- दक्षिण बिहार के मगध प्रमंडल की दो प्रमुख नदियां – फल्गु और दरधा बारहमासी नदियां थी। इन नदियों के बारे में कहा जाता था कि भीषण गर्मी में भी अगर कोई नदी के सतह पर मामूली खुदाई कर दे तो पानी निकल आता था।
- वर्ष 2015 में बृजनंदन पाठक की याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने प्रशासन को तीन कदम फौरी तौर पर उठाने का आदेश दिया था। नदी के दोनों ओर हुए अवैध निर्माण को तत्काल ध्वस्त किया जाए। शहर की गंदगी जो फल्गु में बहायी जा रही है, उसपर रोक लगाया जाए। साथ ही हाई कोर्ट ने नदी में बांध बनाने का आदेश दिया। कोर्ट का अंदाज़ा था कि बांध से बारिश के पानी को अत्यधिक रोका जा सकेगा।
- विशेषज्ञ गजेटियर के हवाले से नदी की संरचना पर टिप्पणी करते हैं। मगध क्षेत्र की भौगोलिक संरचना, इतिहास और कुछ प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं के हवाले से कहा जाता है कि एक समय पर ये नदियां सालों भर बहती थी। नदी की चौड़ाई भी नदी में सालोंभर पानी बहने की तस्दीक करती है,” नव पहचान वेलफेयर सोसायटी के संस्थापक मनोज कुमार कहते हैं।
अप्रैल में जब गया का तापमान अप्रैल में ही 40 डिग्री सेल्सियस पार कर चुका था और मोबाईल पर कोरोना से बचने के लिए बार-बार हाथ धोने की सलाह दी जा रही थी तब गया जिले के विष्णुपद क्षेत्र में रहने वाली 36-वर्ष की सरिता देवी अपने घर से सौ मीटर की दूरी पर लगे सरकारी नल से पीने के लिए पानी का बंदोबस्त हो जाए- इसके लिए संघर्ष कर रहीं थीं।
इनके रोजाना के संघर्षों में उस नल से बीस-बीस लीटर वाले पानी के तीन जार भरना भी शामिल है। सुबह सात-साढ़े सात बजे तक ही पानी आता है। किसी भी दिन देर होने का मतलब है लाइन में पीछे हो जाना और कभी-कभार तो बिना पानी लिए लौटना।
मई-जून में जब तापमान 45-46 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है तो अधिकतर लोग सरकारी टैंकर के आसरे अपनी प्यास बुझाते हैं। जिनके घरों में बोरिंग हुई है उनका बोरिंग फेल लगता है। इस साल अप्रैल में ही यह सिलसिला शुरू हो गया।
“अभी सप्ताह में दो बार नगरपालिका वाले पानी का टैंकर भेज रहे हैं। ये हालात तब हैं जब सरिता का घर फल्गु नदी के पास है। “फल्गु के बारे में मशहूर था कि यहां कभी भी एक हाथ बालू खानो (खुदाई करो) तो पानी निकलता है। लेकिन अब यह बस कहावतों में मौजूद है। अब तो छठ में जेसीबी से खोदने होने पर भी ढंग से पानी नहीं निकलता है,” सरिता देवी कहती हैं।
मगध प्रमंडल में आने वाले जहानाबाद ज़िले की भी कमोबेश यही स्थिति है। जाफरगंज इलाके में रहने वाले 74 वर्षीय नंद किशोर दरधा नदी को याद करते हैं। “हमलोग तो दरधा का पानी तक पीए हैं। नहाना, धोना सब दरधा में ही होता था। अब तो यहां से (दरधा से) लोग बालू निकाल लेते हैं और इसमें कचरा फेंक देते हैं,” नंद किशोर कहते हैं। वह नदी के अतिक्रमण और प्रशासन के ढुलमुल रवैये से नाखुश हैं। कहते हैं, “नदी को हड़पा जा रहा है और इन लोग (स्थानीय प्रशासन) भी उसमें साथ दे रहा है।”
आजकल किसी को फोन करने पर कॉलर ट्यून के तौर पर कोरोनावायरस से बचने के लिए “हाथ धोते रहें” की सलाह दी जाती है, 28 वर्षीय सुदेश महतो हंसते हुए कहते हैं और पूछते हैं कि बार-बार हाथ धोने के लिए पानी कहां से लाएंगें?
