- मोंगाबे-इंडिया के साथ एक साक्षात्कार में शोधकर्ता अमित कुमार बल ने छोटे मांसाहारी जीवों का अध्ययन करने के लिए मिजोरम के मुरलेन गांव में रहने के बारे में अपना अनुभव साझा किया।
- बल ने हर समय जानवरों की निगरानी के लिए भारत-म्यांमार सीमा के करीब मुरलेन नेशनल पार्क के अंदर आठ स्थानों पर 18 कैमरा ट्रैप लगाए हैं।
- युवा शोधकर्ता संरक्षण के लिए जागरूकता फैला रहे हैं। उन्होंने एक विषैले प्राइमेट से मिलने के अनुभव, स्थानीय लोगों के साथ बातचीत करने के लिए शब्दकोश से मिज़ो भाषा सीखने, यहां एक नए गैर-विषैले सांप की प्रजातियों की खोज और बहुत कुछ के बारे में बात की।
साल 2019 में सितंबर की एक सुबह मिजोरम के चंफाई जिले के छोटे और खूबसूरत मुरलेन गांव के 240 निवासी हैरान थे। छब्बीस साल के शोधकर्ता अमित कुमार बल बहुत दूर के ओडिशा राज्य के कटक जिले में अपने गांव से यहां पहुंचे थे। यह गांव मुरलेन नेशनल पार्क (एमएनपी) के किनारे है। मुरलेन में लोगों का जीवन सामान्य और आसान है। बाहरी हस्तक्षेप न के बराबर है। गांव के कई लोगों ने तो 245 किलोमीटर दूर राज्य की राजधानी आइजोल भी नहीं देखी है। राज्य के बाहर के किसी व्यक्ति को भी यहां बहुत कम देखा जाता था।
अमित उस दिन हुई बातचीत को याद करते हुए कहते हैं, “मुरलेन के लोग मुझे देखकर बहुत खुश हुए। उन्होंने दिल खोलकर मेरा स्वागत किया। लेकिन जब उन्हें पता चला कि मैं अगले कुछ सालों तक उनके गांव में रहने वाला हूं, तो वे थोड़े हैरान हुए। उन्होंने मुझसे कहा कि शहरी सुविधाओं के बिना मेरा लंबे समय तक यहां रहना मुश्किल होगा। अब तीन साल बाद बल मुरलेन का हिस्सा बन गए हैं। बल छोटे मांसाहारी जीवों का अध्ययन करने के लिए मुरलेन आए थे। लेकिन अब वे जीवों के संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ा रहे हैं।
मुरलेन नेशनल पार्क म्यांमार के चिन हिल्स के बहुत करीब स्थित है। यह करीब 200 वर्ग किमी के इलाके में फैला है। यहां का जंगल इतना घना है कि इसकी तुलना अमेजन के जंगलों से की जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि धूप के दिनों में भी सूरज की महज एक प्रतिशत किरणें ही जंगल में प्रवेश कर पाती हैं। घने जंगल के चलते एमएनपी के एक हिस्से को अनूठा नाम भी मिला है – “ऐसी जगह जहां से लौटना नामुमकिन है।” वैसे तो एमएनपी चम्फाई जिले में आता है। लेकिन इसका प्रशासन ख्वाजावल जिले के डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) के कार्यालय से चलता है।
जिंदगी बदलने वाले तीन साल
मुरलेन में बल के अब तक के तीन साल शानदार रहे हैं। यहां अपने शोध और जागरूकता कार्यक्रमों के अलावा उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ खेती भी की है। चम्फाई शहर से मुरलेन तीन घंटे की दूरी पर है। तीन किलोमीटर और आगे बढ़ने पर एमएनपी का मुख्य दरवाजा आ जाता है। एमएनपी के आसपास वापर, तुआलपुई, रबुंग, नॉर्थ ख्वाबुंग और न्गुर जैसे कई गांव हैं।
