- पिछले एक वर्ष में पूर्वोत्तर राज्यों में वन्यजीव तस्करी के मामलों में एक अलग तरह का रुझान देखा जा रहा है। इन दिनों यूरोप से वन्यजीव तस्करी कर पूर्वोत्तर के रास्ते भारत में लाया जा रहा है।
- भारतीय प्रजातियों की खरीद बिक्री पर पूर्णतः प्रतिबंध होने की वजह से तस्कर अब विदेशी जीवों की तस्करी करने लगे हैं। आशंका जताई जा रही है कि म्यांमार की सीमा से ये जीव पूर्वोत्तर होते हुए भारत के अन्य शहरों में भेजे जा रहे हैं।
- जानकार चिंता जताते हैं कि अन्य देशों के जीव अगर देश के जंगलों में पहुंचे तो उनसे स्थानीय वन्यजीवों के बीच कई बीमारियां भी फैल सकती हैं।
असम के गोलाघाट जिले के घिलाधारी में चुनाव को लेकर चेकपोस्ट पर वाहनों की चेकिंग के दौरान कुछ ऐसा हुआ कि सुरक्षाकर्मी भी चौंक गए। हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में पुलिसकर्मियों ने एक निजी वाहन को रोककर तलाशी लेनी शुरू की। पर पुलिस को उस वाहन में न पैसा मिला शराब की खेप जो अक्सर चुनाव में वोटरों को लुभाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पर उस गाड़ी में कई अनोखे जीव-जंतु मिले जो किसी बड़ी समस्या की तरफ इशारा कर रहे थे।
इसमें मकाउ तोता (macaw), सिल्वरी मर्मोसेट (silvery marmoset) और गोल्डन हेडेड तमरीन (golden-headed tamarin)। आश्चर्य की बात यह थी कि ये जीव भारत या आसपास के देश में नहीं पाए जाते, बल्कि ब्राजील स्थित अमेजन के जंगल में मिलते हैं।
आनन फानन में इसकी सूचना वन विभाग को दी गई और विदेशी जीव-जंतुओं को केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने जब्त किया। इन जीवों को असम स्टेट जू एंड बॉटेनिकल गार्डेन, गुवाहाटी भेजा गया।
सीमा-शुल्क विभाग गोलाघाट के एक अधिकारी ने बताया कि तीन लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है। इसमें मुख्य आरोपी तमिलनाडु से है और अन्य दो मणिपुर से। पूछताछ में गिरफ्तार हुए लोगों ने बताया कि इमा बाजार इम्फाल से उनलोगों ने इन जीवों को खरीदा था।
“हमारा अनुमान है कि यह तस्करी म्यांमार के मोरे से हुई है,’ अधिकारी ने बताया।
असम में हुई यह बरामदगी कोई नई बात नहीं है। बीते एक वर्ष में पूर्वोत्तर राज्यों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं। इसी साल 19 फरवरी को असम रायफल्स और सीमा-शुल्क विभाग ने एक साथ 80 दुर्लभ प्रजातियों के कछुओं के साथ पीला, नारंगी और हरा गोह (yellow, orange and green iguana), दाढ़ी वाले ड्रेगन (bearded dragon) की बरादमगी की। यह कार्रवाई मिजोरम के चंपई में भारत-म्यांमार के सीमा पर स्थित फ्रेंडशिप ब्रिज पर की गई। इसी वर्ष 27 जनवरी को राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने 30 दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों और अफ्रीका के प्राइमेट्स सूची में शामिल लाल कान वाले बंदर (red-eared guenon) मिजोरम के कोलासिब जिला के वैरेंगटे से बरामद किया।
पिछले साल जुलाई में ऑस्ट्रेलिया का एक कंगारू, अमेरिका के छह नीला मकाउ और दो सफेद मुंह वाले कैपुचिन बंदर और (Capuchin Monkeys) और तीन एल्डबरा कछुआ (Aldabra tortoises) की बरामदगी लैलापुर से हुई। लैलापुर असम और मिजोरम की सीमा पर बसा काचर जिले का एक छोटा कस्बा है।
