- छत्तीसगढ़ के जंगलों में खाने-पानी की कमी की वजह से हाथियों ने मध्यप्रदेश का रुख किया है।
- बाघों के घर बांधवगढ़ के आसपास के 50 गांव हाथियों की आवाजाही से परेशानी झेल रहे हैं।
- मध्यप्रदेश वन विभाग के पास फंड और ट्रेनिंग की कमी की वजह से हाथियों को संभालना मुश्किल हो रहा है।
उमरिया, मध्यप्रदेश: महामन गांव के खेलावन सिंह तमाम कोशिशों के बाद भी इस साल धान की खेती नहीं कर पाए। बार-बार धान की रोपाई की पर हर बार हाथियों ने उनकी फसल तबाह कर दी। खेलावन को यह परेशानी इससे पहले कभी नहीं आई, लेकिन छत्तीसगढ़ से आए जंगली हाथियों के झुंड ने इसबार नई परेशानी खड़ी कर दी है। उमरिया के मनखेचा गांव के दूसरे किसान सहपाल सिंह की परेशानी भी कुछ ऐसी ही है। वह कहते हैं कि सुअर और हिरण जैसे दूसरे जानवर बस खेत खाते हैं, लेकिन हाथियों ने तो खेत को तहस-नहस कर दिया है।
इन किसानों की परेशानी, हाथियों के बड़े झुंड के छत्तीसगढ़ से मध्यप्रदेश पलायन के बाद, शुरू हुई। तकरीबन दो वर्ष से 40 हाथियों का एक झुंड मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान वाले इलाके में सक्रिय है। महामन और मनखेचा गांव के अलावा गदपुरी सुलखनिया, पटोर और पनपथा जैसे तकरीबन पचास गांव हाथियों से प्रभावित हैं।
यहां खेत के अलावा हाथी कच्चे मकानों को भी अपना निशाना बनाते हैं। सहपाल ने बताया कि इसी साल अप्रैल में हाथियों ने उनके घर पर हमला किया। वह कहते हैं, “हाथियों की उस टोली में तकरीबन चार हाथी थे। मेरी पत्नी, तीन बच्चों सहित परिवार के कुल पांच सदस्य एक ही मकान में सो रहे थे। देर रात को हाथी घर में घुस आया। जैसे-तैसे परिवार की जान बची, लेकिन मकान बर्बाद हो गया। हाथी घर में रखा चावल और आटा खा गए।” एक दूसरे मामले में सितंबर, 2019 में टाइगर रिज़र्व के पनपथा बीट के सजवाही गांव पर हाथियों का हमला हुआ। इस हमले में कई ग्रामीणों का घर तबाह हो गया और धान के खेत भी हाथियों की चपेट में आ गए।
इन सब की शुरुआत वर्ष 2018 में हुई और तब से ये चालीस हाथी मध्यप्रदेश के जंगल में ही मंडरा रहे हैं। हाथियों का यह झुंड संजय राष्ट्रीय उद्यान, बांधवगढ़ और कान्हा टाइगर रिज़र्व में घूम रहा है। मध्यप्रदेश में हाथियों की संख्या को लेकर सबसे ताजा सर्वे 2017 में हुआ था जिसमें यहां सिर्फ सात जंगली हाथी पाए गए थे।
तेजी से खत्म हो रहे जंगल तो नहीं पलायन की वजह?
