- जब मुगल शासक शाहजहां ने ताजमहल बनवाया तो उनकी प्लानिंग में किनारे बहती यमुना भी शामिल थी। यमुना में अविरल बहते पानी में ताज की परछाईं के अनेकों किस्से मशहूर हैं।
- हालांकि अब इसी यमुना का प्रदूषण, ताजमहल की मुश्किलें बढ़ा रहा है। पांच साल पहले एक अध्ययन में यह बताया गया था कि नदी के पानी में फॉस्फोरस की वजह से कीड़ों की संख्या बढ़ रही है। इन कीड़ों के मलमूत्र से संगमरमर पत्थरों पर धब्बे बन रहे हैं।
- अब एक नया अध्ययन आया है जो इससे भी बड़ी समस्या की तरफ इशारा कर रहा है। इसमें कहा गया है कि प्रदूषित यमुना से उत्सर्जित हाइड्रोजन सल्फाइड की वजह से ताज की खूबसूरती खतरे में है। सल्फर डाइऑक्साइड की तुलना में यह अधिक नुकसानदायक है।
- इस रसायन के मौजूद होने का पता तब चला जब ताज परिसर में मौजूद धातुओं के बाहरी परत का अध्ययन किया गया। अब वैज्ञानिक ने सिफारिश की है कि ऐसा ही शोध, 10 साल की अवधि के लिए, संगमरमर के पत्थरों पर किया जाए।
आगरा में ताजमहल देखने आने वाले लोग काफी समय से यह शिकायत करते हैं कि इस परिसर में एक खास तरह की दुर्गंध आती है। दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताजमहल, मुगल वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है। सत्रहवीं शताब्दी में बने इस धरोहर के आसपास उठती यह दुर्गंध, एक खास गैस की वजह से है। इस वजह से ताजमहल में लगे संगमरमर की चमक भी फीकी होती जा रही है।
हाल ही में हुए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि इस गैस के लिए यमुना का काला पानी जिम्मेदार है। इस गैस को हाइड्रोजन सल्फाइड (एच2एस) के नाम से जानते हैं। आगरा शहर में औद्योगिक प्रदूषण की वजह से सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) का उत्सर्जन भी होता है। पर हाइड्रोजन सल्फाइड से ताज की खूबसूरती को अधिक खतरा है, वैज्ञानिक मानते हैं।
इस शोध में एक नया निष्कर्ष निकला। पता चला कि ताजमहल को नुकसान पहुंचाने में औद्योगिक और वाहनों के प्रदूषण से अधिक योगदान यमुना में प्रदूषण का है। पर संरक्षण की अधिकतर कोशिशें औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने की होती रहीं हैं।
तीन दशक से वैज्ञानिक ताज के बदरंग होने के पीछे सल्फर डाइऑक्साइड को वजह मानते रहे हैं। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 2016 की एक रिपोर्ट में, संगमरमर की संरचना पर प्रभाव के लिए यमुना प्रदूषण को दोषी ठहराया गया था। पर एक अलग नजरिए से। इसमें जीनस गोएल्डीचिरोनोमस के कीट के विकास का जिक्र था। इस कीट के मल से ताज के चमकदार पत्थरों पर हरे और भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं।
हालिया अध्ययन से संकेत मिलता है कि यमुना प्रदूषण के लिए इसके अतिरिक्त भी कई कारण हैं।
“हमने एसओ2, एनओ2 (नाइट्रोजन डाइऑक्साइड), एनएच3 (अमोनिया), सीओ (कार्बन मोनोऑक्साइड), सीओ2 (कार्बन डाइऑक्साइड) और एच2एस (हाइड्रोजन सल्फाइड) जैसे विभिन्न वायु प्रदूषकों का उपयोग किया और उनका पत्थर पर प्रभाव देखा। इसमें एच2एस को सबसे अधिक दुष्प्रभावी पाया गया। हमारी प्रारंभिक जांच से पता चलता है कि यमुना नदी में आगरा शहर का अनट्रीटेड यानी बिना साफ किए सीवेज को बहाया जा रहा है। इससे एच2एस का उत्सर्जन होता है,” केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के एक पूर्व अतिरिक्त निदेशक दीपांकर साहा ने बताया। वे इस शोध पत्र के लेखकों में शुमार हैं।
“एच2एस गैस अम्लीय होता है और जंग लगने के लिए जिम्मेदार है। इसलिए यमुना नदी को साफ करना बहुत जरूरी है,” साहा कहते हैं। इनके पास, सीपीसीबी की वायु प्रयोगशाला के प्रमुख के तौर पर 12 वर्षों तक काम करने का अनुभव है।
हाल ही में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित इस अध्ययन में हवा के बहाव को समझते हुए ताज पर होने वाले प्रदूषण का असर देखा गया। इसके लिए अध्ययन की अवधि के दौरान विकसित विंड रोज़ डायग्राम की मदद ली गई। इसमें पाया गया कि हवा की वजह से शहर का औद्योगिक प्रदूषण, ताजमहल तक आसानी से नहीं पहुंच सकता। इसलिए यमुना का प्रदूषण ही ताजमहल के क्षरण की मुख्य वजह है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में संरक्षण इकाई के प्रमुख अचल पंड्या भी इस अध्ययन में शामिल थे।
पांड्या ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि ताज को बदरंग होने से बचाना है तो यमुना को साफ करना ही होगा। इसके लिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि शहर का सीवेज, उपचार के बाद ही नदी में जाए। “यमुना अब नदी जैसी नहीं रही। इसका पानी अब उपयोग लायक नहीं रहा। लेकिन हमें याद रखना होगा कि ताजमहल को बनाते समय यमुना नदी इस योजना का हिस्सा थी,” पांड्या कहते हैं।
ताजमहल परिसर में खुले में पड़े कार्बन, स्टील, जस्ता और तांबे के नमूने और उनकी रिपोर्ट से निष्कर्ष निकला कि प्रदूषित यमुना नदी से निकलने वाली हाइड्रोजन सल्फाइड ताज के बहुत करीब बहती है और इन धातुओं पर इसका प्रभाव दिखता है।
आगरा के पर्यावरणविद् शरद गुप्ता के अनुसार अध्ययन के निष्कर्ष अप्रत्याशित नहीं हैं।
“पूरे शहर का सीवेज और औद्योगिक कचरा यमुना में प्रवाहित होता है। आगरा में करीब 90 नाले हैं। इनमें से केवल 25 के पानी को 4 प्लांट की मदद से उपचारित किया जाता है। वैसे ये प्लांट भी रात में काम नहीं करते हैं। 65 नालों का सीवेज अनुपचारित यमुना में बह जाता है। इसमें लगभग 3,000 जूता कारखानों से चमड़ा और सिंथेटिक चमड़े का कचरा शामिल है। चमड़े के कचरे कई गैसों को बनाने में मदद करते हैं, ” उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
उन्होंने कहा कि आगरा के नकली आभूषण उद्योग में धोने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एसिड भी नालों में बहाया जाता है।
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तो एसिड रेन नहीं है जिम्मेदार?
