- छत्तीसगढ़ में 121 वन्यजीव गलियारों को चिन्हित किया गया है। इनमें से 14 गलियारों को विशेष तौर पर चुना गया है। ये गलियारे एक जंगल को दूसरे से जोड़ेंगे ताकि वन्यजीव आसानी से आवागमन कर सकें।
- इस काम को मुंबई स्थित एक गैर लाभकारी संस्थान की मदद से किया जा रहा है। प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद बाघ के अलावा दूसरे वन्यजीव भी निर्भिक होकर जंगल-जंगल घूम सकेंगे।
- कई गलियारों के रास्ते में विकास की परियोजनाएं जैसे सड़क और खदान बन गए हैं। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से ऐसे क्षेत्र में काम किया जाएगा और जंगलों को पुनः जोड़ा जाएगा।
- जानकार मानते हैं कि दो जंगलों के बीच कॉरीडोर या गलियारा दुरुस्त होने से बड़े इलाके में रहने वाले जीवों का बेहतर संरक्षण हो सकेगा।
वाइल्डलाइफ कॉरीडोर यानी दो बड़े जंगलों को जोड़ने वाला एक ऐसा वन गलियारा जिससे होकर जानवर आसानी से एक से दूसरे जंगल में जा सकें। इस गलियारे में जंगल जैसा माहौल होता है और इंसानी गतिविधि भी नहीं होती जिससे जानवर बैखौफ होकर घूम सकते हैं। ये गलियारे प्राकृतिक रूप से बने होते हैं लेकिन वर्तमान विकास के मॉडल की वजह से इनका स्वरूप बिगड़ा है और वन्यजीवों की मुश्किलें बढ़ी हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार ने इन गलियारों के संरक्षण, निगरानी और प्रबंधन के लिए एक योजना बनाई है। इसके लिए कैंपा (कंपन्सेटरी एफॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग ऑथोरिटी) प्रदेश में ऐसे कॉरिडोर को चिन्हित कर रही है।
इस प्रोजेक्ट को दो बड़ी प्रजाति के जीव, हाथी और बाघ को ध्यान में रखकर तैयार किया जा रहा है। ये जीव अक्सर इन गलियारों का इस्तेमाल कर खाने और नए इलाके की तलाश में जंगल-जंगल भटकते रहते हैं। इनके अलावा, तेंदुए, स्लॉथ बियर और जंगली भैसें भी इसका इस्तेमाल करते हैं।
अबतक 121 कॉरीडोर को चिन्हित किया गया है जिसे वन विभाग विकसित करेगा। इसमें से 14 गलियारों को प्रमुखता दी गई है और इसके निर्माण को विभाग अधिक तवज्जों देगा।
वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्लूआईआई) भी गलियारों को विकसित करता है, लेकिन छत्तीसगढ़ का प्रोजेक्ट इनसे इतर है।
छत्तीसगढ़ कैंपा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रीनिवास राव ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि देहरादून स्थित डब्लूआईआई ने कुछ वक्त पहले इस तरह का प्रोजेक्ट शुरू किया था, लेकिन इसमें कॉरीडोर का प्रबंधन और संरक्षण शामिल नहीं था। इसले अलावा, उनके प्रोजेक्ट में गलियारा सिर्फ बाघों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है।
“छत्तीसगढ़ की योजना देश में अपने आप में नई है। देश में कई जंगल हैं जो अलग-थलग हैं। इसके मूल में हैं खनन, सड़क परियोजनाएं इत्यादि। हमारी इस मुहीम में हम ऐसे अलग-थलग पड़े जंगलों को आपस में जोड़ेंगे। कैंपा में इस तरह के काम का प्रावधान है। हमने 2020-21 के ऑपरेशनल प्लान में इस योजना को शामिल किया है। इस समय हम जमीन पर योजना को उतारने की तैयारी कर रहे हैं,” उन्होंने कहा।
राव ने बताया कि मुंबई स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था के निदेशक शिवराज चवन ने राज्य को इस प्रोजेक्ट का खांचा तैयार करने में मदद किया।
छत्तीसगढ़ का सबसे महत्वपूर्ण जंगल गलियारा कान्हा-अचानकमार कॉरीडोर है।
“हम विकास चाहते हैं, लेकिन साथ में अपना मूल भी बचाना चाहते हैं। इस समय एक टाइगर रिजर्व से दूसरे के बीच आने-जाने की सुविधा नहीं है। वन विभाग राज्यभर में जंगलों को एक दूसरे से जोड़ना चाहती है। अगर भारत सरकार अनुमति देती है तो हम ओडिशा और झारखंड के जंगलों से भी छत्तीसगढ़ के जंगलों को जोड़ेंगे। इन राज्यों से हाथी छत्तीसगढ़ में आते हैं। फिलहाल सिर्फ राज्य के भीतर ही जंगलों को जोड़ा जाएगा,” उन्होंने कहा।
पहली प्राथमिकता अचानकमार टाइगर रिजर्व और भोरमदेव वाइल्डलाइफ सेंचुरी को जोड़ने की होगी। ये जंगल मुंगेली और कबीरधाम जिले में हैं। इसके बाद मध्यप्रदेश के कान्हा और छत्तीसगढ़ के भोरमदेव के बीच के प्राकृतिक कॉरीडोर को विकसित किया जाएगा। इस काम के लिए पहले चरण का बजट 20 करोड़ रुपए रखा गया है।
जमीनी तैयारियां शुरू
इस प्रोजेक्ट को जमीन पर उतारने के लिए ट्रेनिंग के कई कार्यक्रम बिलासपुर, सरगुजा, रायपुर और दुर्ग फॉरेस्ट सर्कल में शुरू किए गए हैं।
