- पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले मालाबार ट्री टॉड पर किए गए एक अध्ययन में लगभग 85 सह-लेखक हैं, इसमें कई लोग ऐसे हैं जो वैज्ञानिक नहीं हैं लेकिन नागरिक विज्ञान के माध्यम से इस शोध से जुड़े हैं।
- नागरिक विज्ञान कार्यक्रम में आमतौर पर वैज्ञानिक अनुसंधान, डेटा संग्रह और विश्लेषण में वैज्ञानिकों या विशेषज्ञों के साथ आम जनता शामिल होती है।
- जब नागरिकों को अपने आसपास के वन्यजीवों का निरीक्षण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, तो वे अपने पर्यावरण के साथ एक गहरा संबंध विकसित करते हैं।
विज्ञान में आम जनता कितना योगदान दे सकती है? शायद, बहुत कुछ — यह एक ऐसी बात है जिसे वैज्ञानिक तेज़ी से स्वीकार कर रहे हैं। पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले मालाबार ट्री टॉड के फैलाव और भविष्य के निवास स्थान की उपयुक्तता के मॉडल पर एक हालिया अध्ययन इस प्रवृत्ति का उदाहरण है। अगस्त 2024 में प्रकाशित इस अध्ययन में लगभग 85 सह-लेखक हैं। इन सह-लेखकों में कई नागरिक वैज्ञानिक हैं। वैज्ञानिक गुरुराजा के.वी., जिन्होंने इस अध्ययन का नेतृत्व किया, स्वीकार करते हैं, “वैज्ञानिक अब अकेले काम नहीं कर सकते, हमें निश्चित रूप से जनता के सहयोग की आवश्यकता है।”
नागरिक विज्ञान कार्यक्रम में आमतौर पर वैज्ञानिक अनुसंधान, डेटा संग्रह और विश्लेषण में वैज्ञानिकों या विशेषज्ञों के साथ आम जनता शामिल होती है। इस शोध के लिए डेटा मुख्य रूप से नागरिक विज्ञान कार्यक्रम ‘मैपिंग ऑफ़ मालाबार ट्री टॉड’, जो इंडिया बायोडायवर्सिटी पोर्टल पर फ्रॉग वॉच पहल का एक हिस्सा है, से आया है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, जलवायु परिवर्तन का प्रजातियों पर, खासकर भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में, बड़ा प्रभाव पड़ता है। पचास सालों (1952-2000) के बारिश के आंकड़ों के आधार पर शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि वर्षा में तेजी से होने वाले बदलाव अगले 50 से 80 सालों में प्रजातियों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। गुरुराजा ने बताया कि उत्तरी पश्चिमी घाट में गोवा और महाराष्ट्र जैसी जगहों पर वर्षा में आई कमी की वजह से वहां के मेंढक गायब हो सकते हैं और ये प्रजातियां दक्षिण की ओर जा सकती हैं। हालांकि इस अध्ययन में विकास और भूमि उपयोग परिवर्तन की भूमिका को इस शोध में नहीं लिया गया है।
आपके आंगन के वन्यजीव
नागरिक विज्ञान कार्यक्रम उभयचरों की प्रभावी निगरानी के लिए काफी जानकारी इकट्ठा कर सकते हैं। इस जानकारी में प्रजातियों के फैलाव की सीमा, आबादी के रुझान, और परिवर्तन के पैटर्न और कारकों पर बहुमूल्य पारिस्थितिक डेटा शामिल है। इस डेटा से इन प्रजातियों के प्रबंधन और संरक्षण में सहायता मिलती है, जैसा कि पेपर में बताया गया है। उभयचरों की प्रजनन फिनोलॉजी उनकी जनसंख्या संरचना (और गिरावट) का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। उभयचरों की प्रजनन फिनोलॉजी तापमान और वर्षा से प्रभावित होने वाले उनके वोकलाइजेशन से निर्धारित की जाती है। उभयचरों के लिए चलाए जा रहे नागरिक विज्ञान कार्यक्रमों ने मेंढकों की प्रजनन फिनोलॉजी के दस्तावेजीकरण में मदद की है। इस दस्तावेजीकरण से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने में वैज्ञानिकों की सहायता की है।

मनु नक्काथया, जो पश्चिमी घाट में कुद्रेमुख की तलहटी में एक होम-स्टे चलाते हैं, हमेशा अपने आसपास की जैव विविधता में गहरी दिलचस्पी रखते हैं। वे अपने मेहमानों को “फ्रॉग वॉक्स” जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से विविधता को प्रोत्साहित करने के लिए इस सैर में भाग लेने के लिए कहते हैं। वे कहते हैं, “मेरे मेहमान अक्सर होम-स्टे के पास लगभग 25 उभयचर प्रजातियों को देखकर चकित हो जाते हैं।” नागरिक विज्ञान कार्यक्रम के सदस्य के रूप में, उन्होंने वर्तमान अध्ययन में सक्रिय रूप से भाग लिया। वे बताते हैं, “जब नागरिकों को अपने आसपास के वन्यजीवों का निरीक्षण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, तो वे अपने पर्यावरण के साथ एक गहरा संबंध विकसित करते हैं।”
गुरुराजा, जिनको लगभग 25 नई उभयचर प्रजातियों की खोज का श्रेय जाता है, इस बात पर ज़ोर देते हैं कि संरक्षण के प्रति उत्साही नागरिकों के साथ सहयोग करना उभयचर अनुसंधान में महत्वपूर्ण है। वे कहते हैं, “वैज्ञानिक अध्ययन अब केवल शोध पत्र प्रकाशित करने के बारे में नहीं हैं। किसी प्रजाति के संरक्षण को जमीनी स्तर पर साकार करने के लिए, आपको लोगों के साथ जुड़ने के तरीके खोजने होंगे।”
