- छत्तीसगढ़ में पिछले 12 सालों से गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिज़र्व बनाने की कवायद टलती जा रही है।
- बाघों की कम होती संख्या के मद्देनज़र केंद्र सरकार ने 2011 में इसे टाइगर रिज़र्व बनाने के लिए राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजने के लिए कहा था। नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी ने अपनी तरफ़ से इसे मंजूरी भी दे दी। लेकिन आज तक राज्य सरकार की फाइलों से टाइगर रिज़र्व बाहर नहीं आया।
- यह तब है, जब छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। दस साल पहले राज्य में 46 बाघ थे, जिनकी संख्या घट कर 17 रह गई है।
छत्तीसगढ़ में बाघों की लगातार कम होती संख्या के बीच, राज्य सरकार ने अपने दो टाइगर रिज़र्व को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। बाघों का घर कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के कान्हा-किसली से लगे भोरमदेव अभयारण्य पर राज्य सरकार ने पहले ही विराम लगा दिया था। अब कोयला खदान के नाम पर, राज्य सरकार ने गुरुघासीदास तमोर पिंगला टाइगर रिज़र्व को भी अटका दिया है। पिछले बारह सालों में यह दूसरी बार हुआ है, जब गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिज़र्व बनाने की योजना, पूरी क़वायद के बाद टाल दी गई है।
गुरुघासीदास तमोर पिंगला को टाइगर रिज़र्व बनाने के छत्तीसगढ़ सरकार के 2019 के प्रस्ताव को नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी द्वारा 5 अक्टूबर 2021 को मंजूरी दिये जाने के बाद माना जा रहा था कि टाइगर रिज़र्व बनाने का रास्ता साफ़ हो गया है। इससे पहले राज्य सरकार ने भी इस टाइगर रिज़र्व को ख़ूब प्रचारित-प्रसारित किया और इसका श्रेय लेने के लिए विज्ञापन तक जारी किए गए। लेकिन राज्य सरकार ने अपने प्रस्ताव के चार साल बाद भी टाइगर रिज़र्व को अधिसूचित नहीं किया।
इसके उलट अब राज्य सरकार ने वन्यजीव प्रेमी अजय दुबे की छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में दायर एक याचिका के जवाब में, एक शपथपत्र देते हुए हवाला दिया है कि प्रस्तावित इलाके में कोयला भंडार, कोल बेड मीथेन ब्लॉक और ऑयल ब्लॉक्स हैं और ये रोजगार व राजस्व आय की दृष्टि से अतिमहत्वपूर्ण हैं। राज्य सरकार ने यह तर्क ऐसे समय में दिया है, जब राज्य में बाघों की संख्या साल दर साल कम होती जा रही है।
नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी के अनुसार 2014 में छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या 46 थी, जो 2018 में घट कर 19 और 2022 में 17 रह गई। हालत ये है कि छत्तीसगढ़ के तीन टाइगर रिज़र्व में महज 7 बाघ बचे हैं। इसके उलट, ठीक इसी तरह की जलवायु और भूभाग वाला मध्य प्रदेश, जिससे अलग हो कर छत्तीसगढ़ राज्य बना है, वहां बाघों की संख्या 2014 में 308 थी, जो 2018 में बढ़ कर 526 और 2022 में 785 हो गई।
बाघों का गलियारा
छत्तीसगढ़ अलग राज्य बनने के बाद से ही, पिछले 22 सालों में बाघ संरक्षण की दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई। बाघ और हाथियों के आवागमन का गलियारा माने जाने वाले हसदेव अरण्य में कोयला खनन ने बाघों के आवागमन को और बाधित किया। भोरमदेव अभयारण्य, मध्यप्रदेश के कान्हा-किसली का हिस्सा था, जो देश के कई टाइगर रिज़र्व को जोड़ने का काम करता है। राजनीतिक कारणों से घने जंगल वाले भोरमदेव को टाइगर रिज़र्व बनाने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई। वन्यजीव विशेषज्ञों की अंतिम उम्मीद गुरुघासीदास तमोर पिंगला से थी।
