- पीलीभीत टाइगर रिजर्व को बहुत कम समय में बाघों की संख्या को दोगुने से अधिक करने के लिए वैश्विक स्तर के पुरस्कार से नवाजा गया है। वर्ष 2014 में यहां 23 के करीब बाघ थे जिनकी संख्या 2018 में बढ़कर 65 हो गयी।
- पीलीभीत टाइगर रिजर्व बाघों के मद्देनज़र एक बेहतरीन वातावरण उपलब्ध कराता है। बावजूद इसके यहां इनकी संख्या नहीं बढ़ रही थी क्योंकि इनका अवैध शिकार निरंतर जारी था।
- वैश्विक स्तर पर बाघों को बचाना एक चुनौती है। बीसवीं सदी की शुरुआत में विश्व में करीब 1,00,000 मौजूद थे। लेकिन बेतहाशा शिकार की वजह से बाघों की संख्या 95 फीसदी घट कर वर्ष 2010 में महज 3, 200 रह गयी।
माना जाता है कि बाघ की दहाड़ करीब तीन किलोमीटर तक सुनी जा सकती है। विडंबना यह है कि अपनी बहादुरी के लिए चर्चित यह सुंदर जीव भी खतरे में है। पूरे विश्व में बाघों की संख्या घटकर कुछेक हजार पर सिमट गई है। ऐसी स्थिति कैसे आई और कैसे पुरानी स्थिति बहाल हो- इस वैश्विक समस्या और उसके समाधान का एक छोटा सा नमूना पेश करता है पीलीभीत का टाइगर रिजर्व जिसे हाल ही में अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है।
वर्ष 2014 में सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित इस टाइगर रिजर्व में महज 23 बाघ मौजूद थे। टाइगर रिजर्व घोषित होने के महज चार सालों बाद यहां बाघों की संख्या बढ़कर 65 हो गयी। इस उपलब्धि के लिए बीते नवंबर माह के 23 तारीख को पीलीभीत टाइगर रिजर्व को अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार टीएक्स2 से सम्मानित किया गया।
यह पुरस्कार वैश्विक स्वयंसेवी संस्था वर्ल्ड वाइड फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ), यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी), अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) और अन्य संस्थाएं मिलकर देती हैं। टीएक्स2 का तात्पर्य है ‘टाइगर्स टाइम टू’ जो बाघों की संख्या को दोगुना करने के लक्ष्य को दर्शाता है।
बाघों की संख्या को दोगुना करने के लक्ष्य की भी एक कहानी है। बीसवीं सदी की शुरुआत में विश्व में करीब एक लाख बाघ मौजूद थे। एक समय में बाघ एशिया के लगभग हर हिस्से में पाए जाते थे। पूर्वी तुर्की से लेकर, तिब्बती पठार तक। उत्तरी ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान के सिंधु घाटी का क्षेत्र और अन्य जगहों पर भी बाघ देखे जा सकते थे। लेकिन बेतहाशा शिकार की वजह से बाघों की संख्या में 95 फीसदी से भी अधिक की कमी आई और 2010 में दुनिया में महज 3, 200 बाघ रह गये। एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005 से 2014 के बीच 380 बाघों के खाल जब्त किए गए। बाजार में इनकी कीमत करीब 29 करोड़ 60 लाख रुपये लगाई गयी थी। वैसे तो यह रकम कुछ खास नहीं है पर अगर बाघों के कुल मौजूदा संख्या के लिहाज से देखा जाए तो इसकी व्यापकता का अंदाजा होता है। जंगली जानवरों के अवैध व्यापार पर आधारित इस रिपोर्ट में यह बात कही गयी है।
इसी साल यानी 2010 में 13 देशों की सरकारों ने मिलकर सेंट पीटर्सबर्ग समिट में 2022 तक बाघों की संख्या को बढ़ाकर दोगुना करने का निर्णय लिया। इन तेरह देशों में ही तब बाघ मौजूद थे। इसी लक्ष्य को हासिल करने पर यह अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाता है जो पीलीभीत टाइगर रिजर्व को मिला है।
पीलीभीत टाइगर रिजर्व के बाघ भी थे अवैध व्यापार के शिकार