मध्यप्रदेश बाघ का गढ़ है लेकिन हाथी यहां पहली बार इतनी तादात में देखे जा रहे हैं। यह कहना है वन विभाग के सेवानिवृत अधिकारी मृदुल पाठक का। वह बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर के पद से रिटायर हुए हैं। उन्होंने हाथियों के पलायन को समझाते हुए कहा कि हाथी अपना कुनबा खाने और पानी की खोज करने के लिए बढ़ाते हैं। हाथियों का समूह किसी इलाके में खाने की कमी होने पर उसे छोड़कर दूसरे इलाकों की तरफ बढ़ता है। मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ से हाथी इसी वजह से घुस आए हैं। ओडिसा और झारखंड के जंगलों से मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ हाथी खाने की खोज में आते रहे हैं। खेतों में खड़ी फसल और पानी की उपलब्धता हाथियों को आकर्षित करती है।
छत्तीसगढ़ में जंगल खराब होने की वजह से इंसान और जंगली जीव के बीच टकराव बढ़ रहा है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक पिछले पांच साल में 325 इंसान और 70 हाथी इस टकराव में अपनी जान गंवा चुके हैं। इसका मतलब हुआ 65 इंसान और 14 हाथी हर साल मर रहे हैं। संपत्ति, खेती और जीवन के नुकसान की वजह से सरकार को हर साल 75 करोड़ का अतिरिक्त भार उठाना पड़ रहा है।
हाथियों के पलायन की वजह से जंगल के किनारे रहने वाले लोगों पर खतरा बढ़ रहा है। अप्रैल में हाथियों के एक समूह ने मध्यप्रदेश के अनूपपुर जिले में तीन लोगों की जान ले ली थी। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के 161 गांव बफर जोन के अंतर्गत आते हैं, जिनमें से पचास गांव पर हाथियों का प्रकोप है। इंसान और जानवरों के संघर्ष को कम करने के लिए वन विभाग का अमला जंगली हाथियों को गांव से दूर रखने की कोशिश करता है। इसके लिए हाथियों की लगातार निगरानी होती है और उनपर पानी छिड़ककर उन्हें जंगल में भीतर धकेला जाता है।
पाठक यह भी आशंका जताते हैं कि हाथियों के आ जाने से बांधवगढ़ में बाघों पर भी बुरा प्रभाव होगा। वह कहते हैं कि जहां हाथी आ जाते हैं वहां बाघों को रहने में दिक्कत होती है। दोनों एकसाथ जंगल में नहीं रह पाते।
हाथियों की गतिविधि पर वन विभाग की नजर
बांधवगढ़ के फील्ड डायरेक्टर विंसेंट रहीम ने मोंगाबे को बताया कि उनकी टीम जीपीएस की मदद से हाथियों की निगरानी करती है और उनके लिए खाने-पीने का इंतजाम करती है। रहीम का मानना है कि हाथी अभी जंगल से पूरी तरह परिचित नहीं हैं इसलिए इसे जानने के लिए अधिक चक्कर लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि वन विभाग दूसरे राज्य के विशेषज्ञों को बुलाकर कर्मचारियों की ट्रेनिंग करवा रहा है ताकि वे हाथियों को ठीक तरीके से संभाल सकें। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर गैर सरकारी संगठनों की मदद से लोगों को हाथियों के प्रति जागरूक किया जा रहा है, जिससे टकराव कम किया जा सके।
ऐसे ही एक कार्यक्रम को चलाने वाले उमरिया के वन्य जीव संरक्षणकर्ता पुष्पेंद्र नाथ द्विवेदी कहते हैं कि ऐसे कार्यक्रमों की मदद से गांव वालों को बताया जाता है कि हाथी हमारे जंगल के लिए कितना महत्व रखते हैं। उन्होंने बताया कि वे जंगल के गावों में जाकर पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन की मदद से ग्रामीणों को यह बात समझाते हैं कि हाथी जंगल को बढ़ाने में मदद करते हैं। उनके होने से ग्रामीणों का फायदा होता है। द्विवेदी के मुताबिक इस समय हाथियों का झुंड हमेरा, मनखेचा, दमना, गाता, बड़मेरा, महामना और गोधी गांव में सक्रिय है।
हाथियों के द्वारा किए गए विनाश के बारे में रहीम बताते हैं कि जंगल में हाथियों के लिए पर्याप्त खाना है। हालांकि, छोटे हाथी नटखट होते हैं और उन्हें जब कोई नई चीज दिखती है तो उससे खेलने लगते हैं। इस क्रम में छोटे हाथियों ने कई सौर उर्जा के पैनल और सोलर पंप तोड़ दिए हैं।
रहीम कहते हैं कि अगर कोई जानवर किसी इंसान या मवेशी की जान ले ले तो सरकार की तरफ से मुआवजा मिलता है, लेकिन संपत्ति के नुकसान पर नहीं। इस नियम को बदलने के लिए उन्होंने राजस्व विभाग को लिखा है।
वन विभाग के अधिकारी यह भी कहते हैं कि विभाग के पास हाथियों को संभालने के लिए फंड की कमी है। रहीम कहते हैं कि इस समय हाथियों के लिए विभाग के पास कोई अलग फंड नहीं है। इसके लिए विभाग ने केंद्र सरकार को लिखा भी है। प्रोजेक्ट एलिफेंट केंद्र सरकार द्वारा संचालित कार्यक्रम है जिसे 1992 से चलाया जा रहा है। इसके तहत हाथियों के संरक्षण और इंसानों से टकराव रोकने के लिए कार्यक्रम चलाए जाते हैं।
(मनीष, भोपाल से स्वतंत्र पत्रकार हैं और 101Reporters.com के सदस्य हैं।)
बैनर तस्वीर- बांधवगढ़ के जंगल में पालतू हाथी और जंगली हाथी का मिलन। फोटो- सत्येंद्र कुमार तिवारी