- ऊर्जा मंत्रालय ने इस साल मार्च में आदेश दिया कि 1 अप्रैल, 2023 के बाद से संचालन शुरू करने वाले सभी नए ताप विद्युत संयंत्रों को अपने कुल बिजली उत्पादन का 40 प्रतिशत हिस्सा नवीकरणीय स्रोतों से पैदा करना होगा।
- यह कदम 2016 की अंतिम टैरिफ नीति में एक प्रावधान और ‘न्यू ऑब्लिगेशन रिजीम’ के बारे में बात करने वाली कई अन्य रिपोर्टों के बाद उठाया गया है
- विशेषज्ञों ने दावा किया कि हालांकि इस कदम से स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन को गति मिलने की संभावना है लेकिन इससे नए थर्मल पावर प्लांट्स की लागत और मुश्किलों में इजाफा हो सकता है।
ऊर्जा मंत्रालय (MoP) ने ऊर्जा उत्पादकों के लिए 27 फरवरी को ‘रिन्यूएबल जेनरेशन ऑब्लिगेशन (आरजीओ)’ की एक नई अवधारणा पेश करते हुए एक अधिसूचना जारी की। अधिसूचना के मुताबिक, किसी भी कोयला या लिग्नाइट-आधारित नए कमर्शियल थर्मल पावर प्लांट को अपनी कुल ऊर्जा का एक हिस्सा नवीकरणीय स्रोतों से पैदा करना होगा।
नए आरजीओ के अनुसार, इन संयत्रों को अपनी कुल क्षमता के कम से कम 40 प्रतिशत हिस्से की पूर्ति नवीकरणीय ऊर्जा इकाई लगाकर करनी होगी या फिर वह समान क्षमता की हरित ऊर्जा की खरीद भी कर सकते हैं।
जो ऊर्जा संयंत्र 1 अप्रैल, 2023 से 31 मार्च, 2025 के बीच अपना परिचालन शुरू करने जा रहे हैं, उन्हें 1 अप्रैल, 2025 के अंत तक नए आरजीओ मानदंडों का अनुपालन सुनिश्चित करना होगा। वहीं 1 अप्रैल 2025 के बाद परिचालन शुरू करने वाले नए थर्मल पावर प्लांट को आरजीओ आदेश को मानना ही होगा। हालांकि, कैप्टिव थर्मल पावर प्लांट्स को आरजीओ के दायरे से बाहर रखा गया है। कैप्टिव पावर प्लांट्स दरअसल नॉन-कमर्शियल संयंत्र हैं जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्थापित किए जाते हैं।
एमओपी का प्रस्ताव मंत्रालय की ओर से नवंबर 2022 में एक ड्राफ्ट नोटिस जारी करने के लगभग चार महीने बाद आया है। इसमें थर्मल प्लांट्स के लिए आरजीओ की अवधारणा को सबसे पहले लेकर आया गया था। हालांकि, हालिया अधिसूचना में मसौदा नियमों की तुलना में कुछ बदलाव किए गए हैं। साल 2022 के आदेश में 1 अप्रैल, 2024 से परिचालन शुरू करने वाले नए ताप विद्युत संयंत्रों पर आरजीओ लगाने की बात की गई थी, लेकिन जारी की गई नई अधिसूचना में तारीख को एक साल पहले यानी 1 अप्रैल, 2023 कर दिया गया। इसके अलावा, ड्राफ्ट पेपर में न्यूनतम 25% आरजीओ अनुपालन के बारे में बात की गई थी, जबकि नए आदेश में नए ताप विद्युत संयंत्रों पर 40% आरजीओ को जरूरी किया गया है।
ऊर्जा विशेषज्ञों ने इस कदम का स्वागत किया और दावा किया कि यह भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित लक्ष्यों (नेशनल डिटरमाइंड गोल्स) को प्राप्त करने और अधिक स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल करने में मदद कर सकता है। भारत के नए एनडीसी के मुताबिक, देश का लक्ष्य 2030 के अंत तक अपनी आधी जरूरतों को गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करना है। तो वहीं 2070 के अंत तक नेट-जीरो लक्ष्य हासिल करना है।
खेतान एंड कंपनी में एनर्जी, इंफ्रास्ट्रक्चर और रिसोर्स काउंसल प्रतीक भंडारी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “यह एक स्वागत योग्य कदम है। अब तक हमारे पास आरपीओ के रूप में बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के लिए मौजूदा दायित्व थे, जिसके तहत उन्हें नवीकरणीय स्रोतों से अपनी बिजली का एक निश्चित हिस्सा खरीदना जरूरी था। पहली बार, थर्मल पावर जनरेटर पर ‘जेनरेशन बेस्ड’ बाध्यता लगाई जा रही है।”
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ साइंस, टेक्नोलॉजी एंड पॉलिसी (CSTEP) के एनर्जी और पावर सेक्टर में काम कर रहे एक नीति विशेषज्ञ रिशु गर्ग ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि नवीकरणीय ऊर्जा में कम अनुभव वाले ताप विद्युत संयंत्रों को आरजीओ लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कुछ तार्किक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
