- सोशल मीडिया पर वन्यजीवों से जुड़ी बहुत सी सामग्री है। लेकिन ज्यादातर जीव वैज्ञानिकों का कहना है कि यह न तो नैतिक रूप से फिल्माई गई हैं और न ही वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है।
- जीव वैज्ञानिकों का कंटेंट सही जानकारी और नैतिकता को ध्यान में रखकर तैयार किया जाता है और इसी वजह से वैज्ञानिक रूप से कम जानकार, शौकिया लोगों और सिर्फ व्यूज बढ़ाने वाले मनोरंजक कंटेट से अलग होता है। हालांकि, जो चीज उनके कंटेंट को वास्तव में खास बनाती है, वह है स्थानीय प्रजातियों पर उनका ध्यान।
- वन्यजीवों के संरक्षण के प्रति जागरूक और सक्रिय लोगों को तैयार करना संभव है अगर शैक्षणिक संस्थान अपनी वैज्ञानिक भाषा को सामान्य जनता के लिए आसानी से समझने लायक बना दें।
बुश फ्रॉग खाते हुए एक मालाबार पिट वाइपर को कैमरे में कैद करना शायद आपकी शाम बिताने का तरीका न हो, लेकिन वन्यजीव जीवविज्ञानी यतिन कल्कि (28) के लिए ये एक सामान्य मंगलवार की शाम थी। वह अक्सर ऐसा करते रहते हैं।
उनके पास न तो बड़े-बड़े कैमरा हैं और न ही रिकॉर्डिंग के लिए महंगे डिवाइस। वह उन कई भारतीय जीव वैज्ञानिकों में से एक हैं जो सोशल मीडिया पर स्मार्टफोन से इस उम्मीद में कंटेंट बनाते हैं कि जो लोग सांपों और अन्य सरीसृप-उभयचरों से डरते या नफरत करते हैं, उनसे प्यार करना सीख जाएं और उनके संरक्षण में मदद करें। कल्की कहते हैं “मुझे नहीं लगता कि लोगों को सांपों के बारे में ज्यादा जानकारी है। ज्यादातर लोग इनसे या तो नफरत करते हैं या उनसे डरते हैं या फिर कूल बनने का दिखावा करते हैं। सांप ऐसे जीव हैं जिनके (सोशल मीडिया पर) वायरल होने की संभावना काफी ज्यादा होती है।” उनके अनुसार, ज्यादातर वीडियो या रील्स न तो नैतिक तरीके से (जानवरों को नुकसान पहुंचाए बिना) बनाए गए होते हैं और न ही वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं।
लक्ष्य हासिल करने के लिए हर तरीका सही नहीं होता
कल्कि लगभग 10 सालों तक वन्यजीवों के क्षेत्र में रिसर्च करते रहे हैं और सांपों को बचाने में कर्नाटका वन विभाग के साथ भी जुड़े रहे थे। फिर 2021 के अंत से, उन्होंने अपने 8,000 फॉलोअर्स वाले अपने सोशल मीडिया (इंस्टाग्राम) हैंडल से अपने काम के बारे में नियमित रूप से पोस्ट डालना शुरू कर दिया। फिलहाल उनके @vegancobra अकाउंट पर 103,000 फॉलोअर्स हैं। वह इंस्टाग्राम पर वैज्ञानिक जानकारी के महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक हैं। उनके मुताबिक, यहां ऐसे लोगों को भीड़ है जो बिना किसी ट्रेनिंग और अनुभव के सांपों से जुड़े वीडियो बनाकर दर्शकों को आकर्षित करते हैं। कल्कि कहते हैं, “अगर आप सांप से बचने के लिए नैतिक तरीके अपना रहे हैं तो आपको किसी तरह का नाटक करने की जरूरत नहीं है।” उन्होंने आगे बताया, “लेकिन सांपों पर बनने वाले ज्यादातर कंटेंट में हमेशा खतरे को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जाता है। कोई कहता है, ‘मुझे एक कोबरा को पकड़ने के लिए बुलाया गया और वो बहुत गुस्से में था। वो मेरे पीछे भाग रहा था। मेरी जिंदगी मेरी आंखों के सामने घूम रही थी…..’ अरे, भाई! बस करो।”
