साबुन-शैम्पू से लेकर खाद्य पदार्थ तक, कहां नहीं है पाम ऑयल!

मिजोरम के मामित जिला स्थित डम्पा टाइगर रिजर्व के पास के जंगल पर खजूर के पौधे लगाए जा रहे हैं। इस स्थान पर कभी झूम शैली में खेती होती थी जिसमें एक स्थान को सिर्फ तीन साल के लिए ही खेती के इस्तेमाल में लाया जाता है। खजूर की खेती में काफी समय लगता है और पानी की खपत भी अधिक होती है। तस्वीर– टीआर शंकर रमन/विकिमीडिया कॉमन्स

1963 में गठित, एसईएआई में कुल 875 सदस्य हैं, जिनमें देश की कुछ सबसे बड़ी वनस्पति तेल उत्पादक कंपनियां भी शामिल हैं। इनकी संयुक्त तिलहन और तिलहन प्रसंस्करण वार्षिक क्षमता लगभग तीन करोड़ टन के बराबर है।

भारत पाम ऑयल के लिए मलेशिया और इंडोनेशिया पर निर्भर है। सालाना होने वाले कुल पाम ऑयल आयात का 90 फीसदी इन्हीं दो देशों से आता है। उदाहरण के लिए, 2019 में, भारत द्वारा आयात किए गए कुल एक करोड़ टन पाम ऑयल में से करीब 90 लाख टन इन्हीं दोनों देशों से आए।

भारतीय उद्योग इन दोनों देशों में पाम-ऑयल की वजह से हो रहे वनों की कटाई और अन्य पर्यावरण संबंधी क्षरण से अवगत हैं। पर्यावरण और संरक्षण पर काम करने वाले समूहों के दबाव की वजह से ही सही उद्योग जगत भी मलेशिया और इंडोनेशिया में पाम-ऑयल के उत्पादन में सही तरीके के इस्तेमाल पर जोर दे रहा है। इसको लेकर आवाज उठा रहा है।

दक्षिण भारत पाम ऑइल के उत्पादन में देश में अग्रणी है। देश में होने वाले पाम ऑयल के कुल उत्पादन (278,000 टन) का 95 प्रतिशत उत्पादन आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में होता है। तस्वीर साभार- ऑइल पाम इंडिया लिमिटेड
दक्षिण भारत पाम ऑयल के उत्पादन में देश में अग्रणी है। देश में होने वाले पाम ऑयल के कुल उत्पादन (278,000 टन) का 95 प्रतिशत उत्पादन आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में होता है। तस्वीर साभार- ऑयल पाम इंडिया लिमिटेड

बल्कि  2017 में एसईएआई की सालाना बैठक में,  पाम ऑयल के वैल्यू-चेन में प्रकृति और मानवाधिकार से जुड़े मुद्दे पर ध्यान बनाये रखने और उसे सुधारने के लिए सतत प्रयास करने हेतु इंडियन पाम ऑयल सस्टेनेबिलिटी (आईपीओएस) फ्रेमवर्क की शुरुआत की गयी। इसके बाद, 2018 में, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया, आरएसपीओ, सेंटर फॉर रिस्पॉन्सिबल बिजनेस (सीआरबी) और रेनफॉरेस्ट एलायंस (आरए) द्वारा भारत के लिए सस्टेनेबल पाम ऑयल कोएलिशन (इंडिया-एसपीओसी) की शुरुआत की गयी।

पिछले कुछ वर्षों में, भारत में काम कर रही कई भारतीय कंपनियों व अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने पाम-ऑयल उत्पादन और वैल्यू-चेन क्षेत्र में पर्यावरण और मानवाधिकार जैसे मुद्दों को सुधारने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है।

भारत में खाद्य तेल में पाम ऑयल का प्रतिशत। ग्राफ- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे
भारत में खाद्य तेल में पाम ऑयल का प्रतिशत। ग्राफ- कार्तिक चंद्रमौली/मोंगाबे

मार्च 2021 में एसईआईए के द्वारा आयोजित एक वेबिनार के दौरान, शतद्रु चट्टोपाध्याय ने जोर देकर कहा था कि भारत में पाम ऑयल के उत्पादन में इन मुद्दों को ध्यान में रखने की जरूरत है। इसके लिए उन्होंने एक ऐड्वोकेसी कैम्पैन की जरूरत पर बल दिया। मलेशिया सस्टैनबल पाम ऑयल सर्टफिकैशन प्रोग्राम की तर्ज पर, जो लगातार वहां इन मुद्दों पर काम कर रहा है। चट्टोपाध्याय सॉलिडेरिडाड नेटवर्क एशिया के प्रबंध निदेशक हैं। यह संस्था पाम ऑयल क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर काम करती है।

