- कोसी नदी हर साल करीब 120 मिलियन क्यूबिक मीटर गाद बहाकर लाती है जिससे नदी का बेड या पेट उथला हो गया है और बाढ़ का खतरा बढ़ा है।
- कोसी में सालाना आने वाली गाद में 94 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ मॉनसून के महीनों का होता है। इस साल आई बाढ़ में उसकी मात्रा और अधिक बढ़ गई है। कोसी के कई इलाकों में खेतों में पानी व गाद भर जाने से खरीफ की फसल खराब हो गई और रबी की खेती को भी नुकसान होने का अंदेशा है।
- कोसी बैराज की डिस्चार्ज क्षमता 9.50 लाख क्यूसेक है, लेकिन 6.15 लाख क्यूसेक पानी छोड़ने पर ही यह बैराज के ऊपर से बहने लगा। यह बैराज की सेहत व भविष्य में बाढ़ के खतरों को लेकर एक खतरनाक संकेत है।
- जानकार कहते हैं कि नदी के ऊपर तटबंध और बराज जैसी संरचनाओं की वजह से गाद जमा हो रहा है और बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।
नेपाल के सप्तरी जिले के 63 वर्षीय रामेश्वर यादव माहुली नदी के एक नंबर पुल से कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे चबूतरे पर बैठे हैं। उनके साथ हैं 74 वर्षीय सुखीलाल खंख। कोसी में बाढ़ आए एक सप्ताह हो गए हैं और उनकी बातचीत का केंद्र भी सितंबर के आखिरी सप्ताह में नेपाल में हुई भारी बारिश और इसकी वजह से आई बाढ़ ही है। रामेश्वर यादव कहते हैं, “यह पहाड़ की नदी है, पानी ऊपर से आता है तो यह मिट्टी ऊपर से लेकर आता है, इससे कोसी और माहुली दोनों ऊंची हो गई है, इससे डूब का खतरा बढ़ गया है।” वे सामने के पुल को दिखाते हुए कहते हैं कि इस बार सप्तरी पुल के ऊपर से पानी बहा।
बुजुर्ग सुखीलाल खंख माहुली नदी पर बने पुल को दिखाते हुए कहते हैं, “10 साल पहले यह पुल नदी के तल से करीब 10 फीट ऊपर था, अब देखिये दोनों के बीच अंतर करीब दो फीट है“। इस दौरान वे अपने हाथ की लाठी को हवा में लहरा कर यह बताते हैं कि उस समय हम पुल के नीचे जाकर लाठी को ऊपर हवा में कर देते तो भी यह पुल के छत को नहीं छू पाता था।
माहुली कोसी के भारत में प्रवेश करने से पहले और कोसी बैराज से पहले उसकी एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है और यह भी अपने साथ बहाकर लाई गई गाद को कोसी में शामिल कर उसके गाद में इजाफा करती है। इससे पहले भी नेपाल में उसकी तमाम सहायक नदियां उसके गाद व तलछट की मात्रा को बढ़ाती हैं।
नेपाल की तरह भारत के बिहार में भी कोसी में अधिक मात्रा में तलछट व गाद आने से परेशानियां लगातार बढ़ी हैं। खास तौर से हर साल बारिश के महीनों में आने वाले गाद से बड़े भूभाग में खेतिहर जमीन पट जाती है। अत्यधिक बारिश और बाढ़ की तीव्रता इसमें इजाफा करती हैं। सुपौल जिले के सुपौल ब्लॉक में पड़ने वाले मुंगरार छींट (कोसी नदी के बीच में स्थित टापू) पर रहने वाले मोहम्मद सईद गाद से ढके अपने खेत को दिखाते हुए कहते हैं, “हमारे सवा दो बीघे खेत में धान लगी थी, सब बाढ़ के पानी में बह गया और उस पर गाद जम गई“। मोहम्मद सईद दिल्ली में प्रवासी मजदूर के रूप में काम करते हैं और बाढ़ आने के बाद वे अपने गांव आये। उनका घर बाढ़ में बह गया जिसका मलवा चारों तरफ पसरे गाद में नजर आता है।
सुपौल जिले के बगहा, खुखनाहा, बेलागोट आदि गांवों में इस साल सितंबर के आखिरी दिनों में कोसी नदी में आई बाढ़ के बाद भारी मात्रा में गाद का जमाव हो गया। दरभंगा जिले में स्थित कोसी का पश्चिम तटबंध भूभौल गांव के पास जिस जगह पर टूटा वहां भी गाद की भारी मात्रा दिखी। इलाके के किसान अक्टूबर के महीने में भी अत्यधिक मात्रा में पानी का जमाव होने व खेतों में गाद भरे होने से रबी की खेती को लेकर आशंकित हैं। कई हिस्सों में पानी व गाद के कारण धान की फसल में आई हुई बालियां खराब हो गई हैं।
