- ग्लेशियल झील में पानी अपनी सीमा तोड़ कर बड़ी मात्रा में तेज गति से नजदीक के झरना और नदी में जाकर मिलता है। विज्ञान की भाषा में इस परिघटना को ग्लेशियल झील में बाढ़ का विस्फोट (जीएलओएफ़) होना कहते हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। ग्लेशियर में इंसान के बढ़ते पदचिन्ह के कारण जीएलओएफ का खतरा बढ़ रहा है।
- ग्लेशियल झील में विस्फोट होने पर उसका पानी तेज गति से नीचे की ओर प्रवाहित होने लगता है। इससे प्रभावित क्षेत्र के आधारभूत संरचनाओं का बहुत नुकसान होता है। निचले क्षेत्र में रहने वाले समुदाय, आधारभूत संरचनाओं और जीव-जन्तु तथा वनस्पतियों को जीएलओएफ से काफी नुकसान होता है।
हिमालय क्षेत्र झीलों के अचानक टूटने से भीषण आपदा आती है। इसे अंग्रेजी में जीएलओएफ कहते हैं। जीएलओएफ का मतलब ग्लेशियल लेक आउटब्रस्ट फ्लड यानी हिमनद झील की वजह से आई बाढ़ है। साल दर साल हिमालय को जीएलओएफ का सामना करना पड़ रहा है जिसमे हजारों लोगों की जान जा रही है और आधारभूत संरचना का भारी नुकसान हो रहा है।
जीएलओएफ क्या है ?
ग्लेशियल झीलों में पानी अपनी सीमा को तोड़ता है और उसके कारण भारी मात्रा में पानी नजदीक के झरना और नदी में जाकर मिल जाता है। वैज्ञानिकों ने इस परिघटना को जीएलओएफ का नाम दिया है। इससे अचानक बाढ़ आ जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार यह मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियरों में बढ़ते इंसानी गतिविधियों के कारण होता है।
कश्मीर के इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइन्स एंड टेक्नोलॉजी के वाइस चांसलर शकील अहमद रोम्शू ने हिमालय के ग्लेशियरों का विस्तृत अध्ययन किया है। उनके अनुसार हिमालय में लगभग 2000 ग्लेशियल झील है और इनमे 200 झीलों में बाढ़ का खतरा है।
रोम्शू कहते हैं कि हिमालय में जीएलओएफ का खतरा बढ़ने के कई तरह के कारण है । वैश्विक तापमान बढ़ने के कारण ग्लेशियर तेजी से हर साल 20 मीटर सिकुड़ता जा रहा है। इससे जीएलओएफ का खतरा बढ़ रहा है। कुछ ग्लेशियर कुछ दशकों में खत्म हो जाएंगे।“ जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में ग्लेशियर पानी की जरूरत को पूरा करता है। हमे ग्लेशियर को बचाने के लिए उपयुक्त रणनीति अपनाना होगा जिससे की भविष्य में हमें पानी का संकट का सामना न करना पड़े।”
कश्मीर विश्वविद्यालय के जियो इन्फोर्मेटिक्स विभाग के शिक्षक इरफान रशीद ने स्पष्ट किया की जलवायु परिवर्तन और ग्लेशियर में इंसान की बढ़ती उपस्थिति के कारण से किस तरह से ग्लेशियर सिकुड़ते जा रहा है।
आसपास के क्षेत्र पर जीएलओएफ का क्या प्रभाव पड़ता है?
