- कश्मीर में सैकड़ों मधुमक्खी पालक सर्दियों के महीनों में अपने छत्तों को राजस्थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे गर्म इलाकों में ले जाते हैं।
- यह प्रवास छत्तों को स्वस्थ और हर साल उत्पादक बनाए रखता है। अनुकूल मौसम में मधुमक्खियां फिर से ऊर्जावान हो जाती हैं और कश्मीर से बाहर सरसों के खेतों से नेक्टर और पराग इकट्ठा करने लगती हैं।
- जम्मू और कश्मीर में सालाना लगभग 22,000 क्विंटल शहद का उत्पादन होता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा विभिन्न राज्यों और देशों को निर्यात किया जाता है।
अक्टूबर के महीने में, जैसे ही घाटी में सर्दी का आगाज़ होता है, दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में रहने वाले 45 वर्षीय मधुमक्खी पालक मोहम्मद अमीन वानी, अपने दो सहयोगियों के साथ राजस्थान के अपने सफर पर निकल पड़ते हैं। छह से सात महीने राजस्थान में बिताने के बाद, मई के दूसरे सप्ताह में वह अपने घर लौट आते हैं। यह मौसमी प्रवास न केवल वानी के लिए, बल्कि उनकी हजारों मधुमक्खियों के अस्तित्व के लिए भी बेहद जरूरी है। बीते बीस सालों से वह इसी तरह मधुमक्खी पालन करते आ रहे हैं।
कश्मीर में उनके जैसे सैकड़ों मधुमक्खी पालक सर्दियों के महीनों में अपने छत्तों को राजस्थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे गर्म क्षेत्रों में ले जाते हैं।
गर्म जगहों की ओर रुख करने की वजह
वानी बताते हैं, “कश्मीर की कड़ाके की सर्दी में मधुमक्खियों के लिए जीवित रहना और भोजन (पराग) जुटाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए यह मौसमी प्रवास जरूरी है। इससे हमारे छत्ते हर साल स्वस्थ और उत्पादक बने रहते हैं। राजस्थान के गर्म मौसम में और खासकर सरसों के खेतों में पहुंचते ही, मधुमक्खियां फिर से सक्रिय हो जाती हैं और रस (नेक्टर) और पराग इकट्ठा करने लगती हैं।” वानी और उनके साथी सरसों के खेतों के पास ही तंबुओं में या किराये के कमरों में रहते हैं।
कश्मीर की सर्दियां मधुमक्खी पालन के लिए खासी चुनौतीपूर्ण होती हैं। गर्म इलाकों में जाकर, और सरसों के खेतों से पराग प्राप्त करके, मधुमक्खी पालक न केवल अपनी मधुमक्खियों को ठंड से बचाते हैं, बल्कि शहद का निरंतर उत्पादन भी सुनिश्चित करते हैं और अपने छत्तों के स्वास्थ्य और टिकाऊपन को बनाए रखते हैं। यह प्रक्रिया मधुमक्खियों के जीवित रहने और इस क्षेत्र में मधुमक्खी पालन की आर्थिक पक्ष को भी सक्षम बनाती है।
मोंगाबे इंडिया से बातचीत में वानी ने बताया, “मेरे पास लगभग 350 मधुमक्खी के छत्ते हैं जिनसे मैं सालाना लगभग 4,000 किलोग्राम शहद का उत्पादन करता हूं।” उन्होंने आगे बताया कि प्रत्येक छत्ता मौसम के अनुसार 10 से 15 किलोग्राम शहद देता है। इस व्यवसाय से उन्हें सालाना 15 से 20 लाख रुपये की कमाई होती है, जिस पर उनका पूरा परिवार निर्भर है। इसके अतिरिक्त, वे मधुमक्खी पालन में मदद करने वाले अपने प्रत्येक सहायक को हर महीने 30,000 रुपये वेतन भी देते हैं।
