- कर्नाटका के तटीय गांव केनी के निवासी अपने तट पर नया बंदरगाह बनाने का विरोध कर रहे हैं।
- सरकार जैसे-जैसे इस परियोजना को आगे बढ़ा रही है, लोगों में अनिश्चित भविष्य को लेकर चिंता गहरी होती जा रही है।
- प्रस्तावित बंदरगाह से पर्यावरण पर दुष्प्रभाव पड़ने की आशंका है और इससे मछली पकड़ने के पारंपरिक तरीकों में बाधा आएगी जो समुदाय के जीविकोपार्जन के लिए जरूरी है।
“क्या आप जैक-अप बार्ज (समुद्र में बनाया गया एक तरह का प्लेटफॉर्म) के बगल में उस द्वीप को देख रहे हैं? यहीं पर हमारे कुल देवता कुकुदेश्वर का मंदिर है। जब बंदरगाह बनेगा, तो हमारे गांव से लेकर उस द्वीप तक सब कुछ खत्म हो जाएगा।” दूर स्थित टापू की ओर इशारा करते हुए स्मिता डी. कहती हैं। उत्तर कन्नड़ के अंकोला में केनी गांव की मछुआरिन स्मिता अकेली नहीं हैं जो समुद्र तट और मछुआरों की बस्ती को लेकर आशंकित हैं।
कर्नाटका मैरीटाइम बोर्ड (केएमबी) ने 2023 के नवंबर में भारत के सबसे बड़े वाणिज्यिक बंदरगाह संचालकों में से एक जेएसडब्ल्यू इंफ्रास्ट्रक्चर को केनी में ग्रीनफील्ड बंदरगाह विकसित करने के लिए लेटर ऑफ अवार्ड (एलओए) प्रदान किया। सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत बनने वाला यह बंदरगाह हर मौसम में और गहरे पानी में काम करेगा। इस पर 4,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत आने का अनुमान है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य उत्तरी कर्नाटका और दक्षिणी महाराष्ट्र में उद्योगों के लिए कोयला और कोक कार्गो को संभालना होगा।
साल 2018 में अपने गठन के बाद से केएमबी ने 20 समुद्री परियोजनाओं का प्रस्ताव दिया है। केनी बंदरगाह उन्हीं में से एक है। यह 2024 में कर्नाटका में सागरमाला योजना के तहत समुद्र से जुड़ी 29 पहलों के अतिरिक्त है। राज्य भर में बंदरगाहों के विकास में अचानक आई बढ़ोतरी बड़ा सवाल उठाती है: क्या हमारी आयात और निर्यात की मांग इतनी ज्यादा है?
कारवार में कर्नाटक विश्वविद्यालय से समुद्री जीव विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर वीएन नायक कहते हैं, “आयात या निर्यात की मांग में बढ़ोतरी दिखाने का कोई सबूत नहीं है। निश्चित रूप से उत्तर कन्नड़ के इतने सारे बंदरगाहों के लिए यह पर्याप्त नहीं है।”
2022 में मोंगाबे इंडिया द्वारा आरटीआई कानून के तहत दायर सूचना के लिए अनुरोध से पता चला कि कारवार बंदरगाह के अलावा, कर्नाटक में किसी भी छोटे बंदरगाह ने पिछले पांच सालों में निर्यात या आयात में कोई बढ़ोतरी नहीं देखी है। असल में, डेटा से पता चलता है कि दो बंदरगाहों ने व्यापार में गिरावट देखी। वहीं केनी के ठीक बगल में स्थित बेलेकेरी सहित तीन अन्य बंदरगाह ने 2018 से कोई कार्गो नहीं संभाला है।
इस क्षेत्र में काम कर रहे समुद्री जीवविज्ञानी प्रकाश मेस्टा कहते हैं, “पिछले कुछ सालों से उत्तर कन्नड़ के लोग सरकार से इस क्षेत्र में मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल बनाने की मांग कर रहे हैं। सरकार ने कहा है कि इसके लिए जगह नहीं है, तो फिर वे इन सभी बंदरगाहों के लिए जगह कैसे खोज रही है?”