नागरिकों से ‘शोधकर्ता’ का सफर
इस नए शोध पत्र में शामिल वैज्ञानिकों ने नागरिक योगदानकर्ताओं को केवल सहयोगी के बजाय सह-लेखक के रूप में मान्यता दी है। इस पहल का अन्य वैज्ञानिकों ने स्वागत किया है, जो इसे संरक्षण प्रयासों में गैर-विशेषज्ञ नागरिकों की अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम मानते हैं। केरल के वैज्ञानिक संदीप दास इस नए अध्ययन में अपना नाम देखकर आश्चर्यचकित थे; पश्चिमी घाट में उभयचर अनुसंधान में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले सभी लोगों को इस पत्र में मान्यता दी गई है।
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दास बताते हैं, “जब आम लोगों को रिसर्च पेपर्स के लेखक के तौर पर नाम मिलता है, तो यह अपनत्व की भावना पैदा करता है और वे उस प्रजाति के संरक्षण के लिए राजदूत बन जाते हैं।” वे दुर्लभ भारतीय बैंगनी मेंढक, या महाबली मेंढक (Nasikabatrachus sahyadrensis) के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय समुदायों के साथ अपने सहयोग के अनुभव से यह बात कह रहे हैं, जिसका नाम केरल के प्रिय काल्पनिक राजा और ओणम शुभंकर, राजा महाबली के नाम पर रखा गया है।
ज़रा सोचिए, वैज्ञानिक खोज में सहायता करने वाले आम लोगों को वैज्ञानिक अब केवल सहायक नहीं, बल्कि सह-लेखक के रूप में पहचान रहे हैं। यह एक बेहतर पहल है और अन्य वैज्ञानिक भी इस बात से खुश हैं कि अब आम जनता संरक्षण प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग ले सकती है। केरल के एक वैज्ञानिक संदीप दास, अध्ययन की आभार सूची में अपना नाम देखकर हैरान रह गए। पश्चिमी घाट में उभयचर अनुसंधान में मामूली सा योगदान देने वाले भी हर व्यक्ति को इसमें श्रेय दिया गया। दास का कहना है कि जब नागरिक अपने नाम शोध पत्रों में देखते हैं, तो उस शोध के साथ उन्हें अपनापन लगता है। फिर, वे उस प्रजाति की रक्षा करने में अधिक सक्रिय हो जाते हैं। उन्होंने यह बात महाबली मेंढक के संरक्षण के लिए स्थानीय समुदायों के साथ काम करने के अपने अनुभव के आधार पर साझा की।

मालाबार ट्री टॉड, पेडोटिबेस जीनस की एकमात्र प्रजाति है, जिसमें पश्चिमी घाट के अधिकांश स्थलीय मेंढकों के विपरीत पेड़ पर चढ़ने की अनोखी क्षमता है। पेपर के अनुसार, यह मेंढक सदाबहार से लेकर नम अर्ध-पर्णपाती वनों में पानी की धाराओं के किनारे, पेड़ों पर और पेड़ की गुहाओं में समुद्र तल से 50 मीटर से लेकर 1,000 मीटर से अधिक की ऊँचाई पर पाया जा सकता है। पहली बार इसका वर्णन गुंथर ने 1876 में किया था, जिसके बाद यह प्रजाति एक सदी से भी अधिक समय तक अपुष्ट रही, और 1980 में केरल के साइलेंट वैली नेशनल पार्क में इसे फिर से खोजा गया। उसके बाद भी, 2020 तक इस पर बहुत कम अवलोकन उपलब्ध थे। लेकिन हाल ही में, नागरिक विज्ञान ने पश्चिमी घाट में इसकी प्रचुरता का खुलासा किया है। यह वन्यजीव संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2022 के तहत अनुसूची 2 की प्रजाति है, जिसे गुरुराजा नागरिक विज्ञान को शामिल न करने का परिणाम बताते हैं। “यह प्रजाति स्थानीय रूप से प्रचुर मात्रा में है, इसे इस अनुसूची में होना भी नहीं चाहिए,” वे कहते हैं।
प्रजातियों पर होने वाले अध्ययन अक्सर संरक्षित क्षेत्रों के नेटवर्क पर केंद्रित होते हैं। लेकिन पश्चिमी घाट जैसे जैव विविधता हॉटस्पॉट में जीवों की उपलब्धता को देखते हुए, नागरिक विज्ञान संरक्षित क्षेत्रों के आलावा भी उन क्षेत्रों तक पहुँचने में मदद कर सकता है, जिससे संभावित रूप से समान संरक्षण परिणाम प्राप्त हो सकते हैं, गुरुराजा कहते हैं। “जब पश्चिमी घाट की बात आती है, तो हम अक्सर बहस करते हैं कि कस्तूरीरंगन रिपोर्ट या गाडगिल रिपोर्ट को लागू किया जाए या नहीं। हमें वास्तव में यह करने की ज़रूरत है कि पूरे पश्चिमी घाट को एक जैविक विरासत के रूप में देखें और संरक्षण के लिए अधिक परिदृश्य-स्तरीय दृष्टिकोण को बढ़ावा दें। यह पेपर इसी बात को आगे रखता है,” वे कहते हैं।
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 10 अक्टूबर 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: हाल ही में पश्चिमी घाट के स्थानिक मालाबार ट्री टॉड के फैलाव और भविष्य के निवास स्थान की उपयुक्तता के मॉडल पर किए गए एक अध्ययन में लगभग 85 सह-लेखक हैं, जिनमें से कई लोग ऐसे हैं जो वैज्ञानिक नहीं हैं लेकिन नागरिक विज्ञान के माध्यम से इस शोध से जुड़े हैं। तस्वीर: गुरुराजा के.वी. द्वारा।