- भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित विश्व के कई नेताओं ने फिलिस्तीन और इज़राइल में शांति की अपील करने के लिए कॉप28 को एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया है।
- कॉप28 प्रेसीडेंसी ने संघर्ष-ग्रस्त देशों में जलवायु लचीलापन बनाने के उद्देश्य से एक घोषणा शुरू की, जो जलवायु परिवर्तन के प्रति भी संवेदनशील हैं।
- कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु वार्ता में उत्सर्जन में कटौती और ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने की योजना में युद्ध और सैन्य अभियानों से उत्सर्जन पर विचार करना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन पर होने वाले वार्षिक सम्मेलन की 28वीं कॉन्फरेंस ऑफ़ पार्टीज़ (कॉप28) ने दो सप्ताह तक चलने वाले शिखर सम्मेलन में राहत, पुनर्प्राप्ति और शांति के लिए एक दिन चिह्नित किया। इसके चलते जिससे संघर्ष के मुद्दे को इस जलवायु मंच पर लाया गया जो आम तौर पर इस मुद्दे को दरकिनार करते आया है।
दुबई में आयोजन स्थल से लगभग 2,400 किलोमीटर दूर चल रहे फिलिस्तीन युद्ध का इस वर्ष सम्मेलन के इतर भारी असर पड़ा है। 2 दिसंबर को, कई विश्व नेताओं ने शांति, सैन्य खर्च में कटौती और युद्ध विराम की अपील करने के लिए कॉप28 को एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मौके पर इज़राइल के राष्ट्रपति इसहाक हर्ज़ोग से मुलाकात की और दो-राज्य समाधान के लिए भारत के समर्थन और मौजूदा संकट के समाधान के लिए बातचीत और कूटनीति का उपयोग करने पर जोर दिया। अक्टूबर में शुरू हुए इस युद्ध में अब तक 15,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं।
कॉप28 प्रेसीडेंसी ने 3 दिसंबर को जलवायु, राहत, पुनर्प्राप्ति और शांति पर एक घोषणापत्र की शुरुआत की, जो अत्यधिक कमजोर देशों और समुदायों में, विशेष रूप से नाजुकता या संघर्ष से खतरे में या प्रभावित लोगों में, “जलवायु लचीलापन बनाने के लिए साहसी सामूहिक कार्रवाई” के लिए एक स्वैच्छिक आह्वान था। विशेषज्ञों का कहना है कि यह घोषणा जलवायु परिवर्तन और युद्ध के आसपास व्यापक बातचीत का द्वार खोलती है।
“ग्लासगो में कॉप26 के बाद से, इस मंच पर सैन्य खर्च और उत्सर्जन के मुद्दे को सामूहिक रूप से उठाने का प्रयास किया गया है, जो धीरे-धीरे प्रगति कर रहा है,” विसैन्यीकरण और जलवायु परिवर्तन के इंटरसेक्शन पर काम करने वाले संगठन टिपिंग प्वाइंट नॉर्थ साउथ के सह-संस्थापक डेबोरा बर्टन ने कहा।
“यूक्रेन पर आक्रमण तब हुआ है जब दुनिया, और विशेष रूप से मीडिया, संघर्ष के जलवायु प्रभाव को देख सकता है। अब हम इसे गाजा में देख रहे हैं।”
रूस-यूक्रेन युद्ध ने 2022 में तेल और गैस की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर दिया, जिससे उनकी कीमतें बढ़ गईं और परिणामस्वरूप कई यूरोपीय देशों ने ऊर्जा सुरक्षा के नाम पर अपने जीवाश्म भंडार का विस्तार किया। फिलिस्तीन में बढ़ते संघर्ष ने अब युद्ध के परिणामस्वरूप उत्सर्जन और पर्यावरणीय क्षति पर ध्यान केंद्रित कर दिया है – एक ऐसा मामला जिसे जलवायु वार्ता ने 1997 से अनिवार्य खुलासे से बाहर रखा है।
फिलिस्तीन में जलवायु शमन
वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज (सीएसआईएस) ने गाजा पट्टी पर एक सेटेलाइट सर्वेक्षण किया, जो 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास के हमले के बाद इजरायल के बदले का सामना कर रहा है। सर्वेक्षण में यह भी बताया गया कि भले ही सौर ऊर्जा, पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की तुलना में अधिक लचीली हो, युद्ध के कारण इस पर विनाश खतरा बना रहता है।
सर्वेक्षण में कहा गया है, गाजा में दो मेगावाट के बड़े सोलर प्लांट और एक जर्मन-वित्त पोषित अपशिष्ट जल संयंत्र “जिसे अप्रैल 2023 में ही खोला गया था” को नष्ट कर दिया गया। साथ ही सर्वेक्षण में कहा गया है, “11 नवंबर, 2023 को गाजा शहर के क्षेत्र में एक वर्ग मील के क्षेत्र में लिए गए उपग्रह इमेजरी के नमूने” की जांच से पता चला कि 29 सबसे बड़े छत सौर प्रणालियों में से 17 या तो नष्ट हो गए थे या उन्हें बाहरी क्षति हुई थी। सर्वेक्षण के अनुसार, गाजा में सौर छत स्थापनाओं का दुनिया में सबसे अधिक घनत्व है।
वेस्ट बैंक के जलवायु विशेषज्ञ और फिलिस्तीन के पर्यावरण गुणवत्ता प्राधिकरण के सदस्य हदील इखमाइस, जो कॉप28 के लिए दुबई में हैं, ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि युद्धग्रस्त देश अभी भी अपने जलवायु शमन लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन उसकी कई परियोजनाएं नष्ट हो गई हैं।