कल्कि के मुताबिक, लक्ष्य हासिल करने का हर तरीका सही नहीं होता। उन्होंने बताया, “बहुत सी चीजें हैं जिनसे आप बेहद वायरल कंटेंट बना सकते हैं, लेकिन वो पूरी तरह अनैतिक होंगी।” वह जंगली जीवों के साथ नाटकीय तरह से इंटरैक्शन करके व्यूज पाने से इनकार करते हैं। कलिंगा सेंटर फॉर रेनफॉरेस्ट इकोलॉजी के संस्थापक गौरी शंकर (48) भी इस राय से सहमत हैं। सिर्फ एक साल में उनके इंस्टाग्राम अकाउंट @gowrikalinga पर फोलोअर्स की संख्या तीन हजार से बढ़ कर 62,00 पहुंच गई है। शंकर ने सांपों को बचाने की छोटी, पेशेवर वीडियो बनाकार और जीवों के साथ बदसलूकी के साथ पेश आने वाले वायरल वीडियोज को गलत साबित करके लाखों व्यूज़ और हजोरों फोलोअर्स जुटाए हैं। वह अंग्रेज़ी और कन्नड़ दोनों भाषा में कंटेंट बनाते हैं और कहते हैं, “हम जैसे शोधकर्ता, वैज्ञानिकों… का ध्यान बस अपने शोध और प्रकाशनों पर रहता है… मुझे एक साल पहले तक सोशल मीडिया के प्रभाव का पता नहीं था।”
जीवविज्ञानी और कंटेंट क्रिएटर केडेन एंथनी (29) फिल्मांकन करते हुए 1972 के वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम को ध्यान में रखते हैं। उन्होंने अपने प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अवैध शिकार की तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए भी किया है। मुंबई में लगभग आठ साल वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन के क्षेत्र में काम कर चुके एंथनी, अनुसूचित प्रजातियों को नहीं छूते और संरक्षित वन क्षेत्रों में नहीं जाते। वे सिर्फ विश्वसनीय समाचार संस्थानों, रिसर्च पेपर और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ जैसी गैर-लाभकारी संस्थाओं से ली गई जानकारी ही पोस्ट करते हैं। उन्होंने कहा, “मैं कभी भी बिना सत्यापित की गई जानकारी को पोस्ट नहीं करना चाहूंगा… एक पौधे की शैवाल प्रजाति को मैंने लाइकेन समझकर उसके बारे में बताया था। लेकिन जब एक वनस्पतिशास्त्री ने मुझे जानकारी दी, तो अगले वीडियो में मैंने कहा कि यह वास्तव में एक पौधा है, लाइकेन नहीं।”
स्थानीय प्रजातियों पर विशेष ध्यान
एंथनी के इंस्टाग्राम अकाउंट @man_of_the_forest पर लगभग 30,000 फॉलोअर्स (छह महीने पहले सिर्फ 1,000) हैं। वह पोस्ट करने से पहले अपने मन में एक चेकलिस्ट बना लेते हैं, जैसे, “क्या मैं किसी को गलत तरीके से प्रेरित कर रहा हूं? क्या कोई मेरी नकल करने की कोशिश करेगा? एक वीडियो में, एक कैट स्नेक ने मुझे काट लिया था। क्या हो, अगर कोई सॉ-स्केल्ड वाइपर को कैट-स्नैक समझ ले और उसे पकड़ने की कोशिश करे?” उनके वीडियो, खासकर युवा फॉलोअर्स को, गलत आदतों को बढ़ावा न दे दें, इसे लेकर उनकी चिंता साफ झलक रही थी। वह मजाकिया अंदाज में कहते हैं, “युवा लड़के ऑनलाइन अजीबो-गरीब काम करते रहते हैं।”
साल 2021 में, समुद्री संरक्षणवादी गैब्रिएला डी’क्रुज़ (32) ने इंस्टाग्राम अकाउंट ‘Seaweed Saturdays’ (@seaweedsaturdays) को को-क्रिएट किया, जिसका मकसद भारत के समुद्री शैवाल भूदृश्यों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। अब उनके 1,200 से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। एक समुद्री जीवों के कंटेंट क्रिएटर के तौर पर, डी’क्रुज़ को यह ध्यान रखना जरूरी है कि प्रवाल भित्तियां, समुद्री खीरे और समुद्री घास भी 1972 के अधिनियम के तहत कानूनी रूप से संरक्षित हैं और इन्हें नुकसान नहीं पहुंचाना है। डी’क्रुज़ कहती हैं, “मुझे हमेशा इस बात का खयाल रहता है कि ज्वारीय पूल खुले पारिस्थितिकी तंत्र हैं और इन्हें लोग इकठ्ठा करना शुरू कर सकते हैं… यह थोड़ा डरावना है क्योंकि किसी चीज में रुचि पैदा करके, आप उसे किसी हद तक शोषण के लिए भी खुला छोड़ रहे होते हैं।”
