- ग्रामीण जीवन से जुड़ी समस्याओं के समाधान का रास्ता स्वच्छ ऊर्जा से निकल रहा है। पिछले एक दशक में कई स्टार्टअप्स अस्तित्व में आए हैं जिससे ग्रामीण जीवन आसान हो रहा है।
- ये स्टार्टअप,पेय जल से लेकर कृषि कार्यों से जुड़े समस्यों का सामाधान लेकर आ रहे हैं। महाराष्ट्र, गुजरात और ओडिशा के साथ साथ अन्य कई राज्यों में इनका विस्तार हो रहा है।
- भारत सरकार के कार्यक्रम जैसे स्टार्टअप इंडिया मिशन आदि की वजह से नए उपक्रमों को काम करने में मदद मिल रही है। हालांकि, इन स्टार्टअप्स के सामने विदेशी आयात पर निर्भरता इनके विकास के रास्ते में रोड़ा है।
गुजरात के सूरत जिले का एक तटीय गांव है ओलपाड। गांव के बगल में पानी ही पानी है, लेकिन यहां पीने लायक पानी की किल्लत है। समुद्र का खारा पानी, पीने और रोजमर्रा की दूसरी जरूरतों के लायक नहीं होता। गांव के लोगों को पानी के लिए टैंकर का इंतजार रहता है।
अरब सागर से सटे इस गांव का भूजल भी खारा है। 25 वर्षीय यश तरवड़ी और उनके कुछ साथियों ने लगभग पांच साल पहले इस समस्या से निपटने के लिए काम करना शुरू किया था। उस समय सभी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। सूरत शहर में एक छोटा सा मकान किराये पर लेकर इन्होंने इस समस्या का हल निकालने की ठानी और प्रयोग करने शुरू किए।
शुरुआत में असफलताएं मिली लेकिन निदान स्वच्छ ऊर्जा के माध्यम से निकला। इन सभी ने मिलके ऐसे कई समस्याओं पर काम करने के लिए सोलंस टेक्नोलॉजी नामक एक स्टार्टअप की शुरुआत की। कंपनी से जुड़े इंजीनियर्स के लिए ओलपाड एक प्रोजेक्ट साइट बन गया और पायलट प्रोजेक्ट के तहत समाधान की शुरुआत इस गांव से हुई।
चार साल पहले इस स्टार्टअप ने स्वच्छ ऊर्जा से चलने वाला एक ऐसा सिस्टम तैयार किया जिससे समुद्र के खारे पानी को पीने योग्य बनाया जा सके। इसकी सफलता के बाद तरवड़ी और उनकी टीम को यह एहसास हुआ कि यह तकनीक भारत के कई तटीय इलाकों के जल की समस्या को हल कर सकता है।
“हमनें देखा कि ओलपाड के लोग पानी की समस्या से ग्रस्त थे। यहां पानी में घुले पदार्थ (टीडीएस) की मात्रा 800 मिलीग्राम प्रति लीटरटर तक थी। यहां पीने का पानी टैंकर से मंगवाना पड़ता था। ऐसी ही स्थिति भारत के अनेक तटवर्ती इलाकों की है। इसमें चेन्नई से सटे इलाके भी शामिल हैं। यहां समुद्र में बेशुमार पानी है लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं हो पाता,,” तरवड़ी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
तरवड़ी कहते है कि देश के कई इलाकों में यह काम आरओ फिल्टर से किया जाता है जो ना केवल पर्यावरण के लिहाज से नुकसानदायक है बल्कि ऐसे उपकरण कोयले से बनी बिजली पर भी आश्रित रहते हैं। आरओ को निरंतर मरम्मत की जरूरत होती है जिसपर अच्छा खासा खर्च होता है।
“सबको पता हैं कि आरओ फ़िल्टर की प्रक्रिया में कई लीटर पानी बर्बाद होता है और वह पानी जमीन पर बहा दिया जाता है। इसके लिए बिजली की भी जरूरत होती है जो कि ग्रामीण इलाकों के लिए उपयुक्त नहीं है,” तरवड़ी ने बताया।
इस स्टार्टअप का मॉडल सौर ऊर्जा का प्रयोग करके खारे पानी को भाप में बादल देता है और फिर उसे ठंडा करके साफ पानी को जमा किया जाता है। इस मॉडल में सौर किरणों को एक छतरीनुमा सयंत्र के माध्यम से एक बिन्दू पर फोकस किया जाता है। इससे खारे पानी का वाष्पीकरण होता है। इस सिस्टम से प्रतिदिन 1500 लीटर पीने का पानी बनाया जा रहा है। इस स्टार्टउप को एनएबीएल (नेशनल एक्रीडिशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड केलिब्रेशन लेबोरेट्रीज) से प्रमाण पत्र भी हासिल है। साल 2020 में इस उपक्रम को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने नवाचार और संधारणीय विकास लक्ष्य के क्षेत्र मे काम करने के लिए पुरस्कृत भी किया था।
कृषि में स्वच्छ ऊर्जा से समाधान
