- वर्ष 2016 से लेकर अब तक सरकार की जलमार्ग को लेकर बनी योजना में कई मोड़ आ चुके हैं। शुरुआती दिनों में जिन नदियों पर जलमार्ग विकसित करने को लेकर खूब चर्चा थी अब उन्हें इसके अनुकूल नहीं बताया जा रहा है। सवाल यह है कि क्या सरकार ने इन परियोजनाओं के घोषणा के पहले इनका समुचित अध्ययन नहीं करवाया था।
- सरकार का कहना है कि नदियों पर जलमार्ग बनने और यातायात शुरू होने के अनेकों फायदे हैं। इससे ईंधन बचेगा और यह पर्यावरण के अनुकूल होगा। क्या सच में ऐसा है और सिर्फ जलमार्ग शुरू होने भर से क्या यह पर्यावरण के अनुकूल हो जाता है?
- जलमार्गों के विकसित होने के साथ एक और बड़ा सवाल खड़ा होता है वहां के स्थानीय लोगों को लेकर। अपनी आजीविका के लिए नदियों पर आश्रित मछुवारों को लेकर। ये लोग इस महत्वाकांक्षी योजना को कैसे देखते हैं।
- अवली वर्मा मंथन अध्ययन केंद्र के साथ जुड़ी हैं और यह लेखिका के निजी विचार हैं।
वर्ष 2016 में राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम लागू होने के बाद बिहार की सात नदियों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया था। इनमें गंगा के साथ, गंडक, कोसी, घाघरा, सोन, करमनासा, और पुनपुन नदी शामिल है। वर्ष 2018-19 तक गंडक, कोसी और घाघरा नदियां सुर्खियों में रहीं और बताया गया कि इन नदियों के रास्ते माल ढुलाई करके भारत और नेपाल को जोड़ा जाएगा। पर हाल ही में आए राष्ट्रीय जलमार्ग के विकास संबंधित कार्य-योजना की सूची में इन नदियों को शामिल ही नहीं किया गया है। मजेदार यह है कि 2016 से ही कई नदी विशेषज्ञों ने सरकार द्वारा इन नदियों पर जलमार्ग बनाने के प्रस्ताव पर आशंका जताई थी। राष्ट्रीय जलमार्ग योजना के पांच साल बाद इन नदियों को देश के सबसे 23 सबसे अनुकूल जलमार्गों में शामिल नहीं किया गया है और इससे विशेषज्ञों की वह आशंका सही साबित होती दिखती है।
वर्ष 2016 में पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने घोषणा की थी कि भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) 37 राष्ट्रीय जलमार्गों को माल ढुलाई के लिए तैयार करेगा। अगले तीन वर्ष में यानी 2019 तक इसे पूरा किया जाना था। इन 37 राष्ट्रीय जलमार्गों में गंगा जलमार्ग के साथ गंडक, कोसी, घाघरा के जलमार्ग भी शामिल थे।
तीन साल पूरा होने पर 2019 में पोत परिवहन मंत्रालय ने यह बताया कि गंडक, कोसी और घाघरा पर बने जलमार्गो के विकास के लिए काम शुरू हो गया है तथा ये जलमार्ग सीमित बुनियादी ढांचे की सुविधा के साथ परिचालन के लिए तैयार हैं। मजेदार यह है कि इस घोषणा के भी दो साल पूरा होने को है पर पोत परिवहन मंत्रालय या भारतीय जलमार्ग विकास प्राधिकरण इन जलमार्गों पर अब तक हुए माल ढुलाई का कोई ब्यौरा नहीं देते।
इससे संदेह होता है कि इन जलमार्गों का समुचित विकास हुआ भी या नहीं! सरकार की गंभीरता को देखते हुए आगे भी इनके विकास की संभावना कम ही दिखती है।
इसके एक साल बाद यानी 2020 ने सरकार इन जलमार्गों के प्रगति का ब्यौरा दिया। इस ब्योरे में बताया गया कि इन जलमार्गों पर आगे विकास तभी शुरू होगा जब इनपर माल ढुलाई की पर्याप्त मांग होगी। यानी अगर मांग न बढ़े तो इनका विकास नहीं होगा।
इन जलमार्गों पर आगे का विकास रोक कर, पर्याप्त माल की ढुलाई के साथ जोड़ना, इन जलमार्गों की व्यवहारिकता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। इसके साथ एक दूसरा अहम सवाल उठता है कि क्या इन जलमार्गों के विकास की घोषणा और इसपर काम शुरू होने से पहले सरकार ने इनकी व्यवहारिकता का आकलन नहीं किया था?