इन कहानियों से दक्षिण बिहार के मगध प्रमंडल में बढ़ते पानी की किल्लत का एहसास होता है। इस क्षेत्र की दो प्रमुख नदियां – फल्गु और दरधा- कभी बारहमासी हुआ करती थीं। इन नदियों के बारे में कहा जाता था कि भीषण गर्मी में भी अगर कोई नदी को हल्की खुदाई कर दे तो पानी निकल आता था।
हालांकि इन नदियों के बारहमासी कहे जाने को लेकर विवाद भी रहा है। पर सरकारी गजेटियर और नदियों की चौड़ाई देखकर अनुमान लगाया जाता है कि ये नदियां बारहमासी थी लेकिन समय के साथ इकोलॉजी में बदलाव के कारण बरसाती हो गईं। नदियों के चरित्र में आमूलचूल बदलाव के लिए विशेषज्ञ और स्थानीय कार्यकर्ता गलत नीतियों और सरकारों के लापरवाह रवैये को दोषी मानते हैं।
‘बारहमासी’ से ‘बरसाती’ होने का सफर
बृजनंदन पाठक ने मगध की नदियों पर अध्ययन किया है। फल्गु को लेकर तो वे पटना हाई कोर्ट में जनहित याचिका भी कर चुके हैं। उनके अनुसार, “फल्गु में भीषण अतिक्रमण जारी है। बेतहाशा बालू खनन हो रहा है जिससे नदी की प्राकृतिक संरचना को भारी नुकसान पहुंचा है।”
वर्ष 2015 में बृजनंदन पाठक की याचिका पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने प्रशासन को तीन कदम फौरी तौर पर उठाने का आदेश दिया था। नदी के दोनों ओर हुए अवैध निर्माण को तत्काल ध्वस्त किया जाए। शहर की गंदगी जो फल्गु में बहायी जा रही है, उसपर रोक लगाया जाए। साथ ही हाई कोर्ट ने नदी में बांध बनाने का आदेश दिया। कोर्ट का अंदाज़ा था कि बांध से बारिश के पानी को अत्यधिक रोका जा सकेगा।
बृजनंदन पाठक बताते हैं कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद सरकार का रवैया “ढ़ाक के तीन पात” वाला ही रहा। लिहाजा सरकार पर कोर्ट की अवमानना की सुनवाई भी चल रही है।
शहरवासियों से बात करने पर मालूम पड़ता है कि नदी में नाले का पानी बहना बंद तो नहीं ही हुआ बल्कि एक और नाले को नदी में जोड़ दिया गया है। बांध बनाने की दिशा में कार्य प्रगति पर है। मगध क्षेत्र में पेयजल की समस्या के निवारण के लिए बिहार सरकार मोकामा से गंगा का पानी पाईपलाइन से जरिए गया और नालंदा लाने की योजना पर काम कर रही है। योजना का नाम है गंगा वाटर लिफ्ट स्कीम। इस योजना के बारे में आगे बात करेंगे।
वापस वर्ष 2019 में पटना हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय व न्यायमूर्ति पार्थसारथी की खंडपीठ ने राधेश्याम शर्मा की जनहित याचिका पर कार्रवाई करते हुए गया के जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि फल्गु नदी को अतिक्रमण मुक्त करवाया जाए। कोर्ट ने जिला प्रशासन को अवैध निर्माणों पर जांच के तत्काल आदेश भी दिया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया था कि एक तो नदी में शायद ही पानी रहता है और ऊपर से किनारों पर अवैध कब्जा और स्थायी निर्माण से पूरी नदी लुप्त होने की कगार पर है।
अवैध निर्माण हटाने के नाम पर गाहे-बगाहे जिला प्रशासन अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाता रहता है। हालांकि जो लोग नदी के किनारे इन बसावटों में रहते हैं उनका कहना है कि जब प्रशासन की अनुमति से ही ये घर बने हैं तो अब इसे अवैध कैसे कहा जा सकता है? वे मकान का टैक्स भी सरकार को भरते ही हैं। कई मामले सिविल कोर्ट में लंबित हैं। कोर्ट ने स्टे ऑर्डर दे रखा है।
“उत्तर बिहार की नदियों पर खूब शोध हुए हैं क्योंकि वहां सलाना बाढ़ आती है। जान-माल का नुकसान होता है। अफसोस कि दक्षिण बिहार की नदियों पर शोध का अभाव है। इन सूखापरस्त नदियों को लेकर बुजुर्गों के पास अपनी स्मृतियां हैं, जो महज़ ओरल हिस्ट्री है,” नव पहचान वेलफेयर सोसायटी के संस्थापक मनोज कुमार कहते हैं। यह संस्था बीते कुछ वर्षों से पौधरोपण अभियान चला रही है। यह संस्था नदियों के कैचमेंट एरिया में भी पौधे लगाने का विचार कर रही है।
मगध की जल संयजन पद्धति