इस मुद्दे के जानकार बताते हैं कि तराई क्षेत्र में हरियाली प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। इसकी वजह से यहां शाकाहारी जानवर जैसे हिरण, नीलगाय इत्यादि भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। मांसाहारी बाघ को और क्या चाहिए! पीने का पानी और जरूरत भर भोजन। बस बाघों की सुरक्षा होती रहे तो बाघ बचे रहेंगे, कहते हैं कैलाश प्रकाश जो 2018 तक पीलीभीत टाइगर रिजर्व के प्रभागीय वन अधिकारी रहे।
इनके अनुसार टाइगर रिजर्व घोषित होने के पहले बाघों का अवैध शिकार यहां की सबसे बड़ी समस्या थी। उसको नियंत्रित किया गया तो बाघों की संख्या बढ़ने लगी। रूहेलखण्ड जोन के अंतर्गत आने वाले पीलीभीत वन प्रभाग को 28 फरवरी 2014 वन्य विहार तथा दिनांक 9 जून 2014 को पीलीभीत टाईगर रिजर्व घोषित किया गया।
अपने शुरुआती दिनों के कुछ ब्योरे देते हुए कैलाश प्रकाश बताते हैं कि बाघों को बचाने के उद्देश्य से 7 जनवरी 2015 को वन विभाग ने वन्य जीवों के खिलाफ हो रहे अपराधों के सिलसिले में बैठक बुलाई थी। इसी बैठक में विशेष कार्य दल (एसटीएफ) ने वन विभाग को बताया कि बाघों के शिकार और उनके अंगों की तस्करी में कई अपराधी संलिप्त हैं। यहां से वन्य जीवों के अवैध शिकार को रोकने की मुहिम शुरू हुई और अगले पंद्रह दिन में विभाग को बड़ी सफलता मिली जब महोफ रेंज के गश्त के दौरान नौसहे शाह और असगर को पकड़ा गया। वन विभाग का दावा है कि इनके पास से पांच किलोग्राम बाघ की हड्डियां और कुछ दांत भी बरामद किए गए। नर बारहसिंघा की ट्रॉफी भी बरामद की गयी। बताया जाता है कि इनके साथ एक और कथित अपराधी था जो मौके से फरार हो गया। जिला न्यायालय से इनको जमानत नहीं मिल पाई और इन्हें उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
अधिकृत स्रोतों के अनुसार एसटीएफ ने बाघों के शिकार और बाघों के अंगों की तस्करी में संलिप्त कई अभियुक्त की गिरफ़्तारी की। इनमें कुछ चर्चित नाम हैं चिरौंजी, रवींद्र, ओमप्रकाश, गंगाराम, श्रीकृष्ण, निताई गायन इत्यादि। पूछताछ में इन्होंने उस ठिकाने का पता दिया जहां इन्होंने बाघ का मांस दफनाया था। वन विभाग ने उस बताए जगह से 17 किलोग्राम बाघ का सड़ा गला मांस, हड्डियां और दांत बरामद किए। वन विभाग के अनुसार इन्होंने कबूल किया कि जनवरी 2014 के आस-पास इन्होंने बाघ को जहर देकर मारा था और बचा हुआ मांस बराही के जंगल में दबा दिया था।
ऐसे ही मार्च 2015 में महोफ रेंज के कर्मचारियों के द्वारा गश्त के दौरान 1.5 किलोग्राम बाघ की हड्डियां और चीतल की ट्रॉफी बरामद की गयी। इस अपराध में संलिप्त 11 अभियुक्तों को भी गिरफ्तार किया गया।
कैलाश प्रकाश बताते हैं कि यह तो महज कुछ उदाहरण हैं। इनके उपलब्ध कराए आंकड़ों के अनुसार शुरुआती दो साल में ही 26 शिकार या अवैध शिकार की घटनाओं के मामलों में 71 अभियुक्तों को जेल भेजा गया। गंभीर प्रवृति के वन्य जीव अपराध में जेल भेजे गए अभियुक्तों में से 39 अभियुक्तों की जमानत जिला न्यायालय स्तर पर खारिज करायी गयी। इसके अतिरिक्त अप्रैल 2017 से मार्च 2018 के बीच भी 33 अपराधियों को जेल भेजा गया।
कैलाश प्रकाश के दावे के अनुसार इन सारे प्रयासों का नतीजा यह निकला कि 2014 की गणना में जहां 23 बाघ चिह्नित किए गए थे। वहीं अगले डेढ़ साल में बाघों की संख्या बढ़कर 44 हो गयी।
इस टाइगर रिजर्व के वर्तमान उप संचालक नवीन खंडेलवाल अपने पूर्व के अधिकारियों की तारीफ करते हुए कहते हैं कि श्रेय तो उन्हीं लोगों को मिलना चाहिए। इनका भी कहना है कि टाइगर रिजर्व घोषित होने के बाद यहां बाघों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। इनके अनुसार अब तक करीब 200 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है। सारे अपराधियों का ब्योरा तैयार कर स्थानीय पुलिस और वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो के साथ साझा किया गया है।