गाद से बढ़ा कोसी बैराज का संकट
सितंबर 2024 के आखिरी दिनों में नेपाल में हुई भारी बारिश के बाद कोसी सहित नेपाल से भारत में आने वाली दूसरी नदियों का का जलस्तर बढ़ गया। 29 सितंबर 2024 को कोसी बैराज का अधिकतम डिस्चार्ज लेवल 6 लाख 61 हजार क्यूसेक पहुंच गया और सभी 56 गेट खोल दिये गये थे, हालांकि इस दिन डिस्चार्ज लेवल 6.15 लाख क्यूसेक पहुंचने पर ही पानी बैराज के ऊपर से बहने लगा था। बीरपुर के पास भीमनगर में स्थित कोसी बैराज का अधिकतम डिस्चार्ज लेवल 9.50 लाख क्यूसेक है।
इस संबंध में बीरपुर में बिहार जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर (बाढ़ नियंत्रण एवं ड्रेनेज) वरुण कुमार ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहा, “गाद एक समस्या है और कोसी में काफी अधिक तलछट जमा (Siltation) हो रहा है जिससे नदी का बेड लेवल ऊपर आ रहा है, जिसके कारण बैराज का डिस्चार्ज लेवल एक से डेढ मीटर तक कम हो गया है। यह एक चुनौती है और इससे निपटने के लिए सरकार प्रयास कर रही है“। वे कहते हैं, “डिसिल्टेशन (गाद को हटाना) एक जटिल प्रक्रिया है, वहां से जो गाद निकालेंगे उसे रखेंगे कहां यह समस्या है, लेकिन इससे जुड़े सभी उपायों पर विचार किया जा रहा है“।
29 सितंबर को 6.15 लाख क्यूसेक के अधिकतम बहाव पर पानी के बैराज के ऊपर से प्रवाहित होने के सवाल पर वरुण कुमार ने कहा, ” साढ़े नौ लाख क्यूसेक क्षमता पर बैराज डिजाइन किया गया था तो यह उसकी अधिकतम या 100 प्रतिशत क्षमता हुई, कोई भी स्ट्रक्चर अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं करता, अगर 75 प्रतिशत क्षमता के साथ इसके काम करने को हम मानें तो कोसी बैराज से अधिकतम प्रवाह सात से 7.20 लाख क्यूसेक तक हो सकता है। ऐसे में 6.15 लाख क्यूसेक के डिस्चार्ज पर पानी ऊपर से जाना जरूर चिंता की बात है“।
कोसी नदी में इस साल आई बाढ़ के बाद राज्य व केंद्र स्तर पर कवायद तेज हुई है। बैराज के संबंध में पुणे के एक संस्थान में अध्ययन करवाया जा रहा है। साथ ही गेट को ऑपरेट कर गाद को काटने जैसे विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है। जानकारों का कहना है कि कोसी के अलग–अलग हिस्से में गाद की मोटाई का अलग–अलग स्तर है, अनुमानतः यह चार से आठ फीट तक या इससे ज्यादा हो सकता है। बहरहाल, गाद के जमाव के कारण बाढ़ के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए तटबंध को मजबूत करने, उसमें सीपेज न हो इसकी व्यवस्था करने सहित अन्य तकनीकी उपायों में उसके विकल्प तलाशे जा रहे हैं।
सुपौल के एडीएम (आपदा प्रबंधन) निशांत कुमार ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहा, “कोसी के प्रवाह में कुछ बदलाव आया है और वे कर्व या सी सेफ की हो गई है, इसलिए इस बार तटबंध टूटा व ऐसी आपदा आई“। वे आगे कहते हैं, “यह नदी अपने साथ गाद बहुत लाती है और इस बार कोसी, बागमती, गंडक व महानंदा के कैचमेंट एरिया में बहुत ज्यादा बारिश हुई, इसलिए परेशानी भी ज्यादा हुई। करीबन 10 फीट तक गाद कोसी में जमा हो सकता है, और यह चुनौती है कि इसका निपटान कहां होगा, जबकि एक प्रतिशत गाद की भी मांग नहीं है। लेकिन, इस पर अध्ययन किया जा रहा है और एक टीम हालात का जायजा लेगी“।
कोसी में गाद का संकट कितना बड़ा है?