मधुमक्खी पालन में काफी संभावनाएं
कश्मीर के कृषि विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू और कश्मीर में सालाना 22,000 क्विंटल (22 लाख किलोग्राम) शहद का उत्पादन होता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा विभिन्न राज्यों और देशों को निर्यात किया जाता है। मोंगाबे इंडिया को मिले दस्तावेज से पता चलता है कि कश्मीर में अभी 110,000 मधुमक्खियों की कॉलोनियां हैं, लेकिन इस क्षेत्र में 200,000 कॉलोनियो की क्षमता है।
वानी के अनुसार, मौजूदा समय में, मधुमक्खी पालन क्षेत्र मधुमक्खी उत्पादों की विविधता के कारण बहुत बड़ा बाजार हासिल कर रहा है।
मधुमक्खी पालन एक ऐसा उद्यम है जो किसानों के लिए आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान कर सकता है। इसी संभावना को देखते हुए, कई शिक्षित युवा भी इस खेती से जुड़े हैं और कमाई कर रहे हैं।
अड़तिस वर्षीय फिल्म निर्माता फैज़ल साइमन ने कोविड-19 महामारी के दौरान 2020 में मधुमक्खी पालन शुरू किया था। कई अन्य लोगों की तरह, वह महीनों तक अपने श्रीनगर स्थित घर में बेरोजगार बैठे रहे। उनकी हमेशा से खेती में रुचि रही थी, सो उन्होंने मधुमक्खी पालन शुरू करने का फैसला किया।
वह बताते हैं, “शुरुआत में, मैंने 100 मधुमक्खी के छत्तों में निवेश किया।” उन्होंने आगे कहा, “मैंने एक साल तक कश्मीर भर के कई विशेषज्ञों से ट्रेनिंग ली और शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नॉलॉजी (SKUAST) कश्मीर से मधुमक्खी पालन का अध्ययन भी किया।”
साल 2021 में, उन्होंने अधिक मधुमक्खी के छत्ते प्राप्त करके अपने नए उद्यम का विस्तार करने का फैसला किया। अब वह मधुमक्खियों से भरे 200 से अधिक बक्सों को संभालते हैं। साइमन ने मोंगाबे इंडिया को बताया, “मौसम की स्थिति और सख्त गुणवत्ता नियंत्रण मानकों के आधार पर सालाना, लगभग 1,000 किलोग्राम शहद का उत्पादन हो जाता है।”
फैज़ल साइमन, जब अपने मधुमक्खी फार्म पर चिपचिपे छत्ते से शहद निकालते हैं, तो मधुमक्खियों के डंक से बचने के लिए अपना चेहरा जाली से ढ़क लेते हैं।
उन्होंने बताया, “हम हर साल अक्टूबर के अंत में अपने मधुमक्खी के छत्ते कश्मीर से उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान ले जाते हैं, जहां मौसम गर्म होता है और मई के आसपास वापस कश्मीर ले आते हैं।” इस प्रवास के दौरान मधुमक्खियों की देखभाल करने के लिए उन्होंने चार कर्मचारियों को काम पर रखा हुआ है।
अतिरिक्त आय की संभावना
कश्मीर से बाहर, ज्यादातर किसान उन्हें सरसों के खेतों के पास बिना कोई पैसा लिए अपने छत्ते रखने की अनुमति दे देते हैं।
साइमन कहते हैं, “सरसों के फूलों से पराग इकट्ठा करने वाली मधुमक्खियां पौधों के प्रजनन चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, आनुवंशिक विविधता बढ़ाती हैं, बीज उत्पादन बढ़ाती हैं, फसल की गुणवत्ता में सुधार करती हैं और पर्यावरणीय स्वास्थ्य का समर्थन करती हैं।” उन्होंने आगे कहा, “यह सहजीवी संबंध मधुमक्खियों और सरसों के पौधों दोनों को फायदा पहुंचाता है। सरसों के फूलों से मिला एक किलोग्राम शहद 400-500 रुपये में बिकता है, जबकि शुद्ध कश्मीरी शहद की कीमत 800-1000 रुपये प्रति किलोग्राम है।”