इनमें से 40 के करीब बाघों के अवैध हत्या और व्यापार में लिप्त थे, बाघों के संरक्षण में सक्रिय एक स्थानीय अधिकारी ने बताया। ये अपराधी उत्तर प्रदेश से नेपाल तक सक्रिय थे और इनको नियंत्रित करने में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने भी अहम भूमिका निभाई। प्रत्येक वर्ष नेपाल और पीलीभीत, दोनों तरफ की सुरक्षा एजेंसियों की तीन से चार बार बैठक करायी जाने लगी। अपराधियों के ब्योरे साझा किए जाने लगे। साथ में पेट्रोलिंग भी बढ़ायी गयी, मुदित गुप्ता बताते हैं जो डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के राज्य संयोजक हैं। इनके अनुसार इससे अपराधियों का मनोबल टूटा।
टाइगर रिजर्व घोषित होने के बाद सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद किया गया। इसका ब्योरा देते हुए खंडेलवाल कहते हैं, “जंगल के अंदर जगह-जगह 14 स्थायी और 30 अस्थायी एंटी-पोचिंग कैम्प बनाये गए हैं। वन के सुरक्षा में लगे कर्मचारी रात में भी वहीं ठहरते हैं। जंगल के भीतर अगर देर रात भी कोई गतिविधि होती है तो हमें उसकी जानकारी मिलती है।
इसके अतिरिक्त तकनीकी का भी सहारा लिया गया। एंड्रॉइड आधारित एक ऐप (एमएसटीरआईपीईएस) की मदद से पूरे जंगल का प्रबंधन शुरू हुआ। जंगल में कर्मचारियों की सक्रियता से लेकर जानवरों की मौजूदगी, पानी की उपलब्धता इत्यादि का आंकड़ा इसमें उपलब्ध हो जाता है। मुदित गुप्ता बताते हैं कि इससे प्रबंधन का स्तर बढ़ा।
बाघ परियोजना की तर्ज पर ही किए गए अन्य प्रयास
खंडेलवाल कहते हैं कि देश की बाघ परियोजना के अनुरूप ही यहां भी कदम उठाए गए। प्रोजेक्ट टाइगर या बाघ परियोजना की शुरुआत 1973 में हुई थी तब देश में महज नौ टाइगर रिजर्व थे और उनका क्षेत्रफल 18,278 किलोमीटर तक फैला था। वर्तमान में देश में कुल 50 टाइगर रिजर्व हैं और 72,749 किलोमीटर फैले हुए हैं। यह पूरे देश का 2.21 फीसदी क्षेत्रफल है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण स्थानीय समुदायों की बाघ अभयारण्य संसाधनों पर निर्भरता कम करने के लिए वन्य जीव प्रबंधन, सुरक्षा उपायों और क्षेत्र विशिष्ट पर्यावरण के विकास को सुनिश्चित करता है।
इसी के रास्ते पर चलते हुए पीलीभीत टाइगर रिजर्व को भी गढ़ा गया। जैसे जानवरों के लिए समुचित पानी उपलब्ध रहे इसके लिए 2014 के बाद से अब तक करीब 73 जलस्रोतों का निर्माण किया गया और 16 सोलरपंप भी लगाए गए। आग लगने जैसी समस्या से बचने के लिए मौसम की शुरुआत में हर साल 1100 किलोमीटर की फायर लाईन बनायी जाती है। फॉरेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम की शुरुआत की गयी ताकि कहीं आग लगने की घटना का जल्दी पता लगाया जा सके।
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इसके अतिरिक्त और भी कई काम हो रहे हैं जिसका फायदा मिल रहा है, खंडेलवाल कहते हैं। बताया जाता है कि 2015 के शुरुआती दिनों में 1353 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण था। दो साल के अंदर 173 हेक्टेयर भूमि को खाली कराया गया। वर्ष 2017-18 में करीब 242 हेक्टेयर भूमि को भी अतिक्रमण से मुक्त कराया गया। यह सारे काम कैलाश प्रकाश के कार्यकाल के दौरान हुआ।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने आस-पास के ग्रामीणों के साथ सैकड़ों बैठक कर उनको बाघों के संरक्षण का महत्व समझाया। इस उपलब्धि को हासिल करने में सबका योगदान है, मुदित गुप्ता कहते हैं।
बैनर तस्वीर- पीलीभीत टाइगर रिजर्व बाघों के मद्देनज़र एक बेहतरीन वातावरण उपलब्ध कराता है। यहां बाघों के रहने और शिकार करने के लिए पर्याप्त संसाधन है। इस वजह से इनकी संख्या बढ़ रही है। फोटो सौजन्य से- नवीन खंडेलवाल