ताज पर यमुना प्रदूषण के प्रभाव पर बहुत कम चर्चा हुई है। अब तक ताज-संरक्षण के प्रयासों में सामान्यतः औद्योगिक इकाइयों पर ही ध्यान दिया गया है। परिणामस्वरूप 1980 के दशक से आगरा के औद्योगिक प्रदूषण को रोकने के लिए कई उपाय किए गए। इनमें कुछ प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों को या तो बंद किया गया या दूसरी जगह स्थानांतरित कर दिया गया।
ताज को प्रदूषण के प्रभाव से बचाने की लड़ाई 1970 के दशक से चल रही है। विशेष रूप से 1984 से, जब पर्यावरणविद् एम.सी. मेहता ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। मेहता ने कई जगहों पर ताज के पत्थरों के पीले और काले पड़ने की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया। इसमें कहा गया कि सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन के कारण ‘अम्लीय वर्षा‘ होती है।
“ताज के अंदर और बाहर, पूरे स्मारक पर पीलापन दिखता है। शाहजहां और मुमताज महल की मूल कब्रों के पास फंगल की वजह से नुकसान हो रहा है,” कोर्ट में कहा गया। इसी केस में सर्वोच्च न्यायालय का 1996 का ऐतिहासिक फैसला आया। इसकी वजह से ताज महल को लेकर संरक्षण के कई प्रयास भी हुए।
हालांकि, हाल में आए इस नए शोध ने ‘अम्लीय वर्षा’ के इस पुराने सिद्धांत पर सवाल खड़ा कर दिया है। इस सिद्धांत में यह माना जाता है कि मथुरा रिफाइनरी द्वारा उत्सर्जित सल्फर डायऑक्साइड और आगरा और फिरोजाबाद में और उसके आसपास के स्थानीय उद्योगों के मुताबिक सल्फ्यूरिक एसिड की वजह से यह बारिश होती है और संगमरमर के पत्थर इससे प्रभावित होते हैं।
इस सिद्धांत को गलत साबित करने के लिए 2008 में प्रकाशित एक पेपर का सहारा लिया गया। इसमें देखा गया था कि आगरा में मौजूद स्टील और औद्योगिक क्षेत्र से बहुत दूर रखा स्टील, खराब होने में उतना ही समय ले रहे हैं।
इस अध्ययन में रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी और एक्स-रे किरणों का उपयोग करके धातुओं पर जंग की वजह का विश्लेषण किया गया था। इसमें ऑक्साइड और सल्फाइड मुख्य घटक के तौर पर मिले। शोधकर्ताओं ने तर्क दिया कि अम्लीय वर्षा के साथ प्रतिक्रिया से सल्फेट और नाइट्रेट बनते हैं, लेकिन सल्फाइड नहीं।
हालांकि, लेखकों ने कहा कि अध्ययन को और आगे बढ़ाने की जरूरत है।
जलाधिकार फाउंडेशन, आगरा के जल संरक्षण समूह के अनुराग शर्मा कहते हैं, “यदि एक वैज्ञानिक अध्ययन का दावा है कि यमुना प्रदूषण ताजमहल को प्रभावित कर रहा है तो यह भविष्य के लिए सही नहीं है। यह एक गंभीर बात है और इसकी पूरी तरह जांच होनी चाहिए।”
फरवरी 2021 में लोकसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए तत्कालीन संस्कृति और पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि कीट के खतरे को समाप्त करने के लिए एएसआई की सिफारिशों में वैज्ञानिक सफाई और संरक्षण शामिल है। इसमें यमुना नदी की गाद निकालना, जल प्रवाह में वृद्धि, पानी के ठहराव को रोकना और नदी के किनारे से वनस्पति को साफ करना और हटाना शामिल है।
बैनर तस्वीरः ताजमहल के बगल में बहती यमुना नदी। तस्वीर- एस. गोपीकृष्ण वारियर/मोंगाबे