रशीद समझाते हैं, “सामान्य तरह की लेंड टर्मिनेटिंग ग्लेशियर सिर्फ पानी छोड़ता है लेकिन उससे जीएलओएफ जैसा खतरा नहीं होता है। लेकिन कुछ ग्लेशियर ऐसे भी होते हैं जिनमें एक ललाट क्षेत्र होता है और संचित जल के साथ एक कटोरी के आकार का गड्ढा भी होता है। झील में पानी की मात्रा बढ़ने पर ग्लेशियर द्वारा छोड़े गए मलवे और अन्य छोड़े गये सामानों के दीवार बढ़ी हुई पानी को समाहित करने में सक्षम नहीं होती है। इस कारण से विस्फोट होता है और अचानक पानी झील से बाहर तेज गति से प्रवाहित होने लगता है।”
आगे और विस्तार से समझाते हुए रशीद बताते है कि झील बनने के समय भूकंप के कारण मलवे का दीवार अस्थिर हो जाती है और विस्फोट होता है। इसी तरह से हिमस्खलन और भूस्खलन के कारण भी झील भर जाती है और इसके कारण पानी का विस्फोट होता है।
जून, 2013 में उत्तराखंड में अभूतपूर्व बारिश हुई और उसके कारण चोराबारी ग्लेशियर पिघल गया जिससे मन्दाकिनी नदी में बाढ़ आ गई। इस बाढ़ ने उत्तराखंड के बड़े क्षेत्र को प्रभावित किया। सबसे ज्यादा नुकसान केदारनाथ घाटी में हुई जिसमे 5000 लोगों की मौत हो गई। 2013 की केदारनाथ तवाही को याद करते हुए रशीद बताते हैं, “केदारनाथ में कई दिनों तक लगातार बारिश से भूस्खलन हुआ। एक जगह पर मलवा झील में गिरा और ग्लेशियर के मलवे के दीवार को तोड़ डाला। इसके कारण 5000 लोगों की जानें गयी। रशीद 2021 में प्रकाशित ट्रांस हिमालय के लद्दाख के पैंगॉन्ग क्षेत्र के ग्लेशियरों के बारे में किताब के सहलेखक हैं। इस अध्ययन के अनुसार पिछले तीन दशकों में पैंगॉन्ग क्षेत्र के ग्लेशियर 6.7 प्रतिशत पीछे खिसक गया है।
जीएलओएफ से कुछ क्षेत्र और लोग दूसरे क्षेत्र और लोगों के तुलना में क्यों ज्यादा प्रभावित होते हैं?
जीएलओएफ कोई नयी परिघटना नहीं है। वे हमेशा से ग्लेशियर से निचले इलाके में रहने वाले समुदायों, उस क्षेत्र के आधारभूत संरचनाओं और वहां के जीव-जन्तु और वनस्पति के लिए खतरा बने हुए हैं।
कोई समुदाय अगर ग्लेशियल झील से 20 किलोमीटर के कम फासले पर रहता है तो उसके लिए खतरा ज्यादा रहता है। किसी भी तरह की जान–माल के नुकसान से बचने के लिए इन इलाकों में समुचित निगरानी और योजना की जरूरत है।
रशीद ने ऐतिहासिक रूप से पश्चिम हिमालय में जीएलओएफ का खतरा नहीं होने का बात कहा लेकिन साथ ही उन्होने पिछले 30 सालों में हुए बदलाओं का जिक्र किया। इस दौरान कई झील बने और उससे बाढ़ की संभावना बढ़ी है।
रशीद कहते हैं, “जम्मू , कश्मीर और लद्दाख में जीएलओएफ के संभावित खतरे का 300 स्थान है। इस संदर्भ में उन्होंने ग्लेशियल झील का हवाला दिया जिसमे 2014 में जल विस्फोट हुआ था।
अगस्त, 2014 में लद्दाख के गांव में जीएलओएफ का खतरा हुआ। गांव के झील से पानी अचानक तेज रफ्तार से बहने लगा और वह कृषि जमीन, फसल और कुछ घरों को ध्वस्त कर दिया।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंदौर) के साकेत दुबे और मनीष कुमार गोयल ने 2020 में ”ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ़्लड (जीएलओएफ) हेजर्ड, डाउनस्ट्रीम इम्पेक्ट, एंड रिस्क ओवर द इंडियन हिमालय” नाम से एक अध्ययन प्रकाशित किया। अध्ययन के अनुसार भारत के हिमालय क्षेत्र में कई ग्लेशियल झीलें है जो झील से नीचे रहने वाले समुदाय के लिए गंभीर खतरा बन सकता है और जीएलओएफ होने पर सामाजिक आर्थिक तबाही का कारण बन सकता है।
कश्मीर विश्वविद्यालय में फील्ड बोटनिस्ट (वनस्पति विज्ञान) अख्तर एच मलिक अनुसंधान के लिए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में व्यापक दौरा किये हैं। वे कहते हैं कि जीएलओएफ आसपास के कई किलोमीटर तक आवास को नष्ट करता है। “ग्लेशियल झील में उफान आने से उसका तेज गति से नीचे की ओर बहने लगता है। इससे उस क्षेत्र के आधारभूत संरचना जिसमें जीव-जन्तु और बनस्पति शामिल है, का बहुत ज्यादा नुकसान होता है और वह क्षेत्र रहने के लायक नहीं बचता है या वहां जमीन विखंडित हो जाती है।”
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बैनर तस्वीरः कारगिल के जंस्कर स्थित एक प्रोग्लेशियल झील। तस्वीर- इरफ़ान राशिद