- गुवाहाटी हाई कोर्ट के आदेश के बाद नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड की चारदीवारी को गिराने का काम आखिरी दौर में है। यह दीवार देवपहार में अहम हाथी गलियारे में बाधा बन रही थी। इसके बाद एक दशक से चली आ रही कानूनी लड़ाई का खात्मा हो गया है।
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने साल 2016 में दीवार गिराने का आदेश दिया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट दोनों ने बरकरार रखा।
- देवपहार का आरक्षित जंगल तेंदुए, हूलॉक गिब्बन, स्लो लोरिस, हिरण, अजगर और तितलियों और पक्षियों की कई प्रजातियों का भी घर है।
भारत में पर्यावरण एक्टिविजम के लिए एक ऐतिहासिक क्षण तब आया जब 17 मार्च को नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड (एनआरएल) ने अपनी टाउनशिप में 2.2 किलोमीटर लंबी चारदीवारी को गिराना शुरू कर दिया। इस दीवार के चलते असम के गोलाघाट जिले में देवपहार के आरक्षित वन में जंगली जानवरों की आवाजाही में बाधा आ रही थी।
एनआरएल सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनी है। यह भारत पेट्रोलियम, ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) और असम सरकार का संयुक्त उद्यम है। दीवार गिराने का काम कथित तौर पर गुवाहाटी हाई कोर्ट की ओर से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के मूल फैसले को बरकरार रखने के बाद शुरू हुआ। संरक्षणवादी और आरटीआई कार्यकर्ता रोहित चौधरी की ओर से दायर आवेदनों के जवाब में एनजीटी ने अगस्त 2016 में दीवार को गिराने का आदेश दिया था।
न्यायमूर्ति देवाशीष बरुआ की ओर से आठ फरवरी को पारित आदेश ने एनआरएल की तरफ से दायर दो रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया। इन याचिकाओं में एनजीटी के साल 2016 के आदेश को चुनौती दी गई थी। एनआरएल ने इससे पहले मार्च 2018 में दीवारी गिराने का काम शुरू किया था। उसने 289 मीटर दीवार गिराई भी थी लेकिन फिर इस काम को रोक दिया गया।
एनआरएल के महाप्रबंधक (मानव संसाधन) काजल सैकिया ने संपर्क करने पर मोंगाबे-इंडिया को बताया, “हम माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हैं और अदालत के आदेश का पालन करेंगे।”
दीवार गिराने का पूरा काम एनआरएल की ओर से किया जाएगा। इसमें गोलाघाट का जिला प्रशासन शामिल नहीं होगा। गोलाघाट के उपायुक्त उदय प्रवीण ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “माननीय न्यायालय के आदेश में जिला प्रशासन को पक्षकार नहीं बनाया गया है। इसलिए, दीवार को गिराने का काम पूरी तरह से एनआरएल को करना होगा। उन्हें इस काम के लिए जरूरी मानव संसाधन और मशीनरी उपलब्ध करानी होगी।”
नाम नहीं छापने की शर्त पर, एनआरएल के एक करीबी सूत्र ने बताया था कि कंपनी मार्च के आखिर तक दीवारी गिराने का काम खत्म करना चाहती है। सूत्र ने कहा था, “ना सिर्फ दीवार को गिराना होगा, बल्कि उन्हें अपनी बनाई गई पूरी नींव भी उखाड़नी होगी।” इस खबर को लिखे जाने तक, दीवार गिराने का काम आखिरी दौर में जारी था।
दशक-भर पुरानी कानूनी लड़ाई
हालांकि, चौधरी को उच्च न्यायालय के फैसले और दीवारी गिराने का काम शुरू होने से राहत मिली है, लेकिन उनका सफर आसान नहीं रहा है। दीवार गिराने का काम आखिरकार तीन अलग-अलग अदालतों में लड़ी गई लगभग एक दशक लंबी कानूनी लड़ाई का नतीजा है।
