- अगले तीन दशकों में भारत की ऊर्जा मांग बाकी देशों के मुकाबले काफी ज्यादा हो जाएगी। 2050 तक इसके उत्सर्जन में 30 फीसदी की वृद्धि का भी अनुमान है।
- एक नई रिपोर्ट में पाया गया है कि सौर पीवी विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने के लिए सरकार की प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव योजना से भारत को आयात निर्भरता कम करने और स्थापित क्षमता बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
- रिपोर्ट के मुताबिक, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने, ऊर्जा दक्षता की गति को दोगुना करने, विद्युतीकरण में तेजी लाने और जीवाश्म ईंधन संचालन से मीथेन उत्सर्जन को कम करने से दुनिया को 1.5 डिग्री वार्मिंग के ट्रैक पर रहने में मदद मिल सकती है।
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) की ओर से हाल ही में जारी वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले तीन दशकों में दुनिया के हर देश और क्षेत्र की तुलना में भारत में ऊर्जा मांग में सबसे अधिक वृद्धि देखने को मिलेगी। इस वृद्धि का अधिकांश भाग गर्मी बढ़ने पर घरों और ऑफिस को ठंडा करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पादों से जुड़ा होगा।
24 अक्टूबर को जारी वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक मौजूदा ऊर्जा रुझानों का आकलन करता है और विकास के लिए भविष्य के रास्तों के लिए सुझाव देता है। रिपोर्ट में पाया गया है कि 2020 के बाद से स्वच्छ ऊर्जा में वैश्विक निवेश में 40 फीसदी की वृद्धि हुई है। हो सकता है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित किया जा सकता हो, लेकिन ऐसा करना बेहद मुश्किल होगा।
रिपोर्ट कहती है, भारत की बढ़ती ऊर्जा मांगों का मतलब यह भी है कि 2050 तक इसका उत्सर्जन 30 फीसदी और बढ़ जाएगा। मौजूदा समय में भारत संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद प्रति वर्ष लगभग 2.7 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करने वाला तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने चेतावनी दी है कि सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित करने और 2050 तक नेट-जीरो के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए उत्सर्जन को 2030 तक 40 प्रतिशत से अधिक कम करने की जरूरत है। फिलहाल वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत है। इसके 2030 तक घटकर 73 प्रतिशत होने का अनुमान है। आईइए की रिपोर्ट कहती है “अगर जीवाश्म ईंधन की मांग उच्च स्तर पर बनी रही, तो वैश्विक जलवायु लक्ष्यों तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा। ऐसा ही कुछ हाल के वर्षों में कोयले के मामले हुआ और तेल व गैस के लिए स्टटेड पॉलिसीज सिनेरियो (STEPS) के अनुमानों में भी दिखा है,” STEPS वर्तमान स्थिति को दर्शाता है।
दुनियाभर की ऊर्जा की जरूरतों को आकार देने में चीन की एक बड़ी भूमिका है और अगर वह 2030 तक अपनी अनुमानित जीडीपी वृद्धि को 4 प्रतिशत से घटाकर 3 प्रतिशत करने का विकल्प चुनता है, तो इससे 2030 तक कोयले की मांग कम हो जाएगी, जो मौजूदा समय में पूरे यूरोप द्वारा खपत की गई मात्रा के बराबर होगी।
आईईए का कहना है कि इसका समाधान नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने, ऊर्जा दक्षता की गति को दोगुना करने, विद्युतीकरण में तेजी लाने और जीवाश्म ईंधन संचालन से मीथेन उत्सर्जन को कम करने में मौजूद है। ये सभी साथ मिलकर “तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य को पाने के लिए ऊर्जा क्षेत्र में 2030 तक आवश्यक उत्सर्जन कटौती का 80% से ज्यादा का योगदान देते हैं।
इसके अलावा, उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में स्वच्छ ऊर्जा निवेश को बढ़ाने के लिए इनोवेटिव और बड़े पैमाने पर वित्तपोषण तंत्र की आवश्यकता है। साथ ही जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कम से कम हो इसके लिए भी उपाय किए जाने की जरूरत है। इन उपायों में बेरोकटोक कोयला आधारित बिजली संयंत्रों की नई मंजूरी को समाप्त करना भी शामिल है।
भारत में कूलिंग, सोलर पीवी
कई अध्ययनों से पता चलता है कि दुनियाभर में बढ़ रहे तापमान के कारण भारत में हीटवेव के ज्यादा बार आने और उनके ज्यादा तीव्र होने की संभावना है। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण 2022 की गर्मियों में लू चलने की घटनाएं ज्यादा बार हुईं। आईईए का अनुमान है कि इन घटनाओं के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों की तरफ बढ़ती आबादी की वजह से 2050 तक एयर कंडीशनर का स्वामित्व नौ गुना बढ़ जाएगा। नतीजतन 2022 और 2050 के बीच STEPS में तेल और प्राकृतिक गैस की मांग लगभग 70% और कोयले की मांग 10% बढ़ जाएगी।
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रिपोर्ट कहती है कि अकेले एयर कंडीशनिंग के लिए भारत की मांग “आज पूरे अफ्रीका में कुल बिजली की खपत से अधिक है।” लेकिन, अगर भारत अपने सभी जलवायु और ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त कर लेता है, तो इमारतों में ऊर्जा कुशल एयर कंडीशनिंग और थर्मल इन्सुलेशन के इस्तेमाल होने लगेगा। इसकी वजह से मौजूदा समय की तुलना में बिजली की मांग 15 प्रतिशत कम हो जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है, “यह कटौती आज नीदरलैंड जैसे कई देशों द्वारा किए गए कुल बिजली उत्पादन से भी बड़ी होगी।”
भारत ने 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है। शर्म अल-शेख में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन COP27 में भारत ने इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अपना रणनीतिक रोडमैप जारी किया था, जिसमें 2032 तक परमाणु क्षमता को तीन गुना बढ़ाना और अन्य उपायों के अलावा हरित हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ाना शामिल है। भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का राष्ट्रीय लक्ष्य भी निर्धारित किया है।
आईईए का कहना है कि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा निवेश को तीन गुना करने की जरूरत है। 2022 में नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश की संख्या 60 बिलियन डॉलर थी और अनुमानों के अनुसार 2030 तक इसके दोगुना होने की संभावना है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने अपनी सौर पीवी (फोटोवोल्टिक) प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना को आगे बढ़ाया है जो संभावित रूप से आयात निर्भरता को कम कर सकती है। 2021 और 2022 के बीच, भारत ने 3.4 बिलियन डॉलर मूल्य के सौर पीवी का आयात किए थे। पीएलआई योजना का लक्ष्य हर साल 65 गीगावॉट नई विनिर्माण क्षमता जोड़ना है। और इस साल विनिर्माण शुरू होने पर कुल 48 गीगावॉट नई क्षमता को सब्सिडी दिए जाने की बात कही गई है।
आईईए की रिपोर्ट के अनुसार, “अगर पीएलआई कार्यक्रम के तहत नई सौर पीवी मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता 2026 तक पूरी तरह से ऑनलाइन हो जाती है, तो यह भारत में सौर पीवी मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता को इस दशक के अंत तक की जरूरत से कहीं अधिक कर देगी।”
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बैनर तस्वीरः भारत में एक आवास परिसर में लगी कुछ एयर कंडीशनिंग यूनिट। तस्वीर– डेविड ब्रॉसार्ड/विकिमीडिया कॉमन्स