“विदेश की दुर्लभ प्रजातियों को तस्करी के माध्यम से भारत में लाने का चलन बढ़ रहा है। भारतीय प्रजातियों की खरीद-फरोख्त पर प्रतिबंध की वजह से विश्व के दूसरे हिस्सों के जीवों को यहां लाया जा रहा है। इन जीवों को दक्षिणी पूर्व एशिया, यूरोप से बैंकॉक, मलेशिया होते हुए पूर्वोत्तर राज्यों के जरिए देश के बड़े शहर जैसे कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, दिल्ली, बैंगलुरु, मुंबई और कोची जैसे शहरों में भेजा जाता है,” डीआरआई ने 2019-20 के एक रिपोर्ट ‘स्मगलिंग इन इंडिया’ में कहा गया है।
वन्यजीव तस्करी को रोकने का काम करने वाली ट्रैफिक नामक गैर सरकारी संस्था के भारत के प्रमुख साकेत बडोला कहते हैं कि विदेश से दुर्लभ जीवों को भारत तस्करी कर लाना कोई नया रुझान नहीं है। उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी से कहा, “दरअसल, भारत बीते कुछ समय से वन्यजीवों की मांग बड़ी है। लोग दिखावे के लिए दुर्लभ प्रजाति के जीवों को पाल रहे हैं। भारत में पाले जाने वाले दुर्लभ जीवों में से अधिकतर अंतरराष्ट्रीय कानूनों के लिहाज से गैरकानूनी हैं।”
“कानून को लागू कराने वाली हमारी संस्थाएं वन्यजीवों पर होने वाले अपराधों को लेकर काफी सजग हो गई हैं। इस वजह से बरामदगी देखने को मिल रही है। इन अपराधों के रोकथाम के लिए काफी लंबे समय से प्रयास चल रहे थे, जिसका फल मिलना अब शुरू हुआ है। हालांकि, इस क्षेत्र में मांग भी अब काफी बढ़ गई है। पुणे जैसे शहरों में दुर्लभ प्रजातियों के जीवों का प्रजनन कराने के मामले भी सामने आए हैं,” वन्यजीव अपराध पर काम करने वाले राहुल दत्त कहते हैं।
क्या सरकारी नियम से तेज हुई तस्करी?
देश में बढ़ते दुर्लभ जीवों के बेरोक-टोक व्यापार को देखते हुए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वर्ष 2020 में एक एडवायजरी जारी कर लोगों से उनके दुर्लभ जीवों को पंजीकृत कराने को कहा।
इंडियास्पेंड की एक रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी 2021 तक 32,645 भारतीयों ने उनके दुर्लभ जीवों की जानकारी सरकार से साझा की। पहले जानकारी साझा करने की समयसीमा दिसंबर 2020 ही थी, जिसे बाद में बढ़ाकर मार्च 2021 कर दिया गया।
वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (डब्लूसीसीबी) के क्षेत्रीय उपनिदेशक अग्नि मित्रा ने मोंगाबे-हिन्दी से कहा कि बढ़ी हुई बरामदगी के पीछे यह एडवायजरी एक वजह हो सकती है।
“पहले बंगलादेश से मेघालय, असम और पश्चिम बंगाल के बॉर्डर पर तस्करी होती थी। इस एडवायजरी की वजह से दुर्लभ जीव पालने वाले लोगों की हिम्मत बढ़ गई और उन्हें लगा कि वह इस दौरान जीव खरीदकर सरकार से जानकारी साझा कर लेंगे। इस तरह उनसे कोई सवाल भी नहीं पूछा जाएगा। इस जल्दबाजी में बॉर्डर पर ऐसे जीवों की तस्करी बढ़ सकती है,” वह कहते हैं।
क्या पूर्वोत्तर राज्य बन रहे वन्यजीव तस्करी का अड्डा
