- एक रिसर्च में पाया गया है कि मधुमक्खी की एपिस डोरसाटा प्रजाति में रात में रंगों को देखने की क्षमता होती है। यह शोध पहले की इस धारणा को खारिज कर देता है, जिसके मुताबिक मधुमक्खियों को सिर्फ दिन में दिखाई देता है और वह रात में परागण अपनी सूंघने की शक्ति (ऑलफेक्टरी सेंस) के कारण कर पाती हैं।
- मधुमक्खियों के निशाचर होने के कई मामले देखे गए हैं लेकिन माना यही जाता रहा है कि शिकार, प्रतिस्पर्धा और संसाधनों के इस्तेमाल जैसी कुछ वजहों से ऐसा होता आया है।
- यह ध्यान में रखते हुए कि रॉक मधुमक्खियां कई पौधों को परागित करती हैं, उनके रात में दिखाई देने की क्षमता जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देगी। हालांकि इसे लेकर अभी और अधिक रिसर्च की जरूरत है।
एक नए अध्ययन से पता चला है कि रॉक मधुमक्खियां (एपिस डोरसाटा), जिन्हें एशिया की विशाल मधु मक्खियां भी कहा जाता है, इंसानों की तरह ही तेज और धुंधली रोशनी (मेसोफिक लाइट) में देखने की क्षमता रखती है। हालांकि ये मधुमक्खियां ज्यादातर दिन के समय ही सक्रिय रहती हैं लेकिन रात में देखने की उनकी ये खासियत उन्हें बाकि मधुमक्खियों यानी पराग कण इक्ट्ठा करने वाले कीटों से अलग करती है।
यह रिसर्च पहले की इस धारणा को भी खारिज कर देती है जिसके मुताबिक मधुमक्खियां सिर्फ दिन में ही रंगों को देख पाती हैं। रात में परागण वह अपनी सूंघने की शक्ति की वजह से कर पाती हैं, क्योंकि ज्यादातर रात में खिलने वाले फूलों की खुशबू काफी तेज होती है। कहा जाता है कि यूरोपीय मधुमक्खी ‘ए. मेलिफेरा’ धुंधली रोशनी में बिल्कुल नहीं देख पाती है।
मधुमक्खियों सहित ज्यादातर कीट दिन में सक्रिय होते हैं क्योंकि उन्हें रात में दिखाई नहीं देता है। कारपेंटर मधुमक्खी (ज़ाइलोकोपा ट्रैंक्यूबेरिका) पर पहले किए गए एक अध्ययन से साबित हुआ था कि कई कीटों की आंखों की संरचना ऐसी है कि उन्हें रात में दिखाई नहीं देता है उसके बावजूद वह रात में सक्रिय होते हुए दिखाई दी हैं।
स्कूल ऑफ बायोलॉजी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) तिरुवनंतपुरम, सेंटर फॉर रिसर्च एंड एजुकेशन इन इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन (आईसीआरईईई) के शोधकर्ता और अध्ययन के लेखकों में से एक जी.एस. बालमुरली ने समझाया कि सभी मधुमक्खियों की तरह एपिस डोरसाटा में भी कंपाउंड आंखें और एक ट्राइक्रोमैटिक कलर विजन होता है, जो उन्हें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के पराबैंगनी (यूवी), नीले और हरे वेवलेंथ क्षेत्रों में देखने में सक्षम बनाती है। उन्होंने आगे कहा, “प्रकृति में कई फूल इन रंगों को दर्शाते हैं, जो मधुमक्खी के व्यवहार को निर्देशित करने के लिए पारिस्थितिक रूप से प्रासंगिक पैटर्न बनाते हैं।”
अपोजिशन कंपाउंड आंखें जो दिन में सक्रिय रहने वाले कीड़ों की विशेषता है, आंखो में आने वाले प्रकाश को प्रत्येक ओम्माटिडियम (सपोर्ट कोशिकाओं और पिगमेंट कोशिकाओं से घिरा फोटोरिसेप्टर कोशिकाओं का एक समूह) के रेटिना तक एक ही जगह पर पहुंचने की अनुमति देता है। कहने का मतलब है कि उनके देखने का दायरा बड़ा नहीं होता है। आईआईएसईआर, तिरुवनंतपुरम में बायलॉजी की प्रोफेसर हेमा सोमनाथन ने कहा, कंपाउंड आंखों के संयोजन से ये मधुमक्खियां सीमित जगह पर फोकस करके ही देख पाती हैं। वह आगे बताती हैं कि मधुमक्खियों की ट्राइक्रोमैटिक विजुअल सिस्टम फूलों के विकास से पहले का है और माना जाता है कि फूलों के साथ-साथ उनके देखने की क्षमता में भी विकास हुआ है। मधुमक्खी अब अपने विजुअल सिस्टम द्वारा फूलों को बेहतर ढंग से पहचानने और उनके रंगों में अंतर करने में पहले से ज्यादा समर्थ हो गई हैं।
मधुमक्खियों का कलर विजन, विकास की एक प्रक्रिया
मधुमक्खियों के रात्रिचर होने के कई मामले देखे गए हैं लेकिन माना यही जाता रहा है कि शिकार, प्रतिस्पर्धा और संसाधनों के इस्तेमाल जैसी कुछ वजहों से ऐसा होता आया है। प्रतिस्पर्धा और खाद्य संसाधनों के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने से बचने के लिए कुछ मधुमक्खियों को अपने व्यवहार में बदलाव करते देखा गया है। सोमनाथन ने कहा, संसाधनों को साझा करने का एक तरीका यह भी है कि वे अन्य मधुमक्खियों को सूचित करने के लिए अपने पैरों के एक ग्लैंड का इस्तेमाल करती हैं। वह अपने पैरों के निशान छोड़ देती हैं ताकि अपनी बाकी साथियों को बता सकें कि वह उस फूल तक गईं थीं। मधुमक्खियों में जीभ की लंबाई भी अलग-अलग होती है और यह एक रूपात्मक विशेषता है जिसका इस्तेमाल प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए किया जाता है। लंबी जीभ वाली प्रजातियां फूलों के गहरे हिस्सों से रस लेती हैं, जबकि छोटी जीभ वाली प्रजातियां ऐसा नहीं कर पाती हैं।
