- दिल्ली के आसपास गुरुग्राम और फरीदाबाद तक घनी इंसानी आबादी के बावजूद इस क्षेत्र में कई तरह के वन्यजीवों का बसेरा है।
- हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में सामने आया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के जंगल में 15 विभिन्न प्रकार के स्तनपायी जानवर पाए जाते हैं। संरक्षण क्षेत्र के बाहर इन जानवरों की अधिक संख्या पाई गई है। इनमें बिज्जू, लोमड़ी, जंगली बिल्ली और सूर्ख नेवला शामिल हैं।
- यहां आस-पास के जंगलों में इंसान और तेंदुए के बीच टकराव के कई मामले सामने आये हैं। इसे रोकने के लिए बेहतर प्रबंधन की जरूरत है।
- दिल्ली-हरियाणा की सीमा से लगा मांगर बनी धार्मिक वजहों से चर्चित है। पर जैव-विविधता के हिसाब से भी काफी महत्वपूर्ण है। इस जंगल में तेंदुए और अन्य जीव घूमते पाए जाते हैं। जानकार इन स्थानों पर वन और जीव दोनों के संरक्षण की सिफारिश करते हैं।
दिल्ली की भागदौड़ भरी जिंदगी और ट्रैफिक की भीड़भाड़ के बीच जंगल और जंगली जीव की उपस्थिति के बारे में शायद ही कोई सोच सकता है, लेकिन हाल में आए एक सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले हैं। इस सर्वे में सामने आया है कि गुरुग्राम, फरीदाबाद और दिल्ली से सटे अरावली के जंगल में वन्यजीवों की अच्छी-खासी आबादी है।
वर्ष 2019 में किया गया सर्वे कहता है कि दिल्ली के आसपास वन्य क्षेत्र में जैवविविधता समृद्ध है। वह भी संरक्षण क्षेत्र से बाहर। यहां वन्यजीवों की खासी संख्या देखी गई। गुरुग्राम और फरीदाबाद से सटा मांगर बनी का जंगल जानवरों की आवाजाही के लिए एक तरह से कॉरिडोर का काम करता है। जानकार मानते हैं कि ऐसे वनों के संरक्षण पर ध्यान देने की जरूरत है।
देश की राजधानी के इतने नजदीक होने के बावजूद भी हरियाणा के अरावली की गिनती देश के कुछेक सबसे खराब स्थिति वाले वनों में होती है। बीते सालों में यहां अंधाधुंध पेड़ों की कटाई हुई है। जंगलों की स्थिति इतनी खराब है कि यहां तेंदुए और इंसानों के बीच आए दिन संघर्ष की खबर आती रहती है। डब्लूडब्लूएफ इंडिया के सौजन्य से आए एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बेहतर प्रबंधन से इस इलाके में वन्यजीव और इंसान के बीच संघर्ष को कम किया जा सकता है।
हालांकि हालिया सर्वे के बाद वन्यजीवों पर काम करने वाले काफी उत्साहित हैं।
“यह काफी सुखद और चकित करने वाला हैं। अरावली जैसे जंगल में भी भांति-भाति के स्तनपायी जीव मिले हैं। खासकर बिज्जू, लकड़बग्धा, लोमड़ी, सूर्ख नेवला और भूरे रंग के लंगूर का मिलना काफी चौंकाने वाला है। हालांकि, लंगूर की संख्या काफी कम है,” कहती हैं गजाला शहाबुद्दीन जो पेशे से इकोलॉजिस्ट हैं। वे गैर लाभकारी संस्था सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च (सीईडीएआर) के साथ सीनियर फेलो के तौर पर जुड़ी हैं।
“महानगर के नजदीक इस तरह के जंगल का होना बड़ी बात है। यह लोगों के मनोरंजन, शोध और स्कूली बच्चों के सीखने के लिए एक शानदार मौका उपलब्ध करा सकता है,” उन्होंने आगे कहा।
अंधाधुंध वन की कटाई, खनन और रियल एस्टेट की वजह से अरावली के जंगल को खतरा उत्पन्न हो गया है। वर्ष 2012 से 2020 के बीच सिर्फ गुरुग्राम में अरावली के वन क्षेत्र में करीब 10,000 एकड़ का नुकसान हुआ है।
समृद्ध जैवविविधता समेटे बहुत पुरानी पर्वत-श्रृंखला है अरावली
गुजरात, राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा को छूता हुआ अरावली पर्वत श्रृंखला 700 किलोमीटर में फैली हुई है। देश के पुराने पर्वतों में एक अरावली अपने समृद्ध जैवविविधता के लिए प्रसिद्ध है।
