- अपशिष्ट जल में जहरीला अमोनियम पाया जाता है। इसे साफ करना मनुष्य, जानवरों और जलीय जीवों की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है।
- अमोनियम हटाने के पारंपरिक तरीके आमतौर पर ऑक्सीजनेशन पर निर्भर करते हैं, जो ऊर्जा की खपत करने वाले होते हैं।
- एक रिसर्च टीम ने एक नया सैद्धांतिक तरीका विकसित किया है, जो सूक्ष्म शैवाल और बैक्टीरिया के समूह के जरिए अपशिष्ट जल से अमोनियम को हटाता है।
भारतीय शोधकर्ताओं ने अपशिष्ट जल (गंदे पानी) से जहरीले अमोनियम को साफ करने के लिए सूक्ष्म शैवाल और बैक्टीरिया के संघ वाली एक तकनीक के इस्तेमाल का सुझाव दिया है। हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने बताया कि यह तरीका शैवाल की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया के जरिए ऑक्सीजन पैदा करता है और पारंपरिक तरीकों की तुलना में ऊर्जा लागत को 90% तक कम कर सकता है।
भारत में अपशिष्ट जल की स्थिति कितनी गंभीर है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। नीति आयोग की 2022 की एक रिपोर्ट की मानें, तो भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन लगभग 39,604 मिलियन लीटर (एमएलडी) अपशिष्ट जल उत्पन्न होता है। वहीं, शहरी क्षेत्रों में 2020-21 में 72,368 एमएलडी अपशिष्ट जल निकलने का अनुमान लगाया गया था।
भारत में ज्यादातर अपशिष्ट जल कृषि अपवाह, औद्योगिक कचरे और सीवेज से आता है, जिसमें कई तरह के जहरीले रसायन होते हैं। इनमें से एक सबसे खतरनाक प्रदूषक अमोनियम है। गैसीय अमोनिया से बनने वाला अमोनियम एक बहुत ही जहरीला नाइट्रोजन यौगिक है जो नाइट्रेट, नाइट्राइट या अमोनिया के रूप में मौजूद हो सकता है। यह जीवों और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा करता है। अमोनियम पानी को भी अम्लीय बना सकता है और यूट्रोफिकेशन (पानी में पोषक तत्वों की अधिकता) को बढ़ा सकता है, जिससे हानिकारक शैवाल बहुत तेजी से बढ़ते हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी के बायो साइंस और बायो इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर कन्नन पक्षीराजन कहते हैं, “जलीय जीवों को नुकसान से बचाने और सतही व भूजल गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए अपशिष्ट जल से अमोनियम को हटाना जरूरी है।” वह आगे बताते हैं, “अमोनिया पानी के पीएच को बदलने की क्षमता के कारण स्तनधारी कोशिकाओं और मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। पीने का पानी आमतौर पर थोड़ा क्षारीय होता है, और अगर इसका पीएच अम्लीय हो जाए, तो यह पीने लायक नहीं रहेगा।”
कम लागत वाला तरीका
अमोनियम हटाने के पारंपरिक तरीकों में ऑक्सीजनकरण शामिल है, जिसमें बहुत ऊर्जा लगती है। यह वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की ऊर्जा खपत का 90% तक हो सकता है।
प्रोफेसर पक्षीराजन और उनकी टीम ने सूक्ष्म शैवाल और बैक्टीरिया के समूह का उपयोग करके अपशिष्ट जल उपचार का एक तरीका विकसित किया है, जिसका लक्ष्य अमोनियम को हटाना है। प्रोफेसर पक्षीराजन बताते हैं, “अमोनियम हटाने के लिए रासायनिक तरीकों की तुलना में जैविक तरीकों, जैसे अवायवीय पाचन (ऐनरोबिक डाइजेशन) में सूक्ष्मजीवों का उपयोग करना बेहतर है, क्योंकि ये पर्यावरण के अनुकूल हैं और इनमें कम ऊर्जा लगती है।”

अध्ययन के लेखकों का कहना है कि अमोनियम हटाने के पारंपरिक तरीकों में अक्सर कई बड़ी कमियां होती हैं, जिनमें बड़ी ऊर्जा लागत और वेस्ट-एक्टिवेटिड स्लज का बनना शामिल है।
प्रोफेसर पक्षीराजन के अनुसार, “पहला कदम अमोनिया को ऑक्सीकरण के माध्यम से नाइट्राइट या नाइट्रेट जैसे कम हानिकारक नाइट्रोजन पदार्थों में बदलना है। इसके लिए, हमें ऑक्सीजन की आपूर्ति की आवश्यकता होती है। आमतौर पर, ऑक्सीजन प्रदान करने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं, जैसे पंपिंग मकैनिज्म या मकैनिकल ऑपरेशन के जरिए सिस्टम में हवा डालना, या कंप्रेस्ड एयर आदि द्वारा सिस्टम में शुद्ध हवा की आपूर्ति करना। ये सभी तरीके बहुत अधिक ऊर्जा की खपत करते हैं। दरअसल अपशिष्ट जल उपचार में शामिल प्रमुख लागत यही है।”
