- भारत सरकार ने हाल ही में नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी को अधिसूचित किया है। इस नीति के तहत वर्ष 2030 तक पचास लाख टन (पांच मिलियन टन) ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- इसे हासिल करने के लिए कई घोषणाएं की गयी हैं। इनमें ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया बनाने वाले उत्पादकों को सिंगल विंडो पोर्टल के माध्यम से मंजूरी दी जाएगी। अन्य उपायों में ऐसे निर्माताओं को नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों से पैदा होने वाली बिजली वाले ग्रिड से जोड़ना भी शामिल है।
- इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया के तहत पानी से ग्रीन हाइड्रोजन गैस बनाया जाता है। बिजली की मदद से पानी को ऑक्सीजन और हाइड्रोजन को अलग करने की प्रक्रिया को इलेक्ट्रोलिसिस कहते हैं। केंद्र सरकार देश को ग्रीन हाइड्रोजन/अमोनिया का निर्यात केंद्र बनाने पर भी जोर दे रही है।
भारत सरकार ने फरवरी 2022 में ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी (हरित हाइड्रोजन नीति) की घोषणा की। इसके तहत हाइड्रोजन उत्पादन के लिए कम कार्बन उत्सर्जन वाली तकनीकों के उपयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। इस नीति के तहत केंद्र सरकार ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया गैस की ढुलाई शुल्क को 20 वर्ष के लिए माफ करने का फैसला लिया है। शुल्क माफी का लाभ उन उत्पादकों को मिलेगा जो 30 जून 2025 से पहले उत्पादन शुरू करेंगे।
ग्रीन हाइड्रोजन से मतलब उस हाइड्रोजन गैस से है जिसे नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा पानी के इलेक्ट्रोलिसिस की प्रक्रिया से बनाया गया हो। इस प्रक्रिया में बिजली की मदद से पानी को हाइड्रोजन और आक्सिजन के रूप में अलग किया जाता है।
सरकार ने जारी बयान में कहा कि हाइड्रोजन और अमोनिया फ्यूचर फ्यूल्स हैं। मतलब भविष्य में ईंधन की जरूरतों को पूरा करने के लिए इनपर निर्भरता बढ़ेगी। दूसरी तरफ जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) जैसे पेट्रोल-डीजल पर निर्भरता कम करने की कोशिश हो रही है। इस बयान में आगे कहा गया कि इन गैसों का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से करना पर्यावरण के लिए बेहद जरूरी है।
इससे पहले अगस्त 2021 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की थी। यह मिशन देश के जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में केंद्र सरकार के प्रयासों की कड़ी में एक और प्रयास है। भारत का 2030 तक 50 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित है।
अक्षय ऊर्जा को लेकर भी भारत ने महत्वकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। देश में 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इसमें सौर ऊर्जा से लगभग 280 गीगावाट और पवन ऊर्जा से 140 गीगावाट शामिल है। देश की नजर ग्रीन हाइड्रोजन और पवन ऊर्जा जैसी अन्य तकनीकों पर भी है।
नीति की अधिसूचना में कहा गया है कि कार्बन और अन्य उत्सर्जन कम करने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन और अमोनिया की तरफ बढ़ना जरूरी है। विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां उत्सर्जन कम करना कठिन है। इसके मुताबिक ग्रीन हाइड्रोजन और अमोनिया का उत्पादन करने वालों को पावर एक्सचेंज से नवीकरणीय ऊर्जा खरीदने की अनुमति होगी। वे अपना खुद का नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्र भी स्थापित कर सकते हैं।
इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए उत्पादकों को बची हुई उर्जा वितरण कंपनियों के पास 30 दिन तक जमा कराने की सुविधा भी मिलेगी। इसके तहत वे जो ऊर्जा खर्च नहीं कर पाएंगे उसे ग्रिड में जमा कर सकेंगे और और जरूरत पड़ने पर उनसे वापस ले सकेंगे।