गर्ग ने कहा, “इस अधिसूचना के बाद अब कोयला बिजली उत्पादकों को भी रिन्यूएबल एनर्जी को एकीकृत करने की जिम्मेदारी साझा करनी होगी। इस प्रकार यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि बड़ी तापीय कंपनियां भी भारत के ग्रीन एनर्जी के लक्ष्यों में योगदान दें। लेकिन यहां, सामने आने वाली बड़ी चुनौतियों में से एक यह है कि संभावित तौर पर थर्मल प्लांट स्थापित करने वाले ऊर्जा उत्पादकों के पास नवीनीकरण ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों को चालू करने का पर्याप्त अनुभव नहीं होगा। ऐसे में वे पावर एक्सचेंजों से आरई (रिन्यूएबल एनर्जी) की खरीद की तरफ जा सकती हैं। नवीकरणीय ऊर्जा की मांग और आपूर्ति को प्रबंधित करने में मदद के लिए एक मजबूत पावर एक्सचेंज की जरूरत होगी।”
भारत में कई सार्वजनिक क्षेत्र और निजी कोयला कंपनियों में से कुछ ऐसी चुनिंदा कंपनियां हैं जो थर्मल पॉवर और नवीकरणीय ऊर्जा दोनों का उत्पादन करती हैं। नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NTPC) सरकार के स्वामित्व वाली थर्मल पावर कंपनियों में से एक है जो कोयले से चलने वाली थर्मल पावर और नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन करती है। इसमें पहले से ही 3.1 गीगावाट (GW) स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता है, जबकि यह 4.7GW अधिक स्वच्छ ऊर्जा स्थापित कर रहा है। कुछ चुनिंदा निजी ताप विद्युत संयंत्रों ने भी अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में अपने कदम बढ़ाए हैं।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के एक विश्लेषक सुनील दहिया ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि कोयला-बिजली के उत्पादन में बढ़ते खर्च और नए आरजीओ की वजह से कई नए आगामी ताप विद्युत संयंत्रों के लिए अक्षय ऊर्जा संयंत्रों में निवेश करना अधिक तर्कसंगत विचार होगा।
दहिया ने कहा, “नई कोयला ताप विद्युत योजनाओं के लिए 40℅ आरई क्षमता की अधिसूचना उन संयंत्रों के लिए अच्छी है, जिनका अभी निर्माण हो रहा है। शुरुआत में ही इन्हें पूरी तरह से आरई में बदलना बेहतर है। मौजूदा उपयोग स्तर और नई कोयला बिजली की लागत को ध्यान में रखते हुए, मध्यम अवधि में लागत प्रभावी नवीकरणीय ऊर्जा पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करना और पीक डिमांड को मैनेज करने के लिए स्टोरेज से जुड़ी तकनीकों पर निवेश का पता लगाना बुद्धिमानी होगी।”
इंटरनेशनल रिन्यूएबल एनर्जी एजेंसी (आईआरईएनए) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, अगर कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्रों और आरई स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन की लागत की तुलना की जाए, तो यह काफी फायदेमंद सौदा साबित होता है। कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों की बजाय आरई स्रोतों से बिजली पैदा करना चार गुना सस्ता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर ईंधन लागत तुलना की जाए तो 2022 में कोयला संयंत्रों से 1 मेगावाट-घंटे (MwH) बिजली का उत्पादन करने के लिए लगभग 127 डॉलर का खर्च आया था, तो वहीं सोलर या तटवर्ती पवन ऊर्जा परियोजनाओं से उत्पादित ऊर्जा के लिए यह खर्च लगभग 30 या 35 डालर था।
आरपीओ से सीखना
मुख्य रूप से 2003 के विद्युत अधिनियम के अधीन भारतीय विद्युत बाजार ने लगभग एक दशक पहले नवीकरणीय खरीद दायित्व (आरपीओ) के उद्भव को देखा था। हालांकि, इसका अनुपालन न किए जाने पर जुर्माने का प्रावधान था, लेकिन इसके बावजूद, कई भारतीय राज्य अपने आरपीओ लक्ष्यों को पूरा करने से चूकते रहे।
राज्य की खरीद आदेश को पूरा करने वाली ऊर्जा आपूर्तिकर्ताओं और स्थानीय वितरण जैसी कंपनियों के लिए आरपीओ अनिवार्य है। हालांकि, आरजीओ की अवधारणा में अनुपालन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी पहली बार ‘जेनरेटर’ पर आनी तय हुई है।
विशेषज्ञों का दावा है कि ऑब्लिगेशन थर्मल पावर प्लांट्स द्वारा आरजीओ के अनुपालन न करने की स्थिति में क्या होगा, इस पर अभी भी स्पष्टता की कमी है। विशेषज्ञों ने आरजीओ के अन्य पहलुओं पर भी अधिक स्पष्टता की वकालत की है।
CSTEP के रिशु गर्ग ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “एक प्रावधान जो आरजीओ को अधिक बाध्यकारी बना सकता है, वह दी गई अधिसूचनाओं का अनुपालन नहीं करने पर दंड दिया जाना है। इसके अलावा, इस अधिसूचना के तहत अक्षय ऊर्जा की आपूर्ति के लिए टैरिफ पर पर्याप्त स्पष्टता की आवश्यकता है। इससे कोयला कंपनियों को राजस्व का नुकसान हो सकता है क्योंकि अधिकांश नई तापीय क्षमताओं की कीमत प्रचलित आरई बाजार कीमतों की तुलना में बहुत अधिक है। स्पष्टता की कमी से अनुपालन में बाधा आ सकती है।”
आरजीओ से किसे होगा फायदा?
