- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अधिकारी 100 कैमरा ट्रैप लगाने की योजना बना रहे हैं। 29 वर्ग किलोमीटर में लगाए जाने वाले इन कैमरों का मकसद रस्टी-स्पॉटेड बिल्ली (रोहित-द्वीपीय बिल्ली या जंग लगी चित्तीदार बिल्ली) का अध्ययन करना और संरक्षण के लिए रणनीतियां बनाना है।
- चित्तीदार बिल्लियों की 80% आबादी भारत में पाई जाती है। हालांकि, पतझड़ वाले जंगलों, झाड़ियों वाली भूमि और खेतों में फलने-फूलने वाली इस प्रजाति का अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है।
- भारत और नेपाल में इस बिल्ली के प्राकृतिक आवास का लगभग तीन-चौथाई हिस्सा भूमि के उपयोग में हो रहे बदलाव से खतरे में है।
पिछले महीने राजस्थान के भरतपुर में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अपने बिल्ली के बच्चे को ले जाते हुए एक रस्टी स्पॉटेड कैट (लोहे पर लगे जंग जैसे धब्बे) (वैज्ञानिक नाम- प्रियोनैलुरस रुबिगिनोसस) की तस्वीर सामने आई थी। इसके बाद अधिकारी सक्रियता के साथ इस प्रजाति की निगरानी के लिए रणनीतियां तैयार कर रहे हैं।
भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान के उप वन संरक्षक (वन्यजीव) और केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के निदेशक मानस सिंह ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि पिछले पांच सालों में यह प्रजाति पहली बार नजर आई है। यही नहीं, बच्चे के साथ मां को 10 सालों में पहली बार देखा गया है। सिंह ने कहा कि यह शायद संकेत है कि केवलादेव इस प्रजाति के लिए एक उपयुक्त निवास स्थान है।
नजर नहीं आने वाली छोटी बिल्ली
रस्टी-स्पॉटेड बिल्ली आकार में छोटी होती है। इसका वजन महज एक से लेकर डेढ़ किलों से कुछ ज्यादा ही होता है। इसके रोएं भूरे होते हैं। रंग बादामी होता है। साथ ही नीचे का हिस्सा सफेद होता है। इस छोटी बिल्ली को शर्मीली के साथ-साथ मायावी भी माना जाता है। इसकी आबादी का पता लगाने की गंभीर कोशिशें नहीं हुई हैं। इसलिए इसकी आबादी के रुझान को समझना मुश्किल है।
इसे IUCN की खतरे वाली प्रजातियों की रेड लिस्ट में ‘खतरे में पड़ी ‘ प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसे भारत में वन्यजीव संरक्षण कानून, 1972 की अनुसूची 1 और CITES (जंगली जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर समझौता) के परिशिष्ट I के तहत सबसे ज़्यादा स्तर की सुरक्षा भी दी गई है।
पिछले महीने केवलादेव में दो सैलानियों ने इस प्रजाति की बिल्ली की तस्वीर ली थी। इसके बाद, पार्क के अधिकारियों ने बिल्ली की मौजूदगी के बारे में बारीकी से निगरानी करने का फैसला किया। इससे संरक्षण के लिए बेहतर रणनीतियां तैयार करने के मकसद से इस प्रजाति के व्यवहार को समझने में मदद मिलेगी। पार्क के अधिकारियों ने 29 वर्ग किमी में 40 कैमरा ट्रैप लगाए हैं। क्षेत्र में ऐसे ही 50 और कैमरे लगाने की योजना बनाई जा रही है।
सिंह ने कहा, “बड़ी संख्या में कैमरा ट्रैप हमें प्रजातियों के व्यवहार का अध्ययन करने, इसकी आबादी का अनुमान लगाने और सुरक्षा के लिए संरक्षण उपाय तैयार करने में मदद करेंगे।”
घटता प्राकृतिक आवास और संरक्षण उपाय
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के अलावा इस बिल्ली को राजस्थान के कई हिस्सों में देखा गया है। इनमें सज्जनगढ़ जैविक उद्यान, फुलवारी की नाल वन्यजीव अभयारण्य, उदयपुर में जयसमंद वन्यजीव अभयारण्य, प्रतापगढ़ में सीता माता वन्यजीव अभयारण्य और चित्तौड़गढ़ में बस्सी और भैंसरोड़गढ़ वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं। इसकी मौजूदगी राज्य के अन्य जिलों जैसे बारां, पाली, सवाई माधोपुर, अलवर, कोटा, बूंदी, झालावाड़, धौलपुर, भरतपुर और सिरोही में भी देखी गई है।