पिथले एक वर्ष में मिजोरम में सबसे अधिक दुर्लभ जीव तस्करी होते हुए बरामद किए गए। मिजोरम की सीमा बांग्लादेश और म्यांमार से लगती है।
काचर के डीएफओ सनीदेव चौधरी कहते हैं कि तस्करी करते पकड़े गए आरोपियों ने कहा कि उन्होंने मिजोरम से ही ये जीव खरीदे थे। उससे आगे-पीछे का उन्हें पता नहीं था।
“हमने जीवों के साथ म्यांमार और थाईलैंड के साबुन बरादम किए जिससे लगता है कि इनका वहां से कोई संबंध है। हमारे पास यह साबित करने के पर्याप्त सबूत नहीं हैं,” चौधरी कहते हैं।
कानूनी पेंच से बच रहे तस्कर
पिछले वर्ष पकड़े गए दो आरोपी को गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने जमानत देते हुए कहा यह बरामदी वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत नहीं आता इसलिए इन्हें जमानत दी जा रही है।
भारत में वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972 के तहत विदेश के वन्यजीवों को शामिल नहीं किया गया है। इस तरह विदेशी वन्यजीवों की खरीद-फरोख्त में शामिल लोग आसानी से बच निकलते हैं।
“इस कानून का उद्देश्य भारत के वन्यजीवों को बचाना है। तस्करी के मामलों में कस्टम एक्ट के तहत कार्रवाई होती है। अगर कोई विदेशी प्रजाति का दुर्लभ जीव देश की सीमा के 100 किलोमीटर भीतर हो तो यह साबित करना मुश्किल है कि यह तस्करी कर लाया गया है। और इस तरह कस्टम एक्ट प्रभावी नहीं होता। कानूनी दाव-पेंच की वजह से तस्करी में संलिप्त लोग बच निकलते हैं,” मित्रा करते हैं।
दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीव देश में आने के क्या हैं खतरे
कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारी फैलने के बाद जानवरों से होने वाली बीमारियों के बारे में दुनिया सजग हुई है। गैरकानूनी रूप से तस्करी के माध्यम से लाए जाने वाले जीवों के मामले में सावधानी नहीं बरती जाती। इससे नए संक्रमण के फैलने की आशंका बनी रहती है।
बडोला कहते हैं कि अगर कोई जानवर तस्करी से सिर्फ बीमारियां को खतरा नहीं रहता, बल्कि अगर वे कैद से भाग जाएं तो स्थानीय प्रजाति पर भी खतरा रहता है।
“भारत में अमेरिकी लाल कान वाले कछुए पाले जाते हैं। चंडीगढ़ के सुखना लेक में इन कछुओं ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है। जैसे जंगल में लैंटाना झाड़ियों ने कर लिया है,” वह कहते हैं।
बरामद जानवरों को वापस उनके देश छोड़ना एक बड़ी चुनौती
असम स्टेट जू के डीएफओ तेजस माटीस्वामी कहते हैं कि इन्हें वापस इनके देश छोड़ने की लंबी कानूनी प्रक्रिया है जिसमें समय लगता है।
सबसे अधिक चुनौती इनके मूल देश को खोजने की होती है।
मित्रा कहते हैं कि जिस देश का जीव होता है उसी देश को जीव के घर-वापसी का खर्चा उठाना पड़ता है। हालांकि, बरामद हुए अधिकतर जीव फार्म में पैदा किए गए होते हैं। भारत में अगर कोई कंगारू बरामद होता है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह ऑस्ट्रेलिया से ही हो। किसी दूसरे देश के गैरकानूनी फार्म में उसे पैदा किया गया होगा।
बैनर तस्वीरः लैलापुर में बरामद हुए नीला मकाउ और कंगारू। लैलापुर असम और मिजोरम की सीमा पर बसा काचर जिले का एक छोटा कस्बा है। तस्वीर- काचर वन मंडल