इखमाइस ने कहा कि कुछ फिलिस्तीनी अधिकारियों ने कब्जे के दौरान जलवायु शमन और ऊर्जा सुरक्षा को आगे बढ़ाने की कठिनाइयों को प्रदर्शित करने के लिए कॉप28 में आने का प्रयास किया। कॉप28 ऐसा पहला कॉप है जहां फिलिस्तीन का अपना एक पवेलियन है, जहाँ लोग इस देश की जलवायु गतिविधियों के बारे में अधिक जानकारी के लिए स्वतंत्र रूप से जा सकते हैं।
इखमाइस ने कहा कि सरकार जलवायु सम्मेलन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है, भले ही वह इस साल वार्ता में भाग नहीं लेगी। उन्होंने कहा, “हम एक अलग एजेंडे के साथ आए थे, लेकिन यह सब बदलना पड़ा।” उन्होंने कहा, “हम इसे एक चुनौती मानते हैं, न कि कुछ ऐसा जो हमें हमारी परियोजनाओं को लागू करने से रोक सके। हमें गाजा पट्टी में अनुकूलन और शमन कार्रवाई को फिर से शुरू करना होगा।”
जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण इजरायल और फिलिस्तीन में वर्षा कम होने के कारण सूखे का खतरा बढ़ गया है। “हमने मुश्किल से ही कोई कार्बन उत्सर्जित किया है। हमारे पास कोई बड़ा उद्योग या बिजली का उत्पादन भी नहीं है। हमें वास्तव में कब्जे के तहत जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए वित्त की आवश्यकता है,” इखमाइस ने कहा।
कॉप पर सैन्य उत्सर्जन
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल के अनुसार, विश्व के नेताओं का ध्यान ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री तक सीमित करने पर है, जिसका मतलब है कि 2030 तक उत्सर्जन में 43% की गिरावट। लेकिन सैन्य अभियानों से उत्सर्जन की पूरी सीमा – कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग 5.5% योगदान का अनुमान है – जिसे यूएनएफसीसीसी की राजनीतिक प्रक्रिया में नहीं गिना जाता है।
साल 1997 में, जब क्योटो प्रोटोकॉल पर बातचीत चल रही थी, तो अमेरिका ने उत्सर्जन सूची से सैन्य अभियानों को बाहर करने की पैरवी की। यह एक ऐसा कदम था जिसका उस समय कुछ विकासशील देशों ने विरोध किया था। अंततः इसे यह छूट दे दी गई, भले ही अमेरिका ने कभी भी क्योटो प्रोटोकॉल की आधिकारिक पुष्टि नहीं की। “2015 तक पेरिस शिखर सम्मेलन में पार्टियों ने उत्सर्जन की रिपोर्ट करने और उसका हिसाब देने की अनुमति नहीं दी थी। लेकिन पेरिस समझौते की अधिकांश बातों की तरह, यह स्वैच्छिक है। तो, आपको कुछ रिपोर्टिंग मिलती है, लेकिन यह बहुत ही अपारदर्शी और बहुत अधूरी है,” ट्रांसनेशनल इंस्टीट्यूट के एक शोधकर्ता निक बक्सटन ने कहा।
ब्राउन यूनिवर्सिटी के वॉटसन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल एंड पब्लिक अफेयर्स की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि यूक्रेन युद्ध के पहले 12 महीनों में लगभग 120 मिलियन टन ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न हुईं। बक्सटन ने कहा, “आप यकीन कर सकते हैं कि इज़राइल का सैन्य उत्सर्जन अब काफी बढ़ रहा है।”
साल 2022 में सैन्य खर्च 2.2 ट्रिलियन डॉलर को पार कर गया। कार्यकर्ता और शोधकर्ता अब इस राशि का एक हिस्सा आगे सैन्यीकरण के बजाय जलवायु वित्त में लगाने की मांग कर रहे हैं।
टिपिंग पॉइंट नॉर्थ साउथ के बर्टन के अनुसार, संघर्ष और सैन्य अभियानों से उत्पन्न होने वाले उत्सर्जन का विषय कॉप के “एजेंडे को ऊपर उठा रहा है”। उनके संगठन ने इस मुद्दे को ग्लोबल स्टॉकटेक में शामिल करने के लिए यूएनएफसीसीसी सचिवालय को एक आवेदन दिया है – जो पेरिस समझौते के कार्यान्वयन का आकलन करने वाला एक अभ्यास है।
उन्होंने कहा, “यूक्रेन के बाद हम यूएनएफसीसीसी प्रक्रिया के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख निर्णय निर्माताओं के साथ बातचीत करने में सक्षम हुए हैं।” उन्होंने कहा, “हम जलवायु परिवर्तन और संघर्ष उत्सर्जन में सेना की भूमिका पर आईपीसीसी की विशेष रिपोर्ट पर जोर दे रहे हैं, हमें उम्मीद है कि यह काम करेगा।’
यह स्टोरी 2023 क्लाइमेट चेंज मीडिया पार्टनरशिप का एक हिस्सा है। यह पार्टनरशिप इंटरन्यूज के अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क और स्टेनली सेंटर फॉर पीस एंड सिक्योरिटी द्वारा आयोजित एक पत्रकारिता फेलोशिप है।
बैनर तस्वीर: 3 दिसंबर को दुबई में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, कॉप28 के दौरान जलवायु न्याय के लिए मानवाधिकार कार्रवाई का आह्वान करने वाले वकालत समूह। तस्वीर- COP28/वाला अलशेर/फ़्लिकर।