हाल ही में आई इस नीति में इस बात पर जोर दिया गया है कि हाइड्रोजन और अमोनिया उत्पादन कंपनियों को अक्षय ऊर्जा का कनेक्शन देने में प्राथमिकता दी जाएगी, ताकि उन्हें काम शुरू करने में देरी न हो।
इसमें स्पष्ट किया गया है कि हरित हाइड्रोजन/अमोनिया के उत्पादन के लिए उपभोग की जाने वाली अक्षय ऊर्जा को आरपीओ के रूप में गिना जाएगा। आरपीओ या रीन्यूएबल परचेज ऑब्लिगेशन एक ऐसा तंत्र है जिसके द्वारा विद्युत नियामक आयोग संस्थाओं को अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली का एक निश्चित प्रतिशत खरीदने के लिए बाध्य करता है।
इसके अतिरिक्त खर्च हुए नवीन ऊर्जा को वितरण कंपनियों के आरपीओ में गिना जाएगा। यह उस वितरण कंपनी के हिस्से में जाएगा जिसके क्षेत्र में ग्रीन हाइड्रोजन बनाने वाली कंपनी काम करती है।
इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस के शोध विश्लेषक कशिश शाह ने इस मामले पर मोंगाबे-हिन्दी से बात की। उन्होंने सरकार द्वारा घोषित उपायों के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि हाइड्रोजन उत्पादन की कुल लागत में एक चौथाई खर्च बिजली पर होता है।
उन्होंने कहा कि जीवाश्म ईंधन की तुलना में हाइड्रोजन का उत्पादन लागत कम करना एक चुनौती है। इस दशक के अंत तक ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को दो यूएस डॉलर (करीब 150 रुपए) प्रति दो किलो के नीचे लाना होगा। इस काम में अक्षय ऊर्जा की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
हालांकि, शाह ने कहा कि वर्तमान में भारत में केवल कुछ मुट्ठी भर राज्य अक्षय ऊर्जा की कुल स्थापित क्षमता हासिल करने की राह पर हैं। तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात और राजस्थान जैसे बेहतर अक्षय ऊर्जा क्षमता वाले राज्य शीर्ष पर हैं। अक्षय ऊर्जा के डेवलपर्स ऐसे राज्यों की क्षमता बढ़ा रहे हैं लेकिन दूसरे राज्य इससे अछूते हैं।
शाह ने सुझाया कि आने वाले समय में सरकार के द्वारा छूट मिलने से अपेक्षाकृत कम नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वाले राज्यों में भी ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन शुरू हो सकेगा। ये उत्पादक अन्य राज्यों से सस्ती अक्षय ऊर्जा खरीदने के लिए दीर्घकालिक पीपीए (बिजली खरीद समझौते) को अनुबंधित कर सकते हैं। इससे ये राज्य अपने स्थानीय उद्योगों को डीकार्बोनाइज यानी उत्सर्जन कम कर सकते हैं।
ग्रीन हाइड्रोजन परियोजना को मंजूरी के लिए सिंगल विंडो सिस्टम
सरकार की इस घोषणा में सिंगल विंडो सिस्टम का प्रावधान भी है। हाइड्रोजन उत्पादकों की सुविधा के लिए केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा सभी वैधानिक मंजूरी और अनुमति के लिए एक ‘सिंगल पोर्टल’ स्थापित किया जाएगा। इसी पोर्टल से ग्रीन हाइड्रोजन/अमोनिया निर्माण, वितरण, परिवहन, भंडारण संबंधित जरूरतों के लिए आवेदन किया जा सकेगा। इसमें कहा गया है कि एजेंसियों और अधिकारियों से अनुरोध किया जाएगा कि वे आवेदन की तारीख से 30 दिनों के भीतर समयबद्ध तरीके से मंजूरी और अनुमति प्रदान करें।
इस नीति के अनुसार, अक्षय ऊर्जा पार्कों में ग्रीन हाइड्रोजन/अमोनिया के निर्माण के लिए जमीन आवंटित की जा सकती है। भारत सरकार का प्रस्ताव विनिर्माण क्षेत्र स्थापित करने का है। यह एक ऐसा क्षेत्र होगा जहां ग्रीन हाइड्रोजन/अमोनिया के लिए उत्पादन संयंत्र स्थापित किए जा सकते हैं। निर्यात के मद्देनजर निर्माताओं को ग्रीन अमोनिया के भंडारण के लिए बंदरगाहों के पास बंकर स्थापित करने की अनुमति दी जाएगी। इस काम के लिए बंदरगाह को जमीन आवंटित की जाएगी।
नीति में कहा गया है कि “प्रतिस्पर्धी कीमतों” को प्राप्त करने के लिए, एमएनआरई ग्रीन हाइड्रोजन/अमोनिया की खरीद के लिए विभिन्न क्षेत्रों से मांग को एकत्रित कर सकता है और बोली लगाने की प्रक्रिया आयोजित कर सकता है।