गुजरात से सटे महाराष्ट्र में भी कई स्टार्टअप्स हैं जो स्वच्छ ऊर्जा के माध्यम से कई समस्याओं का समाधान ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा ही एक स्टार्टअप है एग्री-विजय। इसकी शुरुआत 2020 में विमल पंजवाणी ने की थी। यह स्टार्टअप महाराष्ट्र के किसानों के साथ काम कर रहा हैं। सौर पम्प, बायोगैस डाइजेस्टर और स्वच्छ ऊर्जा से चलने वालें कई और उपकरणों से यह स्टार्टअप सूखा प्रभावित विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे इलाकों के किसानों को कृषि क्षेत्र की समस्याओं से राहत दिला रहे हैं।
“महाराष्ट्र में बहुत से किसान सब्जी उगाने और दूध के उत्पाद बेचने का काम करतें हैं। हमनें ऐसे कई किसानों को सौर कोल्ड स्टोरेज और सौर से चलने वाले सुखाने वाला सयंत्र दिये जिससे वो सब्जियों और दुग्ध उत्पाद को लंबे समय तक स्टोर कर सकें और आत्मनिर्भर बन सके,” पंजवाणी ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
वो बताते है कि इस प्रदेश में गन्ने की अच्छी पैदावार होती है लेकिन इसके लिए समय पर समुचित पानी देना जरूरी है। अगर किसान सिर्फ मॉनसून के सहारे रहें तो कई बार उनकी फसल बर्बाद हो सकती है। “हमनें वाजिब दामों में कई गन्ने की खेती कर रहे किसानों को सौर पम्प उपलब्ध कराया जिससे सिंचाई के लिए मॉनसून पर उनकी निर्भरता कम हो गई और फसल बर्बाद होने का खतरा न के बारबार रह गया,” पंजवाणी कहते है।
हालांकि वो इस बात पर अफसोस जताते है कि ग्रामीण बाज़ार में सौर ऊर्जा का विकास अब तक बहुत सीमित रहा है। पंजवाणी ने इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट की पढ़ाई करने के बाद नीति आयोग द्वारा बनाए गए अटल इन्क्यूबेशन केंद्र से प्रशिक्षण लिया।
“हमलोग किसानों के लिए कुछ करना चाहते थे। हमनें देखा कि ग्रामीण इलाकों में किसान आज भी कोल्ड स्टोरेज, ऊर्जा और कई जरूरतों के लिए दूसरे पर निर्भर हैं जिनके कारण उनको अधिक खर्च भी करना पड़ता हैं। हमनें स्वच्छ ऊर्जा के माध्यम से इन दोनों समस्याओं का हल निकालने की कोशिश की और इसमें सफल भी रहें। कई किसान अब ऐसे उत्पादों के प्रयोग कर आत्मनिर्भर भी बन रहें हैं और कृषि पर लग रहा खर्च भी कम हो रहा है,” पंजवाणी कहते हैं।
कई जगह हो रहे ऐसे छोटे-छोटे प्रयास
भारत में जब भी स्वच्छ ऊर्जा की बात होती है तो चर्चा में अक्सर बड़ी सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं का जिक्र होता है। इसके इतर कुछ युवा उद्यमी स्वच्छ ऊर्जा के जरिए आम लोगों की जिंदगी सुगम बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर मिनुश्री मधुमिता और अमृता जगदेव की कहानी को लीजिये। यह दोनों बचपन के दोस्त है और ओडिशा के कालाहांडी जिले में पले-बढ़े हैं। यह जिला नीति आयोग के पैमाने से भारत के पिछड़े जिले के सूची में आता है। 2016 में इन दोनों ने थिंकरॉ नाम की एक स्टार्टअप शुरूआत की जिससे किसानों को स्वच्छ ऊर्जा और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से जोड़ा जा सके। इस तरह कृषि, मत्स्य पालन में क्षति कम हो सकती है। इसपर आने वाला खर्च भी कम हो पाएगा। साथ ही, कृषि में लगीं महिलाओं का काम भी आसान हो सकेगा।
“मैंने 2013 में आईटी की नौकरी छोड़ दी और कृषि के क्षेत्र में नई तकनीक के विकास के काम में लग गई। मैंने यह पाया कि कृषि के बहुत से काम श्रम प्रधान हैं। हमने स्वच्छ ऊर्जा के माध्यम से कई तकनीक का विकास किया जिससे कि कृषि में लग रहे समय और श्रम को कम किया जा सके। एक महिला होने के नाते हमनें कृषि से जुड़े महिला मजदूरों के समस्याओं को भी नजदीक से देखा और समझा हैं,” मधुमिता ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
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दिल्ली से काम कर रहे इस स्टार्टअप ने कृषि धनु नाम का एक संयंत्र बनाया जिससे की कीटनाशकों को बिना पानी का प्रयोग किए और हाथ लगाए खेतों मे डालना संभव हो पाया। यह सौर ऊर्जा से चलने वाला एक संयंत्र था।