अरावली के जंगल पर पिछले कई दशकों से काम करने वाले सुनील हर्सना कहते हैं कि वर्ष 2013 में पहली बार कैमरा ट्रैप में तेंदुए की तस्वीर आई थी। वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) के द्वारा वर्ष 2017 में एक अध्ययन किया गया जिसमें सामने आया कि इन जंगलों में 10 प्रजाति के स्तनपायी जीव रहते हैं। इस अध्ययन में पहली बार गुरुग्राम जिले में सांभर के होने की बात पता चली थी।
इस रिपोर्ट में लेखक की भूमिका निभाने वाली परिधि जैन कहती हैं कि इस इलाके में संरक्षण के प्रयास तत्काल शुरु करने की जरूरत है।
इस रिपोर्ट में मांगर बनी वन पर अधिक ध्यान देने की जरूरत पर बल दिया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार इस इलाके में इंसान जानवरों के प्रति असहिष्णु हो रहे हैं। यह चिंता का विषय होना चाहिए।
संरक्षित क्षेत्र की तुलना में अरावली में दिखे अधिक जीव
इस अध्ययन में गुरुग्राम के अरावली, मांगर बनी, फरीदाबाद के अरावली और असोला भाटी वन्यजीव अभयारण्य को शामिल किया गया। यह इलाका 200 वर्गकिलोमीटर में फैला हुआ था। वर्ष 2019 के सर्दी और गर्मी के दौरान किये गए इस अध्ययन में जानवरों की मौजूदगी को समझने के लिए विभिन्न तरह के तरीके अपनाए गए। जैसे आसानी से नजर आ जाने वाले जीव की गणना सामान्य तौर पर देखकर की गयी। इसमें नीलगाय, सियार और खरगोश जैसे जीव शामिल हैं। दूसरी तरफ, अपेक्षाकृत अधिक शर्मीले स्वभाव के जीव के भी होने का अनुमान था। इनकी गणना के लिए गोबर, नाखून इत्यादि का सहारा लिया गया। इस श्रेणी में तेंदुए, जंगली बिल्ली आदि शामिल हैं।
सर्वे में सामने आया कि इस इलाके में 15 प्रजाति के स्तनपायी पाए गए हैं। सबसे अधिक जीव फरीदाबाद और गुरुग्राम के अरावली जंगल में मिले जहां अपेक्षाकृत अधिक इंसानी गतिविधियां होती हैं। जबकि असोला भाटी के जंगल में संरक्षित क्षेत्र होने के बावजूद कम संख्या में ये जीव देखे गए।
मैसूर नेशनल कंजर्वेशन फाउंडेशन के जीवविज्ञानी संजय गुब्बी कहते हैं कि अधिक संख्या में जीवों के दिखने से यह तय नहीं होता कि उस इलाके में वाकई जीवों की संख्या अधिक है। “तेंदुआ घने जंगलों में कम दिखेगा। इसके विपरीत कम घने जंगल में इसके दिख जाने की संभावना अधिक है क्योंकि इसके पास यहां छिपने की जगह कम होती है। इसका मतलब यह नहीं कि वहां उसकी संख्या अधिक हो,” गुब्बी कहते हैं।
कैमरा ट्रैप की मदद से जानवरों की गिनती के बाद एक रपट 2013 में प्रकाशित हुई थी। इस रिपोर्ट में पाया गया कि जंगल के बजाए खेत वाले इलाके में लकड़बग्घा और तेंदुए की संख्या अधिक पाई गई थी।
हाइवे के पास तेंदुए की आबादी, टकराव रोकना एक बड़ी चुनौती
परिधि जैन ने अपनी 2017 की रिपोर्ट में सुझाया था कि जमीनों के उपयोग के बदलने से जंगल के जीव इंसानी आबादी के आसपास रहने को मजबूर हो रहे हैं।
“हमने अपने अध्ययन में पाया कि तेंदुए जैसे जीव खेत, फैक्ट्री जैसे इंसानी आबादी के आसपास आ जाते हैं, जिससे टकराव की स्थिति बनती है,” जैन कहती हैं।
वर्ष 2014 से 2019 के बीच गुरुग्राम- फरीदाबाद हाइवे पर दो तेंदुए मरे मिले। एक तेंदुए को बिजली का झटका लगा और तीन तेंदुए इंसानों के साथ भिड़ंत में मारे गए। हर्साना कहते हैं कि बीते कुछ वर्षों में तेंदुए के इंसानों पर हमले के मामले भी बढ़े हैं।
वर्ष 2020 में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ जिसमें जंगल की वर्तमान स्थिति स्पष्ट हुई। गुरुग्राम, मेवात और फरीदाबाद जिले में 1996 से लेकर 2018 तक जंगल कम होते गए और खेती का रकबा बढ़ता गया।