कोरिया, सुरजपुर और बलरामपुर ज़िले में फैला यह छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग का वही इलाका है, जहां के महाराजा ने पूरी दुनिया में सर्वाधिक बाघों के शिकार का रिकार्ड बनाया था। कुछ वर्ष पूर्व तक इस इलाके में एक दर्जन से अधिक बाघ थे। छत्तीसगढ़ में दूसरे राज्यों से बाघों के आवागमन के तीन मुख्य गलियारे माने जाते हैं। इनमें ताडोबा-इंद्रावती-सीतानदी उदंती-सुनेबेड़ा और अचानकमार-कान्हा के अलावा पलामू-गुरु घासीदास-संजय डुबरी-बांधवगढ़ शामिल हैं। गुरुघासीदास तमोर पिंगला का इलाका, मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व को झारखंड के पलामू टाइगर रिज़र्व से जोड़ता है। मध्यप्रदेश के संजय दुबरी टाइगर रिज़र्व से तो यह पूरी तरह जुड़ा हुआ है। तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य, उत्तरी छत्तीसगढ़ में सेमरसोत वन्यजीव अभयारण्य और बादलखोल वन्यजीव अभयारण्य के साथ जुड़ा हुआ है। मतलब ये कि यह पूरा इलाका, एक-दूसरे से आबद्ध है। अक्सर इस रास्ते से बाघों का आना-जाना होता है। नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी के अनुसार बांधवगढ़-संजय-गुरुघासीदास की पट्टी में 226 बाघ होने का अनुमान है और इस इलाके में 500 से अधिक बाघों की आबादी आसानी से रह सकती है।
सरकारी दस्तावेज़ बताते हैं कि गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिज़र्व बनाने की पहल 2011 में तब के केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने की थी। उन्होंने 29 जून 2011 को एक पत्र लिख कर राज्य के मुख्यमंत्री से इस संबंध में प्रस्ताव भेजने का अनुरोध किया था। साल 2014 में राज्य सरकार ने 1440.705 वर्ग किलोमीटर में फैले गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान और तमोर पिंगला वन्यजीव अभयारण्य के 608.527 वर्ग किलोमीटर समेत कुल 2829.387 वर्ग किलोमीटर में, टाइगर रिज़र्व बनाने का प्रस्ताव नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी को भेजा। उसी वर्ष नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी ने राज्य सरकार को इसकी सैद्धांतिक मंजूरी देते हुए अंतिम प्रस्ताव भेजने के निर्देश दिए। लेकिन टाइगर रिज़र्व को बनाने की सारी कवायद पूरी होने के बाद, राज्य सरकार ने बिना कोई कारण बताए, टाइगर रिज़र्व बनाने की योजना को टाल दिया।
राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकार आने के बाद फिर से गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिज़र्व बनाने की प्रक्रिया शुरु हुई और 24 नवंबर 2019 को वन्यजीव बोर्ड की बैठक में इस टाइगर रिज़र्व को मंजूरी दे दी गई। नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी ने 2019 में इसे मंजूरी भी दे दी।
इसके बाद इस टाइगर रिज़र्व को लेकर उसी वन विभाग ने कागजी पेंच की शुरुआत की, जिसने नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी को प्रस्ताव भेजा था। सारी कवायद पूरी होने के बाद राज्य सरकार के वन विभाग ने इस टाइगर रिज़र्व के गठन के प्रस्ताव पर, राज्य के खनिज विभाग को एक नोटशीट के आधार पर राय मांगी।
बाघ और जंगल नहीं, कोयला प्राथमिकता
