- झारखंड में देश का सबसे बड़ा कोयले का भंडार हैं जहां कम से कम तीन लाख लोग अपनी आजीविका के लिए कोयले के खानों पर निर्भर हैं।
- यहां काम कर रहें लोगों को अब यह चिंता सता रही है कि अगर स्वच्छ ऊर्जा के विस्तार के कारण कुछ कोयले के खदानों को बंद किया गया तो उनके लिए रोजी-रोटी का संकट आ सकता है।
- इन खदानों में काम कर रहे लोग, इनके यूनियन और विशेषज्ञों का मानना हैं कि ऊर्जा ट्रांजिशन का काम समुचित प्लानिंग के साथ किया जाना चाहिए ताकि सबके हित का खयाल रखा जा सके।
बेरमों झारखंड के बोकारो जिले का एक छोटा सा कस्बा है जो प्रदेश के पूर्वी बोकारो कोलफील्ड का एक अंग है। अगर आप रांची से बेरमों के तरफ सड़क मार्ग से जाएंगे तो आपको 10 किलोमीटर पहले से ही बहुत से वाहन कोयला ढोते मिल जाएंगे। बेरमों के एक तरफ जारंगडीह रेलवे स्टेशन है जहां से कोयला रेलगाड़ियों से देश के दूसरे हिस्सों में ले जाया जाता है। वहीं दूसरी तरफ बोकारो थर्मल प्लांट में कोयले को जला के बिजली का निर्माण होता है। बेरमों में कोयले के खनन, उसकी माल-ढुलाई और कोयले से ऊर्जा बनाने की पूरी प्रक्रिया को सुचारु रूप से चलाने में बहुत से लोगों का योगदान होता है और यही उनलोगों के आजीविका का साधन भी है।
उदाहरण के तौर पर बेरमों के एक कोयले के खान में काम कर रहे अजय कुमार शाहा को ही लीजिये जो कोयले के खान में यांत्रिक विभाग में पिछले 28 साल से काम कर रहे हैं। सप्ताह के पांच दिन वह कोयले के खान में काम करके जब घर पहुंचते हैं तो कोयले के धूल की एक मोटी परत उनके चेहरे, बाल, पैरों और कपड़ों पर होती है।
लेकिन शाहा या कोयले के खानों में काम कर रहा कोई और, किसी को कोयले से निकलती इस कालिख से शिकायत नहीं रहती। बेरमों में दो लेन की छोटी सड़क में अक्सर कोयले से लदे ट्रकों की आवाजाही की वजह से कोयले का काली धूल हमेशा हवा में तैरता दिख जाएगी। लेकिन यहां के स्थानीय लोगों को इससे भी कोई गुरेज नहीं है।
अब जब देश में एनर्जी ट्रांजिशन पर चर्चा हो रही है और कोयले के बहुत से खदानों को बंद करने की योजना बनाई जा रही है तो खदानों में काम कर रहे लोगों को कुछ चिंता सता रही है। ये लोग और इससे जुड़े स्थानीय व्यापारी आने वाले दिनों मे किसी कीमत पर खानों के बंद करने के पक्ष में नहीं हैं। इसका कारण सीधा है। खान बंद होने के साथ उनकी आजीविका का साधन भी छिन जाएगा।
इसीलिए विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर खनन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोगों के जीविकोपार्जन की योजना समय रहते समुचित तरीके से नहीं बनाई गई तो लाखों लोगों की जीविका खतरे में पड़ सकती है। सही प्लानिंग के साथ इन खानों को बंद करने की प्रक्रिया को ही जस्ट ट्रांजिशन कहा जाता है।
ऊर्जा ट्रांजिशन से हमारा मतलब देश के ऊर्जा के बदलते स्रोतों से है। सरकार कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए कई प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में बहुत से कोयले के खानों को बंद करने की योजना है।
झारखंड में बड़ी संख्या में लोग होंगे प्रभावित
इन खानों को बंद करना समय की मांग है। हालांकि जो इन खानों पर निर्भर हैं उनके बारे में भी सोचना जरूरी है। झारखंड में ऐसे लोगों की संख्या काफी अधिक है। झारखंड प्रदेश के सरकारी आंकड़ें कहते हैं कि देश में सबसे ज्यादा कोयले का भंडार इस राज्य में है जहां 83,1520 लाख टन अपेक्षित कोयला का भंडार है। यह देश के कुल कोयला भंडार का 27.3 प्रतिशत है।
