- भारत पाम ऑयल का दुनिया में सबसे बड़ा आयातक है। इस तेल का उपयोग दैनिक उपभोग की तमाम सामान्य चीजों में होने लगा है। उपभोक्ताओं को शायद ही इसकी खबर हो!
- भारत में आयात होने वाले पाम ऑयल का 90 प्रतिशत से अधिक, मलेशिया और इंडोनेशिया से आता है जहां नियमित तौर पर इससे जुड़ी पर्यावरण की चिंताएं उजागर होती रहती हैं।
- भारतीय उपभोक्ताओं में पाम ऑयल के प्रभाव को लेकर जागरूकता काफी कम है। विशेषज्ञों का जोर है कि उपभोक्ताओं के बीच पाम ऑयल के उत्पादन से जुड़ी पर्यावरण की चिंताओं को लेकर जागरूकता फैलायी जाए ताकि लोग आयात और रिफाइनिंग में लगी कंपनियों की जिम्मेदारी तय कर सकें।
भारतीय बाजार में पाम ऑयल कहां नहीं हैं! सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली से लेकर हमारे दैनिक उपभोग की वस्तुएं जैसे शैम्पू, सौंदर्य प्रसाधन के सामान, साबुन, डिटर्जेंट, टूथपेस्ट और खाद्य उत्पादों जैसे बिस्कुट, खाद्य-तेल, स्नैक्स, चॉकलेट, नूडल्स, ब्रेड इत्यादि। हर जगह। यह तो इसका एक पक्ष हुआ। दूसरी तरफ इन उत्पादों में इस्तेमाल करने के लिए पाम ऑयल का उत्पादन एक बड़ी और जटिल कहानी है। इसमें पर्यावरण से लेकर मानवाधिकार तक की चिंताएं शामिल हैं। इस तेल के उपभोक्ताओं को इसकी भनक तक नहीं हैं। हालांकि कुछ संस्थाएं इसको लेकर सक्रिय हैं और इसी का नतीजा है कि भारतीय उद्योग-जगत की कुछ कंपनियां इस कोशिश में हैं कि कैसे पाम ऑयल से जुड़ी इन चिंताओं को दूर किया जाए।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के सस्टेनेबल बिजनेस की निदेशक भावना प्रसाद कहती हैं कि अगर हम एफएमसीजी (फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स) बाजार को देखें, तो हमारे सुपरमार्केट के लगभग 50 प्रतिशत उत्पादों में किसी न किसी रूप में पाम ऑयल मौजूद है। बिस्कुट, चिप्स, साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट या यहां तक कि बेकरी आइटम में भी।
भारत में पाम ऑयल की खपत अभी और बढ़ चुकी होती अगर कोविड-19 महामारी नहीं आती। भारत पहले ही दुनिया में ताड़ के तेल का सबसे बड़ा आयातक है।
“अगर इस साल कोविड-19 महामारी नहीं आई रहती तो भारत में ताड़-तेल की खपत में लगभग 10 मिलियन मीट्रिक तक पहुंच गयी रहती और देश दुनिया का सबसे बड़ा आयातक बन गया रहता। वर्ष 2018-19 में इसकी खपत करीब 93 से 95 लाख मीट्रिक टन रही। 2019-20 और 2020-21 में, इसकी खपत करीब 80 लाख मीट्रिक टन के करीब रही। यह साल कोविड-19 का समय था,” कहते हैं कमल प्रकाश सेठ, जो राउन्डटेबल ऑन सस्टैनबल पाम ऑयल (आरएसपीओ) के उप निदेशक हैं। यह उद्योग की तरफ से बनाई गई संस्था है जो पाम ऑयल के उत्पादन से जुड़ी सारी चिंताओं से निपटने के लिए सक्रिय है।
सेठ ने जोर देकर कहा कि वैश्विक पाम ऑयल बाजार में भारत बहुत बड़ी शक्ति है। क्योंकि “हम खाद्य तेल आयात पर लगभग 1,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च करते हैं और इसमें से 60-70 प्रतिशत पाम ऑयल आयात करने पर खर्च होता है। इसका बड़ा हिस्सा मलेशिया और इंडोनेशिया को जाता है।”
अगर क्षेत्र-वार देखें तो “30 से 40 प्रतिशत पाम ऑयल का खाद्य सेवाएं और होटल उद्योग इत्यादि में होता है। इसके बाद बेकरी, कुकीज, बिस्कुट जैसे प्रसंस्करण उद्योग आते हैं- जिनमें रिफाइन्ड पामोलिन का इस्तेमाल होता है। यहां करीब 20-22 प्रतिशत पाम ऑयल का उपयोग हो जाता है,” सेठ कहते हैं।
“इसके अतिरिक्त पाम ऑयल के कुल खपत का 20 फीसदी के करीब साबुन, शैम्पू, डिटर्जेंट इत्यादि में हो जाता है। इन सबको एक साथ मिलाकर देखा जाए तो लगभग 50 से 60 फीसदी पाम ऑयल की खपत दिख रही है। बाकी के 40 फीसदी पाम ऑयल का इस्तेमाल अन्य खाद्य तेलों के साथ किया जाता है। उन तेलों में पाम ऑयल को मिलाकर बेचा जाता है, ”सेठ कहते हैं।
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भारतीय कंपनियां पाम ऑयल से जुड़ी चुनौती को लेकर क्या रुख अपना रही हैं?
आंकड़ों को देखें तो पिछले 20 वर्षों में देश में पाम ऑयल की खपत में लगभग 200 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। बढ़ते बाजार, खाद्य सुरक्षा और पोषण संबंधी जरूरतों के मद्देनजर भविष्य में इसकी खपत अभी और बढ़नी है।
वनस्पति तेल उद्योग से जुड़े सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईएआई) के कार्यकारी निदेशक बी.वी. मेहता कहते हैं, “आज भारतीय बाजार में पाम ऑयल हर जगह है .. क्योंकि अन्य तेलों के मुकाबले यह सस्ता है और इसका आयात भी आसानी से किया जा सकता है।”
“उदाहरण के लिए, पाम ऑयल का आयात मलेशिया और इंडोनेशिया से 10 दिनों के भीतर किया जा सकता है। इसके मुकाबले अगर सोया तेल का आयात करना हो तो अर्जेंटीना से करना होगा और इसमें कम से कम 40 दिन लगेंगे। देश में इस्तेमाल हो रहे कुल खाद्य तेलों या कहें वनस्पति तेल में 60 फीसदी पाम ऑयल है। इसके साथ ही सूरजमुखी और सोया तेल का भी इस्तेमाल होता है,” मेहता ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।