- कीटों को नियंत्रित करने और उनसे धान की फसल बचाने में कीटभक्षी चमगादड़ों की एक बड़ी भूमिका हो सकती है। असम के अध्ययन से यह बात निकलकर आई है।
- कीटभक्षी चमगादड़ आमतौर पर कुछ भी खा लेने वाले होते हैं। उनके भोजन में तमाम तरह के कीट शामिल होते हैं, जिनमें फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट भी हैं।
- अधिक कानूनी संरक्षण और इन पर किए जाने वाले अध्ययनों को अधिक फंडिंग दिए जाने से, इन स्तनधारियों को समझने और उनके संरक्षण में काफी मदद मिलेगी।
असम में हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि चमगादड़ धान की फसल को होने वाले नुकसान को कम करने में सहायक हो सकते हैं। 2019 के साली (सर्दियों) चावल की किस्म पर किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि कीटभक्षी चमगादड़ कीटों को संख्या को बढ़ने नहीं देते और चावल की फसलों को होने वाले नुकसान को कम करने में मदद करते हैं। इनकी वजह से उपज की रक्षा होती है।
एग्रीकल्चर, इकोसिस्टम्स एंड एनवायरमेंट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के शोधकर्ताओं में से एक इकबाल भल्ला ने बताया, “इसमें कोई शक नहीं है कि चमगादड़ खेती के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। मुझे उम्मीद है कि अगले कुछ सालों में निश्चित तौर पर हमें इस सवाल का जवाब भी मिल जाएगा कि भारतीय कृषि में उनका आर्थिक महत्व कितना है?”
कृषि में कीटनाशकों पर निर्भरता कम करने के लिए भारत में 1992 में एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) कार्यक्रम शुरू किया गया था। इसका संबंध कृषि उत्पादन में कीटों को नियंत्रित करने के लिए जैविक, सांस्कृतिक और रासायनिक तरीकों के एक साथ इस्तेमाल से है। इस कार्यक्रम में सालों से कृषि कीटों को नियंत्रित करने के लिए मछली, मेंढक, परजीवी और बत्तख जैसे प्राकृतिक शिकारियों का इस्तेमाल किया जाता रहा है।
पिछले दशक में कीटों से निपटने के तरीकों में चमगादड़ भी काफी मददगार साबित हुए हैं। कीटभक्षी चमगादड़ ज्यादातर कुछ भी खा लेने वाले जीव होते हैं। उनके भोजन में तमाम तरह के कीट शामिल हैं, जिनमें फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट भी हैं। इस तरह वे कीट आबादी को नियंत्रित करने में सक्षम होते हैं और अचानक फैलने या नई कीट प्रजातियों के आक्रमण के खिलाफ एक बफर की तरह काम कर सकते हैं। महाराष्ट्र में चमगादड़ों पर अध्ययन करने वाले एक स्वतंत्र वन्यजीव बायोलॉजिस्ट हितेश झा कहते हैं, “बहुत ज्यादा घूमने फिरने का असर उनके खान-पान पर भी पड़ता है। अपनी इसी खासियत की वजह से वे भोजन न मिल पाने की वजह से एक खेत से दूसरे खेत की तरफ चले जाते हैं। फसल के कीट उपलब्ध न होने पर अलग-अलग शिकार खाकर जिंदा बने रहने की खासियत भी उनके अंदर मौजूद है। वे मच्छरों और मक्खियों जैसे बीमारी फैलाने वाले कीटों को खाते हैं और उनकी संख्या को कम करके बीमारी फैलने से रोकने में भी मदद कर सकते हैं।”
भल्ला कहते हैं, “मेरे तजुर्बा बताता है कि ज्यादातर किसानों को कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के बारे में गहरी समझ है। जिस भी किसान से मैंने बात की, वह कीट नियंत्रण एजेंटों के तौर पर पक्षियों और चमगादड़ों के महत्व को बारीकी से पहचानता है। मैंने असम के खेतों में जैविक कीट नियंत्रण का एक दिलचस्प तरीका देखा था। वहां के किसान चावल के खेतों में एक निश्चित दूरी पर पतली डालियों को जमीन में गाड़ देते हैं। ये डालियां कीटभक्षी पक्षियों (खासतौर पर स्वैला या अबाबील) को आराम करने के लिए जगह देती हैं, जिसके चलते वे खेतों की तरफ कीटों को खाने के लिए खिंचे चले आते हैं।”
कीटों की वजह से होने वाले नुकसान को कम करने में मददगार
हालिया अध्ययन असम के सोनितपुर जिले के गांव पुथिमरी के धान के खेतों में किया गया था। राज्य में चावल एक प्रमुख फसल है। 2.54 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर चावल की खेती की जाती है।
भल्ला कहते हैं, “देश के लिए चावल के आर्थिक महत्व को देखते हुए मैंने इस जगह को चुना था। मैं अध्ययन के लिए एक ऐसी जगह की तलाश में था जहां राज्य के बाकी जगहों की तरह समान स्थितियों में चावल उगाया जाता है, ताकि निष्कर्षों को और अधिक सटीक बनाया जा सके।”