इसके विपरीत, नया सिस्टम खुद से काम करता है और प्रकाश संश्लेषण के जरिए ऑक्सीजन उत्पन्न करने की सूक्ष्म शैवाल की क्षमता का फायदा उठाता है। इससे बाहरी हवा की आवश्यकता कम हो जाती है और संभावित रूप से ऊर्जा लागत में 50-90% की बचत की जा सकती है। वैसे अमोनियम को हटाने के लिए रासायनिक तरीकों का भी आमतौर पर उपयोग किया जाता रहा है। प्रोफेसर पक्षीराजन इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि नया तरीका एक हरित तकनीक है जो देश के सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप है। उन्होंने कहा, “रासायनिक तरीके शायद अमोनिया को तेजी से हटा सकते हैं, लेकिन इसमें अक्सर अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो पर्यावरण के अनुकूल नहीं है।”
प्रकाश और शैवाल का उपयोग
टीम ने एक फोटो-सीक्वेंसिंग बैच रिएक्टर (PSBR) डिजाइन किया, जहां अमोनिया को पहले नाइट्रेट जैसे कम विषैले रूप में और फिर नाइट्रोजन में परिवर्तित किया जाता है, जो सबसे कम विषैला रूप है। यह एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें बैक्टीरिया और सूक्ष्म शैवाल दोनों शामिल होते हैं। अमोनिया को नाइट्रोजन में ऑक्सीकरण करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, जबकि नाइट्रेट को नाइट्रोजन में बदलने के लिए एनोक्सिक परिस्थितियां (ऑक्सीजन की अनुपस्थिति) चाहिए होती हैं। सूक्ष्म शैवाल-जीवाणु संघ इस प्रक्रिया को आसान बनाता है। शैवाल प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं, जो अमोनिया को हटाने में मदद करता है। प्रकाश की अनुपस्थिति में, शैवाल न केवल ऑक्सीजन का उत्पादन बंद कर देते हैं बल्कि वे शेष ऑक्सीजन का उपभोग भी करते हैं।
पक्षीराजन ने बताया, “अमोनिया को नाइट्रेट और नाइट्रेट को नाइट्राइट में बदलने के दौरान, काफी ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन की जरूरत होती है। हम ऑक्सीजन की इस जरूरत को, शैवाल को प्रकाश के संपर्क में लाकर और उसे अवरुद्ध करके (जिसे हम प्रकाश और अंधकार चक्र कहते हैं) नियंत्रित कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को हम फोटो-एक्टिवेटेड स्लज प्रक्रिया कहते हैं।” इस सिस्टम में, “स्लज” शैवाल, अमोनिया-ऑक्सीकरण करने वाले बैक्टीरिया, नाइट्रेट-ऑक्सीकरण करने वाले बैक्टीरिया और डीनाइट्रीफाइंग बैक्टीरिया से बना एक माइक्रोबियल झुंड है। पेपर में कहा गया है कि अपशिष्ट जल उपचार की जरूरतों के आधार पर यह प्रणाली बैच में, लगातार या फिर अनुक्रमिक बैच मोड में काम कर सकती है।

पक्षीराजन कहते हैं कि बैक्टीरिया द्वारा अमोनिया का अवशोषण बढ़े हुए बायोमास के रूप में प्रकट होता है जो फायदेमंद है। जब अधिक बायोमास मौजूद होता है और अधिक प्रकाश होता है, तो प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन होगा। उन्होंने आगे कहा, “ इस तरह से शैवाल और बैक्टीरिया दोनों को ही फायदा होता है और हम भी।”
पक्षीराजन इस तरीके को अपशिष्ट जल साफ करने का एक लागत प्रभावी और प्राकृतिक समाधान बताते हैं। उन्होंने कहा, “एक तरफ, हम पूरी तरह से प्राकृतिक चीजों का उपयोग करते हैं, जिसमें अमोनियम अवशोषण की प्राकृतिक प्रक्रियाओं का अनुकरण होता है। दूसरी ओर, हम आम तौर पर पारंपरिक प्रणालियों में शामिल एरिएशन, ऑक्सीजन की सप्लाई और पंपिंग से जुड़ी लागतों को कम करते हैं।”
भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के पारिस्थितिकी विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक टी.वी. रामचंद्र के मुताबिक, ये कोई नई जानकारी नहीं है। इसे बारे में पहले से पता है। बेंगलुरु में झीलों के कायाकल्प प्रयासों का नेतृत्व करने वाले रामचंद्र ने बताया, “सूक्ष्म शैवाल-जीवाणु संघ का उपयोग अक्सर झीलों के प्रवेश द्वार (इनलेट) पर किया जाता रहा है।” उनका मानना है कि ये आइडिया नया नहीं है, लेकिन रिसर्च में जिस तरीके से मॉडल बनाया गया है, वो अच्छा है। उनका ये भी कहना है कि अगर ज्यादा सैंपल लिए जाते तो शायद नतीजे और बेहतर होते।
प्रोफेसर पक्षीराजन अध्ययन की कुछ कमियों की ओर भी इशारा करते हैं। उन्होंने कहा, “चूंकि अमोनिया जहरीला होता है, इसलिए इसकी अधिक मात्रा अमोनिया-ऑक्सीकरण बैक्टीरिया की क्षमता को कम कर सकती है।” लेकिन वह आगे कहते हैं कि अपशिष्ट जल में अमोनियम की मात्रा आमतौर पर इन बैक्टीरिया के लिए स्वीकार्य सीमा के भीतर होती है, इसलिए यह कोई बड़ी चिंता का विषय नहीं है।
यह खबर मोंगाबे-इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 3 दिसंबर 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: चिक्काबल्लापुर जिले की मुस्तूर झील में लाइन और छड़ों से मछली पकड़ी जा रही है। बेंगलुरु से उपचारित अपशिष्ट जल से भरी इन झीलों में मछलियों की गुणवत्ता गिर गई है और शैवाल की मात्रा बढ़ने से यूट्रोफिकेशन हो रहा है। तस्वीर- आरती मेनन/मोंगाबे