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ये क्रिएटर नैतिकता और जांची-परखी जानकारी पर जोर देते हैं और वन्यजीवों के प्रति जिम्मेदाराना व्यवहार अपनाते हैं। उनकी यही खासियत अच्छे इरादे वाले लेकिन कम जानकारी वाले, शौकिया और दर्शकों को आकर्षित करने वाले कंटेंट क्रिएटर्स से अलग करती है। उनके कंटेंट की खासियत स्थानीय प्रजाति हैं। वह कहते हैं, “बहुत से लोगों को पता ही नहीं है कि वन्यजीव उनके आस-पास ही हैं और वे अपने नजदीक ही बहुत सी रोचक चीजें ढूंढ सकते हैं।”
ये जीव वैज्ञानिक ऑनलाइन लोकप्रियता के मामले में आसमान छू रहे हैं, लेकिन इस शो के असली सितारे भारत का मूल पारिस्थितिकी तंत्र हैं, जिनमें ग्रीन वाइन सांप और भारतीय कैमलिन से लेकर डेक्कन बैंडेड गेको और ब्लू टाइगर मॉथ तक सब कुछ मौजूद हैं। ऐसे दिलचस्प (और कम जाने पहचाने) जीवों की निकटता से रोमांचित, बहुत से शौकीन लोग अपने पसंदीदा कंटेंट क्रिएटर के नेतृत्व में आयोजित अभियानों में भाग लेने के लिए भी आ रहे हैं।
कंटेंट क्रिएटर्स पर भरोसा सबसे ज़रूरी
लैंडस्केप डिजाइनर जननी मोहन (33) दो साल से कल्कि को इंस्टाग्राम पर फॉलो कर रही हैं और उनके द्वारा आयोजित कई हर्पिंग टूर (सांप और छिपकली देखने) में हिस्सा ले चुकी हैं, अब चाहे उन्हें उनके लिए उन्हें पैसा देना पड़ा हो या फिर वे फ्री में हों। उन्होंने कहा, “ये उनसे मिलने वाली सही जानकारी होती है। वो इंटरनेट पर कहीं से भी पढ़कर ये जानकारी नहीं उठाते हैं। वो सब कुछ जैसा है, वैसा ही बताते हैं और मुझे उन पर भरोसा है।” भारत में इंसानों और वन्यजीवों के बीच के संबंधों के पेचीदे रिश्ते में, क्रिएटर के इरादों पर भरोसा बहुत जरूरी है। 28 वर्षीय मोटेशन डिजाइनर निखिल कहते हैं, “वैज्ञानिक बातचीत को कंटेंट क्रिएटर की बातचीत से अलग करना आसान है।” निखिल किसी क्रिएटर की विश्वसनीयता को उनके शांत व्यवहार, प्रोफेशनल डिवाइस के इस्तेमाल और ऑन-स्क्रीन दृश्यों के वैज्ञानिक संदर्भ से आंकते हैं।
कई महीनों से वह इंस्टाग्राम पर कल्कि को फॉलो कर रहे हैं और जल्द ही गोवा में कल्कि के ईकोटूरिज्म संगठन ‘इकोफिस वाइल्डलाइफ’ द्वारा आयोजित एक सशुल्क हर्पिंग टूर में शामिल होने की उम्मीद कर रहे हैं। वह कहते हैं, “इसमें रोमांच भी है… यह मेरे लिए पोकेमॉन खेलने जैसा है,” श्रेष्ठ 2019 से हर साल सोशल मीडिया पर मिले हर्पेटोलॉजिस्ट्स द्वारा आयोजित हर्पिंग टूर पर जाते रहे हैं। कल्कि, जो पहले छह लोगों के ग्रुप टूर के लिए संघर्ष करते नजर आते थे, अब देखते हैं कि 12 से 16 लोगों की क्षमता वाले टूर 48 से 72 घंटे में पूरी तरह बुक हो जाते हैं। उन्होंने कहा, “हमारे साथ टूर पर आ चुके बहुत से लोग फिर से टूर पर आने के लिए लौटते हैं या अपने दोस्तों के साथ आते हैं।” उनके मुताबिक, बेहतर अनुभव लोगों को वापस खींचकर ले आता है।