उन्होंने पहली बार साल 2015 में एनजीटी में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की। अगस्त 2016 में एनजीटी ने चारदीवारी बनाने के काम को अवैध घोषित कर दिया, क्योंकि यह हाथियों की आवाजाही के लिए जरूरी गलियारे को बाधित करता था।
अपने आदेश में, एनजीटी ने एनआरएल को दीवार गिराने का निर्देश दिया। साथ ही, कंपनी को ‘जंगल की हरियाली को बड़े पैमाने पर नुकसान पुहंचाने‘ और गोल्फ कोर्स बनाने के लिए एक पहाड़ी को समतल करने के लिए असम वन विभाग को 25 लाख रुपये का भुगतान करने को कहा। एनआरएल को दीवार बनाने के लिए काटे गए पेड़ों की संख्या का 10 गुना नए पेड़ लगाने के लिए भी कहा गया।
फैसले में कहा गया कि देवपहार के तत्कालीन ‘प्रस्तावित रिजर्व फॉरेस्ट‘ का हिस्सा दीवार और प्रस्तावित टाउनशिप पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (इससे पहले पर्यावरण और वन मंत्रालय) की ओर से साल 1996 में घोषित नो-डेवलपमेंट जोन में आते हैं। क्षेत्र में कोई भी गैर-वन गतिविधि 1996 में टी. एन. गोदावर्मन मामले में जारी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन होगी। देवपहार को 1999 में प्रस्तावित आरक्षित वन के रूप में अधिसूचित किया गया था और 2019 में इसे आरक्षित वन का दर्जा दिया गया था।
एनजीटी के फैसले के बारे में चौधरी ने कहा, “आदेश के बाद एनआरएल ने ट्रिब्यूनल में रिव्यू पिटीशन दायर की। इस आवेदन को 2018 में एनजीटी ने खारिज कर दिया था। इसके बाद रिफाइनरी ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की जिसमें गोलाघाट जिले के अधिकारियों से पूरी चारदीवारी को नहीं गिराने का निर्देश देने की मांग की गई थी। हालांकि, यह याचिका गुवाहाटी हाईकोर्ट में लंबित थी, एनआरएल ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट में एनजीटी के आदेशों के खिलाफ अपील दायर कर दी। शीर्ष अदालत की दो सदस्यीय पीठ ने जनवरी 2019 में यह कहते हुए अपील खारिज कर दी कि जंगल पर हाथियों का पहला अधिकार है।
उन्होंने कहा, “एनआरएल ने अगस्त 2019 में हाईकोर्ट में एक और रिट याचिका दायर की। आखिरकार, हाईकोर्ट ने एनजीटी के आदेश को चुनौती देने वाली दोनों रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया। अब, उन्होंने अपने सभी कानूनी विकल्प खत्म कर लिए हैं और उन्हें एनजीटी के आदेश का पालन करना होगा।”
वन्यजीवों का स्वर्ग
देवपहार का आरक्षित वन एनआरएल टाउनशिप के पास स्थित है। दो दशकों से ज्यादा समय से गोलाघाट की संरक्षणवादी मुबीना अख्तर ने जोर देकर कहा कि देवपहार जंगली जानवरों के लिए गलियारे के रूप में बहुत अहम भूमिका निभाता है। उन्होंने कहा, “जहां तक मुझे याद है, एनआरएल अधिकारियों की ओर से बनाई गई चारदीवारी साल 2011 में मेरे ध्यान में आई थी। नुमालीगढ़ रिफाइनरी वाली जगह तेलगाराम हाथियों के आवास के लिए जाना जाता है। साथ ही, यह क्षेत्र काजीरंगा और कार्बी आंगलोंग के बीच हाथियों की आवाजाही के लिए गलियारे के रूप में काम करता है। 1990 के दशक में तेलगाराम में एनआरएल की स्थापना के साथ, रिफाइनरी परियोजना के आवास के लिए वन क्षेत्रों के बड़े इलाकों को साफ कर दिया गया था। ये क्षेत्र महत्वपूर्ण वन्यजीव गलियारे और एक बड़े पारिस्थितिकी तंत्र और जलग्रहण क्षेत्र के हिस्से के रूप में काम कर रहे थे।