कोसी में गाद की समस्या पर इंटनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) की एक रिपोर्ट के अनुसार – कोशी नेपाल और भारत के जलोढ़ भागों में बहने से पहले दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों माउंट एवरेस्ट और कंचनजंगा सहित पूर्व–मध्य हिमालय के एक बड़े हिस्से से बहती है और
अत्यधिक गतिशील और तलछट वाली नदी है। इसलिए इसके तलछट या गाद का प्रबंधन मुश्किल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च तलछट की मात्रा डाउनस्ट्रीम में बाढ़ व चैनल शिफ्टिंग जैसी नदी संबंधी खतरों से जुड़ा हुआ है।
इस अध्ययन में कहा गया है कि एक रूढ़िवादी अनुमान से पता चलता है कि चतरा(नेपाल) से बीरपुर के बीच और बीरपुर से बतलारा खंड तक तटबंधों के भीतर क्रमशः 408 और 1080 मिलियन क्यूबिक मीटर तलछट पिछले चार–पांच दशकों में जमा हो सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि हाल के सालों में जल संसाधन विभाग के कई हस्तक्षेप के कारण यह बढ़ा है, जिसमें चतरा और बीरपुर में बैराज और नदी के दोनों किनारे तटबंध शामिल हैं जो 1965 के आसपास पूरे हुए थे।
दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ हिमालयन स्टडीज के डायरेक्टर विंध्यवासिनी पांडेय ने मोंगाबे हिंदी से कहा, “हिमालय के तीन हिस्से हैं – पहला ग्रेट हिमालय जहां ज्यादा बारिश नहीं होती है और बर्फबारी होती है और अपरदन (चट्टानों का विखंडन) नहीं होता है। दूसरा मध्य हिमलाय जहां सबसे अधिक बारिश होती है, लेकिन अपरदन तुलनात्मक रूप से कम होता है। तीसरा है शिवालिक जो दुनिया का सबसे नया पहाड़ है और उसे बेबी ऑफ माउंटेन कहा जाता है, उसकी चट्टानें अभी कठोर नहीं हुई हैं, वहां पानी गिरने मात्र से अपरदन या कटाव होता है। अपरदन को समझाते हुए पांडेय कहते हैं,” इसमें चट्टानपानी में घुल कर नीचे बहता है, उसके बाद वहां भूस्खलन भी होता है। नदी का एक किनारा कटाव करता है तो दूसरा किनारा जमाव भी करता है और दोनों किनारे विपरीत होते हैं। कोसी में गाद व तलछट की समस्या इसी से जुड़ी है।“
गाद से नदी का तल ऊंचा हुआ
फरवरी 2023 में नेपाल के नदी विशेषज्ञ अजय दीक्षित, नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर, आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर राजीव सिन्हा सहित कई प्रमुख नदी विशेषज्ञों व पर्यावरण कार्यकर्ताओं की सहभागिता वाले कोसी नदी घाटी जनआयोग ने एक रिपोर्ट जारी कर कोसी की पूरी स्थिति पर तथ्य, नजरिया व सुझाव रखा। इस रिपोर्ट में भी कहा गया है कि कोसी हिमालय की सबसे ऊँची चोटियों से निकल कर शिवालिक की कमजोर परतदार चट्टानों से होकर बहती है और यह इसके गाद के लिए लिए कारक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 94 प्रतिशत तलछट मानूसन के महीने में जून मध्य से अक्टूबर मध्य तक लाया जाता है। 1948-81 के मापन के अनुसार, 19 प्रतिशत भार मोटे तलछट का, 25 प्रतिशत मध्य तलछट का और 56 प्रतिशत महीन या बारीक तलछट का शामिल है, हाल के वर्षों में इसका अध्ययन व मापन नहीं किया गया है, जिसकी जरूरत है।
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इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोसी नदी के पूर्वी तटबंध पर पैदल चलने से यह स्पष्ट पता चलता है कि नदी का बेड या पेट तटबंध से ऊँचा हो गया है और अपस्ट्रीम नेपाल में भी यही स्थिति है। आयोग ने कोसी नदी से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए बहुआयामी नीति अपनाने का सुझाव दिया है।
इस आयोग के सदस्य व नेपाल के प्रमुख नदी विशेषज्ञ अजय दीक्षित ने मोंगाबे हिंदी से बातचीत में कहा, “भारी बारिश से नेपाल और भारत में इस साल व्यापक क्षति हुई, कोसी हमेशा से बड़ी मात्रा में अपने साथ तलछट लेकर आती है, लेकिन ब्रिटिश समय से मानव हस्तक्षेप बढ़ा, उसे नियंत्रित करने के उपाय किये गये, तटबंध व अन्य संरचनाएं बनाये गये, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं है“। वे कहते हैं, “कोसी में 100 से 120 मिलियन क्यूबिक मीटर गाद हर साल आता है, ध्यान रहे कि यह गाद है बालू नहीं जिसका संरचनात्मक निर्माण में उपयोग किया जा सकता है।”
अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली से कोसी नदी पर शोध करने वाले राहुल यादुका कहते हैं, “गाद लाना और दिशा बदलना कोसी नदी का स्वभाव है, उसके इस स्वभाव को समस्या के रूप में चिह्नित कर दिया गया है, उत्तर बिहार का मैदान इसी गाद से बना है, 70 के दशक तक लोग नदी से बहकर आने वाली इस गाद की उम्मीद लगाये रहते थे“। विशेषज्ञों का कहना है कि फौरी समाधान के बजाय दीर्घकालिक व बहुआयामी पहल जरूरी है।
बैनर तस्वीरः नेपााल के सप्तसरी जिले में कोसी नदी से लकड़ियां ले जाता एक ग्रामीण। कोसी नदी में भारी मात्रा में लकड़ियां पहाड़ पर से बहकर आयी हैं, जिसे जगह-जगह लोग नदी से चुनते दिखे। तस्वीर- राहुल सिंह मोंगाबे के लिए