“समान्यतः महिला कृषि मजदूर कीटनाशक छिड़कते समय एक हाथ मे कीटनाशक का थैला पकड़ती थी और दूसरे हाथ से छिड़काव करती थी। ऐसे करने से उनके त्वचा पर भी असर पड़ता था। हमने ऐसी तकनीक बनाई जो केवल 100 वाट के सौर पैनल से चल सकता है। इसने स्वस्थ्य और श्रम दोनों को बेहतर करने मे मदद की है,” मधुमिता ने बताया।
इस स्टार्टअप ने एक और उत्पाद भी बनाया है। नाम हैढीव्र मित्र। इससे मत्स्यपालन में उत्पादन बढ़ सकता है और तालाब की देख-रेख भी हो सकती है। यह उपकरण पानी में घुले ऑक्सिजन की मात्रा को बनाए रखता है जबकि पानी मे जरूरत के हिसाब से अम्ल की मात्रा को भी नियंत्रित करता है। इस उपकरण में सेन्सर लगे हुये है जो पानी में घुले ऑक्सिजन और अम्ल का आंकलनकरता है और पानी में इसकी संतुलित मात्रा सुनिश्चित करता है।
हुरुन रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा पिछले साल जारी एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका और चीन के बाद, भारत में विश्व के सबसे ज्यादा स्टार्टअप हैं। जबकि केंद्र सरकार स्टार्टअप इंडिया मिशन के माध्यम से स्टार्टअप्स को पेटेंट हासिल करने और अन्य जरूरतों में मदद कर रही है, आईआईटी जैसे कई संस्थान अपने इंक्यूबेशन सेंटर के साथ स्टार्टअप को तैयार कर रहे हैं जो मेंटरशिप, आधारभूत ढांचा, पेटेंट और फंडिंग सहायता प्रदान करते हैं। नीति आयोग उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए ऐसे इन्क्यूबेशन केंद्रों के लिए संस्थानों को वित्तीय सहायता भी दे रहा है।
आयात पर निर्भरताकम करने का प्रयास
देश में कई स्टार्टअप ग्रामीण इलाकों और कृषि के क्षेत्र में काम कर रहें हैं, पर कई शहरी ऊर्जा की जरूरतों और विदेशी आयात को कम करने में भी लगे हैं। एक्जल्टा इंडिया वैसी ही एक कंपनी है जिसे 2015 में आशुतोष वर्मा ने शुरू किया था। वर्मा ने स्टार्टउप आईआईटी, कानपुर के इन्क्यूबेशन केंद्र से ट्रेनिंग ली और भारत का पहले सौर ऊर्जा से चलने वाला वातानुकूलित मशीन (एयर कंडीशन) बनाया जो डाइरैक्ट करेंट से चल सके। इसकी मांग जल्द ही देश एवं विदेश में होने लगी।
“हमलोग भारत के ऐसे पहले संस्थानों में से थे जिन्होंने देसी सौर एयर कंडीशनर (एससी) बनाया और बेचा। पहले ऐसे मशीनों के लिए हमलोग चीन जैसे देशो की ओर देखते थे। हमारे बनाये एसी सौर ऊर्जा से वह भी बिना किसी बैटरी की जरूरत के एसी के चलते हैं। यह मॉडल दूरगामी इलाकों, पहाड़ी और ग्रामीण इलाकों में बसे होटल और अन्य संस्थानों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकता है। हमारे बनाये एसी आज मथुरा के देवी मंदिर, नोएडा के इस्कॉन मंदिर, मानेसर के हीरो होंडा कॉम्प्लेक्स एवं देश का अनेकों हिस्सों में काम कर रहे हैं। विदेश में दुबई और अफ़ग़ानिस्तान में भी हमारे सौर एसी का निर्यात होता है,” वर्मा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
यह सौर एसी, 2 किलोवॉट के सौर पैनल से चल सकता है। वर्मा ने बताया की आईआईटी कानपुर के इन्क्यूबेशन केंद्र से उनके संस्था को विकास करने और मार्गदर्शन में अच्छी सहायता मिली। हालांकि वे कहते है कि स्वच्छ ऊर्जा का क्षेत्र आज भी आयात पर काफी निर्भर है। यह इस देश के स्वच्छ ऊर्जा के स्टार्टअप के लिए एक समस्या है।
“नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत आज भी चीन पर निर्भर है। उनके व्यापक ढांचे के कारण वो बड़े स्तर पर उत्पादन करते है। इससे वहां बनी मशीनों या उनके पुर्जो की कीमत कम होती है। अगर भारत में ज्यादा स्थानीय उत्पादन केंद्र खुले और इस क्षेत्र में अधिक स्टार्टअप आए तो हम अपने आयात के मांग को कम कर सकते है,” आशुतोष ने बताया।
बैनर तस्वीर– यश तरवड़ी अपने अन्य साथियों के साथ अपने सौर प्लांट को दिखाते हुये । तस्वीर-यश तरवड़ी