चूंकि दक्षिण बिहार के मगध क्षेत्र का बड़ा भाग पठार क्षेत्र है इसीलिए यहां जल संचयन की विशिष्ट व्यवस्था हुआ करती थी। वह व्यवस्था थी अहर-पईन और तालाबों की। अहर पईन से ही सिंचाई हुआ करती थी। पईन मगध क्षेत्र की एक पारंपरिक व्यवस्था है जिसका इस्तेमाल सिंचाई के साथ-साथ पेयजल के लिए भी किया जाता है। इसका निर्माण प्राकृतिक ढाल के अनुरूप होता है। इसे तैयार होने में कई वर्ष लगते हैं।
मगध क्षेत्र की नदियों में पानी नहीं रहने की एक वजह पईनों को भी बताया जाता है। नदी के पानी को पईनों के जरिए सिंचाई के लिए खेतों की ओर मोड़ दिया गया है।
मगध क्षेत्र में अहर पईन की व्यवस्था को बहाल करने की कोशिश कर रहे हैं रवींद्र पाठक। उन्होंने इसके लिए मगध जल जमात का गठन किया है। उनकी पहल से शहर में कई तालाबों का जीर्णोद्धार भी हुआ है। साथ ही नए तालाब भी बनाए गए हैं। “चूंकि पईन में पानी का संचयन बरसात के ही दिनों में होता है। कभी-कभी झील और नदियों का भी पानी उसका श्रोत होता है। पईन का ढाल भौगोलिक स्थितियों के मुताबिक होता है। पईन में पानी आने की संभावना जहां से भी होगी उसे मेन इनपुट प्वाइंट से जोड़ दिया जाता है,” रविंद्र बताते हैं।
मगध में आधे से अधिक ज़मीन पथरीली होने के कारण शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में पानी की समस्या है। भूजल के स्तर गिरने से यह समस्या और भी गहराती ही जा रही है। पारंपरिक व्यवस्थाएं खत्म होने के साथ-साथ नदियों के जीर्णोद्धार पर ध्यान न दिया जाना भी समस्या को विकट बनाता जा रहा है।
मगध की प्यास के लिए गंगा वाटर लिफ्ट स्कीम
बिहार सरकार के जल जंगल हरियाली मिशन के अंतर्गत गंगा वाटर लिफ्ट स्कीम (गंगा उद्भव योजना) को वर्ष 2019 में राज्य कैबिनेट ने मंजूरी दी थी। मोकामा के हाथीदह से गंगा का पानी दक्षिण बिहार के गया, नवादा, राजगीर और बोधगया लाने की योजना है। 190 किलोमीटर लंबी पाइप लाइन के जरिए पानी इन शहरों में पहुंचाया जाएगा। इस संबंध में गया के तेतर (18.53 एमसीएम) और अबगिल्ला पहाड़तल्ली में (1.29 एमसीएम) की क्षमता के जलाशय अंतिम चरण में हैं। बिहार सरकार का मत है कि इससे सूखाग्रस्त मगध प्रमंडल के जिलों में पेयजल की समस्या का निदान होगा। जून 2021 तक योजना का पहला चरण पूरा होने की उम्मीद है। पहले चरण में बिहार सरकार इस योजना पर 2,836 करोड़ रुपये खर्च कर रही है।
बृज नंदन पाठक को सरकार की यह पहल पर्यावरण के लिहाज से पसंद नहीं आती। वह शहर के ही अंदर मौजूद जल संचयन के कई तरीके बताते हैं। उनके अनुसार, शहर के अंदर कई संभावनाएं हैं जल संचयन की। “बरसात के दिनों में गया में अच्छी-खासी बारिश होती है। उन दिनों फल्गु में अत्यधिक जल होता है। अगर इस पानी को दंडीबाग और ब्रह्मजोनी पहाड़ी क्षेत्र में रोका जाए तो शहर की एक बड़ी आबादी के पेयजल की समस्या का अंत हो सकता है,” वह कहते हैं।
“सरकार शहर की पेयजल समस्या के निदान पर हज़ारों-करोड़ रुपये लगा रही है। लेकिन शहर के भीतर मौजूद संसाधनों पर गौर नहीं कर रहे। दंडीबाग में बहुत सारे पंपिंग स्टेशन लगे हैं। बोतल बंद पानी कंपनियों का उत्पादन उनके सहारे हो रहा है। लेकिन भारी भरकम खर्चा करके मगध में सैकड़ों किलोमीटर दूर से पानी लाया जा रहा है,” वह जोड़ते हैं।
रवींद्र पाठक भी बृज नंदन पाठक के जल संचयन की बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं। उनके अनुसार, मृत प्राय तालाबों को जीवित करने की कोशिश करनी चाहिए। “सारे शहर में निजी बोरिंग का जैसे जाल बिछ चुका है। दो-दो, तीन-तीन सौ फीट के बोरिंग हैं। आज न कल इन्हें फेल होना ही है। इसलिए जरूरत है कि शहरों की जो भौगोलिक स्थितियां हैं, उन्हें ध्यान में रखकर पारंपरिक तरीकों को पुनर्जीवित किया जाए।”
बैनर तस्वीरः बिहार के गया में फल्गु नदी की तस्वीर। यहां नदी में पानी कम होने के साथ-साथ सीवेज की वजह से यह दूषित भी है। तस्वीर– इंडिया वाटर पोर्टल/फ्लिकर