शहद

लीची के फूल पर मंडराती एक मधुमक्खी। बिहार के मुजफ्फरपुर में सबसे अधिक 8400 मिट्रीक टन शहद का उत्पादन होता है। मुजफ्फरपुर में अधिक शहद उत्पादन की सबसे बड़ी वजह यहां लीची के साथ फूल और सरसो की अच्छी खेती है। तस्वीर- फ़ॉरेस्ट और किम स्टार/विकिमीडिया कॉमन्स

लीची शहद के लिए मशहूर बिहार उत्पादन में आगे, पर दूसरे राज्यों पर निर्भर किसान

बिहार के गया जिले में परैया मरांची गांव के चितरंजन कुमार 18-20 टन शहद का उत्पादन करते हैं। ठीक ऐसे ही, इस ही गाँव के निरंजन प्रसाद भी साल में…
लीची के फूल पर मंडराती एक मधुमक्खी। बिहार के मुजफ्फरपुर में सबसे अधिक 8400 मिट्रीक टन शहद का उत्पादन होता है। मुजफ्फरपुर में अधिक शहद उत्पादन की सबसे बड़ी वजह यहां लीची के साथ फूल और सरसो की अच्छी खेती है। तस्वीर- फ़ॉरेस्ट और किम स्टार/विकिमीडिया कॉमन्स
60 वर्षीय जानकीअम्मा कभी शहद इकट्ठा करने का काम करती थीं, लेकिन आज वे एक अवॉर्ड विनिंग कंपनी की डायरेक्टर हैं। तस्वीर- आरथी मेनन

जानकीअम्माः शहद बटोरने वाली निरक्षर महिला से कंपनी डायरेक्टर का सफर, यूएन से मिला सम्मान

जीवन के 60 वसंत देख चुकी जानकीअम्मा आज एक कृषि उत्पाद कंपनी की डायरेक्टर हैं। दक्षिण भारत के आदिम जनजाति कुरुंबा से वास्ता रखने वाली अम्मा कभी शहद इकट्ठा करने…
60 वर्षीय जानकीअम्मा कभी शहद इकट्ठा करने का काम करती थीं, लेकिन आज वे एक अवॉर्ड विनिंग कंपनी की डायरेक्टर हैं। तस्वीर- आरथी मेनन
आदिवासी जंगल में जाते हुए। गढ़चिरौली के क्षेत्र में इन दिनों नए तरीके से शहद निकाला जा रहा है जो न केवल टिकाऊ है बल्कि रोजगार देने वाला भी है। तस्वीर तस्वीर- सौरभ कटकुरुवार

महाराष्ट्र के आदिवासी जिलों में शहद निकालने का आया एक नया टिकाऊ तरीका

पूर्वोत्तर महाराष्ट्र में स्थित गढ़चिरौली जिले के आदिवासी परिवार शहद निकालने का एक ऐसा तरीका अपना रहे हैं जिसमें मधुमक्खियों को नुकसान नहीं होता। यहां के आदिवासी परिवार आसपास के…
आदिवासी जंगल में जाते हुए। गढ़चिरौली के क्षेत्र में इन दिनों नए तरीके से शहद निकाला जा रहा है जो न केवल टिकाऊ है बल्कि रोजगार देने वाला भी है। तस्वीर तस्वीर- सौरभ कटकुरुवार