विशेषज्ञों ने दावा किया कि नए आरजीओ व्यवस्था के शुरू होने से भुगतान के मुद्दों से जूझ रहे कई नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादकों को फायदा पहुंचेगा। वसुधा फाउंडेशन के वरिष्ठ नीति अधिकारी (पावर) वरुण बी.आर. ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि आरजीओ अक्षय ऊर्जा उत्पादकों को एक अतिरिक्त फायदा पहुंचा सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि यह आरई जनरेटरों की तुलना में संघर्षरत रिन्यूएबल एनर्जी सर्टिफिकेट (REC) मार्किट को राहत दे सकता है।
उन्होंने कहा, “कई आरई जनरेटर देरी से भुगतान को लेकर खुश नहीं हैं। इसके अलावा ऑबलीग कंपनियां खासतौर पर डिस्कॉम भी उनकी ग्रीन एनर्जी की कम खरीद कर रही है। जाहिर है, वे इसे लेकर भी परेशान हैं। इस प्रकार बहुत सी कंपनियां वाणिज्यिक और औद्योगिक ग्राहकों को अपनी नवीकरणीय ऊर्जा सीधे बेचने के लिए ओपन एक्सेस मोड पर बहुत अधिक निर्भर हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि कई नए थर्मल पावर प्लांट अक्षय ऊर्जा की खरीद के लिए ओपन एक्सेस और पावर एक्सचेंजों पर भरोसा करने की संभावना रखते हैं, इसलिए आरई जनरेटर को राजस्व का एक अतिरिक्त स्रोत और आरजीओ अनुपालन के अधीन एक और विश्वसनीय ग्राहक मिलेगा। हालांकि, उन्होंने कहा कि इससे थर्मल पावर प्लांट्स को आरई खरीद पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ झेलना पड़ सकता है।
एक लंबा सफर
यह अवधारणा लंबे समय से सरकार के नीति-निर्माण में घूम रही थी। तत्कालीन कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने 2015 में आरजीओ को देश की अक्षय ऊर्जा नीति में लाने की घोषणा की थी। 2016 के उपलब्ध टैरिफ आदेश में तापीय ऊर्जा के साथ अक्षय ऊर्जा को जोड़ने पर भी चर्चा की गई थी।
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साल 2016 की टैरिफ नीति ने ताप विद्युत संयंत्रों के लिए न्यूनतम सीमा और कोई तारीख तय किए बिना आरजीओ की नींव रखी थीं। नीति में दावा किया गया था कि एक निर्दिष्ट अवधि के बाद अपना परिचालन शुरू करने वाले नए ताप विद्युत संयंत्रों को नवीकरणीय स्रोतों से अपनी बिजली का एक निश्चित हिस्सा पैदा करने या खरीदने की जरूरत होगी। आदेश में कहा गया था कि सरकार इसकी जानकारी बाद में देगी। नए आरजीओ अधिसूचना के साथ, सरकार ने टैरिफ नीति के इस प्रावधान का अनुपालन किया है।
टैरिफ नीति ने दावा किया था कि उत्पादित स्वच्छ ऊर्जा को बेचने के लिए तापीय ऊर्जा के साथ जोड़ा जा सकता है। इस मामले में नीति में आगे कहा गया था कि अगर डिस्कॉम ऐसे स्रोतों से हरित ऊर्जा का उत्पादन करते हैं तो राज्य विद्युत नियामक आयोग (एसईआरसी) उन्हें आगे भी आरपीओ लाभ देने पर विचार कर सकता है।
हालांकि, मोंगाबे-इंडिया से बात करने वाले विशेषज्ञों ने दावा किया कि नए आरजीओ आदेश में नई आरजीओ व्यवस्था के तहत नए टैरिफ पर स्पष्टता का अभाव है, मसलन मौजूदा बिजली खरीद समझौते (पीपीए) का भाग्य, नई प्रणाली में आयोगों और अन्य एजेंसियों की भूमिका और अन्य तौर-तरीके। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि धीरे-धीरे इन्हें लेकर डिटेल आती रहेंगी।
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बैनर तस्वीर: खापरखेड़ा थर्मल पावर स्टेशन। जारी की गई अधिसूचना भारत के ताप विद्युत संयंत्रों को देश के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में योगदान देने के लिए बाध्य करती है। तस्वीर– कमोहंकर/ विकिमीडिया कॉमन्स