कर्नाटका के तटीय इलाकों में समुद्री परियोजनाओं का निर्माण जारी है, लेकिन उनके दुष्प्रभावों को राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही बड़े पैमाने पर अनदेखा कर रही हैं। केनी के बारे में खास तौर पर बात करते हुए मेस्टा कहते हैं, “उत्तर कन्नड़ में काम करने के अपने दशकों के अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि यहां इस क्षेत्र का सबसे स्वच्छ और स्वस्थ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र है।”
प्रस्तावित बंदरगाह से ना सिर्फ इस असलियत के बदलने, बल्कि इसके पूरी तरह से खत्म हो जाने का भी खतरा है।

पारिस्थितिकी तंत्र में बदलाव
कर्नाटका समुद्री बोर्ड के आधिकारिक मानचित्रों और दस्तावेजों के अनुसार प्रस्तावित बंदरगाह के लिए केनी समुद्र तट के सभी हिस्सों से गाद निकालनी होगी। पानी में डूबी जमीन को फिर से हासिल किया जाए, जिससे समुद्र तट का मौजूदा स्वरूप ही खत्म हो जाएगा।
मेस्टा ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “केनी के साफ-सुथरा होने से यह स्वस्थ कोरल का घर है। जब भूमि को फिर से हासिल किया जाएगा, तो वे सभी खत्म हो जाएंगे।” “मछली की अलग-अलग प्रजातियां केनी और आस-पास की जगहों को प्रजनन स्थल के रूप में इस्तेमाल करती हैं। बंदरगाह बनने के साथ उन्हें दूसरी जगहें खोजनी होंगी।”
केनी मुहाना वाला एक क्षेत्र है, जहां समुद्री प्रजातियों के साथ-साथ केनी क्रीक में मीठे पानी की कई प्रजातियां भी पाई जाती हैं जो गंगावली की सहायक नदी है। इसमें मैंग्रोव की 12 प्रजातियां और जूप्लांकटन और फाइटोप्लांकटन की विविध प्रजातियां शामिल हैं।
बंदरगाह के लिए खास तौर पर बांध और ड्रेजिंग का निर्माण केनी में पर्यावरण और जैव-विविधता के लिए लंबी अवधि का और संभावित रूप से ऐसे खतरे पैदा कर सकता है, जिन्हें पहले जैसा नहीं किया जा सकता। इससे स्थानीय आजीविका के खत्म होने और यहां पीढ़ियों से रह रहे स्थानीय मछुआरा समुदायों के विस्थापित होने का भी खतरा है।
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केनी के निवासी और मछुआरे संजीव बलेगर कहते हैं, “वे कहते हैं कि सिर्फ सड़क बनाएंगे। लेकिन हम जानते हैं कि मुंद्रा, रत्नागिरी और कई अन्य जगहों पर क्या हुआ।”
केएमबी के प्रस्ताव के अनुसार केनी बंदरगाह का निर्माण ऐसी जमीन पर किया जाएगा जिसे गाद हटाकर हासिल किया जाएगा। इसमें माल ढुलाई की सुविधा के लिए गांव से होकर नई सड़क गुजरेगी। परियोजना का दावा है कि सड़क और रेल बुनियादी ढांचे को छोड़कर भूमि अधिग्रहण नहीं किया जाएगा या विस्थापन भी नहीं होगा। हालांकि, यह तकनीकी रूप से सच हो सकता है, लेकिन पिछले बंदरगाह और औद्योगिक परियोजनाओं से नतीजे अलग होने का संकेत मिलता है।
केनी में सरकारी मछली पालन स्कूल का हवाला देते हुए मेस्टा कहते हैं, “केनी मछली पकड़ने के लिए इतना मशहूर है कि यहां मछली पकड़ना सिखाने के लिए सरकारी स्कूल है।” लेकिन समुद्र तट को खोदने के साथ तट स्थानीय मछुआरों के लिए प्राथमिक पहुंच बिंदु से गायब हो जाएगा। इस तरह वे समुद्र से कट जाएंगे।

बंदरगाह के खिलाफ सिविल सोसाइटी
केनी के ज्यादातर गांव के लोगों को इस बंदरगाह के बारे में 2024 के आखिर में पता चला, यानी बंदरगाह के बारे में खबर सार्वजनिक होने के करीब एक साल बाद। बालेगर कहते हैं, “मैंने पहली बार इसके बारे में खबरों में सुना था, जब इस परियोजना को जेएसडब्ल्यू इंफ्रास्ट्रक्चर को दिया जा रहा था।” उन्होंने दूसरों को इसके नतीजों के बारे में आगाह किया, लेकिन उन्हें मनाने में समय लगा। स्मिता कहती हैं, “अक्टूबर या नवंबर में अधिकारी हमारे गांव में जमीन और समुद्र का सर्वेक्षण करने आए। तभी हमें इस परियोजना के बारे में पता चला।”
इसके तुरंत बाद ही स्थानीय लोग विरोध जताने के लिए लामबंद हो गए। नवंबर 2024 में वे केनी से अंकोला में तहसीलदार के कार्यालय तक विरोध मार्च पर निकले और प्रस्तावित बंदरगाह को खत्म करने की मांग करते हुए लिखित याचिका प्रस्तुत की। कुछ लोग कारवार की ओर बढ़ते रहे और उसी मांग के साथ उत्तर कन्नड़ जिला पंचायत में अपना विरोध-प्रदर्शन किया।