2021 में अमेरिका की सेंटर फॉर स्ट्रटीजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) के अनुसार झारखंड में सक्रिय लगभग 144 खानों में लगभग 3 लाख लोग सीधे तौर पर कार्यरत हैं। इनके अतिरिक्त 10 लाख लोग अप्रत्यक्ष तौर पर खानों पर अपने जीविका के लिए निर्भर है। राज्य के कुल 24 जिलों में से 11 जिलों में खनन होता है और राज्य का 8.9 प्रतिशत राजस्व केवल खनन से ही आता है।
पिछले कुछ वर्षों में बहुत सी खानें बंद हो हुई हैं और आने वाले दिनों में बहुत सी खानें बंद होंगी। सरकारी आंकड़ों की माने तो देश मे अप्रैल 1, 2021 तक 293 खानें बंद हो चुकी हैं। 2021 में नई दिल्ली स्थित ई-फॉरेस्ट के एक अध्ययन में बताया गया कि झारखंड में लगभग 50 प्रतिशत खानें बंद हो गई जबकि चल रहें खानों में से 50 प्रतिशत घाटे में चल रही है।
2021 के ई-फॉरेस्ट के एक और अध्ययन में रामगढ़ के खानों के आस पास के लोगों के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को समझने की कोशिश की गई जहां कोयले के बहुत से खान 10 साल पहले बंद हो गए थे। इस अध्ययन के आधार पर इन शोधकर्ताओं ने समय से सही नीति बनाने की वकालत की।
“सिर्फ एक खान हजारों लोगों को सीधे तौर पर रोजगार मुहैया करता है। बेरमों में स्थित कोयले के खान में लगभग 850 लोग अलग अलग शिफ्ट में काम करते हैं जबकि खनन का काम 24 घंटे चलता है। अगर कोयले का खनन बंद होता है तो इसका रोजगार पर सीधे तौर पर असर पड़ेगा। बहुत से लोगों के बेरोजगार होने की आशंका है,” 48 वर्ष के राम नन्दन ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया जो ऐसे ही एक खान में फिटर का काम करते है।
नन्दन जैसे और बहुत से लोग है जो ऐसे खानों में काम करते है और खनन के बंद होने पर आने वाला रोजगार संकट और सामाजिक असुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। बहुत से ऐसे मजदूर और कर्मी सरकारी खनन वाले कंपनियों जैसे-सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल), बीसीसीएल आदि में काम करते है। झारखंड में अधिकांश खनन सरकारी कंपनियां ही करती हैं।
“अगर कोई किसी सरकारी खनन कंपनी में काम करता है तो उसे पेंशन, मुफ्त चिकित्सा, सस्ती बिजली, घर, शिक्षा और पानी की सुविधा मिलती है। क्या हम उसी तरह कि सामाजिक सुरक्षा की उम्मीद नवीन ऊर्जा के क्षेत्र से कर सकते हैं?,बेरमों के कोयले के खान में काम करने वाले कृष्ण राय ने पूछा जो इस खान में विगत 30 वर्षों से कार्यरत हैं।
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कोयला मजदूरों में जागरूकता की कमी
बहुत से कोयले के खानों में कार्यरत लोगों को संगठित करने में मजदूर यूनियन की बड़ी भूमिका होती है। इन संगठनों की वजह से आम मजदूरों के हित की रक्षा होती रही है।
जयनाथ तांती बेरमों में राष्ट्रीय कोयला मजदूर यूनियन के एक यूनियन लीडर है। उन्होंने बताया कि ऊर्जा ट्रांजिशन की अधिक जानकारी मजदूर और खानों में छोटे तबकों पर काम कर रहे लोगो को नहीं है। कोयला खानों के बंद होने की योजना का भी पता बहुत से मजदूरों को अब तक नहीं है।