इस साल 19 मई को खनिज विभाग ने कोयला का हवाला दे कर इस पूरे मामले को ही उलझा दिया। विभाग के अवर सचिव एम चंद्रशेखर की चिट्ठी कहती है, “उक्त प्रस्तावित क्षेत्र ज़िला मनेंद्रगढ़, कोरिया, सूरजपुर एवं बलरामपुर अंतर्गत सोनहत, चिरमिरी, रामकोला-तातापानी, झिलमिली इत्यादी कोल फील्ड्स अंतर्गत वृहद खनिज कोयला भंडार प्रमाणित हैं। इसी प्रकार इन ज़िलों में भारत सरकार, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय अंतर्गत हाईड्रोकार्बन महानिदेशालय द्वारा कोल बेड मीथेन ब्लॉक एवं ऑयल ब्लॉक्स भी चिन्हित है।… अतः प्रस्तावित क्षेत्र को विशेष प्रयोजनार्थ अधिसूचित किए जाने के पूर्व भारत सरकार, कोयला मंत्रालय एवं पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय से भी समुचित राय लिया जाना उचित होगा।”
हालांकि राज्य में वन्यजीव प्रभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक, सुधीर अग्रवाल का कहना है कि गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिज़र्व बनाने की प्रक्रिया जारी है और उम्मीद की जानी चाहिए कि इस साल दिसंबर तक राज्य सरकार अधिसूचना जारी कर देगी। लेकिन वन्यजीव विशेषज्ञों को भरोसा नहीं है कि राज्य सरकार ऐसा कुछ करेगी।
वन्यजीव विशेषज्ञ और वाइल्ड लाइफ़ बोर्ड की सदस्य रह चुकी मीतू गुप्ता कहती हैं कि राज्य में कांग्रेस पार्टी ने सत्ता में आने से पहले बाघों की आबादी दोगुनी करने का वादा किया था। लेकिन राज्य में बाघों की हालत किसी से छुपी हुई नहीं है। संकट ये है कि जंगल, बाघ और दूसरे वन्यजीव, सरकार की प्राथमिकता में ही शामिल नहीं हैं।
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मीतू गुप्ता ने मोंगाबे-हिंदी से कहा, “कोयला सरकार की प्राथमिकता में है, जबकि कोयले को लेकर यह साफ़ हो चुका है कि अगले कई सालों तक नए कोयले खदान की ज़रुरत नहीं है। लेकिन महज खुले बाज़ार में कोयला बेच कर मुनाफा कमाने की सरकार की सोच ने जंगल, वन्यजीव और आदिवासियों को हाशिये पर धकेल दिया है। अगर कोयला मुनाफ़े के लिए निकालना भी है तो छत्तीसगढ़ के ही कई ऐसे हिस्सों से निकाला जा सकता है, जहां वन और वन्यजीवों का न्यूनतम नुकसान होगा।”
हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का दावा है कि बाघों को लेकर उनकी सरकार सजग है और उनकी बढ़ोत्तरी की कोशिश भी कर रही है. भूपेश बघेल कहते हैं, “हमलोगों का प्रयास यही है कि बाघों के लिए वातावरण बनाया जाए क्योंकि यह मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र से जुड़ा हुआ है। ये उनका ट्रांजिट रोड भी पड़ता है। यहां के बाघ वहां, वहां के बाघ यहां आते-जाते रहते हैं। हम दूसरे राज्यों से भी बाघ लाने की दिशा में काम कर रहे हैं।”
लेकिन विपक्षी दल भाजपा इसे महज राजनीतिक बयान मानती है। विधानसभा में पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का कहना है कि बाघों पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी पड़ोसी राज्यों में तो बाघ बढ़ रहे हैं, छत्तीसगढ़ में ऐसा क्यों नहीं है? कौशिक कहते हैं, “सरकार चाहती ही नहीं कि राज्य में बाघों की आबादी बढ़े। अगर ऐसा नहीं होता तो नए टाइगर रिजर्व बनाने के फ़ैसले क्यों टालती?”
इन राजनीतिक बयानों का मतलब चाहे जो हो लेकिन इतना तो सच है कि फ़िलहाल गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान का, टाइगर रिज़र्व बनाने का फ़ैसला टल चुका है। फाइलों से बाहर बाघों को बचाने की कवायद धरातल पर कब उतरेगी, यह कोई नहीं जानता।
बैनर तस्वीरः नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी के अनुसार 2014 में छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या 46 थी, जो 2018 में घट कर 19 और 2022 में 17 रह गई। तस्वीर- आलोक प्रकाश पुतुल/मोंगाबे