बिलासपुर डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर कुमार निशांत कहते हैं कि जनवरी-फरवरी में कर्मचारियों के लिए ट्रेनिंग वर्कशॉप का आयोजन हुआ। बिलासपुर के कोटा क्षेत्र का अध्ययन किया गया, क्योंकि यह इलाका कॉरीडोर में शामिल है।
“सरकार चाहती है कि जंगल के ये गलियारे अपने प्राकृतिक स्थिति में दोबारा आ जाएं। जमीनी तैयारी के तौर पर हमने आंकड़े और जानकारियां इकट्ठी की है जो कि प्रोजेक्ट के दौरान काम आएंगे। इन जानकारियों में शिकार, पानी की उपलब्धता और बिजली लाइन गुरजने की जानकारियां शामिल हैं। रेलवे लाइन की वजह से भी कॉरिडोर में बाधा आ रही है। विभाग की कोशिश है कि रोजगार के नए अवसर पैदा कर स्थानीय समुदाय की जंगल पर निर्भरता कम की जाए। हमने इसके लिए मछलीपालन जैसी कोशिशें भी की हैं,” निशांत कहते हैं।
वाइल्डलाइफ एंड वी के चवान ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि जंगल एक दूसरे से कट गए हैं जिससे कॉरीडोर का महत्व समझ आ रहा है। इस तरह से जानवरों के बीच जेनेटिक आदान-प्रदान होगा, जिससे उनकी नई नस्ल स्वस्थ पैदा होंगी। इस तरह का विकास बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए जरूरी भी है।
“हम कान्हा-अचानकमार कॉरीडोर को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। जंगल एक दूसरे से कट गए हैं और एक ऐसा रास्ता होना चाहिए ताकि जानवर एक जंगल से दूसरे जंगल आ और जा सकें,” चवान कहते हैं।
इंसानी आबादी के बढ़ने की वजह से जंगलों में बिखराव हुआ है और इसे वापस पहले की स्थिति में लाने के लिए स्थानीय समुदाय को साथ लेना जरूरी है, चवान ने कहा।
क्यों महत्वपूर्ण है जंगल का गलियारा?
आखिर जंगलों के बीच आवाजाही के लिए गलियारा इतना जरूरी क्यों है? इस सवाल का जवाब देते हुए डब्लूडब्लूएफ इंडिया की कनेक्टिविटी कंजर्वेशन की कॉर्डिनेटर प्राची थाटे कहती हैं, “बड़े इलाकों में विचरण करने वाले जीव तभी लंबे समय तक जंगल में रह पाएंगे, जब उन्हें एक बड़ा इलाका मिले। इसके लिए एक जंगल से दूसरे के बीच आने-जाने का माध्यम जरूरी है। उदाहरण के लिए, जानवर अपने जन्म स्थान को छोड़कर कहीं दूर जाते हैं ताकि उन्हें खाने-पीने के साथ प्रजनन के लिए भी अलग अनुवांशिक गुणों वाला साथी मिले। इस बात पर उनके बच्चों का स्वास्थ्य भी निर्भर करता है,”
सिर्फ टाइगर कॉरीडोर पर ध्यान होने की बात पर उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया सिर्फ बड़े जानवरों के संरक्षण को केंद्र में रखकर सोच रही है। यह एक तरह का भेदभाव है, जो कि वैश्विक स्तर पर चल रहा है।
“भारत में बाघ संरक्षण पर काफी निवेश किया गया है, इसलिए पूरा ध्यान बाघ के लिए गलियारा विकसित करने पर है। हाथियों पर भी काफी काम हो रहा है। इन दोनों प्राणियों के संरक्षण पर ध्यान दिया जाए तो जंगल के दूसरे जीव भी प्राकृतिक माहौल में संरक्षण पाते रहेंगे। हालांकि, एक ही प्रजाति को ध्यान में रखकर संरक्षण की नीतियां बनाने से कई बार कई दूसरे महत्वपूर्ण जीव संरक्षण से अछूते रह जाते हैं। होना यह चाहिए कि संरक्षण की योजना बनाते समय कई दूसरी प्रजाति के जीवों को भी ध्यान में रखा जाए क्योंकि हर जीव की जरूरत अलग-अलग होती है,” उन्होंने आगे कहा।
डब्लूआईआई के पूर्व डायरेक्टर विश्वास सावरकर कहते हैं कि बाघ एक प्रतिष्ठित प्रजाति है। “बाघ काफी संवेदनशील होता है और इसे आने-जाने के लिए बेहद शांत और प्राकृतिक माहौल चाहिए। हालांकि, जंगल के कई दूसरे जीवों पर भी यह बात लागू होती है,” उन्होंने कहा।
सावरकर के मुताबिक छत्तीसगढ़ ने कॉरीडोर की पहचान के लिए वैज्ञानिक तरीका अपनाया है। “कोर एरिया का निर्माण एक बेहतर संरक्षण और प्रबंधन सुनिश्चित करता है। छत्तीसगढ़ ने इन गलियारों को बनाने के लिए जो नीतियां बनाई है वह भविष्य में दूसरे जंगलों के लिए आदर्श बन सकता है। अगर नीति के मुताबिक चले तो जंगलों के बीच जानवरों का आपसी मेल-जोल बढ़ेगा, जो कि वर्षों पहले टूट चुका है,” वह कहते हैं।
बैनर तस्वीरः छत्तीसगढ़ में वन गलियारा बनाने के प्रोजेक्ट को जमीन पर उतारने के लिए ट्रेनिंग के कई कार्यक्रम बिलासपुर, सरगुजा, रायपुर और दुर्ग फॉरेस्ट सर्कल में शुरू किए गए हैं। इस काम को मुंबई स्थित एक गैर लाभकारी संस्थान की मदद से किया जा रहा है। तस्वीर- छत्तीसगढ़ वन विभाग