्ट्रीट लाइट नहीं है।”
हालांकि गांव के घरों में बिजली है, लेकिन लोगों को अपने खेतों की निगरानी करने, शौच या अन्य कई कामों के लिए रात के अंधेरे में बाहर निकलना पड़ता है। अगर स्ट्रीट लाइट लग जाए, तो उनकी मुश्किलें काफी हद तक कम हो जाएंगी।
सौर स्ट्रीट लाइट योजना की जमीनी हकीकत
मोंगाबे इंडिया ने जिन गांवों का दौरा किया, वहां की अंधेरी गलियां सौर स्ट्रीट लाइट योजना के खराब कार्यान्वयन की जमीनी हकीकत को दर्शाती नजर आईं। इस योजना का उद्देश्य हरित ऊर्जा को बढ़ावा देना था, लेकिन इसे ठीक से लागू न करने की वजह से जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की राज्य सरकार की योजना में रुकावट आ रही हैं। इससे पहले, राज्य सरकार ने अलग-अलग योजनाओं के तहत ग्रिड से जुड़ी हजारों स्ट्रीट लाइट लगाई थीं। सोलर लाइटों को इन ग्रिड से जुड़ी लाइटों की जगह लेनी थीं, ताकि आगे चलकर ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जा सके।
हालांकि, सितंबर 2022 में योजना के लॉन्च होने के लगभग दो साल बाद, लक्ष्य से इतर सिर्फ 20% सौर स्ट्रीट लाइट ही लगाई जा सकी हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दो साल के भीतर सभी गांवों में सौर स्ट्रीट लाइट लगाने की योजना की घोषणा की थी।
बिहार के पंचायती राज मंत्री केदार प्रसाद गुप्ता ने बताया कि सितंबर 2024 तक राज्य भर में 8,053 ग्राम पंचायतों के 1.15 लाख वार्डों में से प्रत्येक में दस सौर लाइट लगाने की योजना थी यानी कुल मिलाकर दस लाख से अधिक सौर स्ट्रीट लाइट लगाई जानी थी। मोंगाबे इंडिया से बात करते हुए, मंत्री ने यह भी बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए 15वें वित्त आयोग (एफसी) के तहत केंद्र से वित्तीय सहायता के साथ इस योजना को शुरू किया गया था। एफसी एक संवैधानिक निकाय है जो केंद्र और राज्यों के बीच राजस्व साझा करने के लिए निर्देश देता है।
बिहार प्रदेश मुखिया संघ के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने पहले भी बिहार स्ट्रीट लाइट निश्चय योजना के तहत सैकड़ों सोलर स्ट्रीट लाइट लगाई थीं, लेकिन उनमें से ज्यादातर जल्द ही खराब हो गई। इसके जवाब में राज्य सरकार ने 2022 में एक नई योजना की घोषणा की। हालांकि, यह योजना भी धीमी गति से आगे बढ़ रही है और लक्ष्य से पीछे चल रही है।
आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि 1 अगस्त तक राज्य में कुल 1.15 लाख वार्ड और 8053 पंचायतों के मुकाबले 4,019 ग्राम पंचायत के केवल 19,440 वार्ड में ही सोलर स्ट्रीट लाइट लग पाई हैं। ताजा आंकड़े बताते हैं कि कुल 203,223 सोलर स्ट्रीट लाइट लग पाई हैं, जो सितंबर 2024 तक दस लाख से अधिक के लक्ष्य से काफी दूर है।
शिवहर, जमुई, सीतामढ़ी और शेखपुरा जिलों में सोलर स्ट्रीट लाइट लगाने का काम खासा धीमा रहा है। 1 अगस्त तक के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार शिवहर में केवल 1,130, जमुई में 1,264, सीतामढ़ी में 1,160 और शेखपुरा में 1,480 सोलर स्ट्रीट लाइट्स ही लग पाई हैं।
पंचायत राज विभाग में सोलर स्ट्रीट लाइट योजना के प्रभारी विशेष कार्य अधिकारी आलोक कुमार धीमी क्रियान्वयन पर टिप्पणी करने से कतरा रहे थे। हालांकि, एक अन्य अधिकारी ने माना कि क्रियान्वयन के स्तर पर कुछ समस्याएं हैं। नाम न बताने की शर्त पर अधिकारी ने कहा, “हमने गांवों में सोलर स्ट्रीट लाइट लगाने का लक्ष्य पूरा नहीं करने वाली निजी एजेंसियों से सख्ती से निपटने का फैसला किया है। ये एजेंसियां पांच साल तक लगाई गई लाइट्स के रखरखाव के लिए भी जिम्मेदार हैं।”
