- केरल में जल संरक्षण के लिए परंपरागत इंजीनियरिंग की मदद से चेक डैम बनाए जाते हैं जिन्हें स्थानीय लोग कट्टा कहते हैं।
- ये छोटे बांध सिंचाई के लिए पानी का एक स्थिर स्रोत प्रदान करते हैं, जिससे कृषि उत्पादकता में सुधार होता है।
- सूखे के दौरान भूजल रिचार्ज करने के साथ सिंचाई में मददगार हैं। इससे लोगों को सूखे से निपटने में मदद मिलती है।
चेक डैम छोटी, अक्सर अस्थायी संरचनाएं होती हैं जो पानी के संरक्षण और भूजल स्तर को रिचार्ज करने के लिए नदियों और जल चैनलों पर बनाई जाती हैं। केरल के कासरगोड में, चेक डैम सदियों से पारंपरिक रूप से न्यूनतम, कम लागत वाली सामग्री से तैयार किए जाते रहे हैं। स्थानीय रूप से इसे कट्टा कहा जाता है। ये छोटे बांध सिंचाई के लिए पानी का एक स्थिर स्रोत प्रदान करते हैं, जिससे कृषि उत्पादकता में सुधार होता है।
पुराने कासरगोड उत्कृष्ट पारंपरिक इंजीनियरिंग का एक उदाहरण है। इसे स्थानीय लोग अपने खर्च पर बनाते हैं। यह नाले या नदी में बहते पानी को रोकता है और अतिरिक्त प्रवाह को छोड़ देता है। जैसे ही मानसून समाप्त होता है, स्थानीय निवासी इन छोटे बांधों को साथ मिलकर बनाते हैं। यह सूखे के दौरान भूजल रिचार्ज करने के साथ सिंचाई में मददगार हैं। इससे लोगों को सूखे से निपटने में मदद मिलती है।
कासरगोड में रहने वाले किसान और डॉक्टर वेणुगोपाल 1997 का एक समय याद करते हैं, जब पुराने निर्माण नहीं हुआ और समुदाय को नुकसान उठाना पड़ा। “कट्टा नहीं बनाने की वजह से 8 मार्च 1997 को नदियाँ सूख गईं। ऐसी स्थिति थी कि हमारे खेतों में पानी की कमी थी। उस दिन हमें इसकी समस्या और उपयोगिता समझ में आई।” वह बताते हैं।
“चूंकि यहां ज्यादातर नकदी फसलें जैसे सुपारी, नारियल, केला और काली मिर्च की खेती की जाती है, ऐसी फसलों के साथ कोई भी समस्या स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगी। 1997-98 में हमने जो झटका देखा, उसने हमें सबक सिखाया। उसके बाद हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा. हर साल हम इसका रखरखाव करते हैं,“ वह कहते हैं।
हालाँकि, मानवीय सरलता के ये प्रतीक केरल के कासरगोड के लिए अद्वितीय नहीं हैं। कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ और उडुपी जिलों के गांवों में भी कट्टा बनाने की परंपरा है।
कट्टों की संख्या और उपयोग में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट आई है, वेणुगोपाल इस पारंपरिक जल संरक्षण पद्धति के पुनरुद्धार की पुरजोर वकालत करते हैं। अन्य किसानों के साथ उनके प्रयासों से इन स्थानीय प्रतीकों के बारे में अधिक जागरूकता, निर्माण और रखरखाव हुआ है।
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भारत में अन्य प्रकार की पारंपरिक जल संरक्षण संरचनाएँ हैं जो पूरे देश में उपयोग में आते हैं। अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले में शेर्कटुपेन समुदाय द्वारा निर्मित चोस्कोर एक तरह की पनचक्कियाँ हैं। इससे बिजली बनाई जाती है। नागालैंड के फेक जिले में, रुजा एक जल संचयन प्रणाली है जो गुरुत्वाकर्षण-आधारित सिंचाई का उपयोग करके बहते पानी को तालाबों में संग्रहीत करती है।
भारत का भूजल है तेजी से घट रहा है। भारत के केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट है कि देश में 17% भूजल ब्लॉकों का अत्यधिक दोहन किया गया है। सूखा और बाढ़ दोनों ही बढ़ रहे हैं।
इस वीडियो रिपोर्ट को मोंगाबे इंडिया और ALT EFF की संयुक्त पहल ‘वीडियो रिपोर्टिंग फंड 2024’ के सहयोग से किया गया है।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 11 सितंबर 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: वेणुगोपाल केरल में कट्टा बनाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हैं। बैनर तस्वीर- कौशिकी रावत/मोंगाबे।