शहद के लिए मधुमक्खी पालन के अलावा, साइमन ने अपना खुद का उद्यम शुरू किया है, जो मुख्य रूप से कश्मीर और हिमालय के अन्य हिस्सों में उत्पादित 30 से अधिक जैविक उत्पादों को बेचता है।
SKUAST-K के एक शोधकर्ता आबिद खान का कहना है कि कश्मीर में उत्पादित शहद भारत में सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि यह जैविक है।
खान बताते हैं, “कश्मीर में मधुमक्खियां खास तौर पर कीकर के पेड़ों (जिन्हें वैकेलिया नाइलोटिका भी कहते हैं) से नेक्टर इकट्ठा करती हैं। ये पेड़ उच्च गुणवत्ता का रस देते हैं जिससे बेहतरीन शहद बनता है।” उन्होंने आगे कहा ” क्योंकि कीकर के पेड़ प्राकृतिक और कीटनाशक मुक्त वातावरण में होते हैं, इसलिए इससे बनने वाला नेक्टर भी रसायनों से मुक्त रहता है और जैविक माना जाता है।”
खान बताते हैं कि कश्मीर से बाहर सरसों के खेतों से इकट्ठा किया गया शहद जैविक नहीं रहता है, क्योंकि किसान अपने खेतों में कई तरह के रसायनों का इस्तेमाल करते हैं।
कृषि विभाग कश्मीर के निदेशक चौधरी मोहम्मद इकबाल ने इस क्षेत्र में मधुमक्खी पालन को एक समृद्ध कृषि कुटीर उद्योग के रूप में विकसित करने और किसानों को अतिरिक्त आय कराने की महत्वपूर्ण क्षमता पर अपनी बात कही।
इकबाल कहते हैं, “समग्र कृषि विकास कार्यक्रम (HADP) के जरिए, हम मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष परियोजना लागू कर रहे हैं। सरकार वित्तीय सहायता, तकनीकी सहायता और प्रशिक्षण सहित मधुमक्खी पालकों को व्यापक समर्थन दे रही है।”
जैसे-जैसे अधिक शिक्षित युवा इस क्षेत्र में आगे आ रहे हैं, वे नई ऊर्जा और नए विचार ला रहे हैं, जिससे इस इंडस्ट्री की पहुंच और क्षमता का विस्तार हो रहा है।
इकबाल ने आगे कहा, “सरकार द्वारा HADP और राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन जैसी योजनाओं के जरिए दिया जा रहा समर्थन, इस क्षेत्र को और आगे बढ़ा रहा है और कश्मीर के मधुमक्खी पालकों के लिए एक उज्जवल भविष्य का संकेत दे रहा है।”
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जम्मू और कश्मीर के मुख्य सचिव अटल डुलू ने हाल ही में, जम्मू और कश्मीर सरकार द्वारा जारी एक प्रेस बयान में HADP के सुचारू क्रियान्वयन के लिए पेशेवर तकनीकी सहायता प्रदान करने पर संतोष व्यक्त किया और अंतर-विभागीय सहयोग बढ़ाने की सलाह दी।
उन्होंने विभाग द्वारा अधिकांश समस्याओं को हल करने के लिए उसकी प्रशंसा की और कहा कि अब समय आ गया है कि इस कार्यक्रम से अपेक्षित परिणाम धरातल पर दिखाई दें।
यह खबर मोंगाबे इंडिया टीम द्वारा रिपोर्ट की गई थी और पहली बार हमारी अंग्रेजी वेबसाइट पर 2 जुलाई 2024 को प्रकाशित हुई थी।
बैनर तस्वीर: कश्मीर के खेतों में अपने छत्ता ले जाता हुआ एक मधुमक्खी पालक। तस्वीर- फैज़ल साइमन