अख्तर ने दावा किया कि टाउनशिप के विस्तार, नई बस्तियों और नुमालीगढ़ और उसके आसपास छोटे चाय बागानों के विकास के साथ, मानव-हाथियों के बीच संघर्ष भी बढ़ा। उन्होंने कहा, “इस तरह का संघर्ष पिछले कुछ सालों में बढ़ा है, जिसके चलते दोनों पक्षों को नुकसान हुआ है। ग्रेटर नुमालीगढ़ क्षेत्र में 2011 और 2020 के बीच 20 से ज्यादा लोगों की जान चली गई।”
उन्होंने कहा, “डाइग्रुंग, मोरोंगी, फलांगनी, बोकियाल और कलियोनी जैसे पड़ोसी क्षेत्रों को खेतों पर हाथियों के आने का खामियाजा भुगतना पड़ता है। ये घटनाएं तब होती हैं जब हाथियों को अपने आवास या नियमित रास्ते में बाधाएं दिखती हैं। देवपहार जंगल के अंदर एनआरएल की ओर से बनाई गई चारदीवारी का दो किलोमीटर का हिस्सा हाथियों के लिए बड़ी बाधा बन गया, जिससे उनकी नियमित आवाजाही रुक गई। कई मामलों में, इस बाधा के चलते हाथियों के बच्चे अपने झुंड से अलग हो गए। हाथियों जैसे मोटी चमड़ी वाले जानवारों को इन बाधाओं से छुटकारा पाने की कोशिश करते हुए दीवारों से टकराते हुए भी देखा गया। ”
आरक्षित जंगल की जैव विविधता के बारे में बात करते हुए गोलाघाट जिले के प्रभागीय वन अधिकारी सुशील ठाकुरिया ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “इस जंगल में लगभग 15 हाथी रहते हैं। इसके अलावा, प्रवासी हाथी इस जंगल का इस्तेमाल गलियारे के रूप में करते हैं। देवपहार में तेंदुओं की भी अच्छी आबादी है। यहां कुछ अन्य जंगली बिल्ली प्रजातियां, हूलॉक गिब्बन, स्लो लोरिस, हिरण, अजगर और तितलियों और पक्षियों की कई प्रजातियां भी हैं।
संरक्षण में सफलता
चारदीवारी तोड़े जाने की खबर के बाद अब पर्यावरणविदों ने राहत की सांस ली है।
विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी में जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र के प्रमुख देबादित्यो सिन्हा ने कहा, “एनआरएल दीवार का गिरना देश में वन्यजीव संरक्षण की जीत माना जा सकता है। हालांकि, यह काम राज्य को करना चाहिए था, क्योंकि वह वन्य जीवन और वन का सबसे पहला संरक्षक है। लेकिन आखिरकार एक नागरिक को इस मामले को अपने हाथ में लेकर न्यायपालिका से मदद लेनी पड़ी जो लंबी प्रक्रिया थी। हाथियों को उनकी बुद्धि और मजबूत याद्दाश्त के लिए जाना जाता है, इसलिए जब उनके पारंपरिक रास्ते में इतने लंबे समय तक बाधाएं रही हैं, तो कोई नहीं जानता कि यह लंबे समय में उनकी पारिस्थितिकी को किस तरह प्रभावित करेगा। हालांकि, अब उम्मीद की जा सकती है कि इस फैसले और इस पर अमल के बाद, यह उन लोगों के लिए नजीर बनेगा जो पर्यावरण मानदंडों का उल्लंघन करते हैं।
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नुमालीगढ़ से 20 किलोमीटर दूर बोकाखाट कस्बे में पले-बढ़े चौधरी ने तब के एक अलग परिदृश्य को याद किया और कहा, “उस समय, एनआरएल टाउनशिप पूरी तरह से जंगलों से घिरा हुआ था। मुझे याद है कि जो लोग गोलाघाट जाते थे, वे ठंड के मौसम में शाम के 4 बजे या उससे पहले बस से वापस आ जाते थे। क्योंकि शाम होते ही नुमालीगढ़ में सैकड़ों की संख्या में हाथी सड़क पर निकल आते थे। हाथी हमेशा से यहां के लोगों के जीवन का अभिन्न अंग रहे हैं। विकास हमारे पर्यावरण और वन्यजीवों की कीमत पर नहीं होना चाहिए।
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बैनर तस्वीर: नुमालीगढ़ रिफाइनरी लिमिटेड की चारदीवारी के पास हाथियों का झुंड। तस्वीर: रोहित चौधरी।