हालांकि, सभी तरह के प्राकृतिक आवास सभी लोगों को उतना उत्साहित नहीं करते हैं। डी’क्रुज़ कहती हैं, “भारत में समुद्र को लेकर लोगों में कुछ डर या आशंका है, क्योंकि हमारा समुद्र काफी काला और भयावह लगता है। यह अन्य देशों की तरह नीला नहीं है।” डी’क्रुज़ स्थानीय समुद्री जीवों, जैसे पफर और बटरफ्लाई फिश, मुरै ईल, डेमसेल्फिश, समुद्री घोंघे और स्नैपर से परिचित हैं और पर्यटन प्रबंधन में भी उन्हें खासा अनुभव है। उसके बावजूद वह अपने दर्शकों को वो सीधा अनुभव नहीं करा पाती हैं, जो बाकी कंटेंट क्रिएटर आसानी से करा देते हैं। दरअसल, इस सब के लिए तैरने, गोताखोरी करने का हुनर आने और डिवाईस की जरूरत होती है। वह कहती हैं, “अगर आप जमीनी पारिस्थितिकी तंत्र देखें, तो आप सीधे जंगल में जा सकते हैं या समुद्र तट, रेतीले टीलों जैसी तटीय पारिस्थितिकी तंत्र देख सकते हैं… यह समुद्र के साथ जुड़ने जितना महंगा नहीं है।” अपनी ऑनलाइन कम्यूनिटी से जुड़े रहने के लिए डी’क्रुज़ नियमित रूप से सम्मेलनों में भाग लेती हैं। वह गोवा में अक्टूबर और अप्रैल के महीनों में ज्वारीय पूल की सैर और समुद्री शैवाल की जानकारी देने के लिए सत्र आयोजित करने की योजना बना रही हैं।
वैज्ञानिक जानकारी को आसान बनाना
कई लोगों के लिए, वन्यजीव गाइड-वॉक वन्यजीवों में रुचि पैदा करने का एक रास्ता हो सकती है। छात्रा पायल लुल्ला (18) ने एंथनी को सोशल मीडिया पर कुछ ही महीनों पहले फॉलो किया था, तब उन्होंने उनकी मुफ्त हर्पिंग वॉक में शामिल होने के लिए खुद और अपने छह दोस्तों का रजिस्ट्रेशन करवाया था। उन्होंने बताया, “मेरे दोस्तों को वाकई हैरानी हुई कि उन्हें इतनी अच्छी जानकारी मुफ्त में मिल रही है।” मुफ्त कार्यक्रमों में पहले सिर्फ दो से चार लोग आते थे, अब एंथनी 30 तक लोगों के ग्रुप को संभाल रहे हैं। वह बताते हैं, “लोगों की इतनी बड़ी संख्या के कारण हमें रजिस्ट्रेशन बंद करना पड़ा।” अब वह अपने सशुल्क कार्यक्रम भी सीमित लोगों के लिए ही रख रहे हैं। एंथनी कहते हैं, “लोग जानते हैं कि मैं इसी क्षेत्र का हूं। मैं वीडियो बनाने वाला कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हूं। फोलोअर्स इस विश्वसनीयता को महसूस करते हैं।” एंथनी की साथी और जीवविज्ञानी सैंड्रा परेरा (26) इस कम्युनिटी को आगे बढ़ाने का काम करती हैं। उनका मानना है कि सफलता का राज वैज्ञानिक भाषा को आसान और मनोरंजक बनाना है। वह कहती हैं, “लोग उस हिस्से को पसंद करते हैं जहां हम उसे लोगों को समझ में आनी वाली सामान्य भाषा में रखते हैं और ऐसी जानकारी देते हैं जो आसानी से, खासकर विश्वसनीय स्रोतों से उपलब्ध होती है।”
इन अनुभवों (जिनमें से कई मुफ्त हैं) को वीडियों में उतारने और ऑनलाइन उपस्थिति बनाए रखने के लिए संसाधनों की जरूरत होती है। एंथनी ने अपने पहले से मौजूद फील्ड वर्क डिवाइस का इस्तेमाल वीडियो बनाने के लिए किया और अपनी छुट्टी के दिनों में उसे फिल्माया। पहले वह काम पर आने-जाने के दो घंटे की यात्रा के दौरान इंस्टाग्राम की अपनी वीडियो एडिट किया करते थे, लेकिन अब उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी है और पूरा समय कंटेंट क्रिएशन और वन्यजीव शिक्षा पर लगा रहे हैं।