“अरावली और असोला भाटी अभयारण्य एक दूसरे के काफी करीब है और एक से दूसरे जंगल के बीच जानवर आवाजाही करते हैं,” कहती हैं नेहा यादव, जो इस अध्ययन की प्रमुख लेखिका हैं।
उन्होंने पाया कि अरावली का जंगल अभी संरक्षित क्षेत्र में शामिल नहीं हुआ है, इसलिए वहां जानवर-इंसान के बीच टकराव अधिक है। कम वर्षा की वजह से अरावली के जंगल सूख भी रहे हैं। जानवर इस वजह से खाने और पानी की तलाश में इंसानी इलाकों में पहुंच जाते हैं, यादव ने बताया।
हर्सना मानते हैं कि स्थानीय समुदाय में वन्यजीवों के प्रति जागरुकता नहीं है। अगर लोगों को जागरुक किया जाए तो टकराव की स्थिति में जानवरों की जान बचाई जा सकती है। अगर सरकार मुआवजा दे तो वन्यजीवों के प्रति लोगों के गुस्से को भी नियंत्रित किया जा सकता है।
गुब्बी कहते हैं कि तेंदुए की मौत के हर मामले को गंभीरता से लेने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो तेंदुए की आबादी पर इसका बुरा असर पड़ेगा। “तेज रफ्तार गाड़ी से टकराकर, बिजली के झटके की वजह से मौत के मामले देश में तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रबंधन नीति बनानी होगी, विशेषकर संरक्षण क्षेत्र के बाहर के लिए,” वह कहते हैं।
दिल्ली के लिए क्यों महत्वपूर्ण है मांगर बनी का जंगल
मांगर बनी मतलब छोटा जंगल। दिल्ली से सटे गुरुग्राम और फरीदाबाद जिले में मांगर बनी का जंगल 2.66 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यहां आसपास के लोग सब्जियां उगाते हैं और जंगल को कटने से रोकते भी है। पवित्र वन का दर्जा मिलने की वजह से अरावली पर्वत श्रृंखला में मांगर बनी सबसे समृद्ध जंगल माना जाता है। सुनील हर्सना और मिशा बंसल ने सीईडीएआर और ईबर्ड के सहयोग से वर्ष 2019 में एक अध्ययन किया था जिसमें सामने आया कि इस जंगल में 219 प्रकार के पक्षियों का बसेरा है। इन पक्षियों में दुर्लभ मानी जाने वाली ग्रे-बेल्ड कोयल, क्रेस्टेड बंटिंग, टिकेल्स ब्लू फ्लाइकैचर, यूरेशियन व्रीनेक, क्रेस्टेड सर्पेंट ईगल, इंडियन पिटा और रेड मुनिया भी शामिल हैं।
ट्रीज ऑफ देल्ही-ए फील्ड गाइड के लेखक प्रदीप कृष्ण कहते हैं कि मांगर बनी का जंगल दिल्ली के लिए बहुमूल्य है और इसे बचाने की हर कोशिश होनी चाहिए।
पर्यावरणविद् चेतन अग्रवाल इस वन को वन्यजीवों के आवाजाही के लिए महत्वपूर्ण कॉरिडोर मानते हैं। असोला भाटी जंगल से दमदमा झील के बीच जानवर इसी जंगल से आते-जाते हैं।
ऐतिहासिक रूप से मांगर पहाड़ी के सामुदायिक क्षेत्र में आता रहा है जिसका नियंत्रण पंचायतें करती रही हैं। लेकिन 1960 के बाद यहां बेतहाशा निजीकरण हुआ। जून 2016 में हरियाणा सरकार ने 670 एकड़ इलाके को कोर और 500 मीटर के दायरे को बफर जोन के रूप में अधिसूचित किया। इस तरह 1200 एकड़ के इलाके को निर्माण मुक्त क्षेत्र माना गया। इस जंगल को बचाने के लिए फिलवक्त यही एक कानूनी संरक्षण मौजूद है।
कृष्ण मानते हैं कि इस तरह से वन को पूरा संरक्षण नहीं मिल पा रहा है।
वर्ष 2012 में केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने हरियाणा सरकार को मांगर बनी को वन्यक्षेत्र मानने का निर्देश दिया था। हालांकि, इसे अब तक लागू नहीं किया जा सका है।
अग्रवाल कहते हैं कि इस जंगल को बचाने के लिए सबसे पहला कदम इसे जंगल का दर्जा देना होगा।
बैनर तस्वीरः अरावली के जंगल में कैमरा ट्रैप में कैद हुई तेंदुए की तस्वीर। (बाएं) मांगर बनी का जंगल। (दाएं) तस्वीर- सुनील हर्सना और प्रदीप कृष्ण