सरकार के लगातार बदलते फैसले से तो यही प्रतीत होता है। वर्ष 2016 में 106 नए जलमार्गों की घोषणा की गई थी। इसके साथ ही नदियों पर माल ढुलाई के लिए जलमार्गों को तैयार करने पर ख़ासा जोर रहा है। इसके बीच चौंकाने वाली बात यह है कि इन जलमार्गों के निर्माण और रखरखाव के लिए जिम्मेदार आईडब्ल्यूएआई ने 2020 में एक कार्य-योजना प्रकाशित की। इसमें इन जलमार्गों की व्यवहारिकता का गहन अध्ययन किया गया और बताया गया कि कुल 106 नए जलमार्गों में से 63 जलमार्ग व्यावहारिक/अनुकूल नहीं हैं। न तो माल ढुलाई के लिए और न ही यात्रियों के यातायात, फेरी या पर्यटन के लिए। इस अध्ययन में केवल 25 राष्ट्रीय जलमार्ग चिह्नित हुए जिनपर फेरी या क्रूज़ पर्यटन के लिए या फिर यात्रियों का यातायात मुमकिन होगा। इसके साथ कुल 18 जलमार्ग ही पाए गए जिसपर माल ढुलाई संभव है।
इसके साथ 23 जलमार्गों की एक सूची जारी की गयी है जिन्हें माल ढुलाई के लिए 2030 तक विकसित किया जाएगा। गंडक और घाघरा जलमार्ग 18 व्यावहारिक जलमार्गों की सूची में तो शामिल हैं पर उन 23 जलमार्ग की सूची में नहीं हैं जिन्हें अगले 10 साल में विकसित किया जाना है। गंगा जलमार्ग और सोन जलमार्ग इस सूची में शामिल हैं।
गंगा जलमार्ग को विश्व बैंक की तकनीकी एवं आर्थिक सहायता के साथ विकसित किया जा रहा है। सोन जलमार्ग को निजी ऑपरेटर्स द्वारा बालू की ढुलाई के लिए इन 23 जलमार्गो की सूची में शामिल तो किया गया है पर इस जलमार्ग के विकास और संचालन में आईडब्ल्यूएआई की कोई भूमिका नहीं होगी। इसके विकास और संचालन की जिम्मेदारी बिहार मेरीटाइम बोर्ड के साथ निजी ऑपरेटर्स के हाथों में होगी। कोसी जलमार्ग को माल ढुलाई के साथ-साथ फेरी/क्रूज़ पर्यटन के अनुकूल नहीं पाया गया है। साथ ही पुनपुन और करमनासा नदियों को भी, माल की मांग और नदियों की गहराई पर्याप्त न होने के कारण, जलमार्गो की सूची में शामिल नहीं किया गया है।
गंडक जलमार्ग पर एक विशेष टिप्पणी की गयी है। इसमें कहा गया है कि इस जलमार्ग की डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट, बिहार सरकार ने बनायी है और इसमें पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं करायी गयी है। भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण ने हालांकि अधिकतर सभी नए जलमार्गो की व्यावहारिकता पर रिपोर्ट बनवाई है पर गंडक और कोसी जलमार्ग को लेकर अब तक ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं सामने आयी है। यह तब है जब वर्ष 2017 में संभावित जलमार्ग के मद्देनजर ये दोनों नदियां सरकार की प्राथमिकता में थीं।
नेपाल के साथ जलमार्गों का संपर्क अब केवल गंगा जलमार्ग के साथ सड़क और रेल के द्वारा ही संभव होगा। मार्च 2021 में मंत्रालय द्वारा जारी मेरीटाइम विज़न 2030 की रिपोर्ट भी यही दर्शाती है। नेपाल के लिए माल ढुलाई गंगा जलमार्ग पर बने साहिबगंज बंदरगाह और नेपाल के लिए ख़ास बनाये जा रहे कालूघाट बंदरगाह से प्रस्तावित है। इसके आगे इन्हें रेल और सड़क परिवहन से जोड़ा जाएगा।
शुरुआती दिनों में इन अंतर्देशीय जलमार्गों के कई फायदे गिनाये गये थे। अभी भी गिनाये जा रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण फायदा यह बताया जा रहा था कि सड़क यातायात के मुकाबले नदियों के यातायात से ईंधन कम खर्च होगा और ये पर्यावरण के लिए बेहतर साबित होंगे। पर क्या सच में ऐसा है?
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हर जलमार्ग केवल जलमार्ग होने भर से पर्यावरण के अनुकूल नहीं हो जाता! नदी का चरित्र, गहराई , नदियों की पारिस्थितिकी, पानी का बहाव, उसके ऊपर बनी संरचनाएं और खासकर बिहार की नदियों की गाद इत्यादि कई ऐसे कारक हैं जो जलमार्ग के मूलभूत उद्देश्य को पूरा करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। साथ ही नदियां भी बड़े जल पोतों या बड़ी क्षमता के जहाजों से प्रभावित होती हैं।
इसके साथ नदियों को बड़े जलमार्गो में तब्दील किये जाने से सबसे ज्यादा प्रभाव स्थानीय लोग और मछुआरों पर पड़ता है। 2018 में कोसी और गंडक को अंतर्राष्ट्रीय जलमार्ग बनाने की खबर के बाद, मंथन अध्ययन केंद्र की टीम ने बिहार और नेपाल में कोसी और गंडक नदियों के किनारे लोगों से बातचीत की। इस संस्था ने इस बात का मुआयना किया कि स्थानीय जनता को इन योजनाओं के बारे में कितनी जानकारी दी गयी है। इसमें पता चला कि न तो इनके बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी थी और न ही सरकार ने स्थानीय जनता से इस विषय पर कोई सलाह मांगी थी।
बिहार की नदियों की तरह ही इन पर प्रस्तावित जलमार्गों की परियोजना भी हर वर्ष के अपना रास्ता बदलती हुई प्रतीत होती है। इन जलमार्गों को स्थिर, पर्यावरण के लिए अनुकूल और सही मायने में उपयोगी बनाने के लिए स्थानीय जनता और उनकी जरूरतों को ध्यान में रखना जरूरी है।
बैनर तस्वीरः कोसी बैराज पर मछली पकड़ने की कोशिश करता एक मछुआरा। बिहार के जिन सात नदियों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया उनमें कोसी भी शामिल है। तस्वीर- अवली वर्मा