भारत सरकार ने यह भी कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी के लागू होने से देश के आम लोगों को स्वच्छ ईंधन मिलेगा और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी। इससे कच्चे तेल का आयात भी कम होगा। इसका उद्देश्य भारत को ग्रीन हाइड्रोजन/अमोनिया के क्षेत्र में निर्यात केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
भारतीय बाजार में ग्रीन हाइड्रोजन के लेकर उत्साह के सवाल पर शाह ने कहा कि यह नीति भारत में ग्रीन हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है।
वह कहते हैं, “एक तरह से यह एक नीतिगत ढांचा बनाने की ओर एक कदम है जिसकी मांग उद्योग क्षेत्र से आ रही थी। इस कदम से भारत के लिए, ग्रीन हाइड्रोजन के लिए वैश्विक दौड़ में, शामिल होने का रास्ता खुलेगा। पिछले कुछ महीनों में कॉर्पोरेट की ओर से घोषणाएं इस क्षेत्र में उद्योग की मंशा का संकेत हैं।
उदाहरण के लिए, मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज ने ग्रीन हाइड्रोजन को लेकर बड़ी योजनाओं की घोषणा की है। शाह कहा कि रिलायंस का लक्ष्य इस दशक के अंत तक ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को 1 अमेरिकी डॉलर (लगभग 75 रुपए) प्रति किलोग्राम से कम करना है। कंपनी ने अगले तीन साल में 75,000 करोड़ रुपये (लगभग 10 बिलियन अमरीकी डालर) के पूंजी निवेश की घोषणा की है। एक और उदाहरण देते हुए वह समझाते हैं, “एनटीपीसी का लक्ष्य 2025-2026 तक उत्पादन लागत को 2 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम से कम करना है। एनटीपीसी एक सरकारी कंपनी है, इस नाते एनटीपीसी का यह लक्ष्य वास्तव में इस क्षेत्र के लिए भारत सरकार की योजनाओं की झलक मिलती है।”
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अक्षय ऊर्जा विकासकर्ता एसीएमई ने पहले ही बीकानेर, राजस्थान में एक अर्ध-व्यावसायिक ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन केंद्र शुरू किया है।
“कई डेवलपर्स अपने व्यापार का विस्तार करने के लिए अक्षय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन के बीच तालमेल का लाभ उठाने की योजना बना रहे हैं। इस नीति के लागू होने से देश के आम लोगों को स्वच्छ ईंधन मिलेगा। इससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी, कच्चे तेल के आयात में कमी आएगी और सरकार को अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी,” शाह कहते हैं। लेकिन इस काम को करने में काफी लागत आएगी। क्या इसके बावजूद ग्रीन हाइड्रोजन भारतीय बाजार के लिए काफी आशाजनक है? सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (सीएसटीईपी) में एक शोध वैज्ञानिक और हाइड्रोजन अध्ययन के समूह प्रमुख मुरली आर अनंतकुमार ने कहा कि पिछले वर्षों में कई बार हाइड्रोजन चर्चा में आया। हालांकि, इस बार कई प्रमुख भागीदार अपनी रुचि दिखा रहे हैं जो कि एक महत्वपूर्ण संकेत है।
“निजी कंपनियां अनुमान लगा रही हैं कि 2025 और 2030 के बीच प्रति किलोग्राम हाइड्रोजन की कीमतें एक डॉलर तक पहुंच जाएंगी। सरकार की कोशिशों और बाजार में नए प्रयोगों की वजह से सौर पैनल की कीमतें पिछले दशक में 80 प्रतिशत से अधिक कम हो गई हैं। हाइड्रोजन क्षेत्र में इस तरह के हित समान रूप से लागत को कम कर सकते हैं। ढुलाई शुल्क माफ करने और ग्रिड पर होने वाले प्रभावों का आकलन करने के लिए एक गहन शोध की आवश्यकता है,” अनंतकुमार ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
बैनर तस्वीरः ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग परिवहन सहित कई अन्य क्षेत्रों को ऊर्जा देने के लिए किया जा सकता है। तस्वीर– मिरकोन / विकिमीडिया कॉमन्स