- शायद इंसानी तनावों के चलते कोट्टिगेहरा डांसिंग फ्रॉग (मेंढ़क की एक प्रजाति) में खोई हुई आंख या विकृत अंग जैसी विकृतियां दिख रही हैं।
- कोट्टिगेहरा मेंढ़क, माइक्रिक्सैलिडे परिवार से संबंधित है। यह पश्चिमी घाट में मेंढकों के सबसे पुराने परिवारों में से एक है। इसे विकास के हिसाब से सबसे अलग और दुनिया भर में लुप्तप्राय (EDGE) प्रजातियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- हालिया अध्ययनों से पता चला है कि मेंढक बारहमासी नदी में पाया जाता है। साथ ही समुद्र तल से 300 से 500 मीटर की ऊँचाई पर पेड़ों के घने झुरमुट में में रहना पसंद करता है।
अगर आप कर्नाटक में पश्चिमी घाटों में बारहमासी नदियों में चट्टानों पर ध्यान से देखेंगे, तो आप एक छोटे मेंढक को अपने पीछे के पैरों को हवा में लहराते हुए पाएंगे। दरअसल, यह मेंढ़क मादा साथी को आकर्षित करने के लिए इतना जतन करता है। तीन सेंटीमीटर चौड़ा कोट्टिगेहरा डांसिंग फ्रॉग (माइक्रिक्सैलिडे कोटिगेहारेंसिस/ Micrixalidae kottigeharensis) आपकी हथेली में आसानी से समा सकता है। मेंढ़क की यह प्रजाति विकास के हिसाब से सबसे अलग और दुनिया भर में लुप्तप्राय (EDGE) प्रजातियों के रूप में वर्गीकृत है।
माइक्रिक्सैलिडे पश्चिमी घाटों में मेंढकों के सबसे पुरानी प्रजातियों में से एक है। इसका विकास 600 लाख साल पहले हुआ था और 50 लाख साल पहले इसमें विविधता आ गई।
माइक्रोक्सलस जाति को आमतौर पर “डांसिंग फ्रॉग” यानी नृत्य करने वाले मेंढ़क के रूप में जाना जाता है। यह मेंढ़कों की पुरानी प्रजाति है। कुछ अध्ययनों से संकेत मिलता है कि इनके वंश से मिलती-जुलती प्रजाति अब इस दुनिया में नहीं है।
बेंगलुरु स्थित अशोका ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट (ATREE) में कोट्टिगेहर डांसिंग फ्रॉग प्रजाति का अध्ययन करने वाली शोधकर्ता मधुश्री मुदके ने कहा, “अगर वे विलुप्त हो जाते हैं, तो उनसे मिलती-जुलती कोई अन्य प्रजाति अब नहीं है। इसलिए अगर वे खत्म हो जाते हैं तो उनके साथ लाखों सालों का विकासवादी इतिहास भी खत्म हो जाएगा। वे भी लुप्तप्राय हैं क्योंकि वे दुनिया में बहुत कम जगहों पर पाए जाते हैं। वह कहती हैं कि इस प्रजाति का विकासवादी इतिहास अपने आप में पूरी तरह अलग है।”
हालांकि माइक्रोक्सलस वंशावली अकेली शाखा के रूप में अस्तित्व में थी। लेकिन यह संभावना है कि इनसे निकली कई प्रजातियां आखिरकार विलुप्त हो गई। भारतीय उपमहाद्वीप में मेंढकों की प्राचीन प्रजातियों पर साल 2003 में किए गए एक अध्ययन से यह संकेत मिलता है।
बेंगलुरु स्थित सृष्टि मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ आर्ट, डिजाइन एंड टेक्नोलॉजी के बिहेवियर इकोलॉजिस्ट के. वी. गुरुराजा और अन्य शोधकर्ताओं ने साल 2014 में पश्चिमी घाटों में “डांसिंग फ्रॉग” की 24 प्रजातियों की पहचान की। ये प्रजातियां सालों के शोध में खोजी गईं। इससे पहले सिर्फ 11 प्रजातियों की ही खोज हुई थी। उन्होंने कहा, “इस परिवार की प्रमुख विशेषता यह है कि वे मानसून के बाद या शुरुआती मानसून के दौरान सक्रिय होते हैं। वहीं दूसरे मेंढक मानसून के दौरान सक्रिय होते हैं और रात के बजाय दिन में। वे बारहमासी नदियों में रहते हैं।