कुछ महीने बाद, जनवरी 2025 में अधिकारियों ने बंदरगाह के लिए भू-तकनीकी सर्वेक्षण के हिस्से के रूप में तट से दूर जैक-अप बार्ज स्थापित किया। 24 फरवरी को केनी के निवासी समुद्र में चले गए। उनका कहना था कि अगर सरकार कार्रवाई करने में विफल रही, तो वे बार्ज को तोड़ देंगे। विरोध जल्दी ही बढ़ गया और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को बुलाया गया। इसके बाद हुई हाथापाई में तीन महिलाएं घायल हो गईं। विरोध के दौरान घायल हुई महिलाओं में से एक गिरिजा सोमा कहती हैं, “कोई भी हो, चाहे वह विधायक हो, राजनेता हो या जिला पंचायत अधिकारी, हम उनसे नहीं डरेंगे। हम विरोध करना जारी रखेंगे।”
कभी दूर तक फैला हुआ खूबसूरत और शांत समुद्र तट रहा केनी अब लगातार निगरानी में है और इसके तटों पर पुलिस तैनात है।
विरोध के बाद केनी में धारा 144 लागू कर दी गई। अगले 10 दिनों तक मछुआरों को अपनी नावों को समुद्र में ले जाने से मना कर दिया गया, जिससे वे अपनी आजीविका से पूरी तरह से कट गए। पकड़ने या बेचने के लिए मछली ना होने से उन्हें बिना भोजन रहना पड़ा। वनिता एम कहती हैं, “एक हफ्ते से हमने बासी दलिया के अलावा कुछ भी नहीं कमाया या खाया।” एक अन्य निवासी रेवती रमेश कहती हैं, “हमारे बच्च स्कूल जाने से मना कर देते हैं, क्योंकि वे पुलिस की मौजूदगी से डरते हैं।”
कुछ दिनों बाद मछुआरों को समुद्र में वापस जाने की अनुमति दे दी गई, लेकिन आगे क्या होगा, इस बारे में पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता।

अनिश्चित भविष्य
केनी में मछली पकड़ना सामुदायिक गतिविधि है, जिसमें मुख्य रूप से पारंपरिक मछुआरे शामिल होते हैं। मजदूर एक साथ मिलकर किनारे पर मछली पकड़ने वाला बड़ा जाल बिछाते हैं और उसे खींचते हैं, जबकि तीन डोंगियां पानी में चलती हैं, ताकि यह पक्का हो सके कि जाल ठीक से बिछ जाएं। बालेगर कहते हैं, “जब वे बंदरगाह के लिए समुद्र तट को ले लेंगे, तो वे उस जगह को भी खत्म कर देंगे जहां हम एक साथ मछली पकड़ते हैं, वह जगह जहां से हम समुद्र में प्रवेश करते हैं और अपनी डोंगियां खड़ी करते हैं।”
समुद्र तट के खत्म हो जाने से मछुआरों को अपनी डोंगियां खड़ी करने के लिए नई जगह ढूंढ़नी पड़ेगी, जिससे समुदाय के भीतर संघर्ष हो सकता है। भले ही प्रवेश के लिए नया रास्ता उपलब्ध कराया गया हो, लेकिन इस बात की चिंता बढ़ रही है कि गहरे पानी में जाने से वे नौसेना के नियंत्रण वाले क्षेत्र में जा सकते हैं, जिसके चलते आगे चलकर कानूनी जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।
मछुआरा अधिकार आंदोलनों और विकास परियोजनाओं के कारण कई बार विस्थापन के बाद, बालेगर इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि क्या दांव पर लगा है: “पहली चीज जो हम खो देंगे, वह है रिश्ते।”
इसके अलावा, बंदरगाह निर्माण के कारण केनी में प्रवासी श्रमिकों की बाढ़ आ जाएगी। सोमा कहते हैं, “हमारा गांव ऐसे लोगों से भरा होगा जिन्हें हम नहीं जानते और जिनके साथ हम सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे।”
केनी के निवासी शुरू से ही बंदरगाह का विरोध कर रहे हैं, वे बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि जबरन विस्थापन कैसे होता है और वे इसका शिकार बनने से इनकार करते हैं। वहीं, सरकार का दावा है कि परियोजना के लिए कोई विस्थापन नहीं किया जाएगा या भूमि अधिग्रहण भी नहीं होगा। गांव के लोगों को अब संदेह है कि उन्हें बिना किसी मुआवजे या पुनर्वास सहायता के स्थानांतरित किया जा सकता है। सरकार इन संभावनाओं की न तो पुष्टि करती है और न ही इनकार करती है।
सोमा पूछती हैं, “क्या एक तटीय गांव, जिसका समुद्र तट और उसके लोग छीन लिए गए हों, क्या वह वही गांव रह सकता है?”
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 1 मई, 2025 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: कर्नाटका के उत्तर कन्नड़ के अंकोला में केनी गांव में काम करते हुए मछुआरे। तस्वीर- वैष्णवी सुरेश।