- इसी साल मई के महीने में पंजाब ने अपने ‘राइट टू वॉक’ मैंडेट के तहत निर्देश जारी किए किए कि भविष्य में होने वाले नई सड़कों के निर्माण या पुरानी सड़कों के विस्तार में फुटपाथ अनिवार्य रूप से बनाए जाएं।
- अभी तक पटियाला जिले ने औपचारिक तौर पर यह नीति अपना ली है और जमीन पर इसके लिए काम भी शुरू कर दिया है।
- विशषेज्ञों का कहना है कि मूलभूत ढांचों का निर्माण और व्यवहार में बदलाव मुख्य चुनौती है। उनका मानना है कि जलवायु संबंधित लक्ष्यों के लिए भी ‘राइट टू वॉक’ काफी अहम है।
पंजाब ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत राइट टू वॉक को इसी साल मई के महीने में लागू किया है। इसके लिए पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में साल 2010 में एक जनहित याचिका दायर की गई थी और राज्य की सड़कों पर चलने वाले पैदल लोगों की सुरक्षा की मांग की गई थी।
आदेश जारी करने वाले पंजाब के मुख्य सचिव ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि मई के दूसरे हफ्ते में जारी शासनादेश में राज्य में काम करने वाली सभी एजेंसियों, NHAI, राज्य लोक निर्माण विभाग और स्थानीय निकाय के विभागों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए कि भविष्य में बनने वाली नई सड़कों और पुरानी सड़कों के विस्तार में फुटपाथ जरूर बनाए जाएं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से लोगों की जान भी बचाई जा सकती है और कार्बन उत्सर्जन भी कम किया जा सकता है।
पंजाब में पटिलाया जिले ने इस नीति को पूरी तरह से तैयार करके लागू करना भी शुरू कर दिया है। पटियाला ने नए फुटपाथ बनाने का शुरुआती काम चालू भी कर दिया है।
2021 में सड़क हादसों में गई 4,516 लोगों की जान
पिछले साल पंजाब ने सड़क बहादसों और ट्रैफिक की रिपोर्ट जारी की थी। इसमें खुलासा हुआ कि पंजाब के मुख्य जिलों अमृतसरा, जालंधर और लुधियाना में साल 2021 में सड़क हादसों में जान गंवाने लोगों में पैदल लोगों की संख्या क्रमश: 21 प्रतिशत, 19 प्रतिशत और 13 प्रतिशत है।
साल 2021 के लिए उपलब्ध नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में सड़क हादसों में जान गंवाने वाले कुल लोगों में पैदल यात्रियों की संख्या 8.7 प्रतिशत है। वहीं, इसी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सड़क हादसों में जान गंवाने कुल लोगों में पैदल यात्रियों की संख्या 12.2 प्रतिशत है।
साल 2021 में पंजाब में सड़क हादसों में कुल 4,516 लोगों की जान गई। इसमें से 395 लोग पैदल चलने वाले थे। वहीं, देशभर में सड़ हादसों में 1,55,622 लोगों की जान गई जिसमें से पैदल चलने वाले कुल 18,936 लोग थे।
अनुमान है कि 2022 में हादसों में जान गंवाने लोगों में पैदल चलने वालों की संख्या पहले से भी ज्यादा है। पंजाब में भी पुलिस ने अभी तक आधिकारिक डेटा जारी नहीं किया है और NCRB की रिपोर्ट का भी इंतजार किया जा रहा है। पंजाब सरकार के ट्रैफिक सलाहकार नवदीप असीजा ने 31 जुलाई को प्रकाशित एक लेख में अनुमानित तौर पर कहा कि 2022 में पंजाब में अलग-अलग सड़कों पर 1,100 पैदल लोगों ने जान गंवाई।
पंजाब में रोड सेफ्टी के लिए काम करने वाली एक सरकारी एजेंसी को मुख्य एजेंसी घोषित किया गया है। इसे ही राइट टू वॉक को लागू करवाने के लिए नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया है। इसी एजेंसी के अधिकारी गुरप्रीत सिंह ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि अभी पंजाब में यह शुरुआती चरण में है।
कई सरकारी एजेंसियां यह सुनिश्चित करने के लिए गाइडलाइन तैयार करने में जुटी हैं कि सड़कों के विस्तार के समय फुटपाथ जरूर बनाए जाएं। हालांकि, गुरप्रीत सिंह का कहना है कि राज्य सरकार के निर्देश एकदम स्पष्ट हैं कि भविष्य में बनने वाली सभी सड़कों में फुटपाथ पूरी तरह से अनिवार्य हैं।
पंजाब रोड सेफ्टी काउंसिल के सदस्य हरमन सिद्धू ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि इससे पहले पंजाब ने सड़क निर्माण में फुटपाथ को कोई तवज्जो नहीं दी। पंजाब में राइट टू वॉक लागू करने का कदम काफी अच्छा है लेकिन अभी तक यह सिर्फ कागजों पर ही है। अगर पंजाब को इसे आगे ले जाना है तो इसमें आगे बढ़कर कदम उठाने होंगे।