उन्होंने पाया कि पैरों को हवा में लहराने का व्यवहार दो नर मेंढकों के बीच संघर्ष के दौरान देखा जाता है। जिसे ‘नर मेंढ़क के व्यवहार’ के रूप में जाना जाता है। इसका मकसद संभोग के मौसम के दौरान मादा मेंढकों को आकर्षित करना है। मादा मेंढक भी इस व्यवहार को तब प्रदर्शित करती हैं जब वे उथले, बहते पानी में अंडे देती हैं। मादाएं अंडों के ऊपर नृत्य करती हैं क्योंकि वे उन्हें कंकड़ से ढक देती हैं ताकि वे शिकारियों को दिखाई न दें।
माइक्रिक्सैलिडे कोटिगेहारेंसिस को मच्छर मछली, जमीन के इस्तेमाल में बदलाव, तापमान और आर्द्रता में बदलाव, बाढ़ और बहुत ज्यादा बारिश, संक्रामक रोगों, जल प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण और बांध जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से खतरा है।
इसके बावजूद, इस प्रजाति को वन्यजीवों और वनस्पतियों (CITES) की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन के परिशिष्ट के तहत सूचीबद्ध नहीं किया गया है। भारत में भी इस प्रजाति को वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम, 1972 द्वारा संरक्षित नहीं किया गया है, क्योंकि ये प्रजाति कहां-कहां है और इनकी संख्या कितनी है, इस बारे में पूरी जानकारी नहीं है।
मेंढक के आवास और वितरण का अध्ययन
मुदके साल 2017 से जूलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन के एज ऑफ एग्जिस्टेंस प्रोग्राम (EDGE of Existence programme) की मदद से प्रजातियों के आवास का अध्ययन कर रही हैं।
उन्होंने कहा, “यह जानना कि किस आवास में किस प्रजाति को मदद मिलती है, संरक्षण के लिए बहुत अहम है।” उन्होंने नमूने लेने की प्रक्रिया के दौरान मेंढकों के ज्ञात निवास स्थान पश्चिमी घाट में बारहमासी नदियों के करीब रहने वाले स्थानीय समुदायों के साथ काम किया। ध्यान आकर्षित करने के लिए कन्नड़ अभिनेता उपेंद्र को प्रदर्शित करने वाले फिल्म पोस्टरों के माध्यम से, उन्होंने और उनकी टीम ने कोट्टिगेहर डांसिंग फ्रॉग के बारे में जागरूकता बढ़ाने का काम शुरू किया। अगर उन्हें किसी खास नदी के पास मेंढक मिलता था, तो वे स्थानीय निवासियों से उन्हें पास के गाँवों में रहने वालों को दिखाने के लिए कहते थे जो मिलते-जुलते निवास स्थान में रहते थे। इसके माध्यम से, टीम ने जागरूकता बढ़ाने में स्थानीय गांवों को शामिल करते हुए मेंढक की रेंज को मैप करने का लक्ष्य रखा।
इसके अतिरिक्त, मुदके और उनकी टीम ने सर्वेक्षण किया और कर्नाटक के पश्चिमी घाट और गोवा और केरल के कुछ हिस्सों में बारहमासी नदियों और मिरिस्टिका दलदलों की मैपिंग की। उन्होंने अकेले कर्नाटक में नमी वाले सदाबहार जंगलों और मिरिस्टिका दलदलों में 18 नए स्थानों की खोज की। मिरिस्टिका दलदल मीठे पानी के दलदली जंगल हैं जो मुख्य रूप से मिरिस्टिका पौधों से बने होते हैं जो मुख्य नदी के दोनों ओर होते हैं। उसने यह भी पाया कि मेंढक समुद्र तल से 300 से 500 मीटर की ऊँचाई पर और कम से कम 70-80% वाले घने झुरमुट वाले क्षेत्रों में रहना पसंद करता है।
मुदके ने कहा, “पश्चिमी घाट पुराने जंगल हैं। इसलिए यहां से मिलने वाली सांस्कृतिक, पारंपरिक और पारिस्थितिकी से जुड़ी सेवाओं की कीमत पर विचार करना जरूरी है।” “उदाहरण के लिए, स्थानीय समुदायों ने हमें मिरिस्टिका दलदलों के महत्व के बारे में बताया – वे पानी को रोक कर रखते हैं और धीरे-धीरे इसे नदियों और तालाबो में जाने देते हैं।”
मानवजनित कामों से कुरुपता आने की आशंका