अपने उस वक्तव्य में चट्टोपाध्याय ने भारतीय उपभोक्ताओं को पाम-ऑयल के स्वास्थ्य लाभ  समझाने का भी आह्वान किया था।

भले ही भारतीय उद्योग पाम-ऑयल से जुड़े इन मुद्दों को लेकर आवाज उठा रहा हो, लेकिन इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि पाम ऑयल अत्यधिक मूल्य-संवेदनशील है। पर्यावरण से जुड़े मुद्दों का खयाल रखो तो इसकी कीमत बढ़ जाती है।

ताड़ के बीज से पौधों को नर्सरी में तैयार किया जाता है। तस्वीर साभार- ऑइल पाम इंडिया लिमिटेड
भारत में राष्ट्रीय मिशन के तहत पाम की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। तस्वीर साभार- ऑयल पाम इंडिया लिमिटेड

इधर भारत सरकार देश में पाम ऑयल के उत्पादन बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। सरकार ने आयात में कटौती करने वास्ते राष्ट्रीय कार्यक्रम की भी घोषणा की है।

वर्ष 2014-15 में, भारत सरकार ने नैशनल मिशन ओन ऑयल सीड एण्ड ऑयल पाम (एनएमओओपी) नाम से एक राष्ट्रीय मिशन शुरू किया था जिसे 2018-19 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में जोड़ दिया गया। इन प्रयासों से यद्यपि पाम ऑयल के उत्पादन में वृद्धि तो हुई है पर इसे संतोषजनक नहीं माना जाएगा। इसकी खेती में काफी समय लगता है और पानी की खपत भी अधिक होती है। पाम ऑयल के उत्पादन में दो मुख्य चुनौतियां हैं।

क्या भारतीय उपभोक्ता पाम ऑयल से जुड़ी चुनौती से अवगत हैं?

भारत में उपभोक्ता के बीच जागरूकता और उसका बड़े फलक पर प्रभाव- इन दोनों के बीच बहुत ही जटिल संबंध है। इसके बीच में पाम ऑयल की मूल्य-वृद्धि एक अहम भूमिका अदा करती है।

अगर पाम ऑयल के संदर्भ में बात की जाए तो अधिकतर भारतीय इससे अवगत ही नहीं कि उनके रोज-मर्रा के किन जरूरी चीजों में पाम ऑयल का इस्तेमाल हुआ है।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के भावना प्रसाद कहती हैं, “पाम-ऑयल का बहिष्कार न किया जाना चाहिए बल्कि इसके उत्पादन को पर्यावरण और मानवाधिकार संबंधी कसौटी पर सही करने की कोशिश की जाए।”

“कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियां जो अपने उत्पादों में पाम ऑयल का उपयोग करती है, इन्होंने पर्यावरण और अन्य सामाजिक मुद्दों पर ध्यान देने का लक्ष्य निर्धारित कर रखा है। यह उत्साहजनक है। कोशिश यह होनी चाहिए कि अन्य कंपनियां जिसमें भारतीय कंपनी भी शामिल हैं, इनका अनुसरण करें,” प्रसाद ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।

उन्होंने आगे बताया कि ये लोग उपभोक्ताओं में जागरूकता फैलाने पर भी काम कर रहे हैं। एक बार उपभोक्ता जागरूक हो जाए और मांग शुरू कर दे तो पाम ऑयल के व्यवसाय में लगी कंपनियों के लिए इन सब जरूरी मुद्दों पर ध्यान देना मजबूरी हो जाएगी।


और पढ़ें: पाम ऑयल: सरकार ताड़ की खेती का चाहती है विस्तार, नहीं मिल रहा अपेक्षित परिणाम


बैनर तस्वीरः मिजोरम के मामित जिले में पाम ऑयल की खेती हो रही है। कभी यहां झूम शैली में खेती हुआ करती थी। झूम शैली में एक खास अंतराल के बाद खेत को खाली छोड़ दिया जाता है। तस्वीर– टीआर शंकर रमन/विकिमीडिया कॉमन्स

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