इस प्रजाति को पतझड़ वाले जंगल, झाड़ियों वाली जमीन और खेत पसंद है। सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (एसएसीओएन) की प्रधान वैज्ञानिक शोमिता मुखर्जी ने मोंगाबे इंडिया को बताया कि चित्तीदार बिल्ली के लिए दक्कन क्षेत्र का दक्षिणी भाग और गुजरात का जलग्रहण क्षेत्र, पूर्वी घाट के पास के क्षेत्र और हिमालय की तलहटी उपयुक्त आवास हैं। यह प्रजाति बहुत ज्यादा गर्म या ठंडे रेगिस्तान या बहुत ज्यादा बारिश वाले भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में रहने से बचती है।
दुनिया भर में, जंग लगी चित्तीदार बिल्लियों की आबादी भारत, नेपाल और श्रीलंका तक ही सीमित है। जमीन के इस्तेमाल में बदलाव और वनों की कटाई के चलते अब इस प्रजाति के निवास स्थान पर खतरा बढ़ रहा है। IUCN के अनुसार, भारत और नेपाल में जिन जगहों पर ये बिल्ली पाई जाती है, वहां तीन-चौथाई निवास स्थान, जमीन के इस्तेमाल में बदलाव के चलते खतरे का सामना कर रहे हैं। इससे अगली तीन पीढ़ियों में इस प्रजाति की आबादी में एक-चौथाई तक की गिरावट हो सकती है। हालांकि, प्रजातियों के लिए संभावित रूप से अन्य खतरे हो सकते हैं, लेकिन इसके बारे में पर्याप्त सबूत नहीं हैं। इसकी वजह इस प्रजाति पर बहुत ज्यादा अध्ययन नहीं होना है।
मुखर्जी ने कहा, “इस प्रजाति के कई सदस्य संरक्षित क्षेत्रों से बाहर रहते हैं, जो हमारी भौगोलिक भूमि का बहुत छोटा हिस्सा है। अब ज्यादातर प्रजातियों के साथ समस्या यह है कि वे उन क्षेत्रों में रहने के लिए मजबूर हैं जो उनके मुख्य निवास स्थान नहीं हैं। हम उनकी सहनशक्ति की सीमाओं का पता लगा रहे हैं, जिसके आगे वे जीवित नहीं रह पाएंगे।”
उन्होंने कहा कि भारत दुनिया की लगभग 80% या उससे ज्यादा इन चित्तीदार बिल्लियों की आबादी का घर है। उन्होंने कहा, “असल में, यह हम पर इस प्रजाति को बचाने की जिम्मेदारी बढ़ाता है।”
संरक्षण उपाय
केवलादेव में प्रजातियों के संरक्षण के लिए, उप वन संरक्षक (वन्यजीव) मानस सिंह ने आवास को संरक्षित करने से शुरुआत करते हुए ज्यादा समग्र दृष्टिकोण पर काम करने की योजना बनाई है।
उन्होंने मोंगाबे इंडिया को बताया, “हमारा विचार 29 वर्ग किमी के दायरे में लगभग 100 कैमरा ट्रैप के साथ, प्राकृतिक आवास को कम होने से बचाना और जहां तक संभव हो इंसानी गतिविधियों को सीमित करना है। इससे हम पर्यावरण के साथ इस प्रजाति के रिश्ते का अध्ययन कर पाएंगे। अगर हमें इस प्रजाति की आबादी को बढ़ाने में मददगार आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी तंत्र जैसे नए आवास मिलते हैं, तो हम आवास संरक्षण पक्का करने के लिए वहां इंसानी गतिविधियों को और कम कर देंगे।”
हालांकि, मुखर्जी को लगता है कि एक छोटे से क्षेत्र में 100 कैमरा ट्रैप लगाने से निवास स्थान में समस्याएं पैदा हो सकती हैं और यह बिल्ली की आबादी और निवास स्थान के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।
उन्होंने कहा, “कनाडा के मॉन्ट्रियल में कॉप-15 में कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क के दौरान दिसंबर 2022 में अपनाए गए वैश्विक जैव विविधता लक्ष्यों में से 23 में से तीन लक्ष्य बताते हैं कि सभी पक्ष 2030 तक 30% स्थलीय, अंतर्देशीय जल और तटीय और समुद्री क्षेत्रों को बचाएंगे। यह [आवास संरक्षण] अन्य छोटे मांसाहारी जीवों के साथ-साथ इस मायावी बिल्ली की आबादी को बचाए रखने में बड़ा कदम हो सकता है।”
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
बैनर तस्वीर: रस्टी-स्पॉटेड बिल्ली, जिसे अक्सर बिल्लियों में सबसे छोटी कद-काठी वाला माना जाता है। यह छोटी और फुर्तीली बिल्ली है और IUCN रेड लिस्ट में करीबी खतरे वाली श्रेणी में शामिल है। तस्वीर-राधेश्याम बिश्नोई।