गुरप्रीत सिंह का कनहा है कि इस नीति को लागू करने से सड़क पर चलने वाले पैदल यात्री सुरक्षित होंगे और उनकी जान जाने की घटनाओं में कमी आएगी। वहीं, असीजा का कहना है कि राइट टू वॉक को पंजाब में लागू करना सही दिशा में उठाया गया एक सही कदम है लेकिन इसमें कई चुनौतियां हैं और कई प्रयास जैसे कि पैदल चलने वालों के अनुकूल रास्ते बनाना शामिल है।
पंजाब में सड़कों का नेटवर्क कुल 75 हजार किलोमीटर का है। हालांकि, पंजाब के ज्यादा शहरों और महानगरों की सड़कों पर पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ नहीं है। सड़क चौड़ीकरण के काम में कुछ फुटपाथ खत्म भी हो गए। असीजा कहते हैं कि सड़कों पर बनाई गई क्रॉसिंग काफी असुरक्षित हैं जिससे पैदल चलने वालों के लिए खतरा बढ़ जाता है।
वह आगे कहते हैं, “फुटपाथ बनाना और उन्हें इन संकरे इलाकों में बाधा रहित रखना, खासकर क्रॉसिंग पर, एक चुनौतीपूर्ण काम है।”
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उनका मानना है कि सबसे बड़ा काम है कि इसमें सिविल सोसायटी के लोगों को शामिल किया जाए और लोगों के व्यवहार में बदलाव किया जाए। वह कहते हैं, ‘फिर भी फिलहाल तो पंजाब में राइट टू वॉक को कानूनी समर्थन प्राप्त है और अब फुटपाथ को लेकर कोई समझौता नहीं हो सकता।’
वहीं, पटियाला जिले में लागू की गई इस नीति ने अपनी पहली सफलता देख ली है। पटियाला की डिप्टी कमिश्नर साक्षी साहनी ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि स्थानीय प्रशासन ने दुख निर्वाण गुरुद्वारा के पास संकरी सड़क पर हाल ही में फिर से पेवमेंट डाल दी है, जो कि सड़क के चौड़ीकरण के समय खत्म हो गई थी।
वह कहती हैं कि कई अन्य इलाकों से भी फुटपाथ हटा दिए गए थे। पर्याप्त ऑडिट के बाद अब इन फुटपाथ को फिर से बनाया जा रहा है।
पॉलिसी को लागू करना कितनी चुनौतीपूर्ण है? इस सवाल के जवाब में वह कहती हैं कि यह काफी मुश्किल भरा है। सड़क चौड़ीकरण प्रोजेक्ट में पैदल चलने वालों के लिए बनाया गया ढांचा सबसे पहले खत्म होता है। इसके बाद, रेहड़ी-पटरी वालों के अतिक्रमण और कंस्ट्रक्शन सामग्री के अवशेष आदि को हटाया जाता है।
वह कहती हैं, ‘हमें सड़क चौड़ीकरण और फुटपाथ निर्माण को संतुलित रखना है। साथ ही, रेहड़ी-पटरी वालों को भी पर्याप्त जगह देनी है।’
वह कहती हैं कि लगातार सभी स्टेकहोल्डर्स की भागीदारी से ही इसमें सुधार लाया जा सकता है।
पैदल चलने से कम होगा कार्बन फुटप्रिंट
विशेषज्ञों का मानना है कि राइट टू वॉक की नीति सिर्फ सड़क सुरक्षा के लिए ही नहीं है, इसे जलवायु परिवर्तन की नीतियों से भी जोड़ा जा सकता है।
पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ के पर्यावरण अध्ययन विभाग में प्रोफेसर असोसिएट प्रोफेसर सुमन मोर ने मोंगाबे-इंडिया से बातचीत में कहा कि हमारे आने-जाने के तरीकों में बदलाव करने से न सिर्फ इन सड़क हादसों में की आ सकती बल्कि पर्यावरण को संरक्षित रखा जा सकता है, अगर हम गाड़ी से ज्यादा वरीयता पैदल चलने को दें।
उनके मुताबिक, जब ट्रांसपोर्ट और एनर्जी सेक्टर में बदलाव किया जा रहा है ताकि कार्बन उत्सर्जन में कमी आ सके तो पैदल चलने को प्रोत्साहित करके पर कैपिटा कार्बन फुटप्रिंट में भी कमाई लाई जा सकती है। इसके लिए इस नीति को बेहतर ढंग से लागू करना होगा।
उनका कहना है कि पश्चिम के देशों के कई शहरों में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी नीतियों के तहत वायु प्रदूषण को कम करने, शारीरिक सेहत के फायदों को बढ़ावा देने और ध्वनि प्रदूषण कम करने के लिए पैदल चलने के आधारभूत ढांचों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल में ग्लोबल पॉलिटिकल स्टैटजी के हेड हरजीत सिंह भी कहते हैं कि भारत में राइट टू वॉक सिर्फ पैदल चलने का हक भर नहीं बल्कि यह बेहतर सेहत, साफ पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन को कम करने का तरीका और समग्र शहर बनाने का जरिया भी है।
हरजीत सिंह मोंगाबे इंडिया से कहते हैं, ‘पैदल चलने वालों के अधिकारों को वरीयता देने के साथ ही हम पैदल चलने वोलों की बहुत सारी चुनौतियों को एक झटके में खत्म कर देते हैं और एक ऐसा भविष्य तैयार करते हैं जहां पैदल चलने के लिए उठाए गए कदम सभी के लिए ज्यादा सतत और सेहतमंद देश बनाते हैं।’
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बैनर इमेज: मोहाली में सड़क पार करते पैदल यात्री। पंजाब ने इसी साल के मई महीने से राइट टु वॉक को लागू करने का फैसला किया है। तस्वीर– बिस्वरूप गांगुली/विकिमीडिया कॉमन्स।