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धीमी प्रगति को देखते हुए बिहार के पंचायती राज मंत्री केदार प्रसाद गुप्ता ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि सोलर स्ट्रीट लाइट योजना को पूरा करने की समय सीमा अगस्त 2025 तक बढ़ा दी गई है। गुप्ता ने संबंधित जिला अधिकारियों को स्थापना कार्य में तेजी लाने का निर्देश दिया और चेतावनी दी कि लक्ष्य पूरा करने में विफल रहने वाली निजी एजेंसियों को ब्लैक लिस्टेड किया जाएगा।
लेकिन, मौजूदा प्रगति को देखते हुए, अगले साल तक गांव की सभी सड़कों को रोशन कर पाना एक बड़ी चुनौती नजर आ रहा है।
देरी का कारण
सोलर स्ट्रीट लाइट से जुड़ी एक निजी एजेंसी के अधिकारी के मुताबिक, एजेंसियों को स्थापना के लिए 40% अग्रिम भुगतान की जरूरत होती हैं। लेकिन, ग्राम पंचायत स्तर पर अधिकारी इतना अग्रिम भुगतान करने से हिचकते हैं, जिससे योजना के क्रियान्वयन में देरी हो रही है। सोलर स्ट्रीट लाइट लगाने के लिए मुखिया को विकास निधि से भुगतान करना होता है। नेपा पंचायत के मुखिया बुलबुल सिंह ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि एक सोलर स्ट्रीट लाइट लगाने की लागत 30,000 से 32,000 रुपये तक है।
बिहार प्रदेश मुखिया महासंघ के अध्यक्ष मिथिलेश कुमार राय ने कार्यान्वयन की धीमी गति पर असंतोष व्यक्त किया और आरोप लगाया कि बिहार अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (BREDA) की ओर से चुनी गई निजी एजेंसियों की सौर स्ट्रीट लाइट घटिया हैं। उन्होंने सौर स्ट्रीट लाइट लगाने से पहले उनकी गुणवत्ता की जांच के लिए एक सरकारी लैब स्थापित करने की मांग की, क्योंकि BREDA के पास वर्तमान में अपनी कोई टेस्ट लैब नहीं है। राय ने कहा कि घटिया गुणवत्ता का खामियाजा ग्राम मुखियाओं को भुगतना पड़ता है, कुछ लाइट खराब हो जाती हैं और कुछ रात में चार-पांच घंटे से ज़्यादा काम नहीं करतीं। उन्होंने कहा, “सरकार को निजी एजेंसियों के जरिए सौर स्ट्रीट लाइट लगाने के अनिवार्य प्रावधान को खत्म कर देना चाहिए।”
BREDA के एक अधिकारी ने सौर लाइट्स की स्थापना में मुखियाओं से जुड़ी पिछली अनियमितताओं का जिक्र किया। दस साल से भी पहले, कई जिलों के मुखियाओं पर घटिया सोलर पैनल और बैटरी खरीदने का आरोप लगा था, जिसकी वजह से ज्यादातर सौर स्ट्रीट लाइट कुछ ही महीनों में खराब हो गईं। हालांकि, BREDA की सहायक निदेशक शिल्पा गुप्ता ने मोंगाबे इंडिया से बात करते हुए कहा कि निजी एजेंसियों पर फैसला लेना सरकार का काम है। BREDA केवल सौर स्ट्रीट लाइट की स्थापना में तकनीकी सहायता या मदद मुहैया कराता है, जबकि पंचायती राज विभाग इस योजना को लागू करता है।
अक्षय ऊर्जा विशेषज्ञों का दावा है कि सौर स्ट्रीट लाइट कार्बन उत्सर्जन को कम करती हैं और अपने जीरो उत्सर्जन के कारण जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करती हैं। यह पहल सीधे राज्य सरकार के नेट-जीरो और जलवायु-लचीले भविष्य की दिशा में काम करने के नए लक्ष्य से जुड़ी है।