शिकार से बचने के लिए मधुमक्खियां कई बार दिलचस्प व्यवहार भी करती हैं। बालामुरली के अनुसार, इसका उदाहरण उनकी शिमरिंग के रूप में जाना जाता है। शिमरिंग एक सामूहिक व्यवहार है जिसमें अलग-अलग मधुमक्खियां अपने पेट को एक साथ फड़फड़ाती हैं, जिससे इनके झुंड में एक तरंग पैदा होती हैं। ऐसा वे शिकारियों को चौंकाने और उन्हें रोकने के लिए करती हैं।
रॉक मधुमक्खी चमकदार चांद की रोशनी में भी देख सकती है
पेपर में कहा गया है कि ए. डोरसाटा की आंखें अन्य मधुमक्खियों जैसे ए. सेराना और ए. फ्लोरिया की तुलना में बड़ी हैं, लेकिन धुंधली या मंद रोशनी में उनके देख पाने के बारे में पहले कोई जानकारी नहीं थी। शोधकर्ताओं ने कहा कि हालांकि कारपेंटर मधुमक्खियां रात्रिचर होती हैं और उन्हें तारों की रोशनी के आधार पर रंग भेद करने की क्षमता के लिए जाना जाता है। उन्हें उम्मीद थी कि ए डोरसाटा कम रोशनी में नहीं देख पाएगी। इसकी कई वजहें थीं। एक तो यह कि ये प्रजाति आम तौर पर दिन में सक्रिय होती है और रात में भोजन की तलाश सिर्फ चमकदार चांदनी रातों में ही करती है। वहीं रात्रिचर कारपेंटर मधुमक्खियों की तुलना में इसकी आंखें बहुत छोटी होती हैं। लेकिन शोधकर्ताओं को यह जानकर काफी हैरानी हुई कि मंद रोशनी में ए. डोरसाटा की आंखे इंसानों की तरह देख पाती हैं। सोमनाथन ने कहा, कारपेंटर मधुमक्खी के बाद डोरसाटा दूसरा कीट है जिसकी कंपाउंड आंखें होने के बावजूद रात में देखने की क्षमता होती है। हालांकि, अगर चांद न निकला हो और सिर्फ तारों की रोशनी हो तो वो नहीं देख सकती हैं।
ए डोरसाटा में रात को देखने की क्षमता जैव विविधता के लिए अच्छी खबर है क्योंकि रॉक मधुमक्खियों को कई पौधों कई तरह के फूलों पर परागण के लिए जाना जाता है। बालमुरली ने कहा, हालांकि, कलर विजन की भूमिका और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रंग और उनके सूंघने की शक्ति एक साथ मिलकर रात्रिचर मधुमक्खियों की भोजन की खोज को कैसे प्रभावित करती है, अभी इसका अध्ययन नहीं किया गया है।
परागण इक्टठा करने में कारपेंटर मधुमक्खियों की तुलना में शहद इकट्ठा करने वाली मधुमक्खियों को ज्यादा फायदा होता है क्योंकि कारपेंटर मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करने वाली मधुमक्खियों की तुलना में कम फूल स्थिरता (एक ही प्रजाति के फूलों पर जाने की विशेषता) प्रदर्शित करती हैं। इसका मतलब है कि वे अपने सफर के दौरान एक साथ फूलों की कई प्रजातियों का दौरा करती हैं, जिससे परागण दक्षता कम हो जाती है। उन्होंने कहा, “क्या ए. डोरसाटा कुछ ही फूलों तक सीमित रहने की विशेषता दिखाती हैं और पौधों को कुशलता से परागित करती है, इसका पता लगाया जाना बाकी है।” उन्होंने कहा कि रात के समय उनकी पारिस्थितिकी और परागण करने आदतों को जानने के लिए और अधिक अध्ययन की जरुरत है।
सोमनाथन ने कहा कि यह रिसर्च दो सवालों को उठाती है। मधुमक्खियां रात में कम रोशनी में रंग कैसे देख पाती हैं और वो दिन में सक्रिय होने के बावजूद रात की तरफ क्यों गई, उन्होंने ये बदलाव क्यों किया? पहला सवाल मकेनिज्म और अनुकूलन से जुड़ा है जिसे उनकी देखने की क्षमता के जरिए अध्ययन में समझाया गया है। वहीं दूसरा सवाल उद्भव से जुड़ा है। सोमनाथन बताते हैं, “इनका जवाब खोजने के लिए पिछली विकासवादी घटनाओं को फिर से जोड़कर देखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसके बजाय हम समकालीन व्यवहार पैटर्न को देखकर पता लगा सकते हैं कि यह मधुमक्खी प्रजाति अपने फायदे के लिए कैसे अपनी विशेषता – क्या वे इसका उपयोग प्रतिस्पर्धा या शिकार से बचने के लिए कर रही हैं या वे मंद रोशनी में किस प्रकार के फूलों से परागण करती हैं और वे कैसे इन तक पहुंच पाती हैं- का इस्तेमाल कर रही है।
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बैनर तस्वीर: छत्ते पर काम करती हुई एपिस डोरसाटा प्रजाति की मधुमक्खियां। तस्वीर-नीरक्षित/विकिमीडिया कॉमन्स