पश्चिमी घाट में भूमि के इस्तेमाल में बदलाव, अनियंत्रित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और कृषि भूमि में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। दलदल वाली कई जगहों ने पानी को रोकने की अपनी क्षमता खो दी है। नदियों की धारा बदल दी गई है पेड़-पौधों का घनापन कम हुआ है। इससे प्रजाति के अस्तित्व पर खतरा बढ़ा है।
इसलिए मेंढकों की आबादी पर इन इंसानी कामों के असर को समझने के लिए और ज्यादा अध्ययन और सर्वेक्षण की आवश्यकता है। प्रारंभिक अध्ययनों में, मुदके और उनकी टीम ने पाया कि एक स्थान पर जहां सुपारी के जंगल के बीच से नदी बहती थी, जंगल में घनापन कम होने के चलते मेंढ़कों की संख्या चार से घटकर एक हो गई।
मुदके ने कहा कि जब पर्यावरण के तौर पर ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में सड़क, पुल या बांध जैसी बुनियादी परियोजनाएं बनाई जाती हैं, तो लैंडस्केप की पारिस्थितिकी पर थोड़ा ध्यान देना चाहिए कि यह किस तरह बदल सकती है।
उन्होंने कहा, “जब एक प्रजाति प्रभावित होती है, तो इससे उस जगह की पूरी जैव विविधता पर असर पड़ता है। उस जगह का विकासवादी इतिहास गुम हो जाता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि संरक्षण के लिए एकीकृत दृष्टिकोण होना चाहिए जो सिर्फ फिर से पेड़ लगाने तक ही सीमित न हो। पुराने जंगलों का संरक्षण ज्यादा जरूरी है।”
फील्ड सर्वेक्षणों के दौरान, उन्होंने कई कोट्टिगेहर डांसिंग फ्रॉग के कंकालों में विकृति देखी – जैसे कि शरीर की समरूपता में गड़बड़ी या एक नरम-ऊतक विकृति जिसके चलते आंख गायब हो जाती है या अंग विकृत हो जाता है। “मेंढकों का होना हमें बताता है कि पारिस्थितिकी तंत्र स्वस्थ है। लेकिन जब आपको मेंढकों में विकृतियां दिखती हैं, तो इसका मतलब है कि वहां की आबादी अच्छा नहीं कर रही है। इससे पता चलता है कि पर्यावरण में कुछ गड़बड़ है।”
मेंढकों में विकृतियां सबसे पहले अमेरिका के मिनेसोटा और बाद में देश के अन्य भागों में देखी गईं। मेंढकों के इन आवासों के विस्तृत सर्वेक्षणों से पता चला है कि यह विकृति मुख्य रूप से एक परजीवी, रिबेरोइया के संक्रमण और उर्वरकों और मवेशियों की खाद के साथ पानी के प्रदूषण से आई थी। अध्ययनों से पता चला है कि इंसानों द्वारा मेंढ़कों की आवास में बदलाव और विकृति पैदा करने वाले परजीवी की उपस्थिति के बीच एक स्पष्ट संबंध था।
भारत में भी मेंढकों की शारीरिक बनावट में विकृतियों पर कई रिपोर्टें आई हैं। हालांकि कारणों का अध्ययन नहीं किया गया है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि ये विकृति मानवजनित दबावों के कारण थी। ये पानी में गंदगी के चलते हो सकती हैं। खेतों से कीटनाशकों के नदी में आने से हो सकती हैं। इन विकृतियों का कारण तय करने के लिए और अधिक सर्वेक्षणों की जरूरत है।
इसके लिए, मुदके ने भारत जैव विविधता पोर्टल के साथ मालफ्रॉग्स (Malfrogs) नामक एक नागरिक विज्ञान पहल शुरू की है। यह विकृतियों का दस्तावेजीकरण करने का अपनी तरह का पहला प्रयास है – वे कहां और किस प्रजाति में पाई जाती हैं। “हम नहीं जानते कि इतने विकृत मेंढक क्यों हैं। हम इन विकृतियों और मेंढक प्रजातियों और उभयचर जैव विविधता पर उनके प्रभाव को समझने के लिए भविष्य के अध्ययन के लिए इस डेटा का उपयोग कर सकते हैं।
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बैनर तस्वीर: अपने पैरों को हवा में लहराता डांसिंग फ्रॉग। तस्वीर क्रेडिट – मधुश्री मुदके।
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