तांती बताते हैं कि जब ऊर्जा ट्रांजिशन का प्रभाव सिर्फ कोयला के खानों पर काम कर लोगों पर ही नहीं पड़ेगा बल्कि इससे संबंधित क्षेत्र के व्यवसाय भी प्रभावित होंगे। “कोयले के खानों में काम करने वाले लोग, खनन से प्रभावित होने वाला एक छोटा हिस्सा भर हैं। खनन के क्षेत्र में पूरी की पूरी अर्थव्यवस्था इसी पर निर्भर होती है। बहुत से लोगो के घर ऐसे उद्योगों से ही चलते हैं। खनन वाले क्षेत्रों में ड्राईवर है, ट्रक मरम्मत करने वाली दुकाने हैं, दिहाड़ी मजदूर हैं, कोयला ढोने वाली महिलाएं हैं और आस-पास खाने-पीने की दुकाने हैं। इन सबका रोजगार कोयला और खनन पर निर्भर है लेकिन कागजों पर इनका उचित आंकलन संभव नहीं है। अगर ऐसे किसी जगह पर खानें बंद हुई तो यहां की पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी,” तांती कहते हैं।
इनकी माने तो एक एक खान प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष रूप से हजारों लोगों को रोजगार देता है। आप किसी भी खनन वाले क्षेत्र में पूछ लीजिये कोई भी आपको खनन बंद करने के पक्ष में नजर नहीं आएगा। बल्कि मांग ये होगी कि खनन का विस्तार होगा ताकि आने वाले पीढ़ियां भी रोजगार पा सके।
मुन्ना झा, असर नमक संस्था से जुड़े है जो वातावरण और ऊर्जा के क्षेत्र में काम करती है। उन्होंने मोंगाबे-हिन्दी को बताया कि ऊर्जा ट्रांजिशन की बात तो हो रही है पर अधिकांश राज्यों के पास इसको लेकर कोई ठोस नीति नहीं है।
झारखंड में जस्ट ट्रांजिशन के अहमियत
एक कोयला धनी राज्य होने के कारण एनर्जी ट्रांजिशन का प्रभाव सबसे ज्यादा होने की संभावना है। हालांकि राज्य सरकार इस विषय में बहुत सी संस्थाओ के संपर्क में है ताकि एक नीति बनाई जा सके। हालांकि अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है।
संदीप पाई, वॉशिंग्टन स्थित सीएसआईएस नाम की एक संस्था से जुड़े हैं और जस्ट ट्रांजिशन पर का करते हैं। पाई कहते हैं कि इस विषय में एक समुचित योजना बनाने की जरूरत है। बिना इसके हम एक बेहतर भविष्य की कल्पना नहीं कर सकते। “आप किसी भी कोयला संपन्न राज्यों को ले लीजिये जैसे झारखंड, ओडिशा या छत्तीसगढ़। इन राज्यों का राजस्व का अच्छा हिस्सा कोयले से आता है। कोयला खान बंद करने से ऐसे सभी राज्यों के राजस्व पर असर पड़ सकता है। इसके अलावा ऐसे सभी राज्य आर्थिक दृष्टि से कमजोर राज्य हैं। अतः ऐसे राज्यों में खनन बंद होने का असर उनको वित्तीय चोट पहुंचा सकता है,,” पाई ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया।
नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में रोजगार की संभावना पर पाई कहते हैं, “नवीन ऊर्जा के क्षेत्र में इतने बड़े वर्ग को रोजगार देना संभव नहीं लगता। अगर कहीं रोजगार है तो वह है निर्माण क्षेत्र। लेकिन अगर आप ट्रेंड देखेंगे तो पता चलेगा कि नवीन ऊर्जा के मैनुफेक्चरिंग यूनिट ज़्यादातर पश्चिमी भारत के राज्यों में है। यहां तक कि झारखंड में काम कर रहे कोयले की कंपनीयां इस क्षेत्र में ज्यादा निवेश गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में कर रही हैं।”
इन सबके बावजूद यह एक अच्छी खबर है कि सरकारें धीरे धीरे इन चुनौतियों को लेकर सजग हो रही हैं। झारखंड सरकार के अनुसार उनका पर्यावरण, जंगल और जलवायु परिवर्तन विभाग जस्ट ट्रांजिशन के लिए रोडमैप बनाने में लगा है। राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ़) अजय कुमार रस्तोगी के अनुसार झारखंड देश के चुनिन्दा राज्यों में से एक है जहां ऐसे रोडमैप बनाने पर काम चल रहा है।
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बैनर तस्वीरः बेरमों के एक कोयले के खान में काम करने वाले लोगों को अक्सर कोयले के धूल का सामना करना पड़ता है फिर भी वे खुश रहते हैं क्योंकि इसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है। तस्वीर-मनीष कुमार/मोंगाबे