इस गांव को चुनने की एक और खास वजह थी। गांव के पूर्वी इलाके में खेत बड़े थे और यहां किसी भी तरह की कोई बाहरी दखलंदाजी नहीं थी। और एक दूसरे से लगभग 100 मीटर की दूरी पर स्थित थीं। अध्ययन कुछ हद तक कीटभक्षी चमगादड़ समुदाय को ध्यान में रख कर किया गया, क्योंकि शोधकर्ताओं को यह नहीं पता था कि उन्हें मैदान पर कौन सी प्रजाति मिलेगी। यह अध्ययन ध्वनि तरंगो पर आधारित था और ऐसी कोई लाइब्रेरी भी नहीं थी जहां विशिष्ट प्रजाति के चमगादड़ों की आवाज का मिलान किया जा सके। भल्ला ने बताया, “हम सिर्फ उन उन चमगादड़ों की आवाज को पहचान सकते थे जिन्हें हमने रिकॉर्ड किया था। फिर भी हमने ग्रेटर फाल्स वैंपायर बैट, ग्रेटर एशियाटिक येलो बैट और लैसर एशियाटिक येलो बैट को रिकॉर्ड किया है।”
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इस अध्ययन में छह जोड़ी भूखंडों (जिनमें से पांच का विश्लेषण किया गया) को जगह दी गई थी। इन क्षेत्रों से चमगादड़ों को चुनिंदा रूप से बाहर रखा गया था। शोधकर्ताओं ने चमगादड़ की उपस्थिति के प्रभाव का आकलन करने के लिए पौधों की दो तरह के नुकसान और कुल उपज के एक हिस्से पर प्रयोग किया था। इन छह जगहो पर चावल के मौसम में निष्क्रिय ध्वनिक रिकॉर्डर का इस्तेमाल करके चमगादड़ों की गतिविधि को दर्ज किया गया था।
नतीजे बताते हैं कि कीटभक्षी चमगादड़ों के न होने से चावल की फसल में समय से पहले पत्ते गिरने की घटनाएं बढ़ गईं थी। चमगादड़ों की घूमने-फिरने की सामान्य गतिविधि और पौधों के नकुसान के बीच संबंध में बेहद चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। अध्ययन के मुताबिक, क्योंकि चमगादड़ कीटों को खाते हैं इसलिए चावल के खेतों में कीटों की वजह से होने वाले नुकसान में कमी आई है। भल्ला ने बताया, “वे चावल की फसल को कीटों से होने वाले नुकसान को कम कर देते हैं। हालांकि हम यह साबित नहीं कर सके कि वे उपज में सुधार लाते हैं या नहीं।”
चावल के खेतों के आसपास आवास संरक्षण महत्वपूर्ण
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) के मुताबिक, दुनिया भर में चमगादड़ों की 1,400 से अधिक प्रजातियां हैं, जिनमें से एक तिहाई से अधिक खतरे में हैं। कम होती चमगादड़ों की आबादी की वजह उनके आवास का नुकसान है।
इस बात को जानते हुए कि चावल के खेत ‘खुली’ जगह हैं। वहां चमगादड़ों के रहने के लिए कोई पेड़ नहीं है, या फिर ऐसा कुछ जिनके किनारे चमगादड़ शिकार कर सकते हो। इसलिए ज्यादातर चमगादड़ सिर्फ चावल के खेतों के आसपास के वन और अर्ध-वन क्षेत्रों के किनारों पर शिकार करना पसंद करते हैं। इन क्षेत्रों को बरबाद करने से चमगादड़ों पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है। झा कहते हैं, ” इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि भारत की 128 चमगादड़ों की प्रजातियों में से सिर्फ दो, रॉटन का फ्री टेल्ड बैट और सलीम अली का फ्रूट बैट कानून द्वारा संरक्षित हैं।”
अधिक कानुनी संरक्षण और इन पर किए जाने वाले अध्ययनों के लिए अधिक फंडिंग से इन स्तनधारियों को समझने और संरक्षित करने में काफी मदद मिलेगी। ये इसलिए और खास हो जाता है क्योंकि अध्ययन के शोधकर्ता यह भी मानते हैं कि सभी प्रकार की फसलों में अध्ययन के निष्कर्ष एक ही जैसे हो सकते है, क्योंकि चमगादड़ ‘लूनरफोबिक’ होते हैं (उल्लू जैसे शिकारियों के डर की वजह से वह चांदनी रातों में कम ही बाहर निकलते है), चमगादड़ कीटों (और कीड़ों) पर नज़र रखते हैं, चमगादड़ों की जनसंख्या वृद्धि के पैटर्न (जो अक्सर फसल की परिपक्वता के बाद होते हैं), शहरी क्षेत्र चमगादड़ों को परेशान करते हैं और चमगादड़ों की आबादी को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए वन और अर्ध-वन क्षेत्रों की जरूरत होती है।
भल्ला कहते हैं, “हालांकि, चमगादड़ खास आवास स्थितियों के लिए बेहद विशिष्ट हो सकते हैं। लेकिन अगर हम चावल जैसी मौसमी फसल से बारहमासी कृषि वानिकी कॉफी बागान की ओर चले गए, तो हमें चमगादड़ों के व्यवहार में बहुत अलग पैटर्न देखने को मिल सकता है।”
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बैनर तस्वीर: नगांव में धान रोपते किसान। असम में किए गए एक अध्ययन के दौरान चावल के खेतों में ग्रेटर फाल्स वैम्पायर बैट को देखा गया था। तस्वीर– दिगन्त तालुकदार/विकिमीडिया कॉमन्स।