WRI इंडिया के जलवायु कार्यक्रम प्रबंधक मणि भूषण झा ने कहा, “बिहार में सौर स्ट्रीट लाइट योजना ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन को कम करने की दिशा में एक सराहनीय पहल है। बड़े पैमाने की परियोजनाओं में कार्यान्वयन की चुनौतियां आम हैं, लेकिन किसी भी देरी से बेहतर काम करने के मौके मिलते हैं। बिहार में लगभग 28 गीगावॉट (GW) अक्षय ऊर्जा क्षमता है और सौर स्ट्रीट लाइट लगाने में तेजी लाने से बिहार के कम कार्बन विकास लक्ष्यों में महत्वपूर्ण योगदान मिल सकता है।” उन्होंने बताया कि 28 गीगावॉट का डेटा बिहार की अक्षय ऊर्जा नीति 2023 के मसौदे का हिस्सा है, जो अभी तक सार्वजनिक नहीं हुआ है।
झा ने कहा, “जीरो उत्सर्जन करने वाली ये लाइट्स बिजली वाली स्ट्रीट लाइट की जगह लेकर जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद कर सकती हैं। सौर स्ट्रीट लाइट योजना जैसी पहल से कई फायदे हो सकते हैं, जिसमें बेहतर ऊर्जा पहुंच और कम जीएचजी उत्सर्जन शामिल हैं, जो बिहार के सामाजिक-आर्थिक विकास और नेट-जीरो लक्ष्यों के लिए महत्वपूर्ण हैं।”
अचिन सरकार एक अक्षय ऊर्जा विशेषज्ञ और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी), पटना में सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने बताया कि जीरो उत्सर्जन के कारण इन्हें दुनिया भर पसंद किया जाता है। कार्बन उत्सर्जन कम करने और जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए यह एक आसान कदम है। हालांकि, सफल कार्यान्वयन के लिए मजबूत नीतियां और भ्रष्टाचार को दूर करना जरूरी है। लोगों को जागरूक करना भी महत्वपूर्ण है। कार्यान्वयन के बाद, सरकार को इस तकनीक का सही रखरखाव और प्रबंधन सुनिश्चित करना होगा। अचिन सरकार ने कहा, “यह जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को कम करेगा और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करेगा।“
बिहार के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रेम कुमार ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि सरकार ने मार्च 2024 में जारी अपनी एक रिपोर्ट ‘क्लाइमेट-रेजिलिएंट एंड लो-कार्बन डेवलपमेंट पाथवे फॉर बिहार‘ में 2070 तक देश के जीरो-कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य के अनुरूप कार्बन उत्सर्जन को कम करने की रणनीतियों की रूपरेखा तैयार की है। बिहार इस तरह की योजना बनाने वाला पहला राज्य बन गया है। इस मसौदा रिपोर्ट को अभी आधिकारिक रूप से सार्वजनिक किया जाना बाकी है।
रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि राज्य का ऊर्जा क्षेत्र ग्रीन हाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक था, 2018 में लगभग 69% हिस्सेदारी इसी क्षेत्र की थी। रिपोर्ट आगे बताती है कि विकास पथ जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के विकल्पों और कार्यों पर केंद्रित है। रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में राष्ट्रीय उत्सर्जन में बिहार का योगदान भारत के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 3.3% है, जो राष्ट्रीय जनसंख्या में इसके हिस्से (8.8%) से कम है।
खैर, ग्रामीण बिहार में बड़ी संख्या में सौर स्ट्रीट लाइट लगाने से न सिर्फ रात का अंधेरा खत्म होगा, बल्कि राज्य के लाखों लोगों को कम उत्सर्जन वाली ऊर्जा तक पहुंचने में भी मदद मिलेगी।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 1 अगस्त 2024 प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: पटना जिले के कुरकुरी ग्राम पंचायत के अलीपुर गांव में लगाई गई सौर स्ट्रीट लाइट। तस्वीर- मोहम्मद इमरान खान