एमएनपी में मांसाहारी जीवों का अध्ययन करने के लिए बल ने जंगल के अंदर 18 स्थानों पर 10 कैमरा ट्रैप लगाए हैं। वो उत्साह के साथ बताते हैं, “मैं मानसून के दौरान जंगल में बार-बार नहीं जा सकता क्योंकि इस वक्त जंगल जाने लायक नहीं रहता। सांप और जोंक भी होते हैं। इसलिए कैमरा ट्रैप मुझे जानवरों पर नज़र रखने में मदद करते हैं। जंगल के अंदर अपनी यात्राओं के दौरान मुझे कई तरह के जानवर मिले हैं। इनमें तेंदुआ, पीले गले वाला मार्टन, केकड़ा खाने वाला नेवला, असामी मकाक (बन्दर), भौंकने वाले हिरण, जंगली सूअर और बहुत कुछ।”
शुरुआत में स्थानीय लोगों के साथ बात करना अमित कुमार बल के लिए एक मसला था। क्योंकि यहां ज्यादातर लोग मिजो भाषा बोलते हैं। लेकिन इस समस्या से पार पाने के लिए उन्होंने एक शब्दकोश की मदद से छह महीने में मिज़ो सीख ली।
बल ने खेती में भी हाथ आजमाए और कोविड-19 महामारी के दौरान चावल और अदरक उगाए। इस दौरान उन्होंने एक साल से अधिक समय गांव में बिताया।
वो मुरलेन के जीवन के बारे में विस्तार से बात करते हैं। वो कहते हैं, “यहां के लोग बहुत ही साधारण हैं। उनमें से अधिकांश खेती करते हैं, जबकि कुछ टैक्सी चलाते हैं। मुरलेन में दो स्कूल हैं – एक प्राइमरी और एक मिडिल स्कूल। कुछ दुकानें ऐसी हैं जहां दाल, अंडे और मक्खन जैसी चीजें मिलती हैं। लेकिन फार्मेसी या एटीएम जैसी सुविधाओं के लिए चम्फाई शहर जाना पड़ता है। मैं भी अपना जरूरी काम करवाने के लिए दो महीने में एक बार चम्फाई जाता हूं। अगर मैं कुछ ऑनलाइन ऑर्डर करता हूं तो वह चम्फाई में मेरे पहचान वाले व्यक्ति के पास पहुंचा दिया जाता है, जिसे बाद में मैं ले लेता हूं।”
और पढ़ेंः क्या कारण है कि भारत वन्यजीवों की तस्करी का एक प्रमुख अड्डा है?
हालांकि यहां बच्चों की एक वक्त के बाद पढ़ाई छूट जाती है। लेकिन अब बल उन्हें आगे पढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं और माता-पिता के बीच जागरूकता पैदा कर रहे हैं।
कुदरत को संजोने की पहल
बल के रिसर्च को लुप्तप्राय मांसाहारी जीवों के संरक्षण और उनके अंतर्राष्ट्रीय पारिस्थितिक अध्ययन (SPECIES) द्वारा वित्तीय मदद मिल रही है। उन्होंने यहां पाए जाने वाले जानवरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए क्षेत्र में कुछ कार्यशालाओं का आयोजन किया। वो कहते हैं, “मैंने बच्चों से उन जानवरों की तस्वीर बनाने को कहा जिसे उन्होंने देखा है। सभी पहली बार ये कोशिश कर रहे थे। फिर भी उन्हें इसमें मजा आया। वे अब चाहते हैं कि इस तरह की और कार्यशालाएं हों।”
पिछले साल जून तक ख्वाजावल के डीएफओ रहे सैमसन थानरुमा मुरलेन में अमित कुमार बल के प्रयासों की तारीफ करते हैं। “मुरलेन में शिकार एक मसला है। अमित ने शिकार के प्रभावों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए वन विभाग के साथ मिलकर काम किया है। साथ ही उनके लेखन और तस्वीरों के जरिए बाहर के लोग मुरलेन के बारे में जान रहे हैं। वास्तव में, उन्होंने एमएनपी के अंदर दुर्लभ मांसाहारी स्तनपायी, चित्तीदार लिनसैंग की तस्वीर खींची। मेरी राय में ये भारत में ली गई जानवर की सबसे अच्छी तस्वीरों में से एक है।”
एमएनपी में नियमित गश्त एक मुद्दा है क्योंकि वन विभाग में कर्मचारियों की कमी है। बल कहते हैं, “कर्मचारियों की कमी के चलते एमएनपी के अंदर पेट्रोलिंग नियमित नहीं है। हालांकि, सर्दियों के दौरान गश्त बढ़ जाती है। मुझे याद है कि एक बार वन विभाग ने कुछ ऐसे घोंघे बरामद किए थे जो स्थानीय निवासियों द्वारा नहीं रखे गए थे। लोग कभी-कभी मांस के लिए 12 बोर जैसी बंदूक का इस्तेमाल करके शिकार करते हैं। वे जाल का उपयोग नहीं करते हैं।”