डी’क्रुज़ को इस क्षेत्र में 10 साल से ज्यादा का अनुभव है। उनकी नजर में, जमीनी स्तर पर वैज्ञानिक जानकारी में कई खामियां हैं, जिन्हें वे दूर करना चाहती हैं। लेकिन समुद्री जीवों से जुड़े कंटेंट बनाने की अपनी चुनौतियां हैं – उन्हें न सिर्फ पानी के अंदर महंगे और विशेष डिवाइस के साथ विडियो बनानी हैं, बल्कि मौसम के हिसाब से भी काम करना है। वह कहती हैं, “साल के छह महीने, मानसून के कारण कंटेंट नहीं बना पाते हैं।” बारिश के महीनों में वन्यजीवों की गतिविधियां तो बढ़ जाती हैं, लेकिन खतरनाक समुद्री लहरें और खराब मौसम परेशानी की वजह बनता है। वह आमतौर पर फिल्मांकन के लिए किसी दूसरे व्यक्ति के साथ जाती हैं। उन्होंने कहा, “मैं अकेली ज्वारीय पूल में नहीं जाती… सिर्फ इसलिए नहीं कि मुझे गिरने का डर है, बल्कि मुझे वहां मौजूद उन लोगों से बचना होता है, जो मेरे आगे-पीछे घूमते रहते हैं।” अच्छी और नैतिक सामग्री बनाने के बावजूद, क्रिएटर पाते हैं कि उनके दर्शक हमेशा उतना समर्थन नहीं करते, जितनी उन्हें उम्मीद होती है। शंकर बताते हैं, “जो लोग आपके वीडियो देखते हैं… इसका मतलब नहीं कि वे आपसे मिलने और आपको सपोर्ट करने आएंगे।” शंकर उन मार्केटिंग पेशेवरों को काम पर रखने की प्रक्रिया में हैं जो उनके ऑनलाइन इन्फ्लुएंस को डोनेशन और संरक्षण के लिए सीधे तौर पर सहयोग में बदल सकें।
लेकिन जीवविज्ञानी-कंटेंट क्रिएटर बिना अपने दर्शकों का भरोसा खोए ऑनलाइन पैसा कैसे कमा सकते हैं? फोलोअर्स के पास इसका जवाब है- अपनी खुद के प्रमोशन से परे एक उद्देश्य के साथ कंटेंट बनाना। लुल्ला कहती हैं, “अगर आप किसी को वास्तव में वन्यजीवों को बढ़ावा देते हुए, वन्यजीवों के बारे में जानकारी देते हुए देखते हैं, तो आपको लगता है कि यह क्रिएटर के बारे में नहीं है। यह जनता को शिक्षित करने के बारे में है।”
डी’क्रुज़ और आगे जाना चाहती हैं, शंकर की तरह, क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेंट बनाना चाहती हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक जानकारी पहुंच सकें। उन्होंने कहा, “समुद्री मछुआरों तक आमतौर पर जानकारी नहीं पहुंच पाती है… यह बहुत बड़ी समस्या है। उन्हें पता होना चाहिए कि समुद्री शैवाल की खेती में पानी के तापमान में बदलाव, बीमारियों के प्रकोप जैसे कई खतरे हैं… यह जानकारी विशेषज्ञों के लिए दिलचस्प हो सकती है, लेकिन मछुआरा समुदायों के लिए इसके खासे मायने होते हैं।”
डी’क्रुज़ का मानना है कि अंतिम लक्ष्य एक ऐसी जागरूक जनता तैयार करना है जो संरक्षण को प्राथमिकता दे। वह कहती हैं, “कभी-कभी मुझे लगता है कि शैक्षणिक संस्थान अपने दायरे में ही रह जाते हैं। लेकिन मेरा मानना है कि लोगों को जागरुक करने के लिए वैज्ञानिकों को इस भूमिका से बाहर निकलकर कार्यकर्ता, कहानीकार, पर्यटन गाइड बनने और बड़े समुदाय के साथ जुड़ने की ज़रूरत है।” शंकर भी इसी बात से सहमत हैं और मानते हैं कि अगर शिक्षाविद जटिल जानकारी को आम लोगों के लिए समझने योग्य बना सकते हैं, तो वे उन्हें यह भी बता सकते हैं कि वैज्ञानिक समुदाय को जमीनी स्तर पर कैसे सहयोग दिया जा सकता है। वह कहते हैं, “यहां हमारा लक्ष्य किसी फिल्म स्टार की तरह प्रसिद्ध होना नहीं है। हमारा लक्ष्य जानकारी मुहैया कराना और संरक्षण करना है।”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 6 अगस्त 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: अगस्त 2022 में कर्नाटका के कुर्ग में एक हर्पेटोलॉजी अभियान पर एक पिल बग को हाथ में पकड़े हुए वन्यजीव जीवविज्ञानी केडेन एंथनी। तस्वीर- रोमा ए. त्रिपाठी