थानरुमा मानते हैं कि विभाग में स्टाफ की कमी है। वो कहते हैं, “लेकिन हमारे कर्मचारी बहुत समर्पित हैं और हमारे पास जो भी संसाधन हैं, हम उनके साथ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रहे हैं। स्थानीय लोगों की तरफ से शिकार करना एक मुद्दा है लेकिन हाल के सालों में यह काफी हद तक कम हो गया है।”
मुरलेन में बल द्वारा किया गया शोध
इस साल जनवरी में बल और मुरलेन के कुछ निवासियों का एमएनपी के अंदर एकमात्र विषैले प्राइमेट स्लो लोरिस से सामना हुआ। समूह को एक गंभीर स्थिति का सामना करना पड़ा जब एक 54 साल के किसान को प्राइमेट ने काट लिया। उसने अपने हाथों से लोरिस को पकड़ने की कोशिश की थी।
बल ने कहा, “काटे जाने के लगभग 15 मिनट बाद किसान के पेट में तेज दर्द होने लगा। इसके बाद सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी, सिरदर्द और दिखाई देने में मुश्किल होने लगी। उसका चेहरा फूल गया और ठंड लगने लगी। चूंकि चम्फाई में सबसे पास का अस्पताल 50 किमी दूर था, इसलिए हमने उसे 500 मिलीग्राम पैरासिटामोल और 250 मिलीग्राम एविल गर्म पानी के साथ देने का फैसला किया। तीन घंटे आराम करने के बाद किसान बेहतर महसूस कर रहा था और वापस गांव जाने लायक था। अगले दिन तक वह स्लो लोरिस के जहर के लक्षणों से पूरी तरह से उबर चुका था और उसे किसी और दवा की जरूरत नहीं थी। स्लो लोरिस के काटने के मामले कम मिलते हैं।”
इस घटना के आधार पर, बल ने एंथोनी जे. जिओर्डानो और सुशांतो गौडा के साथ एक पेपर लिखा। इसका नाम इफेक्ट्स ऑफ ए बंगाल स्लो लोरिस निक्टिसबस बेंगालेंसिस (प्राइमेट: लोरिसिडे) बाइट: मुरलेन नेशनल पार्क, मिजोरम, भारत से एक केस स्टडी।
साथी शोधकर्ताओं एच. लालरेमसंगा, लाल बियाकज़ुआला और गर्नोट वोगेल के साथ बल ने गैर-विषैले सांप की एक नई प्रजाति को भी दर्ज किया। इसका वैज्ञानिक नाम हर्पेटोरियस मुरलेन है। यह उस जगह के नाम पर है जहां यह पाया जाता है। कम जाने जाना वाला कोलब्रिड सांपों के उनके पेपर आणविक फ़ाइलोजेनेटिक विश्लेषण से हर्पेटोरस की एक नई प्रजाति का पता चलता है और गोंगाइलोसोमा स्क्रिप्टम और उत्तरपूर्वी भारत के इसके सहयोगियों के व्यवस्थित में नई अंतर्दृष्टि, हर्पेटोलॉजी के एक जर्मन जर्नल सलामंद्रा में प्रकाशित हुई थी।
बल उस दिन से डरते हैं जब उन्हें मिजोरम छोड़ना होगा। वो प्यार से कहते हैं, “लेकिन वो दिन जल्द नहीं आने वाला है। मुरलेन में अपना अध्ययन समाप्त करने के बाद मेरी योजना मिजोरम राज्य में भारत-म्यांमार के पूरे जैव विविधता हॉटस्पॉट क्षेत्र पर अपना शोध करने की है। मैं मिजोरम से प्यार करने लगा हूं।”
इस साक्षात्कार को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
बैनर तस्वीरः मुरलेन नेशनल पार्क में एक मार्बल बिल्ली। इस जंगल में अमित कुमार बल ने तेंदुआ, पीले गले वाला मार्टन, केकड़ा खाने वाला नेवला, असामी मकाक (बन्दर), भौंकने वाले हिरण, जंगली सूअर सहित कई वन्यजीव देखे। तस्वीर- अमित कुमार बल